जहानाबाद में विगत 10-11 अक्टूबर 2019 को हुई सांप्रदायिक उन्माद की घटना एक सोची समझी साजिश का नतीजा था. प्रशासन की अव्वल दर्जे की निष्क्रियता के कारण दंगाइयों के लिए खुला मैदान था और उन्होंने मुस्लिम समुदाय की दुकानों में जमकर लूटपाट व आगजनी की घटना को अंजाम दिया. कुछेक इलाकों में तो गरीब हिंदुओं की दुकानों को भी लूट लिया गया. घटनाक्रम से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन ने दंगाइयों को 10 अक्टूबर की सुबह 9 बजे से लेकर 1 बजे दिन तक पूरे शहर में उपद्रव व लूटपाट करने की छूट दे रखी थी. तकरीबन 200 दुकानों पर हमले किए गए. मीडियाकर्मियों पर भी हमले हुए. एक धर्म विशेष के लोगों के धर्मस्थलों पर भी हमले किए गए.
यदि प्रशासन ने समय रहते दंगाइयों/उपद्रवियों को गिरफ्रतार कर लिया होता तो स्थिति को अविलंब ही नियंत्रित कर लिया जा सकता था. पर यह ताज्जुब की बात है कि 8 अक्टूबर से लेकर 10 अक्टूबर तक दंगाइयों के सरगनों को पकड़ने व गिरफ्तार करने की कोई कोशिश नहीं की गई. इससे आम लोगों के बीच यह संदेश गया कि दंगाइयों के सामने प्रशासन बिलकुल लाचार है अथवा लापरवाह है. नतीजतन, आम आवाम में दहशत बढ़ी और दूसरी ओर उपद्रवी और बेखौफ हो गए.
8 अक्टूबर की सुबह से ही दंगा भड़काने की सचेत कोशिश आरंभ कर दी गई थी. सदर अस्पताल के पास स्थित दुर्गा पूजा पंडाल के पास यह अफवाह उड़ी कि पंडाल में मांस फेंक दिया गया है. बहरहाल, पहले दिन मामले को शांत करा दिया गया. प्रशासन ने मूर्ति विसर्जन का समय 9 अक्टूबर को 9 बजे रात से लेकर 10 अक्टूबर की सुबह सात बजे तक निर्धाारित किया, लेकिन शहर में शांति व्यवस्था के लिए कहीं भी पुलिस की व्यवस्था नहीं की गई. यह पहली बार देखा गया कि शहर की सारी मूर्तियों को एक लाइन में सजाया गया था.
बाजार में घुसने के लिए महज जब कुछेक मूर्तियां बच गई थीं तब उसी पूजा पंडाल वाली मूर्ति पर जिसमें 8 अक्टूबर को मांस फेंकने की अफवाह उड़ी थी, रोड़ा फेंकने की आवाज आई. जाहिर है कि यह अफवाह थी. उसके बाद ही मुस्लिम समुदाय को निशाने पर ले लिया गया. प्रशासन घटनास्थल पर पहुंच गया लेकिन उनकी उपस्थिति में एक मजार में आगजनी की घटना को अंजाम दिया गया. शहर में सुबह 6 बजे से लेकर 9 बजे तक अफवाहों का बाजार गर्म रहा. अचानक 9 बजे मुंह पर भगवा नकाब बांधकर पूरे शहर में उपद्रवियों ने पूरे शहर में उपद्रव मचाना आरंभ कर दिया और डीएम की गाड़ी गश्त करने की बजाए वापस लौट गई. जहानाबाद स्टेशन, अस्पताल मोड़, पाठक टोली, बत्तीस भंवरिया, राजाबाजार, मलहचक मोड़, अरवल मोड़ आदि स्थानों पर एक साथ लूट की घटना आरंभ हो गई. राजाबाजार में तो देर शाम तक लूट की घटना चलते रही. प्रशासन नाम की कोई चीज रह ही नहीं गई थी. एक बजे के बाद डीएम पहुंचे और फिर उपद्रवियों से उनकी बातचीत हुई. उसके बाद ही मूर्ति विसर्जन का कार्यक्रम आरंभ हो सका.
डीएम जब घटना स्थल पर पहुंचे तो उनकी उपस्थिति में दरगाह में आगजनी की गई. पूरे शहर में अफवाहों का बाजार गर्म रहा. पुलिस की कहीं भी व्यवस्था नहीं की गई. कुछ लड़के यह सूचना प्रसारित करते रहे कि डीएम ने कहा है कि मुंह पर कपड़े बांधकर यह सब कर सकते हो. उपद्रवियों की टीम मुंह पर भगवा कपड़े बांधकर उपद्रव करती रही. पूरे शहर में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई थी.
