उत्तर प्रदेश के चार विद्युत वितरण निगमों में से दो – पूर्वांचल (वाराणसी) और दक्षिणांचल (आगरा) विद्युत वितरण निगम – को निजी क्षेत्र को देने के योगी सरकार के फैसले के खिलाफ 4 दिसंबर (बुधवार) को संयुक्त किसान मोर्चा व ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) के आह्वान पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में धरना और प्रदर्शन हुआ. दोनों संगठनों ने सरकार से फैसला रद्द करने की मांग की.
इस मौके पर नेताओं ने अपने संबोधन में कहा कि सरकार का यह फैसला जन-विरोधी और कारपोरेट का मुनाफा बढ़ाने वाला है. उत्तर प्रदेश पावर कार्पारेशन के घाटे को कारण बताकर निजीकरण की दी जा रही दलीलें बेबुनियाद और जनता के आंखों में धूल झोंकने वाली हैं. यह कदम अडानी, अंबानी और टोरेंट जैसी कंपनियों के पक्ष में है. सरकार इसके लिए पिछले कई सालों से प्रयास कर रही थी, जो संयुक्त किसान मोर्चा और बिजली कर्मचारियों-मजदूरों के कड़े विरोध के चलते सफल नहीं हो पाई. अब ट्रिपल पी के बहाने प्रथम चरण में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों को पूंजीपतियों को सौंपकर बिजली निजीकरण के काम को चालाकी से आगे बढ़ा रही है.
जबकि ऐतिहासिक दिल्ली किसान आंदोलन के समय अन्य मांगों के साथ बिजली निजीकरण बिल को संयुक्त किसान मोर्चा से सलाह किए बगैर आगे न बढ़ाने के लिखित समझौते से मोदी सरकार मुकर गई है. वहीं भाजपा की योगी सरकार सभी उपभोक्ताओं को 300 यूनिट मुफ्त और सिंचाई हेतु बिना शर्त मुफ्त बिजली देने के चुनावी वायदे से पीछे हट ही गई है और उल्टा स्मार्ट प्रीपेड मीटर अनिवार्य करते हुए अब निजीकरण का फैसला ले लिया है. यह किसानों मजदूरों के साथ डबल इंजन सरकार का बड़ा विश्वासाघात है.
नेताओं ने कहा कि जहां तक बिजली के बकाये का प्रश्न है, 2023-24 तक 1 लाख 10 हजार करोड़ रूपये का बकाया बताया जा रहा है, जबकि बिजली बिलों का बकाया 1,15,825 करोड़ रूपए है. जिसका बड़ा हिस्सा सरकारी दफ्तरों, इंडस्ट्रीज, पुलिस विभाग आदि पर है. अगर इसे वसूल कर लिया जाए तो भी 5825 करोड़ फायदे में रहेंगे बिजली निगम. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विद्युत नियामक आयोग के अनुसार पहले से ही 34 हजार करोड़ रुपए उपभोक्ताओं का निगमों पर निकलता है, जो उपभोक्ताओं को नहीं दिया जा रहा है. एक और तथ्य है कि हाल ही में 55 हजार करोड़ रूपए बिजली आधुनिकीकरण के लिए सरकार द्वारा खर्च किया जा रहा है.
आजादी के बाद संसद में बिजली कानून पेश करते हुए बिजली मंत्रा के रूप में डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि बिजली सामाजिक जरूरत है. इसे सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा बिना लाभ-हानि के सभी को मुहैया करानी होगी. अब मोदी-योगी सरकारें बिजली के निजीकरण पर आमादा हैं. यहां यह गौरतलब है कि वर्ष 2000 में भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा जब विद्युत बोर्डों का विघटन किया गया था. तब उत्तर प्रदेश में 77 हजार करोड़ रूपये का घाटा था, जो 24 वर्षों में बढ़कर 1 लाख 24 हजार करोड़ रुपए हो गया है. इससे स्पष्ट है कि घाटे के लिए सरकार की नीतियां और नौकरशाही जिम्मेदार है.
नेताओं ने योगी सरकार द्वारा बिजली विभाग में 6 महीने तक हड़ताल पर लगाई गई रोक की निंदा करते हुए किसानों, मजदूरों, बिजली कर्मचारियों, अधिकारियों और आम जनता से एकजुट होकर संघर्ष का आह्वान किया. निजीकरण रोकने, बिजली के संविदा कर्मियों को नियमित करने, 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने और फर्जी व बकाया बिजली बिल माफ करने आदि की मांग की गई.
विरोध प्रदर्शन के आह्वान के तहत गाजीपुर में जिला मुख्यालय स्थित सरजू पांडे पार्क में सभा कर राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया. सभा को संयुक्त किसान मोर्चा उत्तर प्रदेश के कोर कमेटी सदस्य सह अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, अखिल भारतीय किसान फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुभव दास, मनरेगा मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अंबिका प्रसाद श्रमिक, किसान सभा के जिला अध्यक्ष नसीरुद्दीन, किसान महासभा के जिला सचिव सत्येन्द्र प्रजापति, किसान सभा के जिला मंत्री योगेंद्र यादव आदि ने संबोधित किया. सभा की अध्यक्षता अम्बिका प्रसाद श्रमिक और संचालन किसान महासभा के राज्य सहसचिव शशिकांत कुशवाहा ने किया.
अयोध्या में संयुक्त किसान मोर्चा और मजदूर संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत तहसील सदर पर एकत्रित हो कर जमकर नारेबाजी की और बाद में सभा की. अध्यक्षता किसान सभा के राज्य सचिव अशोक कुमार तिवारी और संचालन भाकपा(माले) के जिला प्रभारी अतीक अहमद ने किया.
वक्ताओं ने कहा कि जनता की गाढ़ी कमाई से निर्मित सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को योगी सरकार निजी क्षेत्र को सौंप रही है, साथ ही अपनी अक्षमता का भी प्रदर्शन कर रही है. यूपी की बिजली दरें वैसे भी काफी ऊंची हैं. जब बिजली वितरण निजी क्षेत्र में जाएगा तो और मंहगी होगी, जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा. आम जनता बढ़ती मंहगाई से पहले से ही परेशान है. निजी क्षेत्र में जाने पर नियुक्तियों में आरक्षण भी नहीं मिलेगा. यह फैसला आम आदमी और सामाजिक न्याय के खिलाफ है. यदि सरकार फैसला वापस नहीं लेती है तो आगामी दिनों में बड़ा आंदोलन तेज किया जाएगा.
सभा को माकपा जिला सचिव अशोक यादव, भाकियू नेता कमला प्रसाद बागी, खेत मजदूर संगठन के महामंत्री शैलेन्द्र प्रताप सिंह, किसान सभा के संरक्षक राम तीर्थ पाठक, जिलाध्यक्ष रामजी राम यादव, खेत मजदूर यूनियन के राज्य कमेटी सदस्य माता बदल, किसान नेता बाबू राम यादव, उदय चन्द यादव, राजेश वर्मा, विष्णु देव वर्मा, मयाराम वर्मा, ओमप्रकाश यादव, रामजी यादव, मो. इश्हाक, यासीन बेग, मैनुद्दीन, दीपक वर्मा, अवधराम यादव आदि नेताओं ने संबोधित किया. अन्त में राज्यपाल को संबोधित 11 सूत्रीय ज्ञापन नायब तहसीलदार सदर को सौंपा गया.
ऐक्टू प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही ने कहा कि विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के विरुद्ध उपरोक्त जिलों के अलावा कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ, मऊ, चंदौली, मुरादाबाद, रायबरेली में भी प्रदर्शन और धरना हुआ.