वर्ष - 28
अंक - 48
16-11-2019
एनआरसी, नागरिकता संशोधन विधेयक व डिटेंशन कैंपों की वास्तविकताओं पर संवाद

जम्मू-कश्मीर मसले पर सरकार से असहमति के कारण अपने पद से इस्तीफा देने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के युवा अधिकारी कन्नन गोपीनाथन विगत 13-14 नवंबर को क्रमशः मुजफ्फरपुर व पटना में ‘एनआरसी, नागरिकता संशोधन विधेयक व डिटेंशन कैंपों की वास्तविकताएं’ विषय पर एआइपीएफ के बैनर से आयोजित नागरिक संवाद में हिस्सा लिया और लोगों को संबोधित किया. उन्होंने बेबाक अंदाज में अपने पद से इस्तीफा देने के कारणों की चर्चा की. पटना में जहां कार्यक्रम गांधी संग्रहालय में आयोजित हुआ था, वहीं मुजफ्फरपुर में दीवान रोड स्थित विवाह भवन में आयोजित किया गया था.

अपने वक्तव्य में कन्नन गोपीनाथन ने कहा कि देश नागरिकों से बनता है. यह हम हमें संविधान देता है, इसलिए कोई भी सरकार हमारी नागरिकता नहीं छीन सकती. आज पूरे देश में एनआरसी और नागरिकता कानून में संशोधनों का व्यापक विरोध होना चाहिए. यह बिल पूरे देश की प्रजातांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है. कहा कि आज सत्ता के सारे तंत्र सरकार के सुर में सुर मिला रहे हैं. कश्मीर के मसले पर हमने देखा कि सरकार, न्याय व्यवस्था, ब्यूरोक्रेसी सबकी सब अपने ही नागरिकों के खिलाफ हो गई. कश्मीरियों को चुप करवा दिया गया है. ऐसे में विरोध की आवाज को बुलंद करना और देश को बचाना सबसे जरूरी कार्यभार बन जाता है. इसलिए आईएएस पद से इस्तीफा देकर हम यह कहने आए हैं कि सरकार से सवाल पूछिए कि आखिर इस देश में वह आज कर क्या रही है? यदि सरकार को अपनी नीतियां जनता पर थोपने का अधिकार है तो जनता को भी विरोध करने का उतना ही अधिकार है. इसे छीना नहीं जा सकता है.

अपने वक्तव्य की शुरूआत में कन्नन ने कहा कि हमें बताया जाता है कि कालाधन समाप्त होना चाहिए, आतंकवाद खत्म होना चाहिए और इसके नाम पर सरकार की हरेक कार्रवाइयों के समर्थन की उम्मीद की जाती है. यदि आप सरकार के कदमों से असहमति रखते हैं, विरोध में कुछ कहना चाहते हैं, तो आपको देशद्रोही करार दे दिया जाता है.

हमें सत्ता से सवाल करना चाहिए कि अब तक कालाधन क्यों नहीं आया, आतंकवाद क्यों नहीं खत्म हुआ? दरअसल सरकार बड़े लोगों के लिए विदेशों में जमे पैसा को काला धन नहीं बोल रही थी बल्कि हमारे घरों में कामकाज के लिए हजार-पांच सौ के नोट को काला धन बोल रही थी. देश के नाम पर हम सब एटीएम की कतार में खड़े हुए, लेकिन हमें मिला क्या? आधी रात को जीएसटी लागू करके प्रचारित किया जाता है कि यह आर्थिक आजादी है. इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है? पूरा देश एक है. दरअसल देश की एकता को ये आज सत्ता में बैठे लोग तोड़ रहे हैं. देश को इनसे ही खतरा है.

कश्मीर में जिस प्रकार से अपने ही देश के नागरिकों को बंदी बनाकर रखा गया है, वह असहनीय है. आज जम्मू-कश्मीर की यह हालत किसने की, क्या हम अपने नागरिकों को बोलने के अधिकार से भी वंचित कर देंगे? 2014 तक वहां स्थिति सामान्य थी, उसके बाद वहां की स्थिति बहुत ही बिगड़ी है. धारा 370 वह जरिया था जिसकी वजह से कश्मीरी अपने आपको भारत से जोड़े हुए थे. उसको भी खत्म करके आखिर कश्मीर को क्या बनाना चाहते हैं? हम सब खुश हो रहे हैं कि देश इससे एकताबद्ध हो गया. यह घोर झूठ है. इसने कश्मीरी अवाम का जीना मुश्किल कर दिया है. यह बिहार-यूपी जैसे प्रदेशों के लोगों को कश्मीरियों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए.

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सरकार नागरिकता साबित करने लिए डाॅक्यूमेंट को आधार बना रही है. लेकिन आज किन लोगों के पास 50 साल पहले का डाॅक्यूमेंट है? गरीब, दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर क्या ये सब कागजात के आधार पर कभी अपनी नागरिकता साबित कर पायेंगे? उनके पास है ही नहीं ऐसे कागजात. जिन लोगों का घर हर साल बाढ़ में डूब या बह जाता है, वे कहां से ऐसे कागजात लायेंगे? जिनके पास नेटवर्क है, वे तो कागजात बनवा लेंगे, लेकिन जिनके पास नहीं है क्या वे इस देश के नागरिक नहीं रहेंगे? क्या देश में नागरिकता की परिभाषा अब धर्म के आधार पर तय होगी? नागरिकता मिट्टी से जुड़ा प्रश्न है. संविधान बनाते वक्त भी इस कांसेप्ट पर बहस हुई थी, और बहस के बाद देश का नागरिकता कानून बनाया गया था. आज उसको बदलकर अपने ही समाज के बड़े हिस्से को देशविहीन बनाने में लगे हुए हैं.

