भाकपा(माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने 16 अक्टूबर को कोलकाता में आयोजित एक विशाल प्रतिवाद रैली को संबोधित किया. पंजाब में भाकपा(माले) समेत आठ वामपंथी और क्रांतिकारी पार्टियों एवं संगठनों ने ‘कश्मीरियों पर फासीवादी हमला विरोधी फ्रंट, पंजाब’ के बैनर तले 15 अक्टूबर को अमृतसर के कंपनी बाग और जालंधर दोनों शहरों में कन्वेंशन आयोजित किये. कन्वेंशन को भाकपा(माले) के जम्मू-कश्मीर राज्य कमेटी के सचिव निर्दोष उप्पल ने भी संबोधित किया. उड़ीसा के भुवनेश्वर एवं गुनुपुर में भी इसी दिन प्रतिवाद कार्यक्रम आयोजित किये गये. त्रिपुरा की राजधानी अगरत्तला में भी वाम दलों की ओर से संयुक्त कार्यक्रम आयोजित हुआ.
16 अक्टूबर को भाकपा(माले), भाकर्पा, माकपा, फारवर्ड ब्लाॅक, आरएसपी और गदर पार्टी आदि वामपंथी पार्टियों ने संयुक्त रूप से जंतर मंतर पर एक प्रदर्शन आयोजित किया. प्रदर्शन को माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी राजा, भाकपा(माले) की पोलितब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन एवं अन्य वामपंथी पार्टियों के नेताओं ने संबोधित किया.
राजधानी लखनऊ में भाकपा(माले), माकपा, भाकपा और फारवर्ड ब्लाक ने पक्का पुल (टीले वाली मस्जिद) से घंटाघर तक संयुक्त मार्च निकाला और सभा की. इसके माध्यम से वक्ताओं ने सरकार से कारपोरेट-परस्त नीतियां त्याग कर बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करने तथा आम जनता की क्रय क्षमता बढ़ाने के लिये काम करने की मांग की.
विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व चारों वाम दलों के जिला सचिवों क्रमशः का. रमेश सिंह सेंगर (भाकपा-माले), छोटे लाल रावत (माकपा), परमानन्द द्विवेदी (भाकपा) और उदयनाथ सिंह (फारवर्ड ब्लाक) ने किया.
पुराने लखनऊ के घंटाघर पर हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार की गलत नीतियों के कारण देश में आर्थिक मंदी पैदा हुई है. यह मंदी ‘मेड इन इंडिया’ है और दुनिया के अन्य देशों में चल रही मंदी से अलग है. नोटबंदी और जीएसटी जैसे अतार्किक फैसले इस मंदी के मूल में हैं. इसलिए यह मंदी ‘मेड बाई मोदी’ है. मांग घटने और तमाम उद्योगों में बंदी-छंटनी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है. खेती-किसानी पहले से ही संकटग्रस्त है. मंदी से उबरने के नाम पर मोदी सरकार ने सरकारी खजाने का अरबों-खरबों रुपया ‘बेल आउट पैकेज’ के नाम पर कारपोरेट घरानों को दे दिया. अभी मोदी सरकार द्वारा रिजर्व बैंक से लिया गया 1.76 लाख करोड़ रु. भी अम्बानी-अडानी जैसों को ही जायेगा, क्योंकि इस पैसे से जनता की बदहाली दूर करने, रोजगार पैदा करने और इसके जरिये घरेलू मांग बढ़ाने जैसी कोई योजना सरकार के पास नहीं है. मोदी सरकार कारपोरेट घरानों के लिए एक लाख 45 हजार करोड़ रु. की कर माफी दे ही चुकी है. वह सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण करने में लगी है, जिससे नौकरियां खत्म हो रही हैं.
वक्ताओं ने सार्वजनिक क्षेत्र के रेल, तेल व गैस सेक्टर, बीएसएनएल, एयर इंडिया, आर्डिनेंस फैक्ट्री आदि के निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने, मंदी को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करने और आम जनता की जेब में पैसा पहुंचाने की मांग की. विरोध प्रदर्शन में आरवाईए के राजीव गुप्ता, आइसा के शिवा, रामसेवक, ऐपवा की मीना व कमला रावत, ऐक्टू के नौमिलाल समेत बड़ी संख्या में वामपंथी कार्यकर्ता मौजूद थे.
