जेएनयू में फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों के आंदोलन के समर्थन में ‘राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस’ के तहत 14 नवंबर को तमाम राज्यों के विभिन्न केंद्रों पर आइसा की इकाइयों ने जेएनयू आन्दोलन के साथ एकजुटता में प्रतिवाद प्रदर्शन आयोजित किए. उन्हानें जेएनयू छात्रों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों को हल करने की मांग उठाई, क्योंकि ये मुद्दे मोदी सरकार द्वारा लादे जा रहे अत्यंत प्रतिगामी बदलावों के खिलाफ पूरे देश के छात्र समुदाय के सरोकारों को अभिव्यक्त करते हैं. सभी जगहों पर इन छात्रों ने मसविदा नई शिक्षा नीति को फौरन वापस लेने की भी मांग जोरदार तरीके से बुलंद की.
गौरतलब है कि जेएनयू के साथ-साथ देश के कई विश्वविद्यालयों में मोदी सरकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अपने पिठ्ठू कुलपतियों के जरिये बेतहाशा फीस वृद्धि कर रही है, जिसका सीधा असर गरीब-वंचित और कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों पर पड़ेगा. जब इसके खिलाफ छात्र आंदोलन कर रहे हैं तो दिल्ली पुलिस उन पर बर्बर दमन कर रही है.
आइसा की लखनऊ इकाई ने अन्य छात्र संगठनों के साथ मिलकर 14 नवंबर को जेएनयू के प्रतिवादकारी छात्रों के समर्थन में एक प्रतिवाद सभा आयोजित की. आइसा ने कठोरतम शब्दों में सरकारी विश्वविद्यालयों और काॅलेजों तथा आइआइटी में तीखी फीस वृद्धि, नई शिक्षा नीति 2019 के मसौदे और जेएनयू के प्रतिवादकारी छात्रों पर वहशियाना लाठी चार्ज की निंदा की.
आइसा नेता शिवम सफीर ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2019 के मसौदे के तहत सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि गरीबों, लड़कियों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से बाहर रखा जाए. छात्र-विरोधी नीति के खिलाफ प्रतिवाद करने वाले छात्रों का बर्बर दमन किया जाता है और उन पर लाठियां बरसाई जाती हैं. यह लोकतंत्र पर हमला है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
आइसा नेता साना और शिवा ने नए ड्रेस कोड और हाॅस्टल कर्फ्यू की आलोचना की और कहा कि यह प्रस्तावित ‘मसविदा’ पूरी तरह असंवैधानिक और पितृसत्ता-प्रेरित है; हम क्या पहनेंगे और क्या खाएंगे, यह हमारा बुनियादी अधिकार है और किसी भी सरकार को हम अपना यह अधिकार छीनने की इजाजत नहीं देंगे. यह सरकार देश में लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंटने पर आमादा है और वह लोकतांत्रिक आवाज को दबा देना चाहती है.
इस मौके पर राज्यपाल को संबोधित एक ज्ञापन प्राॅक्टर को सौंपा जिसमें उपर्युक्त मांगें शामिल थीं. कार्यक्रम में आइसा नेता साना, सौम्या, शिवम, आयुष, शिवा, पंकज, रित्विक, शिखर, नितिन राज तथा अन्य छात्र संगठनों के नेता महेंद्र, प्रियंका, लालू कनौजिया, महेश यादव आदि शामिल थे.
जेएनयू में भारी फीस वृद्धि के विरोध में आंदोलन कर रहे छात्रों पर पुलिसिया दमन के देशव्यापी विरोध के तहत विगत 12 नवंबर 2019 को आइसा-इनौस ने समस्तीपुर में मालगोदाम चौक से विरोध मार्च निकाला और कृष्णा टाकीज रोड, बहादुरपुर, पेठियागाछी, मारवाड़ी बाजार होते हुए स्टेशन चौक पहुंचकर सभा आयोजित की.
