वर्ष - 33
अंक - 38
14-09-2024

झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित कोयला राजधानी धनबाद 9 सितंबर को ऐतिहासिक लाल झंडे की रैली का गवाह बना, जब आजाद भारत के क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन की दो प्रमुख क्रांतिकारी धाराओं – 1972 में कामरेड एके राय द्वारा स्थापित मार्क्सवादी कोऑर्डिनेशन कमिटी (एमसीसी) और 1969 में कामरेड चारू मजूमदार द्वारा स्थापित भाकपा(माले) – के औपचारिक विलय का ऐलान हुआ. इस मौके पर आयोजित ‘एकता रैली’ में झारखंड की कोयला खदानों, कारखानों और अन्य उद्योगों से जुड़े हजारों मजदूरों के साथ-साथ किसानों, स्कीम वर्करों, छात्रों, बेरोजगार युवाओं, कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं और प्रगतिशील नागरिकों की व्यापक सक्रिय भागीदारी ने इसे एक शानदार आयोजन बना दिया. ऐसे समय में जब भाजपा अपने षड्यंत्रकारी एजेंडे के तहत विपक्ष को कमजोर करने के लिए दलबदल और तोड़फोड़ का सहारा ले रही है, ‘एकता रैली’ ने झारखंड को बचाने और लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ाकू ताकतों की एकता का जोरदार संदेश दिया है.

आज़ादी के बाद के भारत में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन की दो महत्वपूर्ण धाराओं – नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह से पैदा हुईं भाकपा(माले) और मार्क्सवादी कोऑर्डिनेशन कमिटी – का यह ऐतिहासिक मिलन, झारखंड की राजनीति के लिए बेहद अहम है. ‘भाकपा(माले)’ ने भारतीय समाज में क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूती से स्थापित करने के लिए राज्य दमन और सामंती हिंसा का दृढ़ता से सामना करते हुए शोषित तबकों और हाशिए पर पड़े लोगों को संगठित कर क्रांतिकारी संघर्षों का नेतृत्व किया हैदूसरी ओर, ‘मार्क्सवादी कोर्डिनेशन कमिटी’ ने झारखंड आंदोलन के दौरान कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के लिए आवाज उठाई और मजदूर तबके के हक की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. दोनों आंदोलनों ने एके राय, रामनरेश राम, महेंद्र सिंह और गुरुदास चटर्जी जैसे क्रांतिकारी नेताओं को जन्म दिया है. इन धाराओं का एकीकरण कामरेड विनोद मिश्र और एके राय के व्यापक कम्युनिस्ट एकता के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

झारखंड और भारत के मौजूदा हालात ने इस एकीकरण को और भी जरूरी बना दिया है. झारखंड के लिए दशकों तक चले आंदोलन का मकसद एक ऐसे राज्य का सपना था, जहां मूल निवासियों को उनका जायज हक और सम्मान मिले और औद्योगिक विकास के लिए महत्वपूर्ण इस संसाधन संपन्न भूभाग में श्रमिकों के सभी तबके खुशहाल और सशक्त बने. हालांकि, नवंबर 2000 में इसके गठन के बाद से, राज्य ज्यादातर भाजपा शासन के ही अधीन रहा है. झारखंड को पुलिस राज्य और कारपोरेट शोषण से मुक्त करने के झारखंड आंदोलन के सपने को संघ ब्रिगेड के जरिए सांप्रदायिक घृणा और हिंसा की प्रयोगशाला में बदलने की साजिश की जा रही है. झारखंड की स्थापना से कुछ महीने पहले कामरेड गुरुदास चटर्जी की हत्या की गई थी. फिर 2005 में चुनाव के दौरान कामरेड महेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई थी. संविधान की पांचवीं अनुसूची के ईमानदारी से लागू करने की मांग करने वाले आदिवासियों पर बड़ी तादाद में देशद्रोह का मुकदमा किया गया और जेल में डाला गया. आदिवासी अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत फादर स्टेन स्वामी को यूएपीए के तहत जेल में रखकर बिना उचित देखभाल के मरने के लिए छोड़ दिया गया.

झारखंड के प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को योजनाबद्ध तरीके से बीमार किया जा रहा है. इसमें रांची का एचईसी, धनबाद-बोकारो-हजारीबाग क्षेत्र का कोयला उद्योग, बोकारो का स्टील प्लांट और उससे संबंधित अन्य कारखाने, साथ ही बिजली और उर्वरक इकाइयां शामिल हैं. इस बीच, अडानी समूह को गोड्डा में सिर्फ एक परियोजना के लिए ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ सहित कई अप्रत्याशित रियायतें दी गई हैं. यहां अडानी ऑस्ट्रेलिया की अपनी कारमाइकल खदानों से आयातित महंगे कोयले को जलाकर विशेष रूप से बांग्लादेश के लिए महंगी बिजली बनाता है. बांग्लादेश में मौजूदा हालात को देखते हुए, मोदी सरकार ने अडानी के गोड्डा संयंत्र से भारत में बिजली की बिक्री की अनुमति देने के लिए नियमों में बदलाव किया है. झारखंड को भारत के पूंजीपति वर्ग के लिए एक उपनिवेश में तब्दील किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बाद, भाजपा अब झारखंड को अपने कब्जे में लेने के लिए निशाना बना रही है, जो भारत के प्रमुख खनिज-संपन्न राज्यों में से एक है.

यदि संघ परिवार झारखंड को अपने फासीवादी प्रयोग का अखाड़ा बनाने की साजिश में है, तो प्रतिरोध की सभी ताकतें एकजुट होकर झारखंड को फासीवाद विरोधी संघर्ष का केंद्र बना दें. 2024 के चुनावों में बहुमत से दूर रह गई भाजपा के फासीवादी एजेंडे को झटका तो लगा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा को सीटों के भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, जबकि बिहार और झारखंड ने एनडीए को केवल मामूली सा झटका देकर बचा लिया है. लेकिन अब झारखंड को बचाने की लड़ाई और भी ज्यादा जरूरी हो गई है. आगामी विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा में दलबदल और प्रशासनिक मशीनरी में हेरफेर के जरिए सत्ता हथियाने की भाजपा की योजना को हर हाल में निर्णायक शिकस्त देना होगा. झारखंड की दो प्रमुख क्रांतिकारी वामपंथी ताकतों का एकीकरण कम्युनिस्ट कतारों और जन आंदोलनों को कंपनी राज की लूट, सांप्रदायिक नफरत, लोकतंत्र और संविधान पर हो रहे फासीवादी हमलों के खिलाफ अपने प्रतिरोध को और भी मजबूत करने के लिए हौसला-आफजाई करेगा.