लखनऊ के अलावा अन्य जिलों में भी विरोध प्रदर्शन हुए. कानपुर, जालौन, फैजाबाद, सीतापुर, गोंडा, बलिया, देवरिया, मुरादाबाद, मथुरा आदि में मार्च, धरना और सभा जैसे कार्यक्रम आयोजित हुए.
राजधानी पटना में जीपीओ गोलबंर से बुद्धा स्मृति पार्क तक मार्च निकला और फिर वहां पर एक सभा आयोजित की गई. बुद्धा स्मृति पार्क में आयोजित प्रतिवाद सभा को भाकपा(माले) राज्य कमिटी के सदस्य रणविजय कुमार, माकपा के राज्य सचिव मंडल के सदस्य सर्वाेदय शर्मा तथा सीपीआई के पटना जिला सचिव रामलला सिंह ने संबोधित किया. कार्यक्रम के अध्यक्षमंडल में भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता का. केडी यादव, माकपा के पटना जिला के सचिव मनोज चंद्रवंशी और भाकपा के वरिष्ठ नेता बृजनंदन सिंह शामिल थे.
मार्च में भाकपा(माले) के केंद्रीय कमिटी के सदस्य व पटना नगर के सचिव अभ्युदय, राज्य कमिटी के सदस्य रामबलि प्रसाद, अनीता सिन्हा, मोहन प्रसाद, जयप्रकाश पासवान, सुधीर कुमार, अनय मेहता, ललन सिंह, राजेश कुशवाहा, राखी मेहता, पन्नालाल सिंह, माकपा की केंद्रीय कमिटी के सदस्य अरूण मिश्रा व रासबिहारी सिंह, भाकपा के मोहन प्रसाद आदि नेता शामिल थे.
नेताओं ने कहा कि आज अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में गिरावट है. यहां तक कि चाय-बिस्कुट पसंद करने वाले देश में बिस्कुट तक की बिक्री में गिरावट दर्ज की जा रही है. लेकिन मोदी सरकार रोजगार बढ़ाने के बजाए उल्टे कारपोरेट घरानों को बेल आउट पैकेज देने का काम कर रही है. मंदी के कारण हजारों लोगों की नौकरियां खत्म हो गई हैं. इसके लिए पूरी तरह से सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियां जवाबदेह है. लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार अभी भी उन्हीं नीतियों को बढ़ावा दे रही है और आम लोगों की आय बढ़ाने के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही है. सरकार बढ़ती बेरोजगारी, अर्ध-बेरोजगारी, कम मजदूरी व गहराते कृषि संकट को लगातार नजरअंदाज कर रही है.
नेताओं ने कहा कि बुनियादी समस्याओं को हल करने की बजाए भाजपा की सरकार इन समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को लगातार गहरा बनाने की कोशिश में ही है. जहानाबाद में विगत 10-11 अक्टूबर को हुए सांप्रदायिक उन्माद की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है. जिसमें लगभग 200 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की दुकानें लूट ली गईं. आज पूरे देश में माॅब लिंचिंग की बाढ़ सी आ गई है. बिहार में भी हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है. यह बेहद शर्मनाक है कि एक ओर जहां लोग आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं, उसे हल करने की बजाए भाजपा-आरएसएस के लोग दंगा-उन्माद भड़काने में लगे हुए हैं.
वाम दलों ने सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने, नौजवानों को बेरोजगारी भत्ता देने, न्यूनतम मजदूरी 18 हजार करने, काम से हटा दिए गए मजदूरों के लिए मासिक निर्वाह योग्य मजदूरी की गारंटी करने, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक, प्रतिरक्षा व कोयला क्षेत्रों में 100 प्रतिशत एफडीआई को वापस लेने, बीएसएनएल-भारतीय रेल-विमान सेवा के निजीकरण पर रोक, मनरेगा में आवंटन को बढ़ाने, पिछले बकाए का भुगतान, 200 दिन काम मुहैया कराने, किसानों को एकमुश्त कर्ज उपलब्ध करवाने, बढ़ती किसान आत्महत्याओं पर रोक लगाने, लागत कीमत के डेढ़ गुणा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, वृद्धावस्था पेंशन/विधवा पेंशन की राशि 3 हजार रु प्रति माह करने आदि सवालों को उठाया और मोदी सरकार से इस पर तत्काल कार्रवाई की मांग की.
