स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर कोलकाता के आरजी कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आरजीकेएमसीएच) में एक 31-वर्षीया पोस्टग्रेजुएट प्रशिक्षु डॉक्टर के भयावह बलात्कार व हत्या कांड ने पश्चित बंगाल में बड़ी जन दावेदारी पैदा कर दी है जिसे महत्वपूर्ण महिला पहलकदमी ‘रिक्लेम द नाइट’ –एक अंतरराष्ट्रीय आन्दोलन से लिया गया नाम – से बल मिल रहा है. इस 15 अगस्त के दिन आज के भारत में महिलाओं की आजादी, महिलाओं की सुरक्षा और मर्यादित व लोकतांत्रिक जीवन के अनिवार्य महिला अधिकारों पर पूरा जोर दिया गया था. 36 घंटे की श्रमसाध्य शिफ्रट पूरा करने के बाद अपने ही अस्पताल में एक युवती डॉक्टर के नृशंस बलात्कर और उसकी हत्या की घटना कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा के घोर अभाव का दुखद प्रतीक बना गया है. कोलकाता के चंद चुनिंदा स्थलों पर छोटे-छोटे प्रतिवाद आयोजित करने की योजना शीघ्र ही महिलाओं की अभूतपूर्व राज्यव्यापी दावेदारी में विकसित हो गई. समूचे देश में छात्रों, डॉक्टरों और चेतनशील नागरिकों ने भी फौरन सड़कों पर उतरकर पश्चिम बंगाल के इस आन्दोलन के साथ एकजुटता जाहिर की है.
एक तरह से कहिए तो देश के सामने 2012 के बलात्कार-विरोधी उभार के पल जीवंत हो उठे हैं जो एक निजी बस के अंदर 22-वर्षीया फिजियोथेरापी प्रशिक्षु ‘निर्भया’ के बलात्कार व हत्या कांड के बाद पैदा हुआ था. उस उभार ने न केवल देशव्यापी शक्तिशाली प्रतिवादों को जन्म दिया था, बल्कि उसके ही परिणामस्वरूप एक न्यायिक समिति का गठन हुआ, महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं के साथ व्यापक सलाह-मशविरा किया गया तथा अपराध कानूनों में बड़ी तब्दीलियां भी की गईं जिसके चलते वे कानून यौन उत्पीडत्रन व हिंसा से निपटने में ज्यादा कारगर बन सके. उस कांड में शामिल सभी छह लोगों को गिरफ्तार किया गया : एक की मौत हाजत में हो गई, चार लोगों को 20 मार्च 2020 के दिन फांसी दे दी गई, और एक नाबालिग अपराधी ने अपनी सजा पूरी कर ली है.
2012-13 के उस बलात्कार-विरोधी आन्देलन में सही तौर पर यौन उत्पीड़न व हिंसा के मामलों में न्याय के सवाल को केंद्र में रखा गया था, तथा मुकदमा दर्ज करने, जांच-पड़ताल की प्रक्रिया को त्चरित बनाने और अपराधियों को सजा मिलने की दर बढ़ाने पर जोर दिया गया था. इस बार भी पश्चिम बंगाल और इसके बाहर वातावरण में ‘हमें न्याय चाहिए’ का ही नारा गूंज रहा है. पश्चिम बंगाल के लोग न्याय सुनिश्चित करवाने, तथा इस जघन्य कृत्य पर पर्दा डालने व इसके अपराधी अथवा इस जघन्य अपराध में संलिप्त किसी भी व्यक्ति को बचाने की संभावित कोशिश को नाकाम करने के लिए फौरन सड़कों पर उतर पड़े. ‘रिक्लेम द नाइट’ आह्वान आरजीकेएमसी के प्राचार्य द्वारा सीधे-सीधी पीड़िता पर ही दोष मढ़ने वाले वक्तव्य के खिलाफ सामने आया है. उस प्राचार्य को आरजीकेएमसी के अपने पद से इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा, लेकिन जब उसे कुछ ही घंटे बाद उसी शहर में एक दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रभार सौंपा गया तो आम लोगों का गुस्सा वाजिबन जंगल की आग की तरह फैल गया.
जिस रात दसियों हजार लोग कोलकाता की सड़कों पर ‘रिक्लेम द नाइट’ सभाओं व जुलूसों में उतरे हुए थे, उस समय आरजीकेएमसीएच में वहशत के सामने पुलिस की निष्क्रियता ने जनता केे आक्रोश और संकल्प को दुगूना कर दिया. उसी तरह से इस मामले में अभी तक एकमात्र गिरफ्तार अभियुक्त को फांसी देने की मांग पर मुख्य मंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयोजित ‘प्रतिवाद मार्च’ की हास्यस्पद कवायद से भी लोगों का गुस्सा बढ़ गया – ममता बनर्जी न केवल मुख्य मंत्री के बतौर, बल्कि राज्य सरकार के स्वास्थ्य तथा विधि-व्यवस्था मंत्रालयों की प्रभारी होने के बतौर भी अपनी जिम्मेदारी नहीं स्वीकार रही थीं.