 19 लाख लोग जो असम में अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाए, उसमें 11 लाख के करीब हिन्दू हैं. इसलिए असम में इसका भारी विरोध हो रहा है. तब सरकार कह रही है कि ऐसे हिन्दुओं, सिख-इसाइयों-बौद्धों को शरणार्थी मानकर नागरिकता फिर से बहाल कर दी जाएगी. सिर्फ एक समुदाय का नाम नहीं है – मुसलमानों का. तो क्या देश के बीस करोड़ की आबादी नागरिकता विहीन हो जाएगी?

देश के गृहमंत्री विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कहते हैं कि अपने यहां डिटेंशन केद्र बनाओ. जनता को ऐसे फेंक दिया जा रहा है, मानो वही सारी गलती कर रही है.

दूसरे आइएस आॅफिसर शाह फैजल की चर्चा करते हुए (ये भी इस्तीफा दे चुके हैं) उन्होंने बताया कि उनको दिल्ली में पुलिस ने उठा लिया. जब उनकी पत्नी ने कोर्ट में अपने पति के संबंध में जानकारी मांगी, तो पुलिस कह रही है कि अभी तो कोई सबूत नहीं है, इसलिए 15 दिनों का समय दिया जाए. तो पुलिस सबूतों को इकट्ठा करके ही उन्हें गिरफ्तार करती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हमारा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया बल्कि हमारे खिलाफ ‘कारण बताओ’ नोटिस थमा दिया गया है. मतलब, इनको किसी भी प्रकार का विरोध पसंद नहीं है.

पटना में कन्नन गोपीनाथन के वक्तव्य के पहले शहर के जाने-माने शिक्षाविद् व ऐक्टिविस्ट मो. गालिब ने बिहार व पटना की क्रांतिकारी धरती पर उनका स्वागत किया. नागरिक संवाद का विषय प्रवेश जाने-माने जल विशेषज्ञ व कार्यकर्ता रंजीव जी ने किया. कहा कि आज देश में हिंदुत्व के नाम नागरिकों को बांटने की गहरी साजिश रची जा रही है. पहले भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठ का हौवा खड़ा किया, अब उसे देश के समस्त मुसलमानों के खिलाफ मोड़ दिया गया है. मुस्लिमों को यह एहसास दिलाया जा रहा है कि यदि इस देश में रहना है, तो वे दोयम नागरिकता स्वीकार कर लें. जो अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पायेंगे उन्हें डिटेंशन कैंपों में डाल दिया जाएगा. दरअसल यह निकृष्ट किस्म का पूंजीवादी षड्यंत्र है. डिटेंशन कैंप में रहने वाले लोगों को सस्ते मजदूर में तब्दील कर दिया जाएगा और फिर उनकी मेहनत की लूट होगी. इसके दायरे में केवल मुस्लिम ही नहीं आएंगे, बल्कि दलित-गरीब व कमजोर वर्ग के सभी लोग आ जायेंगे. नागरिक देश बनाता है, देश नागरिक नहीं बनाता.

नागरिक संवाद में हाल-फिलहाल में जहानाबाद में हुए सांप्रदयिक दंगे की भाकपा-माले द्वारा जारी रिपोर्ट का लोकार्पण किया गया. माले की राज्य कमिटी के सदस्य रामबलि सिंह यादव ने उसपर अपनी बात रखते हुए कहा कि वह दंगा पूरी तरह भाजपा-आरएसएस प्रायोजित था.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज हिंदुस्तान को ऐसे ही सवालों में उलझाकर रख दिया गया है. यह हम सबको देखना चाहिए कि हिंदुस्तान बना कैसे? जब उस प्रक्रिया को देखेंगे तो हिंदुस्तान में रहने वाले हर व्यक्ति इस देश का नागरिक है. हम सबको एनआरसी और नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना होगा. किसी कानून के खिलाफ खड़ा होना देशद्रोह नहीं हो सकता. नागरिक संवाद में बिहार के जाने-माने गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया गया.

नागरिक संवाद में कई लोगों ने कन्नन गोपीनाथन से कई सवाल किए, जिस पर बातचीत हुई. कार्यक्रम में मुख्य रूप से भाकपा-माले के नेता धीरेन्द्र झा, एन एन सिन्हा के प्रोफेसर विकास विद्यार्थी, महिला कार्यकर्ता सुष्मिता, रंजना, इतिहास विभाग के शिक्षक सतीश कुमार, सर्वहारा पत्रिका के अजय कुमार, कौशिफ युनूस, विष्णु कुमार, डाॅ. हबीबुल्लाह अंसारी, अभ्युदय सहित कई लोग उपस्थित थे. कार्यक्रम में पटना शहर, पटना ग्रामीण, जहानाबाद, नालंदा आदि जिलों के भी भाकपा-माले कार्यकर्ता शामिल हुए.

मुजफ्फरपुर के कार्यक्रम में व्यापक पैमाने पर शहर के समाजसेवी व शिक्षाविद् शामिल हुए. संचालन सूरज कुमार सिंह ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शाहिद कमाल ने किया. कार्यक्रम में प्रो. अरविंद डे, कृष्णमोहन, प्रो. हरिशचंद्र सत्यार्थी, मनीषा दत्ता, आफताब आलम, प्रो. आबुजर कमालुद्दीन, प्रो. काजमी साहब, अनिल प्रकाश, विजय शंकर आदि मौजूद थे. अपने वक्तव्य में कन्नन ने कहा कि देश सेवा के लिए अधिकारी बनना ही विकल्प नहीं है. आज सबसे जरूरी बात विरोध की आवाज को बुलंद करना है.