राजधानी पटना के अलावा राज्य के जिला मुख्यालयों – आरा, बिहारशरीफ, गया, नवादा, समस्तीपुर, दरभंगा, सिवान, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, भागलपुर, गोपालगंज आदि में भी वाम दलों ने प्रतिवाद मार्च निकाला और बढ़ते आर्थिक संकट पर रोक लगाने की मांग की.
16 अक्टूबर 2019 को भारी तादाद में जमा हुए वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं ने टाउन हाल से रैली निकाली और सूरजपोल, बापू बाजार, कोर्ट चैराहा होते हुए जिलाधीश कार्यालय पहुंचे जहां विरोध सभा का आयोजन किया गया.
इस मौके पर बोलते हुए भाकपा(माले) राज्य समिति सदस्य का. शंकरलाल चौधरी के कहा कि देश के बड़े पूंजीपतियों एवं कारपोरेट मीडिया, सांप्रदायिक राजनीति और पुलवामा-बालाकोट की घटना का राजनीतिक फायदा उठाकर केंद्र में सत्ता में फिर आने के बाद से ही भाजपा सरकार ने जनविरोधी फैसले लागू करने शुरू कर दिए. आज भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे आर्थिक संकट की चपेट में है और मंदी की शिकार है. जनता की क्रय शक्ति घट जाने से अर्थव्यवस्था में मांग की कमी है. कार, दुपहिया वाहन, टेक्सटाइल से लेकर पारले बिस्कुट तक की बिक्री घट गई है. विकास दर 5 प्रतिशत पर आ गई और बेरोजगारी 45 साल के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गयी है. आज जरुरत है कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं, मनरेगा और ग्रामीण इलाको में विकास कार्य में बजट बढ़ाये ताकि जनता की क्रय शक्ति बढ़े, लेकिन इसके उलट मोदी सरकार ने हाल ही में पूंजीपतियों को कारपोरेट टैक्स में 1.45 लाख करोड़ की छूट दी.
भाकपा के जिला सचिव का. सुभाष श्रीमाली ने कहा की मोदी सरकार ने पिफर सत्ता मे आते ही पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ा दिये और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की नीयत से देश के श्रम कानूनों को ख़त्म करने का काम कर रही है. मजदूरों को लेबर चौक पर काम नहीं मिल रहा है और किसान भी बदहाल स्थिति में है.
माकपा के जिला सचिव का. प्रताप सिंह ने कहा कि आज भाजपा सरकार नंगे रूप से निजीकरण लागू करने पर उतारू है. रेलवे, पेट्रोल मार्केटिंग कंपनी बीपीसीएल, रक्षा उद्योग, बैंक, एयर इंडिया के निजीकरण की तैयारी है. जनता के पैसों से बने इन सरकारी उपक्रमों को पूंजीपतियों के हवाले करना मोदी सरकार की कौन सी देशभक्ति है यह सवाल देश की जनता के सामने है.
माकपा के शहर सचिव का. राजेश सिंघवी ने कहा की मोदी सरकार अपनी गरीब-मजदूर-किसान विरोधी नीतियों से ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक राजनीति, दलितों और मुसलमानों की लिंचिंग, एनआरसी, धारा 370 जैसे मामलों को आगे कर भारतीय जनता के मूल अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है.
किसान महासभा के का. गौतम मीणा ने कहा कि उदयपुर के आसपास के ग्रामीण इलाकों में खड़ी फसल बर्बाद होने से किसान बदहाल है और उन्हें फसल खराब होने का मुआवजा मिलना चाहिए. ऐक्टू के राज्य सचिव सौरभ नरुका ने कहा कि गरीबों, मजदूरों, किसानों, छात्रों-युवाओं की एकता और आन्दोलन के बल पर ही देश के संसाधनों, सरकारी उपक्रमों, जल-जंगल-जमीन को चंद पूंजीपतियों के हवाले करने की भाजपा और मोदी सरकार की साजिश को विफल किया जा सकता है.