दूसरे दिन दंगाइयों ने मुस्लिम मुहल्लों गांधी नगर, गौरक्षिणी, जाफरगंज, मकदूमाबाद, गड़ेरिया, नबीनगर आदि मुहल्लों में हमला संगठित किया. लूटपाट की घटना के दौरान ही गौरक्षिणी में विष्णु कुमार की हत्या हुई. 11 अक्टूबर को भी स्थिति गंभीर बनी हुई थी. अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काफी भयभीत थे. भाकपा(माले) की टीम ने पूरे शहर का दौरा किया. जिला सचिव श्रीनिवास शर्मा, राज्य कमेटी सदस्य रामबली सिंह यादव व युवा नेता संतोष केसरी के नेतृत्व में भाकपा(माले) के कार्यकर्ता शहर के मुहल्लों में घूमकर अफवाहों का खंडन करते रहे और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते रहे. 11 अक्टूबर को देहात में भी उपद्रव फैलाने की कोशिश की गई. लेकिन भाकपा-माले नेताओं की पहलकदमियों से इसे नाकाम कर दिया गया. नोआवां, लरसा, चकिया, नदियावां और यहां तक कि माले कार्यालय के पास नबीनगर में भी लूटपाट की घटना को अंजाम देने की कोशिश की गई. माले कार्यकर्ताओं ने उपद्रवियों की भीड़ से मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को बचाया.
इधर 12 अक्टूबर को भाकपा(माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम ने जहानाबाद में मचे सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात के मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टेलीफोन पर बातचीत कर बताया कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पूरी तरह से भय के माहौल में जी रहे हैं. वहां तथ्य यही गवाही दे रहे हैं कि प्रशासन की निष्क्रियता की ही वजह से यह मामला बहुत व्यापक हो गया. यदि समय रहते प्रशासन ने उचित कदम उठाया होता, मूर्ति विसर्जन के समय शहर में पर्याप्त संख्या में पुलिस बल उपलब्ध कराया जाता तो इस अप्रिय घटना को रोका जा सकता था. उन्होंने जहानाबाद के डीएम व एसपी को तत्काल हटाने और विधानसभा की संयुक्त संसदीय समिति से घटना की जांच कराने की मांग की.
अभी भी शहर में स्थिति सहज नहीं हुई है. पुलिस ने जिन लोगों पर एफआईआर किया है, उसमें भाजपा के नगर अध्यक्ष विजय सत्कार, बीजेपी के अति पिछड़ा सेल के नेता अनिल ठाकुर, ठाकुरबाड़ी के वार्ड पार्षद व बीजेपी नेता मुकेश मिश्रा, हिंदू सेवा समिति के धनंजय विश्वकर्मा, बजरंग दल के मंटू पांडेय आदि के भी नाम शामिल हैं. जाहिर सी बात है कि भाजपा व आरएसएस के बड़े नेता पर्दे के पीछे से इसे संचालित कर रहे थे. भाकपा(माले) ने इन सभी अपराधियों को अविलंब गिरफ्तार करने, जहानाबाद के डीएम व एसपी पर तत्काल कार्रवाई करने व मामले की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने की मांग की है. पार्टी की ओर से आगामी 21 अक्टूबर को शांति सद्भावना मार्च निकाला जाएगा.
स्पष्टतः जहानाबाद में विगत दो दिनों से जारी सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात की घटनाओं के लिए वहां के जिला प्रशासन को दोषी है. प्रशासन न केवल निष्क्रिय रहा बल्कि उसकी मिलीभगत भी रही है. भाजपा-आरएसएस जैसी ताकतें पूजा आदि मौकों को सांप्रदायिक दंगों में बदल देनेे के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं, लेकिन यदि प्रशासन का भी भगवाकरण हो जाए, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसी ही स्थिति में भाकपा(माले) ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने व अपने स्तर से जहानाबाद में शांति व्यवस्था बहाल करने की पहल करने की मांग की है.
करीब 200 दुकानों में लूटपाट, आगजनी और तोडफोड़ की घटनाएं हुईं. भाकपा(माले) की जांच टीम ने, जिसमें जिला सचिव का. श्रीनिवास शर्मा, राज्य कमेटी सदस्य का. रामबली सिंह यादव व अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव का. रामाधार सिंह शामिल थे, 48 दुकानों में हुए नुकसान का जायजा लिया और उसकी सूची बनाई. कुछ नाम ये हैं: