ऑर्डनेंस कारखानों के 80,000 मजदूर 20 अगस्त 2019 को एक महीने की हड़ताल पर चले गए थे. हड़ताल के छठे दिन भाजपा सरकार हड़ताल के दबाव में झुकी और उसने आॅर्डनेंस कारखानों के निगमीकरण तथा निजीकरण के अपने फैसले को वापस लिया. फलतः, उसी दिन प्रतिरक्षा उद्योग के इन श्रमिकों ने अपनी हड़ताल वापस कर ली. इस प्रकार, इन श्रमिकों ने संसद में विशाल बहुमत पाकर सत्ता के नशे में चूर सरकार को आत्मसमर्पण के लिए विवश कर दिया.
ऑर्डनेंस कारखाना हड़ताल शुरू होने के बाद श्रमिक नेताओं ने सरकार के साथ वार्ता की. तत्पश्चात 26 अगस्त 2019 की सुबह 6 बजे से हड़ताल समाप्त की गई. इसीलिए, 27 अगस्त 2019 को होने वाला कार्यक्रम भी श्रमिकों ने मुल्तवी कर दिया.
इस हड़ताल का फैसला हड़ताल-मतदान के जरिए किया गया था, जिसमें 75 प्रतिशत से ज्यादा मजदूरों ने हड़ताल के पक्ष में वोट डाले थे. श्रमिकों की एकता इतनी जबर्दस्त थी कि आरएसएस से संबद्ध ट्रेड यूनियन बीएमएस को भी इसमें शामिल होना पड़ा.
मजदूरों की शानदार जीत के साथ इस हड़ताल की समाप्ति हुई. सरकार के प्रतिनिधि (प्रतिरक्षा सचिव) को लिखित रूप में कहना पड़ा कि आॅर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड को निगम में बदलने का फैसला अब तक नहीं लिया गया है, और सरकार एक उच्च-स्तरीय कमेटी गठित करेगी जो यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ध्यान देगी. इस लिखित आश्वासन के बाद हड़ताल वापस लेने की घोषणा की गई. सभी कामगार 26 अगस्त 2019 की सुबह 6 बजे काम पर लौट आए.
मोदी सरकार पिछले दरवाजे से नाक घुसेड़ने और 218 वर्ष पुराने इस संस्थान को एक निगम में तब्दील करने की मंशा बना रही थी, ताकि भविष्य में इसके निजीकरण का रास्ता साफ किया जा सके. लेकिन मजदूरों की एकता ने इस धूर्ततापूर्ण मंशा को धूल चटा दी. भविष्य में भी ये मजदूर इन तिकड़मबाजों की ऐसी तमाम साजिशों पर पैनी नजर रखेंगे.
सड़कों पर जन संघर्षों से पैदा होने वाले बहुमत के जरिए संसद के अंदर के ‘बहुमत’ को पीछे धकेला जा सकता है और उसकी निरंकुशता पर लगाम लगाई जा सकती है. इस बात को कार्रवाई में सच साबित करके प्रतिरक्षा क्षेत्र के श्रमिकों ने भविष्य के लिए राह दिखा दी है. मजदूर वर्ग दृढ़ है और संघर्ष के लिए तैयार है. उन्होंने वर्तमान चुनौतियों का अध्ययन किया है, अपनी किलेबंदी को मजबूत बनाया है और संघर्षों की निर्णायक श्रृंखला के लिए कमर कस ली है.