नागरिक समाज की ओर से 12 फरवरी 2025 को पटना के बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार में आयोजित ‘बदलो बिहार विमर्श’ में ‘गणतंत्र के 75 साल : बिहार में बदलाव की चुनौती’ विषय पर एक विचारोत्तेजक परिचर्चा आयोजित हुई. इस परिचर्चा को भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. रतनलाल, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व स. प्राध्यापक डॉ. लक्ष्मण यादव और आर्टिकल 19 के संपादक चर्चित पत्रकार नवीन कुमार के साथ ही वीकेएसयू की सहायक प्राध्यापक प्रो. चिंटू कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा, इंसाफ मंच के अध्यक्ष व फुलवारी के विधायक गोपाल रविदास और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्पापक प्रो. शमीम आलम ने संबोधित किया. इसका संचालन पालीगंज विधायक डॉ. संदीप सौरभ और इसकी अध्यक्षता एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा, अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता व एससी-एसटी कर्मचारी संघ के पूर्व राज्य उपाध्यक्ष ई. विश्वनाथ चौधरी, आइलाज की राज्य संयोजक एड. मंजू शर्मा, दलित अधिकार संगठन के नेता पंकज श्वेताभ और इंसाफ मंच के नेता गालिब ने की.
परिचर्चा में शामिल होते हुए का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बदलाव की मांग पूरे बिहार में जोर पकड़ रही है. यह चर्चा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू हुई थी. हरियाणा व महाराष्ट्र में तिकड़मों के जरिए सत्ता बचाने और दिल्ली की सत्ता हड़प लेने के बाद बिहार में अबतक पर्दे के पीछे से शासन चला रही भाजपा अब बिहार की सत्ता पर आंख गड़ाये हुए है और बिहार में बदलाव की इस मांग को अपने फायदे में हड़प लेना चाहती है.
भाजपा ने ’90 के दशक में भी बिहार में सत्ता हड़पने की कोशिश की थी लेकिन यहां की जनता ने उसके प्रयास को नाकाम कर दिया था. बीस बरसों बाद अब एक बार फिर जब नीतीश कुमार सरकार के थके हुए प्रतीक बन कर रह गए हैं, भाजपा यह प्रयास कर रही है. लेकिन बिहार में बदलाव की चौतरफा उठ रही यह मांग अब ठोस और व्यापक आधार पर खड़ी हो रही है. बिहार फिर से पीछे लौटकर ’90 के पूर्व के युग में नहीं जाएगा. बिहार आगे ही बढ़ेगा, पीछे नहीं जाएगा.
उन्होंने बिहार में बढ़ते पुलिस राज की ओर इशारा करते हुए कहा कि मधुबनी के बेनीपट्टी में एक मुस्लिम नौजवान और मुजफ्फरपुर के कांटी में एक हिन्दू युवक शिवम झा के साथ पुलिस की क्रूरता यह बताती है कि भाजपा की अगुआई में बिहार में पुलिस का राज चल रहा है.
उन्होंने संविधान और लोकतंत्र पर बढ़ते खतरे की शिनाक्ष्त करते हुए कहा कि शाहीनबाग आंदोलन ने इस खतरे को पहचानते हुए संघर्ष शुरू किया और उससे प्रेरणा ग्रहण करते हुए देश के किसानों ने आंदोलन खड़ा कर तीन कृषि कानूनों को वापस करवाया. 2024 के लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र और संविधान के मुद्दे को मुख्य बनाकर भाजपा को चुनौती दी गई. भाजपा पहले यह सोच रही थी कि वह अंबेडकर और भगत सिंह को भी अपने अभियान में इस्तेमाल कर लेगी लेकि जब ऐसा नहीं हो पा रहा है तो वह बौखला उठी है. गृहमंत्री अमित शाह डॉ. अंबेडकर पर अपमाजनक बयान देते हैं और मोहन भागवत कहते हैं कि देश की आजादी राम मंदिर बनने के बाद आई.
उन्होंने बिहार के सामाजिक न्याय, आरक्षण और जाति आधारित गणना के मुद्दे पर चर्चा करते हुए उन्होंने तमिलनाड की तरह बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण लागू करने और जाति आधारित गणना पूरे देश में कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि जनता के असल मुद्दों पर केंद्रित कर ही बिहार के आगामी चुनाव में भाजपा की राजनीतिक साजिशों और धोखाधड़ियों का मुकाबला किया जा सकता है. उन्होंने आगामी विधानसभा सत्र और चुनाव में बदलाव की इस आवाज को मजबूत करने का आह्वान किया. उन्होंने 2 मार्च को पटना के गांधी मैदान में आयोजित महाजुटान को एक ऐतिहासिक पहल बताते हुए कहा कि यह बिहार के भविष्य का रास्ता तय करने का वक्त है.