मुस्लिम महासभा के केआर सिद्दीकी ने कहा की सिर्फ वामपंथी पार्टियां ही नहीं, हाल में जाने-माने अर्थशास्त्री नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजित बनर्जी भी इसी बात पर जोर दे रहे है कि भारत की अर्थव्यवस्था खराब हालत में है और मोदी सरकार उसको छुपाने के लिए आकड़ों में फेर-बदल कर रही है.
सभा के बाद सात-सूत्री मांगों पर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया गया. इस मौके पर भाकपा-माले केन्द्रीय कमेटी सदस्य प्रोफेसर सुधा चौधरी, राजेंद्र वसीटा, गुमान सिंह, आइसा के शंकर मीणा, हवजी मीणा, शमशेर सिंह, शंकर मीणा, केसर देवी, हीरालाल साल्वी, गगनपाल सिंह, पवन बेनीवाल, दामोदर कुमावत, गौतम धावड़ा, शमशेर सिंह, नंदवानी, गणपति देवी आदि मौजूद थे.
में वाम दलों ने राजधानी रांची समेत बिभिन्न जिला मुख्यालयों में विक्षोभ प्रदर्शन आयोजित किया और उपायुक्त के माध्यम से प्रधानमंत्री को मांग पत्र भेजा. रांची में भाकपा(माले) माकपा, भाकपा और मासस – इन चार वाम दलों ने शहीद चौक से मार्च निकाला जिसमें बड़ी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया. झंडों-बैनरों से सुसज्जित यह प्रतिवाद मार्च जोरदार नारेबाजी करते हुए राजभवन के समक्ष पहुंचा और वहां सभा आयोजित हुई.
सभा को संबोधित करते हुए नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबन्दी और जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर पहले ही टूट चुकी थी. बेरोजगारी, महंगाई, कम आय और कृषि संकट के चलते गरीबों को दोनों शाम की रोटी का जुगाड़ करना भारी पड़ रहा था. मोदी राज-2 में आकर आज देश की अर्थव्यवस्था का संकट और भी गंभीर हो चला है. काफी ना-नुकुर के बाद मोदी सरकार ने इसे स्वीकार तो कर लिया है लेकिन अपनी कारपोरेटपरस्त नीतियों में कोई बदलाव करने का संकेत नहीं दे रही है.
मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में देश की अर्थव्यवस्था घरेलू मांगों की लगातार बढ़ती कमी से बुरी तरह प्रभावित है। जनता की क्रयशक्ति अब ऐसी नही है कि वह बाजार का सामना करे. कल-कारखानों के लगातार बन्द होते जाने से उनकी क्रय शक्ति और भी घटती जा रही है. लेकिन केंद्र सरकार उनको राहत देने के बजाय कारपोरेटों व पूंजीपतियों को राहत पहुंचाने में लगी हुई है. उनको 1.45 लाख करोड़ रु. की रियायत दी जा चुकी है. इसके पहले सरकार अचल संपत्ति कारोबार और निर्यात के क्षेत्रा को 70 हजार करोड़ रु. की रियायतें दे चुकी है. रिजर्ब बैंक से 1.76 लाख करोड़ रु. हथियाने के वाद अब यह पैसा बड़े कारपोरेटों के हवाले किया जा रहा है. कारपोरेट टैक्स को 34.94 से घटाकर 25.17 कर दिया गया है. ये सारी कसरतें डूब रही अर्थव्यवस्था को बचाने के नाम पर की जा रही हैं. इस तरह इस संकट का सारा बोझ भुखमरी व बेरोजगारी की जबरदस्त मार झेल रहे अवाम पर लादा जा रहा है. वाम दल इसका पुरजोर विरोध करते हैं और इस कारपोरेट फासिस्ट राज को उखाड़ फेंकने तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे.
सभा को भाकपा(माले) राज्य सचिव का. जनार्दन प्रसाद, केन्द्रीय कमेटी सदस्य का. शुभेंदु सेन, माकपा राज्य सचिव का. गोपीकांत बख्शी, भाकपा राज्य सचिव का. भुवनेश्वर मेहता व मासस नेता का. सुशांत मुखर्जी समेत कई वामपंथी नेताओं ने संबोधित किया.
