वर्ष - 28
अंक - 52
14-12-2019

साल 2019 खत्म होने वाला है. पिछले 6 सालों से मोदी सरकार सत्ता में है लेकिन यह साल सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण साल रहा है. पुलवामा और बालाकोट हमलों के बाद अंधराष्ट्रवादी उन्माद की लहर पर सवार होकर यह सरकार मई में दोबारा सत्ता में आ गई. इसके बाद से सरकार और संघ परिवार ने देश के लोकतंत्र और संघीयता को नष्ट करके आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप देश को ढालने का अपना आक्रामक फासीवादी अभियान और भी तेज कर दिया है.

जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया है और उन्हें दो केन्द्र शासित राज्यों में बांट दिया गया है. अब पूरे देश में एनआरसी लागू करने की कोशिश शुरू कर दी गई है. असम में एनआरसी से बाहर करके पहले ही 19 लाख लोगों का जीवन तबाह किया जा चुका है. इनमें से ज्यादातर गरीब परिवारों के पुरुष, महिलायें और बच्चे शामिल हैं. सैकड़ों लोगों को डिटेंशन कैंपों में रखा गया है. इनके कोई मानवाधिकार नहीं हैं. इन डिटेंशन कैंपों में रहने वालों में से अब तक 28 लोगों की मौत हो चुकी है. अब नागरिकता कानून बनाने की कवायद चल रही है ताकि नागरिकता के मामले में मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव किया जा सके.

एक तरफ तो हर नागरिक के लिए न्याय, आजादी और बराबरी की गारंटी करने वाले संविधान पर हमला किया जा रहा है तो दूसरी तरफ देशी और विदेशी काॅरपोरेट घरानों के फायदे के लिए बडे़ पैमाने पर आर्थिक लूट जारी है. जनता के पैसे से बनी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को एक-एक करके निजी हाथों को सौंपा जा रहा है. इससे पूरे देश में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ी है. जहां गरीब कुपोषण और भुखमरी का शिकार हो रहे हैं वहीं अमीर अकूत धन संपदा बटोर रहे हैं. पूरी अर्थव्यवस्था में मंदी छायी हुई है. सारे ही संकेतक लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं. ऐसे में भी सरकार इस मंदी का बोझ गरीबों पर डाल रही है. अमीरों को बड़ी-बड़ी टैक्स माफियाओं के जरिये फायदा पहुंचाया जा रहा है. साथ ही साथ सरकार फर्जी आर्थिक आंकड़े पेश कर रही है.

मई 2019 में मोदी की जीत चाहे जितनी निराश करने वाली रही हो लेकिन जनता को प्रतिरोध में खड़ा होने में बहुत देर नहीं लगी. आज फीस वृद्धि के खिलाफ और सबके लिए शिक्षा व रोजगार के अधिकार हेतु युवा भारत सड़कों पर प्रतिवाद कर रहा है. मजदूरों ने निजीकरण, छंटनी और श्रम अधिकारों में कटौती के खिलाफ एकजुट होकर प्रतिवाद किया है. अलग-अलग क्षेत्रों में जबर्दस्त हड़तालों के बाद 8 जनवरी को अखिल भारतीय हड़ताल की जा रही है. किसान संगठनों और ग्रामीण मजदूर संघों ने भी इस आम हड़ताल का समर्थन करते हुए गांव के इलाकों में भी हड़ताल का आह्वान किया है. लोगों का यह मूड चुनावों में भी साफ दिखाई पड़ रहा है. हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव, जम्मू और कश्मीर के बीडीसी चुनाव और पश्चिम बंगाल के उपचुनाव मोदी-शाह के शासन और संघपरिवार के खिलाफ बढ़ते जनविक्षोभ के लक्षण हैं.

इस माहौल में हमें अपनी भूमिका और बढ़ाने तथा अपनी पहलकदमी तेज करने की जरूरत है. कोलकाता कन्वेंशन से पूरी पार्टी में उत्साह की नयी लहर पैदा हुई है और विभिन्न मोर्चों पर ज्यादा बेहतर पहलकदमियां दिख रही हैं. हमारी सभी नेतृत्वकारी कमेटियों को जनता के साथ और घनिष्ट सम्बंध बनाने के कन्वेंशन में दिये गये जोर पर अमल करना होगा. सघन विचारधारात्मक और राजनीतिक जन गोलबंदी की हमारी परंपरा को नये सिरे से हकीकत में उतारना होगा. कोलकाता वर्कशाॅप में तय किये गये कार्यभार सतत की जाने वाली चीजें हैं. इसे नियमित तौर पर करने से हमारा कामकाज का तरीका बेहतर होगा और हर लिहाज से पार्टी मजबूत बनेगी. इससे हम मौजूदा दौर की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकेंगे.

18 दिसंबर को हम कामरेड विनोद मिश्र का 21 वां स्मृति दिवस मना रहे हैं. पार्टी के विकास के लिए किये गये उनके योगदान से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. भाकपा(माले) को भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन का हिरावल बनाने के उनके सपने से प्रेरणा लेनी चाहिए. कामरेड विनोद मिश्र ने 1970 के दशक में भारत के जटिल सामाजिक यथार्थ में पार्टी को जीवंत मार्क्सवादी आधार देने के लिए जड़ता और कठमुल्लावाद के खिलाफ शुद्धिकरण अभियान चलाया. सोवियत संघ के पतन के बाद पैदा हुए विलोपवाद से बहस करते हुए उन्होंने क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के बुनियादी सिद्धांतों को बुलंद किया. 1990 में जब भाजपा भारतीय शासक वर्ग की पहली पसंद बनकर उभरी तो कामरेड विनोद मिश्र ने फासीवाद को सीधे तौर पर चुनौती दी. 1990 के दशक में विचारधारात्मक और राजनीतिक बहसों के जरिये पार्टी आगे बढ़ी. कामरेड विनोद मिश्र की ऐतिहासिक भूमिका आज के इस महत्वपूर्ण दौर में हमारा मार्गदर्शन करेगी और हमें प्रेरित करेगी.

- केन्द्रीय कमेटी, भाकपा(माले)