वर्ष - 28
अंक - 48
16-11-2019

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) का 9वां राष्ट्रीय सम्मेलन 9-10 नवंबर 2019 को हैदराबाद में सफलतापूर्वक संपन्न हो गया. यह सम्मेलन कई लिहाज से महत्वपूर्ण था. पहले तो, यह पहली बार है जब आइसा ने हैदराबाद में राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया, जो तेलंगाना के इस राजधानी शहर में संगठन के विस्तार को प्रदर्शित करता है. तेलंगाना किसान आंदोलन की क्रांतिकारी विरासत आइसा आंदोलन के लिये प्रेरणा स्रोत बना रहा है. हैदराबाद वह शहर भी है जहां से संस्थाबद्ध जातिवाद और आज देश में सत्ताशीन फासिस्ट शक्तियों के द्वारा रोहित वेमुला और उसके दोस्तों को राजनीतिक दंड का शिकार बनाए जाने के खिलाफ ‘रोहित को न्याय’ के सवाल पर व्यापक छात्र आंदोलन की चिंगारी फूटी थी. आज के समय में, जब मौजूदा शासन भारतीय समाज के सर्वाधिक प्रतिगामी शोषणकारी ढांचों पर टिका हुआ है, इस सम्मेलन ने एक समतामूलक भारत की भविष्य-दृष्टि को बुलंद किया जिसे हासिल करने के लिये ‘तेलंगाना आंदोलन’ और ‘रोहित को न्याय’ आंदोलन लड़ा गया था.

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यह सम्मेलन मौजूदा दौर के साहसपूर्ण छात्र आंदोलन की पृष्ठभूमि में संपन्न हुआ, जो मोदी शासन के पहले दिन से ही शिक्षा और विश्वविद्यालयों पर फासिस्ट हमले का प्रतिरोध करने के कार्यभार को लेकर आगे बढ़ रहा है. इस संगठन ने अनेक संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे कि भगवा पिट्ठू को अध्यक्ष बनाने के खिलाफ एफटीआइआइ आंदोलन, आइआइटी-मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल को प्रतिबंधित करने के विरुद्ध संघर्ष, विश्व व्यापार संगठन निर्देशित शिक्षा नीति लादने के विरोध में ‘आॅकुपाय यूजीसी’ आंदोलन, ‘रोहित को न्याय’ आंदोलन, जेएनयू के साथ एकजुटता आंदोलन, यौन उत्पीड़न के खिलाफ बीएचयू की छात्रओं का आंदोलन, दिल्ली विवि में एबीवीपी की गुंडागर्दी के खिलाफ व्यापक छात्र विद्रोह, बिहार में गुणवत्तापूर्ण सुलभ स्कूली शिक्षा के लिये ‘सड़क पर स्कूल’ आंदोलन, सब के लिये मर्यादापूर्ण रोजगार हेतु ‘यंग इंडिया अधिकार मार्च’, आदि.

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को भाकपा(माले) (लिबरेशन) की पोलितब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन ने संबोधित किया. सम्मेलन के खुले सत्र में एसएफआइ, एआइएसएफ और एआइडीएसओ जैसे अन्य वामपंथी छात्र संगठनों के नेताओं ने हिस्सा लिया.

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इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न काॅलेजों और विश्वविद्यालयों से लगभग 270 प्रतिनिधियों ने शिरकत की. सम्मेलन में शामिल छात्रों ने बढ़ती बेरोजगारी, फीस वृद्धि और  संवैधानिक मूल्यों पर राज्य-प्रेरित सांप्रदायिक हमले जैसे प्रमुख मुद्दों पर अपनी चिंता जाहिर की. सम्मेलन के प्रतिनिधि सत्र में दलितों और मुस्लिमों की माॅब लिंचिंग, देश में महिलाओं पर बढ़ते हमले तथा काॅरपोरेटों द्वारा पर्यावरण दोहन पर भी पूरी संजीदगी के साथ विचार-विमर्श किया गया. आइसा ने ‘नई शिक्षा नीति, 2019’ की विनाशकारी योजना के खिलाफ भी संघर्ष करने का संकल्प लिया जिसके अंतर्गत शिक्षा के क्षेत्र में निजी मुनाफाखोरी को बढ़ावा देने के लिये सरकारी स्कूलों और काॅलेजों को बंद करने के प्रस्ताव लाए गए हैं.