धनबाद जिला मुख्यालय पर भी धरना-प्रदर्शन किया गया. जिसमें भाकपा, माकपा, भाकपा(माले), मासस, फारवर्ड ब्लाक व एसयुसीआई (कम्युनिस्ट) के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. कोडरमा में वाम दलों के संयुक्त बैनर के साथ चौक से उपायुक्त कार्यालय तक प्रतिवाद मार्च निकालकर धरना दिया गया जिसका नेतृत्व भाकपा(माले) जिला सचिव का. मोहन दत्ता, माकपा जिला सचिव का. रमेश प्रजापति व भाकपा जिला मंत्री का. महादेव राम द्वारा किया गया. धरना के माध्यम से उपायुक्त को नौ-सूत्री मांग पत्र सौपा गया. बोकारो में धरना, जमशेदपुर में प्रदर्शन, रामगढ़ में विक्षोभ मार्च, लोहरदगा में नुक्कड़ सभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया और अधिकारियों को 8 सूत्री मांगों का ज्ञापन दिया गया.
की राजधानी रुद्रपुर के आम्बेडकर पार्क में वाम पार्टियों – भाकपा(माले), भाकपा व माकपा द्वारा संयुक्त धरना का आयोजन किया गया. धरना को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) के उत्तराखंड राज्य सचिव का. राजा बहुगुणा ने कहा कि वर्गीय एकता व आपसी भाईचारे के अभियान को आर्थिक संघर्षों के साथ मिलाकर चलाने से ही कारपोरेट परस्त सांप्रदायिक राजनीति का जवाब दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आर्थिक मंदी ने आम जनता की जिन्दगी को संकट में डाल दिया है. यह सब मोदी सरकार की नोटबंदी, अतार्किक जीएसटी व कारपोरेटपरस्त नीतियों का नतीजा है. नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने भी साफ कहा है कि भारत भयंकर मंदी की चपेट में है और यह मंदी पूर्णतया मोदी मेड है. मंदी के चलते बाजार में मांग की कमी हुई है जिसके चलते उत्पादन में भारी गिरावट आई है. परिणाम स्वरूप छंटनी व बेरोजगारी चौतरफा पसर गई है.
उन्होंने कहा कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ाए बिना मंदी पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है लेकिन मोदी सरकार ने एनपीए के नाम पर देश के बैंकों को 13 लाख करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले कारपोरेट घरानों को रिजर्व बैंक से निकाले गए 1.76 लाख करोड़ रुपयों में से 1.44 लाख करोड़ रुपये सौंप दिए जबकि होना यह चाहिए था कि उक्त धनराशि सार्वजनिक उपक्रमों में लगती ताकि उत्पादन व रोजगार बढ़ता और आम आदमी को राहत मिलती.
का. राजा बहुगुणा ने कहा कि मोदी सरकार आज कश्मीर व एनआरसी के मुद्दे को हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के लिए प्रयोग कर रही है. कश्मीर में लोकतंत्र व संविधान की हत्या कर राष्ट्रीय एकता को चोट पहुंचाने वाली मोदी सरकार 370 व 35ए अनुच्छेद पर उठाए गए कदम को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही है. गृह मंत्री अमित शाह ‘एक राष्ट्र, एक भाषा’, एक पार्टी, एक सरकार’ व सिटीजन एमेण्डमेंट बिल (सीएबी) के नाम पर सांप्रदायिक विभाजन व मुस्लिम विरोध को बढ़ावा दे रहे हैं और हिंदू राष्ट्र की वकालत कर रहे हैं जो कि सीधे सीधे भारतीय संविधान को नकारना है. वही उत्तराखंड सरकार पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं व शिक्षा क्षेत्र की बदहाली से मुंह मोड़े हुए है और उसका पूरा ध्यान शराब व जमीन के कारोबारियों की सेवा में लगा हुआ है. सरकार प्रदेश में डेंगू पर नियंत्रण करने की जगह हास्यास्पद बयान दे रही है.