आर्टिकल 19 के संपादक नवीन कुमार ने कहा कि यह परिचर्चा जिस वक्त हो रही है वह केवल बिहार और भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए मुश्किल वक्त है. यह किसी एक हुकूमत या सत्ता को हटाने का नहीं बल्कि अपने आत्मसम्मान को बचाने की भी लड़ाई है. बिहार में विगत सालों में सामाजिक न्याय की धारा की राजनीति रही है, लेकिन इतने सालों बाद आज शिक्षा, रोजगार और विकास के पैमाने पर बिहार की बड़ी आबादी कहां पहुंची? मीडिया क्या हाल है? हमें इन सबकी जांच-पड़ताल करनी होगी. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा व शिक्षण संस्थानों का निजीकरण सबसे बड़े घोटाले हैं. यह सब वंचित समुदाय के बच्चों को शिक्षा से वंचित करने के लिए ही की जा रही है. हमें इस सच को स्वीकार करके आगे का रास्ता तय करना होगा.
दिल्ली विवि के पूर्व सहायक प्राध्यापक लक्ष्मण यादव ने कहा कि गणतंत्र के 75 साल में हमने जो हासिल किया आज वह सब खतरे में है. यूपी में हम सब देख रहे हैं कि कैसे संविधान की हत्या की जा रही है. बिहार से पूरे देश को उम्मीद है. बिहार सामाजिक न्याय और किसान आंदोलन की धरती है. आज सवाल यह है कि बिहार भी यूपी की राह पर बढ़ जाएगा या एक नई राह रौशन करेगा. उन्होंने कहा कि न्यूनतम सहमति पर व्यापक एकता का निर्माण करते हुए हमें देश को फासीवादी हमले से बचाना है. शिक्षा-रोजगार पर भाजपा के लगातार हमले बताते हैं कि वे हमें न तो संविधान पढ़ने देना चाहते हैं और न शिक्षा देना चाहते हैं. हमें पढ़ना है और अपने हक-अधिकार को पहचानना है.
दिल्ली विवि के शिक्षक प्रो. रतनलाल ने एनडीए खेमे में शामिल दलित नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उनको दलितों के शिक्षा-रोजगार की बेहतरी से कोई मतलब नहीं है. ये सब तथाकथित हिंदू राष्ट्र की पालकी ढो रहे हैं. शिक्षा व रोजगार पर जो हमले हैं उसकी मार केवल दलित या हाशिए पर पड़े लोगों पर नहीं पड़ रही, बल्कि हर जाति-समुदाय पर पड़ रही है. यह नेहरू और अंबेडकर ने जिस भविष्य के भारत के सपने देखे थे, उसपर हमला है. अपने आपसी मतभेद भुलाकर अगर हम एक व्यापक एकता नहीं बनायेंगे तो गुलामी का एक नया दौर शुरू होगा.
भाकपा(माले) विधायक गोपाल रविदास ने कहा कि हमें आज भी दलित होने की वजह से अपमान सहना पड़ता है. नीतीश राज में विकास व रोजगार की बातें तो खूब हुईं लेकिन विकास व रोजगार कहां है? प्रोफेसर चिंटू कुमारी ने बिहार में स्कीम वर्कर्स सहित कामकाजी महिलाओं और शिक्षा-रोजगार की लगातार खराब होती स्थिति आदि की चर्चा की. सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा ने कहा कि आज देश के नागरिकों को महज सरकार की योजनाओं का लाभार्थी बनाया जा रहा है. उन्होंने कर्ज के जाल में फंसी महिलाओं के मुद्दे को उठाया. प्रो. शमीम आलम ने अपने वक्तव्य में देश की गंगा-जमुनी तहजीब की रक्षा पर जोर दिया.
परिचर्चा में विश्वविद्यालयों के शिक्षक, बुद्धजीवी, विभिन्न आंदोलनों के नेता-कार्यकर्ता, वकील, छात्र-युवा आदि बड़े पैमाने पर शामिल हुए.