जब राज्य सरकार ने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी फुटबॉल क्लबों – मोहन बगान और ईस्ट बंगाल - के बीच होने वाले मैच को रद्द करने का कदम उठाया तो शहर के तीन शीर्ष फुटबॉल क्लबों – मोहन बगान, ईस्ट बंगाल और मोहम्मडन स्पोर्टिंग – के फुटबॉल प्रेमियों ने इस वीभत्स कांड के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए संयुक्त प्रतिवाद मार्च निकाला. थियेटर कर्मचारी, वकील और लगभग सभी पेशों और जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े लोग भी न्याय की मांग पर रोज-ब-रोज प्रतिवाद कर रहे हैं.
इसी बीच कोलकाता उच्च न्यायालय की सफारिश पर जांच-पड़ताल का जिम्मा सीबीई को सौंप दिया गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और सीबीआई को निर्देश दिया है कि वे न्यायालय को हर प्रगति से अवगत कराते रहें. सर्वोच्च न्यायालय ने डॉक्टरों से अपनी हड़ताल खत्म कर अपनी ड्यूटी पर वापस जाने की अपील करते हुए अपने फैसले की घोषणा की है कि एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स बनाया जाएगा जो मेडिकल पेशा से जुड़े लोगों की कार्यस्थल सुरक्षा को मजबूत बनाने के उपाय निर्धारित करेगा. कोर्ट ने राज्य सरकार को भी कहा है कि वह शांतिपूर्ण प्रतिवाद आयोजित करने के जनता के अधिकार का सम्मान करे और बलपूर्वक प्रतिवादों को रोक कर जनता के अधिकार का उल्लंघन न करे. शक्तिशाली प्रतिवाद आन्दोलनों के दबाव से न केवल राज्य सरकार रक्षात्मक स्थिति में चली गई है, बल्कि इस दबाव ने सर्वोच्च न्यायालय को भी सक्रिय प्रतिक्रिया जाहिर करने को बाध्य कर दिया. इस दबाव को आगे बढ़ाते रहना होगा ताकि कुछ वास्तविक न्याय और सकारात्मक बदलाव हासिल किया जा सके.
स्पष्ट है कि यहां मुद्दा सिर्फ मेडिकल कर्मियों की सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह कार्यस्थलों व सार्वजनिक स्थानों पर और साथ ही, घरों व परिवारों के अंदर भी तमाम महिलाओं की सुरक्षा व मर्यादा से जुड़ा मुद्दा है. जिस रात पश्चिम बंगाल में महिलाएं अपने अधिकारों की दावेदारी के लिए सड़कों पर उतरी थीं, उसी रात बर्धमान जिले के शक्तिगढ़ में एक आदिवासी युवती प्रियंका हांसदा की नृशंस हत्या कर दी गई. लगभग उसी समय, जब आरजी कार की भयावह घटना हुई थी, भारत के कई राज्यों से यौन हिंसा की बर्बर घटनाओं की खबरें मिली हैं जिनमें उत्तराखंड में एक नर्स के बलात्कार और हत्या, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक 14-वर्षीय दलित लड़की के बलात्कार व हत्या, तथा मुंबई के निकट बदलापुर के एक प्रसिद्ध स्कूल में छात्राओं पर दुखद यौन हमले की घटनाएं शामिल हैं. और सर्वोच्च न्यायालय जब आरजी कार घटना की सुनवाई कर रहा था, तो उसके ठीक एक दिन पहले केरल सरकार ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त यौन उत्पीड़न और गहरी नारी-विरोधी भावना के बारे में जस्टिस के. हेमा की अध्यक्षता वाली एक समिति की रिपोर्ट जारी की थी.
वस्तुतः, 2012 के ‘निर्भया’ कांड के बाद भी भयावह बलरत्कार और हत्या की अनेकानेक घटनाएं हुई हैं – जम्मू में कठुआ से लेकर यूपी में हाथरस और मणिपुर में हृदयविदारक घटनाओं तक, और सच तो यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इन सब पर कभी समुचित ध्यान नहीं दिया है. कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित ‘विशाखा’ दिशानिर्देशों और 2013 के नवीकृत अध्यादेश का ज्यादातर मामलों में उल्लंघन ही किया जाता रहा है. सजायाफ्रता बलात्कारी और बलात्कार के आरोपी राजनेताओं को भाजपा पुरष्कृत ही करती रही है, और जैसा कि आरजी कार मामले में ममता बनर्जी के हास्यास्पद ‘प्रतिवाद’ से स्पष्ट हुआ, न्याय के सवाल की जगह अधिकांश पार्टियां सजा-ए-मौत का उन्मादपूर्ण आह्वान करने लगती हैं.
‘निर्भया’ मामले के बावजूद, जिसमें चार अभियुक्तों को फांसी की सजा दी गई, बलात्कार अभी तक भारत में सब जगह होने वाला अपराध बना हुआ है. यह तथ्य साफ-साफ बताता है कि मृत्युदंड इसका कोई समाधान नहीं है. सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के सांस्थानिक उपाय, न्याय की त्वरित व गारंटीशुदा व्यवस्था तथा बलात्कार की संस्कृति व पितृसत्ता के खिलाफ शतिशाली सामाजिक जागरण और गोलबंदी ही वक्त का तकाजा हैं. हमें उम्मीद है कि आरजी कार के भयावह हादसे से उत्पन्न ‘हमें न्याय चाहिए’ का निनाद भारत को मजबूती से इस दिशा में आगे ले जाएगा.