भाकपा के जिला मंत्राी एडवोकेट राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि मोदी सरकार की सरपरस्ती में देश में साम्प्रदायिक सद्भाव को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है. संविधान की शपथ लेकर संविधान और लोकतंत्र का मजाक उड़ाया जा रहा है. यह बेहद शर्मनाक है. जनता की जनवादी ताकतों को एकजुट होकर इसका जवाब देने की जरूरत है.
मकापा के जिला सचिव का. राजेन्द्र सिंह ‘राजा’ ने कहा कि मोदी राज में किसान-मजदूरों की बदहाली हुई है और यह इस सरकार की तुगलकी नीतियों के कारण हुई है. मोदी सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को तबाह करने के लिए जिम्मेदार है.
भाकपा(माले) की राज्य कमेटी के सदस्य डा. कैलाश पाण्डेय ने कहा कि मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ पूरा संसदीय विपक्ष कोई भी चुनौती पेश करने में असफल हो चुका है. पूरे देश में लाल झंडा ही मोदी सरकार को सड़कों पर लड़ाई लड़ते हुए वास्तविक चुनौती पेश कर रहा है. इस राजनीतिक परिस्थिति में वामपंथ के नेतृत्व में प्रगतिशील लोकतांत्रिक शक्तियों के द्वारा जनसंघर्षों को आगे बढ़ाते हुए वास्तविक विकल्प के रूप में आगे आने की संभावना बढ़ गई है. यह समय की मांग है जिसके लिए भाकपा माले कटिबद्ध है और इस हेतु गंभीरतापूर्वक प्रयास करती रहेगी.
का. बहादुर सिंह जंगी, अवतार सिंह, रणजीत सिंह, भुवन जोशी, ललित मटियाली, दिनेश तिवारी, गोविन्द जीना, राजेन्द्र शाह, नैन सिंह कोरंगा, मुबारक शाह, उत्तम दास, चन्दन राम, गोपाल गड़िया, महेंद्र कुमार मौर्य, शेर सिंह पपोला, आफाक अहमद, धीरज, अब्दुल मजीद, उमेश बैठा, विनोद कुमार, चन्द्रबली तिवारी, गुरूचरन सिंह चीमा, कुलवन्त सिंह, करनैल सिंह, प्यारा सिंह, नारायण सिंह, पप्पू अहमद आदि ने वामपंथी पार्टियों द्वारा आयोजित संयुक्त धरना में सक्रिय भागीदारी की. कार्यक्रम का संचालन भाकपा(माले) के जिला सचिव का. आनंद सिंह नेगी ने किया.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तीन वामपंथी पार्टियों माकपा, भाकपा और भाकपा(माले) ने धरना आयोजित किया. धरना को छत्तीसगढ़ किसान सभा और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के नेताओं ने भी संबोधित किया. वक्ताओं ने मोदी सरकार द्वारा देशव्यापी मंदी से निपटने के तौर-तरीकों की आलोचना करते हुए रोजगार सृजन और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों के जरिये आम जनता की जेब में पैसे डालने की मांग की ताकि बाज़ार में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बने. वाम दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ऐसा करने के बजाय देशी-विदेशी कारर्पाेरेटों की तिजोरियों को ही उनके बैंक क़र्जों की माफ़ी, सस्ते दरों में ब्याज और बेल-आउट पैकेज के जरिये भर रही है. इससे आम जनता और बदहाल और अर्थव्यवस्था बर्बाद होगी. धरना में रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, कोरबा, बिलासपुर सहित पूरे प्रदेश से आये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.
भाकपा(माले) के राज्य सचिव का. बृजेन्द्र तिवारी ने सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण की तीखी आलोचना की और कहा कि पिछले तीन सालों में देश में पांच करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं, औद्योगिक विकास में भयंकर गिरावट आई है, इसके बावजूद मोदी सरकार को मंदी नहीं दिख रही है. उन्होंने कहा कि सरकारी समितियों ने न्यूनतम मजदूरी 450 रूपये करने की मांग की है और यह सरकार 178 रूपये से ज्यादा देने को तैयार नहीं है. यही कारण है कि विश्व भूख सूचकांक में भारत का स्थान 55वें से गिरकर 102वां हो गया है और आज पूरे विश्व के आधे भूखे और कुपोषित लोगों की संख्या हमारे देश में ही है. उन्होंने रोजगार सृजन के लिए सरकारी खाली पदों को भी भरने की मांग की.
