लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले कई अहम राजनीतिक घटनाक्रम उभर कर आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री और भुगतान के डेटा मुहैया कराने के लिए भारतीय स्टेट बैंक के ज्यादा समय मांगने की अर्जी को खारिज कर दिया है. ज्यादा वक्त की मांग लोकसभा चुनाव के पहले डेटा का खुलासा न करने की मोदी सरकार और एसबीआई की मंशा और उनकी हताश कोशिशें नाकाम हो चुकी है. अब भारत निर्वाचन आयोग से यह उम्मीद की जाती है कि वह इस जानकारी को सार्वजनिक करे.
इसके अलावा दूसरे महत्वपूर्ण घटनाक्रम में चुनाव आयोग में बेहद असामान्य तरीके से नवंबर 2022 में नियुक्त चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने रहस्यमय तरीके से इस्तीफा दे दिया है, जिससे मोदी सरकार के लिए हाल ही में पारित कानून के तहत एक नया आयोग बनाने का रास्ता साफ हो गया है. 15 मार्च को जब चुनावी बॉन्ड डेटा का खुलासा किया जाएगा, मोदी चुनाव आयोग में नए सदस्यों की रिक्तियां भर रहे होगें.
जब देश 11 मार्च को चुनावी बॉन्ड का ब्यौरा पेश करने की समय सीमा बढ़ाने की एसबीआई की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा था, तभी मोदी सरकार ने लंबे विलंब के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 को लागू करने को मंजूरी दे दी. 11 दिसंबर, 2019 को पारित इस कानून के नियमों का इत्तिला करने में मोदी सरकार को इक्यावन महीने लग गए! यह बिलकुल साफ दिखता है कि सरकार ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लेकर 2024 के चुनावों को प्रभावित करने और जनता को अन्य जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए इसके ऐलान करने में जानबूझकर देरी की है, पर सरकार पूरी तरह से बेनकाब हो गई है.
लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हरियाणा में नेतृत्व में अचानक बदलाव कर मुख्यमंत्री के बतौर मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी के पद संभालने के साथ-साथ और बिहार में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों को कराने के लगातार शोरगुल से पता चलता है कि आने वाले दिनों में और भी गुप्त योजनाएं सामने आ सकती हैं. इन सभी हताश चालों और पैंतरेबाजी से साफ पता चलता है कि 400 से अधिक सीटें जीतने की बड़ी-बड़ी बातों के बाबजूद जनता के बढ़ते गुस्से से घबराई मोदी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए हर तिकड़म आजमा रही है.
चुनावी बॉन्ड से संबंधित दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के बीच सटीक संबंध को उजागर करने के लिए विशेषज्ञों और खोजी पत्रकारों को कुछ समय की जरूरत हो सकती है, लेकिन सच्चाई यह है कि एसबीआइ ने चुनावी बॉन्ड के ब्यौरा को छिपाने की कोशिश की और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना की कारवाई की धमकी दिए जाने के बाद ही इसका खुलासा किया. यह अपने आप में भाजपा के सबसे बड़े घोटाले की ओर इशारा करता है. यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ राजनीतिक और कॉरपोरेट समूह अभी भी चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड की जानकारी जनता के साथ साझा करने से रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. मोदी-अडानी कनेक्शन को उजागर करने वाले सांसदों और पत्रकारों को निशाना बनाने से लेकर चुनावी बॉन्ड विवरण का खुलासा करने की सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की हताश कोशिशों से जाहिर है कि मोदी सरकार आर्थिक और राजनीतिक रूप से इस बड़े भ्रष्टाचार में गहराई से शामिल है.
भाजपा एक बार फिर सीएए को एक ऐसे कानून के बतौर पेश कर जनता को धोखा दे रही है जो वाजिव आवेदकों को नागरिकता प्रदान करता है, न कि यह कुछ लोगों को नागरिकता से वंचित करने का एक हथियार है. मोदी सरकार के जरिये सीएए के बारे किये जा रहे दावे सरासर झूठ हैं. जब चार साल पहले सीएए पारित किया गया था, तो अमित शाह ने साफ कर दिया था कि यह राष्ट्रव्यापी एनआरसी की शुरुआत है. असम में एनआरसी के अनुभव ने पहले ही दिखाया है कि कैसे भाषाई और धार्मिक पहचान से परे गरीबों और बिना उचित दस्तावेज के गैर-महफूज लोगों के लिए एनआरसी की ‘पात्रता’ से गुजरना बेहद मुश्किल और तकलीफदेह रहा है. सीएए नागरिकता का भयावह सांप्रदायीकरण है जो विभाजनकारी होने के साथ ही हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है. इस आलोक में शाहीन बाग आंदोलन, जिसका उद्देश्य सीएए के खिलाफ समान नागरिकता को बरकरार रखना था, को कोविड महामारी की वजह से बाधित होने से पहले व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था. भाजपा ने आंदोलन को दबाने के लिए दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा का इस्तेमाल किया और इसमें शामिल कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओं पर झूठा इल्जाम लगाने का काम किया.
हमें सीएए के बारे में भाजपा के विभाजनकारी और गुमराह करने वाले प्रचार का मुकाबला करने और जनता को सीएए-एनआरसी के विनाशकारी परिणामों के बारे में आगाह करने की जरूरत है. जिन व्यक्तियों को सीएए के जरिए नागरिकता की पेशकश के सपने दिखाए जा रहे हैं, उन्हें पहले खुद को अवैध अप्रवासी के रूप में अपने वजूद को स्वीकार करने की जरूरत होगी, और उनमें कुछ लोगों को नागरिकता के वादे के झांसे में सीएए पात्रता के लिए जरूरी दस्तावेज देने की कठिनाइयों की वजह से काफी संघर्ष करना पड़ेगा. जिन लोगों को भारत आना पड़ा और अपने जीवन के पुनर्निर्माण के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनके संघर्षों और भावनाओं से छेड़छाड़ करने का यह मोदी का एक और जुमला है. सीएए न्याय देने की बजाय सिर्फ उनके जीवन को बाधित करेगा और उन्हें अनिश्चितता और असुरक्षा के हालात में वापस धकेल देगा.
भारत की जनता मोदी के सिलसिलेवार जुमलों से ऊब चुकी है. उन्हें नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक मोदी सरकार की वजह से लगातार आपदाओं का सामना करना पड़ा है. लेकिन, हम एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए किसान आंदोलन जैसे शक्तिशाली एकजुट संघर्ष का निर्माण होते देख रहे हैं. हम पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए कर्मचारियों को सड़कों पर उतरते देख रहे है. निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ युवाओं की भागीदारी आंदोलन में हो रही है. अपने काम की मान्यता और वाजिब वेतन के लिए स्कीम वर्कर्स को संघर्षों में उतरना पड़ रहा है और हमने इनका समर्थन दिया है. जातीय जनगणना और आरक्षण के विस्तार को लेकर दलित-बहुजन आंदोलन ने भी जोर पकड़ लिया है. और आज, हम सबको एकजुट होकर बांटने वाली सीएए-एनआरसी को हर हाल में खारिज करना होगा. संघ ब्रिगेड की हर साजिश और तिकड़म को नाकाम करना होगा, और जनता को हर वोट की अहमियत समझ मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का लक्ष्य हासिल करना होगा.