सन् 2016 के बाद यह तीसरी घटना है जब केरल के आतंक-विरोधी कमांडो फोर्स थंडरबोल्ट्स ने एक “मुठभेड़” में “माओवादियों” को मार गिराने का दावा किया है. नवम्बर 2016, मार्च 2019 और अब हाल में पालक्काड जिले के अगाली में अक्टूबर 2019 में हुई “मुठभेड़ें” हिरासत में हत्या यानी नकली मुठभेड़ के चारित्रिक चिन्ह दर्शाती हैं.
यहां नोट किया जाना चाहिये कि 2016 और मार्च 2019 में हुई मुठभेड़ों की न्यायिक (मेजिस्टीरियल) जांच के नतीजों को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. इन तीनों “मुठभेड़ों” में थंडरबोल्ट्स ने दावा किया है कि उन्होंने आत्मरक्षा में माओवादियों पर गोली चलाई क्योंकि माओवादी खुद फायरिंग कर रहे थे. मगर इन तीनों मामलों में पुलिस को कोई चोट नहीं आई है.
छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र आदि राज्यों में इस तरह के कमांडो फोर्स आदिवासियों को माओवादी बताकर उनकी हिरासत में बर्बरतापूर्ण हत्या के लिये कुख्यात हैं. साथ ही वे माओवादियों को वार्ता के लिये ललचाकर भी उनकी हत्या करते हैं. मगर सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम-जनवादी मोर्चा की सरकार के शासन में कमांडो फोर्स एवं पुलिस द्वारा बिना दंड-भय के बारम्बार हिरासत में हत्या की घटनाओं को अंजाम देना खास तौर पर चौंकाने वाली और भर्त्सनायोग्य बात है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनराइ विजयन और राज्य के गृहमंत्री राज्य में पुलिस बल के लिये जिम्मेवार हैं. भाकपा(माले) मांग करती है कि केरल सरकार लोकतंत्र की रक्षा करने तथा लोगों के संवैधानिक अधिकारों को बुलंद करने में अपनी कथनी के मुताबिक करनी करे. हत्याओं के लिये जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाना खहिये और उनके खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिये जिसमें वे अपने दावे को साबित करें कि उन्होंने आत्मरक्षार्थ गोली चलाई थी.
केरल जैसे राज्य में थंडरबोल्ट्स जैसे कमांडो फोर्स होने का कोई तार्किक कारण नहीं है. हम थंडरबोल्ट्स को भंग करने तथा तमाम संदिग्ध हिरासत में हत्याओं की समयबद्ध जांच तथा दोषी पाये गये सभी पुलिस अफसरों को सजा की मांग करते हैं.