हाल ही में दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में हाल में अगलगी से हुई मजदूरों की मौत के खिलाफ ऐक्टू ने प्रतिवाद किया है. यह हाल के अरसे में हुई सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है. मगर राज्य एवं केन्द्र की सरकारें इस स्थिति से निपटने में दयनीय रूप से नाकाम रही हैं और उन्होंने भारत की राष्ट्रीय राजधानी में कार्यस्थल की बदहाल दशा को दूर करने के लिये कोई कदम नहीं उठाये हैं.
मजदूरों के इस जनसंहार के खिलाफ दिल्ली में 11 दिसम्बर 2019 को सिविल लाइन्स ट्राॅमा सेन्टर से सैकड़ों की तादाद में मजदूरों ने प्रतिवाद मार्च शुरू किया जो दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं उप-राज्यपाल के निवास स्थान तक गया. प्रतिवादकारी मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास के सामने बैठ गये और उन्होंने मुख्यमंत्री एवं उप-राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा. यह प्रतिवाद कार्यक्रम एआईसीसीटीयू द्वारा आहूत राष्ट्रीय प्रतिवाद के तहत किया गया था. इसी प्रकार की प्रतिवाद रैलियां एवं कार्यक्रम बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी आयोजित किये गये.
दिल्ली मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्रतिवादकारियों की सभा को सम्बोधित करते हुए एआईसीसीटीयू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि यह कोई दुर्घटना नहीं बल्कि भारतीय संसद और दिल्ली विधनसभा से बस चंद किलोमीटर दूरी पर हुआ मजदूरों का जनसंहार है. बड़े-बड़े अमीर अपने बंगलों में ऐश कर रहे हैं और मजदूर फैक्टरियों में आग से जलकर मरने को मजबूर हैं, या फिर सीवर में और निर्माण स्थलों पर तथाकथित दुर्घटना में मारे जाते हैं. ऐसी स्थिति का मुख्य कारण हमारे देश पर शासन कर रही जन-विरोधी सरकारें हैं.
हालांकि इस अगलगी में मरने वाले लोगों की तादाद सरकारी तौर पर 50 के करीब पहुंच गई है, पर दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी लोग बताते हैं कि वास्तविक संख्या 100 से ऊपर हो सकती है. यह अत्यंत चिंता का विषय है कि सरकारी अधिकारी ऐसी घटनाओं में मृतकों की संख्या घटाकर दिखाते हैं और कभी मजदूरों या स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के दावे की जांच करने की जहमत नहीं मोल लेते.
एआईसीसीटीयू की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष संतोष राय ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री उद्योगपतियों से पैसा वसूलने में व्यस्त रहते हैं और प्रधनमंत्री अपने कारपोरेट आकाओं के हित में श्रम कानूनों को खत्म करने में व्यस्त हैं. दोनों के हाथ इन मजदूरों के खून से रंगे हैं. दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय अभी भी गहरी नींद में सोये हैं, इन मजदूरों की जान बचाने में उनकी नाकामी के लिये हम उनके इस्तीफे की मांग करते हैं.
प्रदर्शनकारियों ने मोदी और केजरीवाल सरकारों द्वारा एक दूसरे पर दोष मढ़ने का खेल रोकने की मांग करते हुए कहा कि ये दोनों सरकारें फैक्टरी मालिकों के हित में मजदूरों की जान कुर्बान करने को तैयार बैठी हैं. उन्होंने सरकारों के समक्ष 9-सूत्री मांगें पेश कीं जिनमें श्रम कानूनों के साथ छेड़छाड़ न करने और श्रम कानूनों को लागू करने या उनके उल्लंघन के मामले में ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों से परामर्श करने, कार्यस्थल पर सुरक्षा का पूरा इंतजाम करने तथा उद्योगपतियों को मनमानी छूट न देने, फैक्टरी ऐक्ट के उल्लंघन पर मालिकों को कड़ी सजा देने, पीड़ित परिवारों को समुचित मुआवजा तथा दुर्घटना की जांच करके उसके जिम्मेवार लोगों को सजा देने की मांगें शामिल हैं.