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के जरिये आम जनता की कमर तोड़ दी गई है. मजदूर-किसान और छोटे व्यापारियों की बचत गिर गई और वे क़र्ज़ में डूब गए है. अब उनकी जेब में पैसे नहीं है कि बाजार में जाकर सामान खरीद सकें. मंदी का यही कारण है. उन्होंने कहा कि इस मंदी के बावजूद सरकार ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सामाजिक कार्यों में एक लाख करोड़ रुपये कम खर्च किए हैं. इस राशि से 570 करोड़ श्रम दिवस पैदा किए जा सकते थे और 5.7 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मनरेगा में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता था. इससे बाज़ार में मांग बढ़ाई जा सकती थी. उन्होंने किसानों की क़र्ज़ मापफ़ी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत के डेढ़ गुना कीमत पर फसल खरीदने की भी मांग की.
भाकपा के सहायक सचिव कमलेश ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाने की मांग की. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार गोदामों में भरे अनाज के भंडार को विदेशों को दान करने के लिए तो तैयार है, लेकिन देश के गरीबों को सस्ते में बेचने के लिए तैयार नहीं है. ऐसी रवैये वाली सरकार जनविरोधी ही हो सकती है.
धरना को माकपा के समीर कुरैशी, शांत कुमार, प्रदीप गभने, प्रशांत झा, भाकपा के विनोद सोनी, लखन सिंह, ओ. पी. सिंह, भाकपा(माले) के नरोत्तम शर्मा, अशोक मिरी, लल्लन राम, छत्तीसगढ़ किसान सभा के नंदकुमार कश्यप, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के विजय भाई आदि ने भी संबोधित किया. उन्होंने मोदी सरकार की कार्पाेरेटपरस्त नीतियों को इस मंदी और देश की बर्बादी की जड़ बताते हुए इसके खिलाफ अथक संघर्ष करने और आम जनता को लामबंद करने की जरूरत बताई. नेताओं ने आरोप लगाया कि समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए ही राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता का उन्माद फैलाया जा रहा है. सभी नेताओं ने 8 जनवरी को आहूत देशव्यापी मजदूर हड़ताल को भी सफल बनाने की अपील की.
14 अटूबर को दुर्ग में मानस भवन के सामने धरना प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन जिलाधिकारी को सौपा. धरना-प्रदर्शन सभा को संबोधित करते हुए वामपंथी नेताओं ने कहा कि इस मंदी की सबसे बड़ी मार रोजगार पर पड़ रही है और कल-कारखाने बंद/बीमार हो रहे हैं. खेती-किसानी ठप हो रही है. वक्ताओं ने मंदी से निपटने के लिए आम जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाने और रोजगार-सृजन से जुड़ी मांगों पर जोर दिया. सभा को विनोद सोनी, ब्रजेंद्र तिवारी, शांत कुमार, श्यामलाल साहू, रामनिहोर, शमीम कुरैशी ने संबोधित किया. जनकवि वासुकि प्रसाद ‘उन्मत’ ने राजनैतिक हालात पर लिखी अपनी एक कविता का पाठ किया.
राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम के तहत विगत 10 अक्टूबर को साबरकांठा जिले के जिला मुख्यालय हिम्मतनगर में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया. रैली में भारी संख्या में औद्योगिक मजदूरों के अलावा आदिवासी जनता ने भी भागीदारी की.
रैली का नेतृत्व भाकपा(माले) की गुजरात राज्य नेतृत्वकारी टीम के सदस्य व साबरकांठा जिला सचिव कामरेड दशरथ सिंहाली, अरावली जिला सचिव कामरेड भवानभाई पगी, कामरेड जीवाजी डामोर, कामरेड सुखलाल कलाल तथा सीपीएम के अरावली जिला सचिव कामरेड डी आर यादव, साबरकांठा जिला सचिव कामरेड पुरुषोत्तम परमार आदि नेता कर रहे थे.
रैली के अंत में उपरोक्त नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने साबरकांठा जिलाधिकारी से मिलकर मोदी सरकार की जनविरोधी कारपोरेटपरस्त, आदिवासी-विरोधी एवं औद्योगिक मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में एक ज्ञापन सौंपा.