एक पत्रकार की खोजी रिपोर्ट ने यह उजागर किया है कि किस तरह मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया और निर्वाचन आयोग की कड़ी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए चुनावी बौंड योजना को लागू किया. इन आपत्तियों में कहा गया था कि इस योजना से भारतीय चुनावों में विदेशों से काले धन के आने का रास्ता खुल जाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था अस्थिर हो जाएगी.
चुनावी बौंड योजना से काॅरपोरेटों तथा विदेशी धन-दाताओं को भारतीय चुनावों में राजनीतिक पार्टियों को गुप्त रूप से धन देने की इजाजत मिल जाती है. मोदी सरकार ने संसद में झूठा दावा किया कि निर्वाचन आयोग ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की थी.
इसके अलावा, मोदी सरकार ने सिपर्फ लोक सभा चुनावों तक इन बौंडों को सीमित रखने के अपने नियम को भी बाद में तोड़ दिया, और विभिन्न राज्यों के चुनावों के पहले भी इन बौंडों की गैर-कानूनी बिक्री का आदेश जारी कर दिया, ताकि भाजपा के चुनावी अभियानों में काले धन को उड़ेला जा सके.
चुनावी बौंडों के जरिये हासिल किए गए फंड का 95 प्रतिशत अकेले भाजपा को गया. मोदी शासन ने नोटबंदी लागू करने पर रिजर्व बैंक की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया जिसके चलते भारत की अर्थव्यवस्था और गरीबों की आजीविका चैपट हो गई, जबकि काले धन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. इसी बीच, उसी सरकार ने जानबूझ कर ऐसी योजना लागू कर दी जिसके जरिये शासक भाजपा की झोली में अकूत काला धन आने का रास्ता खुल गया.
इस चुनावी बौंड योजना को फौरन खत्म किया जाना चाहिए जो भारतीय राजनीति में गंदे धन को भर रही है और भारतीय मुद्रा को अस्थिर बना रही है. मोदी सरकार और भाजपा के खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार तथा काले धन के साथ उनके रिश्तों की स्वतंत्र जांच भी की जानी चाहिए.