जेएनयू के छात्र हाॅस्टल फीस में 70 प्रतिशत की वृद्धि के साथ नए हाॅस्टल मैनुअल और पितृसत्तात्मक ड्रेस कोड व कर्फ्यू के खिलाफ 1 नवंबर 2019 से ही हजारों की संख्या में प्रतिवाद कर रहे हैं. इस मैनुअल को वापस लेने और प्रतिवादकारी छात्रों के साथ वार्ता करने के बजाय जेएनयू के कुलपति ने कैंपस में सीआरपी के जवानों को बुला लिया. जब कैंपस के बाहर एआइसीटीई हाॅल में जेएनयू का दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया, जिसमें मानव संसाधन विकास मंत्री सम्मानित अतिथि थे, तो जेएनयू के छात्रों ने हजारों की संख्या में वहां मार्च किया और मंत्री महोदय से मांग की कि वे छात्रों से बात करें. मंत्री महोदय से आश्वासन मिलने के बाद पुलिस ने उन छात्रों पर वाटर कैनन और लाठियों से प्रहार करते हुए कई छात्रों को घायल कर दिया.
पिछले दो वर्षों के लिये खुद जेएनयू प्रशासन द्वारा संग्रहीत आंकड़ों के मुताबिक, इस विश्वविद्यालय के लगभग 40 प्रतिशत छात्र ऐसे परिवारों से आते हैं जिनकी मासिक आमदनी 12000 रुपये से कम है. जेएनयू के कोई 60 प्रतिशत छात्र उत्पीड़ित, पिछड़े और हाशिये पर खड़े समुदायों से आते हैं. हाॅस्टल फीस में लगभग 3000 रुपये प्रति माह, अर्थात 36000 रुपये प्रति वर्ष की वृद्धि किए जाने से ऐसे छात्र विश्वविद्यालय से बाहर निकल जाने को मजबूर हो जाएंगे.
जेएनयू के इन 40 प्रतिशत छात्रों के परिवारों की सालाना आमदनी लगभग 144000 रुपये है. अब, कम-से-कम 30000 रुपये प्रति वर्ष की फीस वृद्धि कर दी गई है, जिसका मतलब है उन परिवारों की अतिरिक्त 21 प्रतिशत आमदनी का हाथ से निकल जाना. पहले से ही हर छात्र को फीस और भोजन खर्च के बतौर 32620 रुपये प्रति वर्ष अदा करना पड़ रहा है. क्या कोई परिवार एक बच्चा पढ़ाने के लिये अपनी 40 प्रतिशत से ज्यादा की वार्षिक आमदनी खर्च कर दे?
इसी वजह से समूचा जेएनयू संघर्ष कर रहा है. उनका संघर्ष सबसे गरीब भारतीयों के लिये सार्वजनिक वित्त-पोषित शिक्षा के विचार के हक में चलाया जा रहा है. क्या जेएनयू में ‘फंड की कमी’ है जिसके चलते यह फीस वृद्धि जरूरी हो गई? क्या जेएनयू सार्वजनिक पैसे को बर्बाद कर रहा है? जरा इन तथ्यों पर विचार करें:
जेएनयू के लिये यूजीसी का कुल आवंटन (वेतन,पेंशन तथा संपत्ति कर व पूंजी व्यय समेत) वर्ष 2017-18 में लगभग 401 करोड़ रुपया था (8082 छात्र). मई 2014 से दिसंबर 2018 तक प्रधान मंत्री के चेहरे के विज्ञापन पर 5200 करोड़, यानी प्रति वर्ष 10.94.74 करोड़, रुपये का सार्वजनिक खर्च हुआ. करदाताओं के पैसे को कौन बर्बाद कर रहा है?
क्रमिक वर्षों के लिये केंद्रीय बजट में काॅरपोरेट टैक्स की माफी इस प्रकार है: 2013-14: 57,793 करोड़ रुपये, 2014-15: 62398.60 करोड़ रुपये, 2016-17: 86144.72 करोड़ रुपये, 2017-18: 93642.50 करोड़ रुपये, 2018-19: 108785.41 करोड़ रुपये. अति-धनिक काॅरपोरेटों को भारी सब्सिडी और भारत के गरीब व वंचित नौजवानों के लिये विश्वविद्यालय शिक्षा में कटौती – ऐसा क्यों ?
सच यह है कि मुट्ठी भर काॅरपोरेट परिवार भारत की संपत्ति को हड़प ले रहे हैं: आॅक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि सबसे धनी 1 प्रतिशत भारतीय काॅरपोरेट अपनी संपत्ति का महज 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त टैक्स देते हैं, सरकार स्वास्थ्य पर अपने खर्च को 50 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है! अगर सरकार धनी काॅरपोरेटों पर टैक्स माफ करना बंद कर दे तो वह जेएनयू जैसे 250 विश्वविद्यालयों को आसानी से खर्चा दे सकती है.
जेएनयू के छात्र देश के गरीब व हाशिये पर खड़ी आम जनता के लिये शिक्षा के अधिकार के हक में आंदोलन चला रहे हैं. 11 नवंबर के दिन मामिडाला (वीसी)-मोदी-शाह शासन के आदेश पर सामाजिक रूप से समावेशी, गुणवत्तापूर्ण, सहज और सुलभ शिक्षा की मांग कर रहे जेएनयू के छात्रों को लातों-घूंसों और लाठियों से पीटा गया, उन्हें घसीटा गया और उनपर वाटर कैनन से प्रहार किया गया. आइसा ने 14 नवंबर को देश भर में प्रतिवाद कार्यक्रम किए.