इनौस जिलाध्यक्ष रामकुमार के संचालन में हुई सभा को इनौस के जिला सचिव आशिफ होदा, आइसा नेता सुनील कुमार, सुमन सौरभ, मो. तारे, कृष्ण कुमार, दिलीप कुमार राय, मो. एजाज, नौशाद तौहिदी, भाकपा(माले) नेता सुरेंद्र प्रसाद सिंह, उमेश राय आदि ने संबोधित किया.
बेगूसराय में भाकपा(माले) पार्टी कार्यालय से प्रतिरोध मार्च निकाला गया और कैंटीन चौक पर सभा आयोजित की गई. नगर सचिव का. राजेश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित सभा को भाकपा(माले) जिला सचिव का. दिवाकर कुमार, का. चंद्रदेव वर्मा, का. सुरेश पासवान, अर्जुन सदा, महादेव पासवान, रामानुज सिंह, कौशल पंडित, फौजदार सहनी, मो सोहराब, रामओतार सहनी आदि ने संबोधित किया.
पटना के शहीद भगत सिंह चौक पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए इनौस के जिला अध्यक्ष का. साधुशरण व सचिव मिथिलेश कुमार ने कहा कि जेएनयू में प्रशासन द्वारा लगभग हजार गुना फीस वृद्धि की गई है और कैंपस के लोकतांत्रिक माहौल को खत्म करने के लिए ‘न्यू हास्टल मैन्युअल’ और ‘ड्रेस कोड’ लागू किया जा रहा है. छात्रों ने जब इसका विरोध किया तो कैम्पस में सीआरपीएफ को उतार दिया गया और पुलिस द्वारा छात्रों पर वाटर कैनन तथा लाठी चार्ज किया गया. वर्तमान केंद्र सरकार देश से शिक्षा तथा शिक्षण संस्थान को खत्म करने पर उतारू है. गरीबों के बच्चों को शिक्षा से दूर करने के लिए शिक्षा को महंगा किया जा रहा है. शिक्षा, शिक्षण-संस्थानों तथा छात्रों पर दमनकारी नीति अपनाई जा रही है. प्रदर्शन में राज्य कार्यकारिणी सदस्य शशांक मुकुट शेखर, शशि रंजन, लंकेश कुमार, विनय कुमार, पंचम कुमार आदि सहित दर्जनों युवा उपस्थित रहे.
राजधानी पटना के अलावा मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा में भी प्रतिरोध मार्च आयोजित हुआ जबकि आरा, सिवान, नालंदा, नवादा, अरवल, गोपालगंज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेएनयू के उपकुलपति का पुतला भी फूंका गया.
आइसा ने दरभंगा में एलएनएम विवि से भोगेंद्र झा चौक तक एक मार्च निकाला जिसका नेतृत्व विशाल मांझी कर रहे थे. बाद में वहां जिला अध्यक्ष प्रिंस राज की अध्यक्षता में प्रतिवाद सभा आयोजित की गई जिसमें वक्ताओं ने जेएनयू छात्रों पर दमन का विरोध किया और गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के छात्रों से उनके शिक्षा के बुनियादी अधिकार पर हो रहे सरकारी हमलों की कड़ी निंदा की. इसी किस्म के प्रतिवाद बिहार के तमाम प्रमुख केंद्रों पर संगठित किए गए.
पटना, दरभंगा, बेगूसराय, समस्तीपुर, पूसा, सिवान, गोपालगंज, कटिहार, मुजफ्फरपुर में कार्यक्रम आयोजित किये गये. इन कार्यक्रमों में ‘मेजर रोल बैक का नाटक बन्द करो’, ‘जेएनयू के छात्रों की सभी मांगों को अविलंब पूरा करो’, ‘गरीब-वंचित पृष्टभूमि से आने वाले छात्रों को शिक्षा से बाहर करने वाली नई शिक्षा नीति वापस लो’, ‘छात्रों पर दिल्ली पुलिस द्वारा बर्बर दमन के जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करो’ नारे लगाते हुए मार्च आयोजित किये गये.