सम्मेलन के जरिये 117 सदस्यों वाली राष्ट्रीय परिषद और 57 सदस्यों वाली कार्यकारिणी का चुनाव किया गया. कामरेड संदीप सौरभ को राष्ट्रीय महासचिव तथा कामरेड एन. साई बालाजी को राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया गया.

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सम्मेलन से पारित प्रस्ताव

1. अयोध्या फैसला: अयोध्या की विवादित जमीन, जहां बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ चुका है. न्यायालय ने विहिप का प्रतिनिधित्व करने वाले याचिकाकर्ताओं के हक में उस भू-खंड का स्वामित्व सौंप दिया है.

इस फैसले का असली मतलब यह है कि उस विवादित जमीन पर राम मंदिर बनेगा तथा अयोध्या में किसी दूसरी जगह पर मस्जिद बनाने के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी जाएगी. इस फैसले में कई ज्वलंत अंतरविरोध मौजूद हैं. सर्वप्रथम, जहां यह फैसला बाबरी मस्जिद ध्वंस को कानून के खिलाफ कार्रवाई मानता है, वहीं यह फैसला उन्हीं लोगों को वह जमीन सौंप देता है, जो इस ध्वंस के कर्ता-धर्ता थे. दूसरे, जहां यह फैसला आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने की बात करता है, वहीं वास्तव में यह न्यायादेश तथ्यों और न्याय के उसूलों पर बहुसंख्यावादी आस्था की दुर्भाग्यपूर्ण विजय का प्रतीक बन गया है. लेकिन इस बात पर जोर देना जरूरी है कि इस फैसले ने साफ-साफ यह माना है कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस संघ ब्रिगेड की एक आपराधिक कार्रवाई थी.

यह फैसला आने के बाद हमें यह सुनिश्चित करना है कि देश  में फिर वैसा कोई सांप्रदायिक खून-खराबा न हो सके, जैसा कि ’90 के दशक में भगवा गिरोह के द्वारा अंजाम दिया गया था. हमें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आतंकी उन्माद फैलाने के संघ परिवार के किसी भी प्रयास का विरोध करना होगा. हमें इस मांग को तेज करना होगा कि भाजपा के जाने-माने नेताओं समेत बाबरी मस्जिद विध्वंस के तमाम अपराधियों को दंडित किया जाए. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगामी 6 दिसंबर संघ परिवार की सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ भारतीय जनता की अभूतपूर्व एकता के दिवस के बतौर मनाया जाए.

2. मजदूर आम हड़ताल: मोदी सरकार की दूसरी पारी ने चंद महीनों के अंदर ही देश को भयानक आर्थिक संकट में धकेल दिया है. बढ़ती बेरोजगारी, फैलती गरीबी, श्रमिकों की मजदूरी में लगातार गिरावट और चौतरफा निजीकरण ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे को सबसे बड़े झूठ में बदल दिया है. बिल्कुल अलोकतांत्रिक तरीके से सरकार ने ‘मजदूरी कोड बिल’ पारित करने तथा आरटीआइ व यूएपीए में संशोधनों के जरिये कई मजदूर-विरोधी कदम उठाए हैं. इस गंभीर परिस्थिति में राज्य के क्रोनी पूंजीवादी स्वार्थों के खिलाफ विभिन्न केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 8 जनवरी 2020 को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल का आह्वान किया है. आइसा की ओर से हम देश भर के छात्रों से अपील करते हैं कि वे इस आम हड़ताल में शामिल हों और देश के मजदूर आंदोलन को मजबूत बनाएं.

3. संगठन निर्माण व विस्तार: आइसा सम्मेलन ने देश भर में संगठन को शक्तिशाली बनाने और फासिस्ट शक्तियों को पराजित करने का संकल्प भी लिया है.