धारा 370 और 35-ए के खात्मे के बाद प. चंपारण जिले के सिरिसिया गांव (सिकटा प्रखंड) के 75 मजदूर लौटे हैं. सबों को पुलिस व सेना के जवानों ने जबरन कश्मीर से खदेड़ दिया था. लाखों रुपयों की उनकी बकाया मजदूरी उन्हें नहीं मिल सकी. उनकी क्षति का आकलन करने के लिए घर-घर जाकर तथ्य इकट्ठा किए जा रहे हैं. यह काम पूरे जिले में किया जाना है. पैसा वापसी का आंदोलन भी चलाया जाएगा. सिरिसिया गांव के मजदूर श्रीनगर के बोगांव, छानपुरा, सौरा, टन्डार आदि जगहों पर सब्जी कटाई, लोडिंग, कारपेन्टर, दैनिक मजदूर, राज मिस्त्री, बढ़ई, पेंटर आदि का काम करते थे. बकाया राशि से संबंधित कुछ तथ्य इस प्रकार हैं -
1. सब्जी व्यापारी मोहम्मद असरफ, पिता मो. बिलाल के यहां सिरिसिया गांव के मुसहर जाति समेत विभिन्न जातियों के कुल 13 मजदूर काम करते थे. मोहम्मद अशरफ ने इलाके के किसानों की खेत में लगी गोभी हर साल की भांति खरीद ली थी. मजदूरों को साढ़े चार सौ रुपए दैनिक मजदूरी मिलती थी. मोहन मांझी, सोहन मांझी (उम्र क्रमशः 19 व 17 वर्ष, पिता-ललन मांझी), धर्मेंन्द्र मांझी (22 वर्ष, पिता-धरम मांझी), भीम मांझी (35 वर्ष, पिता-जगरनाथ मांझी) आदि समेत इन मजदूरों के कुल 2,63,000 रु. की मजदूरी वहां बाकी है जो 9 हजार रु. से 50 हजार रु. तक की है.
2. छानपुरा (श्रीनगर) के मोहम्मद जावेद के यहां टाइल्स लगाने का काम करते थे. प्रति दिन 1000 रु मजदूरी मिलती थी. इन मजदूरों का बकाया मजदूरी इस प्रकार है: इंद्रासन साह (25, पिता-शिवनाथ साह) – 6000 रु., जरयोधन साह (27, पिता-शिवनाथ साह) – 9000 रु., प्रदीप साह (24, पिता-नकछेद साह) – 10000 रु., सत्यनारायण पटेल – 14000 रु. (कुल-39000 रु.)
3. छानपुरा में जो लोग लालाजी के यहां कारपेंटर का काम करते थे, उनकी मजदूरी की प्रतिदिन 800 रु. थी. उनकी बकाया सूची है – सीताराम साह (30, पिता-शिवनाथ साह) 30000 रु. संदीप साह (18, पिता-शिवनाथ साह) – 50000 रु., टुनटुन उपाध्याय (20, पिता-भुवन उपाध्याय) – 9000 रु., गौरीशंकर साह (35, पिता-विश्वनाथ साह) – 8000 रु.. (कुल - 97000 रु.)
4. पाकिस्तान के बार्डर पर टंडार में जो लोग राजमिस्त्री का काम करते थे उनकी दैनिक मजदूरी 800-900 रु. प्रतिदिन थी. विरेंद्र साह (25, पिता-अंबिका साह) -5000 रु., शेख आफताब (35, पिता-शेख आलिम) - 16000 रु., विजय यादव (50, पिता - लक्ष्मण यादव) - 6000 रु. आदि समेत इन 11 लोगों का कुल 1,04,000 रु. की मजदूरी वहां बाकी है.