19 नवंबर को पश्चिम बंगाल के बाली में भाजपा के गुंडों ने जेएनयू छात्रों पर दमन के खिलाफ प्रतिवाद प्रदर्शन कर रहे आइसा के छात्रों पर बुरी तरह से हमला कर दिया.
जेएनयू छात्रों पर दमन के खिलाफ आइसा के राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस का अनुपालन करते हुए बाली में आइसा ने प्रतिवाद प्रदर्शन आयोजित किया था. भाजपा के गुंडों ने इस प्रतिवाद पर बर्बर हमला किया. आइसा नेता स्वर्णेंदु मित्र और शुभदीप समेत अनेक कामरेड इस हमले में घायल हो गए. आइसा की पूर्व-अध्यक्ष सुचेता डे ने इस हमले की कड़ी भत्र्सना करते हुए कहा कि फीस वृद्धि को वापस लेने की छात्रों की मांग से भाजपा बौखला गई है. उन्होंनेेे मांग की कि हमारे विश्वविद्यालयों के दरवाजे गरीब और सुविधाहीन छात्रों के लिए खुले रहने चाहिए. क्योंकि यह सरकार अंबानी के जियो जैसे निजी विश्वविद्यालयों की मुनाफाखोरी के लिए सरकारी वित्त-पोषित विश्वविद्यालयों को बंद कर देना चाहती है. उन्होंने कहा कि सुलभ शिक्षा के लिए जो चिंगारी जेएनयू से भड़की है, वह बुझेगी नहीं और हम शिक्षा के अपने अधिकार को खत्म नहीं होने देंगे.
पूर्ववर्ती छात्र भी सड़कों पर उतरे
22 नवंबर को पटना में जेएनयू एलुमनाई एसोसिएशन की ओर से प्रतिवाद मार्च निकाला गया.
बांग्लादेश के सोशलिस्ट स्टूडेंट्स फ्रंट (एसएसएफ) ने जेएनयू के संघर्षरत छात्रों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए उन पर हुए बर्बर पुलिस लाठीचार्ज की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि नवम्बर की शुरूआत से जेएनयू के छात्र होस्टल फीस में भारी बढ़ोत्तरी, दकियानूसी होस्टल कानून, पितृसत्तात्मक ड्रेस कोड और कर्फ्यू का डटकर प्रतिरोध कर रहे हैं क्योंकि इस किस्म की फीस में बढ़ोत्तरी गरीबों, दलित-पिछड़ों और वंचितों को उच्च शिक्षा के दायरे से बाहर करने की साजिश है. जब वे जेएनयू छात्र संघ के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्री से मिलना चाहते थे तो उन पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज हुआ. भीषण दमन के बावजूद छात्रों ने प्रतिवाद जारी रखा है और जब 18 नवम्बर को संसद मार्च किया तो पुलिस ने उन पर एक बार फिर बर्बर हमला किया. सोशलिस्ट स्टूडेंट्स फ्रंट इस लोकतांत्रिक प्रतिवाद पर पुलिस दमन की निंदा करता है. बांग्लादेश के छात्र भी इसी तरह के दमन का सामना कर रहे हैं. यहां भी निजीकरण, भ्रष्टाचार, छात्र राजनीति के नाम पर आतंकवाद के खिलाफ हमारा छात्र संगठन लम्बे अरसे से संघर्ष चला रहा है. शिक्षा मानव अधिकार है, कोई विशेषाधिकार नहीं. मगर हर जगह राज्य अपनी इस जिम्मेदारी से हाथ झाड़कर शिक्षा का बाजारीकरण कर रहा है ताकि उच्च शिक्षा अमीरों का विशेषाधिकार बन जाये. शिक्षा पर हो रहे इस नव-उदारवादी हमले के खिलाफ समूची दुनिया के छात्र समाज को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा ताकि वे अपने जन्मसिद्ध अधिकार के बतौर शिक्षा हासिल कर सकें. एसएसएफ जेएनयू के संघर्षरत छात्रों को लाल सलाम करता है.