वर्ष - 32
अंक - 25
17-06-2023

2014 से ही हम भाजपा की चुनावी रैलियों में प्रायः ‘डबल इंजन की सरकार’ का जुमला सुनते रहे हैं. यह मोेदी-शाह की सर्वप्रिय उपमा है जिसके जरिये वे केंद्र की सत्ता पर भाजपाई नियंत्रण के आधार पर राज्यों में वोट बटोरना चाहते हैं. मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने अब अर्थतंत्र का वर्णन करने के लिए एक विमानन शब्द का प्रयोग किया है. सीईए वी. अनंत नागेश्वर के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था अब ऑटो-पायलट मोड’ में आ गयी है, और वह 2030 तक लगातार 6.5-7 प्रतिशत की दर से वृद्धि करती रहेगी! मोदी सरकार के 9 वर्षों के अधिकांश समय में हमलोगों ने दीर्घकालिक गतिरुद्धता और गिरावट देखी है. नोटबंदी, जीएसटी तथा लाॅकडाउन के तिहरे आघातों और निजीकरण, डाउनसाइजिंग व कार्यबल के अस्थायीकरण की नीतियों ने बेरोजगारी और कीमतों को रिकाॅर्ड ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है. लेकिन अब महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों के ठीक पहले हमें कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था निश्चितरूपेण ऑटो-पायलट मोड में उड़ने लगी है जिसमें सरकार को कुछ भी करने की जरूरत नहीं है.

खुद की पीठ थपथपाने वाला यह प्रचार दो बातों पर टिका हुआ है – जीडीपी में मामूली वृद्धि और जीएसटी संग्रह में बढ़ोतरी के अस्थायी आकड़े. ये आंकड़े अभी भी अस्थायी ही हैं, किंतु सरकार और उसके भांट मीडिया ने डफली बजानी शुरू कर दी है. पहली चीज तो हमें यह याद रखनी होगी कि 6.5-7 प्रतिशत की वृद्धि का जो दावा किया जा रहा है, उसके पहले कोविड काल में जीडीपी बुरी तरह से सिकुड़ गया था; और इसका मतलब यह है कि भारत महामारी काल की उस गिरावट से सिर्फ उबर रहा है. दूसरे, मौजूदा वृद्धि अभी भी अस्थायी है और काफी असमान भी. क्षेत्रवार ढंग से देखें तो यह वृद्धि महज तीन क्षेत्रों तक ही सीमित है – सेवा, निर्माण और पर्यटन. जहां तक आय समूहों का सवाल है, तो सबसे ऊपरी 20 प्रतिशत हिस्सा इस वृद्धि को संचालित कर रहा है जबकि निचले 80 प्रतिशत लोग और ज्यादा गरीबी में धंसते जा रहे हैं. इस प्रकार, सुधार का यह असमान पैटर्न अंग्रेजी वर्णमाला के ‘ज्ञ’ अक्षर से मिलता जुलता है.

इस वर्ष के शुरू में आई ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘सबसे धनिकों का जीवित रहना’ (शायद इससे बेहतर शब्द सबसे धनिकों का उत्सव होगा) में इस असमान वृद्धि का अत्यंत दुखद चित्र पेश किया गया है. अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ती हुई 2020 में 102 के बनिस्पत 2022 में 166 हो गई. 2012 से 2021 के बीच भारत में सृजित धन का 40 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ 1 प्रतिशत आबादी के पास चला गया, जबकि सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में सिर्फ 3 प्रतिशत धन आ सका. आमदनी में गिरावट और क्रय शक्ति में छीजन के चलते निजी उपभोग, विशेषतः आवश्यक सामग्रियों व सेवाओं का जन-उपभोग, नहीं बढ़ सका है. दुपहिया वाहनों और सबसे कम कीमत वाली कारों की बिक्री घट गई है, जबकि महंगी कारों और अन्य विलासिता सामग्रियों की बिक्री में उछाल आया है.

धन वितरण का यह अत्यंत असमान पैटर्न धनिक-परस्त टैक्स और बैंकिंग प्रणालियों के चलते और भी मजबूत बनता जा रहा है. भारत में धन या विरासत टैक्स नाम की कोई चीज नहीं है, जबकि काॅरपोरेट टैक्स में वास्तविक रूप से कमी की जा रही है. बैंकिंग प्रणाली को लगातार धनिक वर्ग के हितों के अनुकूल बनाया जा रहा है. बड़े-बड़े कर्जों का नहीं लौटाया जाना, ऋण माफी और बेलआउट पैकेज – ये सब चीजें बैंकिंग प्रणाली को अति-धनाड्यों के हाथों में धन के संकेंद्रण का औजार बनाती जा रही हैं. अडानी ग्रुप का उत्थान और संकट निजी मुनाफे के लिए सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का ज्वलंत उदाहरण है. अडानी ग्रुप के तेज और चमत्कारपूर्ण उत्थान का वास्तविक मतलब था भारत के बुनियादी ढांचे को सार्वजनिक नियंत्रण से हटाकर अडानी के हाथों सौंप देना, और अब हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने जब अडानी ग्रुप के महापतन की शुरूआत की तो हम एक बार फिर एलआईसी और एसबीआई जैसी सार्वजनिक संस्थाओं को अडानी साम्राज्य के बचाव में कुर्बान करते देख रहे हैं.

जहां भारत बड़ी आर्थिक चुनौतियां झेल रहा है, वहीं मोदी सरकार न केवल इस कठोर आर्थिक सच्चाई को मानने से इन्कार कर रही है, बल्कि वह पूरे भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिये और अल्पसंख्यकों को बलि का बकरा बनाकर इस सच को दबा देने की भी कोशिश कर रही है. हिंदू राष्ट्र की मुहिम शुरू करने के लिए बिहार में एक चमत्कारी बाबा को लाया गया. महाराष्ट्र में टीपू सुलतान और औरंगजेब जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों को गालियां देकर और, यहां तक कि एनसीपी नेता शरद पवार को औरंगजेब का अवतार बताकर उन्हें बदनाम करने के जरिये मुस्लिम-विरोधी हिंसा संगठित की जा रही है. उत्तराखंड में, जहां भाजपा सरकार जोशीमठ संकट, रोजगार घोटाला और अंकिता भारद्वाज की हत्या को लेकर जनाक्रोश झेल रही है, संघ ब्रिगेड ने ‘लव जिहाद’ और ‘भूमि जिहाद’ का हौवा खड़ा कर और तथाकथित ‘जिहादियों’ से ‘देवभूमि’ की रक्षा करने का आह्वान जारी कर मुस्लिम दुकानों को बंद कराने और मुस्लिमों को बाहर निकालने जैसी हिंसक मुहिम शुरू कर दी है. सांप्रदायिक सद्भाव और भाइचारे को नष्ट करने के जरिये यह जहरीली राजनीति भारत के आर्थिक संकट को गहरा बना रही है तथा संवैधानिक गणतंत्र के बतौर भारत की राष्ट्रीय एकता व स्थायित्व को तोड़ रही है. कर्नाटक ने मई के चुनावों में इस साजिश को धूल चटाई है, अब समूचे भारत को यह फासिस्ट एजेंडा ध्वस्त करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.