5. बोगांव (श्रीनगर) के मोहम्मद फिरोज के यहां खेत से सब्जी काटने और गाड़ी पर लोडिंग करने का काम करनेवाले 11 मजदूरों की मजदूरी (उन्हें प्रतिदिन 450 रु. मिलते थे) के कुल 1,26,000 रु. वहां बाकी रह गए हैं. कुछ नाम ये रहे - जितेंद्र राम व (क्रमशः 18 व 23 वर्ष, पिता-लालमुन राम) – 28000 रु., रामऔतार राम (27, पिता-मुरली राम) – 6000 रु., भुलावन पासवान (20, पिता-पहलाद पासवान) – 12000 रु., मुकेश साह (25, पिता-शेरबहादुर साह) -14000 रु. फिरोज आलम (28, पिता-खुर्शीद आलम) – 6000 रु. आदि.
6. छानपुरा में मोहम्मद साबिर के यहां भवन निर्माण में छड़ बांधने का काम करने वाले देवनारायण साह (55 वर्ष) व उनके चार बच्चों रामबाबू साह (25), किशोरी साह (22) व हरि साह (19) के कुल 75 हजार रु. की मजदूरी बकाया है. इन्हें 1000 रु. प्रतिदिन की मजदूरी मिलती थी.
7. सौरा (श्रीनगर) में मोहम्मद गुलजार के यहां कारपेंटर (मजदूरी आठ सौ रु. प्रतिदिन) का काम करनेवाले कुल 14 लोगों की 2,32,000 रु. की मजदूरी बाकी रह गई है. इनमें से कुछ का ब्यौरा यह रहा – ताहिर आलम व मुजाहिर आलम (26 व 22, पिता-निजामुदीन मियां) - 50000 रु., फजरे आलम व कारी आलम (28 व 25, पिता-सफिद मियां) -50000 रु., बिकाऊ महतो (27, पिता-मनू महतो) - 14000 रु., कामेश्वर यादव (28) - 14000 रु.
8. छानपुरा में मोहम्मद पेंटिंग साहब के यहां रंगाई का काम करनेवाले (मजदूरी 1 हजार रु. प्रतिदिन) 15 लोगों की मजदूरी मद के 1,38,00 रु. भी बाकी रह गए हैं. ये हैं - ढोंढाई साह व भूवर साह 25, (30 व 25, दोनों के पिता-ध्रुव साह) - 20000 रु., मोहन महतो (30, पिता- मनू महतो) -12000 रु., मो. अफजल, मो. अमजद, मो. नूर आलम, मो. गूड्डू (उम्र क्रमशः 35, 31, 27 व 25 वर्ष, सबके पिता- मोहम्मद दिल हसन) -30000 रु., प्रकाश पटेल (40, पिता- बाल कन्हाई) -9000 रु. सुधन बैठा (28, पिता-मनू बैठा) -11000 रु.
सिरिसिया गांव से 75 लोग इस साल कश्मीर गये थे जिनका कुल बकाया 10,74,000 रुपया है. इस गांव से हर साल लगभग 400 लोग कश्मीर जाते हैं. इस बार तनाव के कारण लोग नहीं गए हैं. इन लोगों का मानना है कि हमे काफी क्षति हुई है. अन्य तीन गावों – लाल पारसा (कुल 10), मंगलपुर - (कुल 11) और बेहरी (4) लोग भी कश्मीर गये थे. उनका बकाया नहीं है. मगर समय से पहले चले आने से उनको लाखों रुपये का नुकसान हुआ है.
370 और 35 ए के खात्मे के बाद कश्मीर का विकास होगा - मजदूरों ने इस तर्क को हास्याास्पद बताया. उनका मानना है कि कश्मीर तो हमसे काफी विकसित है. विकास की जरूरत तो यहां बिहार व पश्चिम चंपारण को है. विकसित का क्या विकास करना? पश्चिम चंपारण और कश्मीर में मजदूरों की मजदूरी की तुलना ही इसे बताने के लिए पर्याप्त है.
मजदूरों ने बताया कि धारा 370 खत्म होने के बाद भी मालिकों ने उनसे कोई दुर्व्यवहार नहीं किया, लेकिन नौजवान काफी गुस्से में थे. भारत सरकार के प्रति उनका गुस्सा देख मजदूर सहमे हुए थे कि अगर ऐसी ही स्थिति रही तो फिर काम के लिए कश्मीर जाना मुश्किल हो जाएगा.
- सुनील यादव