हेमन्त सोरेन सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ स्थानीयता आधारित नियोजन नीति और रोजगार की मांग को लेकर आइसा-इनौस ने झारखंड में राज्यव्यापी प्रतिवाद अभियान छेड़ दिया है.
झारखंड प्रदेश की सही स्थानीयता नीति बनाने तथा राज्य के युवाओं को रोजगार देने के सवाल पर हेमंत सोरेन सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में 10 फरवरी को पूरे प्रदेश में आइसा-इनौस का राज्यव्यापी अभियान काफी प्रभावपूर्ण रहा. प्रदेश की राजधानी रांची के अलावे बुंडू, रामगढ़, गोमिया, चंदनकियारी, धनबाद, हजारीबाग, देवघर, कोडरमा, पलामू, गढ़वा तथा गिरिडीह जिला के सदर समेत बगोदर, धनवार व जमुआ इत्यादि कई इलाकों में भारी संख्या में छात्र-युवाओं ने मार्च निकालकर सभाएं की.
इन दिनों पूरा प्रदेश भाषा विवाद के मुद्दे को लेकर कतिपय राजनितिक दलों व उनकी समर्थक सामाजिक शक्तियों द्वारा सड़कों के प्रतिवाद आन्दोलनों से काफी सरगर्म हो चला है. पिछले दिनों हेमंत सोरेन सरकार द्वारा राज्य नियोजन नीति के तहत धनबाद व बोकारो में गैर झारखंडी भाषाओं को स्थानीय व क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की घोषणा के बाद से ही इस मामले ने तूल पकड़ लिया है.
पिछले दिनों झारखंड दौरे पर आये भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने भी इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करते हुए हेमंत सरकार के फैसले से असहमति जताई. उन्होंने कहा कि जब इतने बड़े पैमाने पर राज्य के नौजवान सड़कों पर विरोध प्रकट कर रहें हैं तो सरकार को चाहिए कि वह इस पर अविलम्ब विचार करे. सबसे पहले राज्य के युवाओं के लिए रोज़गार की गारंटी करे तथा सही स्थानीयता निति तय करे. यह काम लगातार रुका हुआ है.
10 फरवरी को आइसा-इनौस के राज्यव्यापी अभियान के तहत रांची में मार्च निकालकर राजभवन पर विरोध सभा की गयी. अभियानका नेतृत्व करते हुए भाकपा(माले) केन्द्रीय कमिटी के सदस्य तथा भाकपा(माले) विधायक का. विनोद सिंह ने कहा कि हेमंत सरकार को वर्तमान भाषा आधारित नियोजन नीति को वापस लेना चाहिए. इस मामले को लेकर सर्वदलीय बैठक आहूत कर झारखंड की सही स्थानीयता व भाषा की नीति तय करे. जल्द से जल्द आन्दोलनकारी युवाओं से बातचीत कर मामले का समाधान निकाले.
भाकपा(माले) नेताओं ने इस दौरान कई सभाओं तथा प्रेस वार्ताओं के माध्यम से उक्त प्रसंग में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि भाकपा(माले) राज्य में 1932 का खतियान या राज्य में हुए जमीन के अन्तिम सर्वे आधारित स्थानीयता निति बनाने के पक्ष में है. साथ ही इसी स्थानीयता नीति आधारित नियोजन नीति बनाए जाने की मांग करती है. उन्होंने हेमंत सरकार की आलोचना करते हुए यह भी कहा कि हेमंत सरकार के गठन के समय से ही भाकपा(माले) ने पिछली रघुवर दास सरकार की स्थानीयता नीति एवं भाषा नीति को वापस लेने की मांग करती रही है. लेकिन हेमन्त सरकार ने इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखलाई है. झारखंडी युवाओं की उपेक्षा कर कोई भी सरकार राज्य में चैन से नहीं रह सकती है.
हेमंत सरकार की अनदेखी की वजह से ही आज भाजपा जैसी झारखंड विरोधी और आपस में फूट डालनेवाली ताकतों को यहां राजनितिक रोटी सेंकने का मौका मिल रहा है.
सनद रहे कि पिछले दिनों विधानसभा के कई सत्रों में भाकपा(माले) विधायक ने वर्तमान स्थानीयता-नियोजन नीति को वापस लेने की मांग कई बार उठाया लेकिन हेमंत सरकार इससे मुकरती रही है.
अभियान को सोशल मीडिया के मंच से भी व्यापक बनाने की संगठित कोशिश की गयी. इसकी सफलता इसी से आंकी जा सकती है कि 9 फरवरी को इस मुद्दे पर ‘ट्वीटर ट्रेंड’ कराये जाने पर मिले व्यापक समर्थन के तहत 1 लाख 30 हजार का ‘रीच’ और 3000 इंटरेक्शन हासिल हुआ.
गौरतलब है कि वर्तमान भाषा आधारित नियोजन नीति को लेकर दो प्रमुख प्रवृतियां हैं. आजसू-भाजपा समर्थित शक्तियां भाषा पर अतिरिक्त जोर देकर सवाल को केवल शासकवर्गीय पार्टीगत ध्रुवीकरण तक सीमित रखना चाहती हैं. वहीं भाकपा(माले) का स्थानीयता आधारित नियोजन पर ज़ोर है. आनेवाले दिनों में इन दोनों प्रवृतियों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ेगी. रोजगार आंदोलन मोदी और हेमंत सरकार, दोनों को ही अपने निशाने पर लेगा. आजसू-भाजपा समर्थित शक्तियां मोदी सरकार या पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की आलोचना नहीं करती हैं. उसके नेता यह कहकर निकल जाते हैं कि भाजपा से उन्हें उम्मीद नहीं है.
– अनिलअंशुमन