संभल हत्याकांड के न्यायिक जांच, दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई और अडानी के भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग को लेकर इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए) के बैनर तले देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन हुए.
बिहार के बेगूसराय में आयोजित प्रतिरोध मार्च को संबोधित करते हुए आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने कहा कि आज हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं. देश की सामाजिक एकता, लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक संस्थाओं पर आज अभूतपूर्व हमले हो रहे हैं. मोदी सरकार ने जनविरोधी और सांप्रदायिक राजनीति का ऐसा घिनौना मॉडल पेश किया है, जो न केवल हमारे समाज को बांट रहा है, बल्कि हमारे लोकतंत्र और संविधान की नींव को कमजोर कर रहा है. यह सरकार पूंजीपतियों की गुलामी और सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति का खतरनाक मेल बन चुकी है.
संभल की घटना इसका ताजा उदाहरण है. निहत्थे नागरिकों पर पुलिस की बर्बरता, पांच मासूम नौजवानों की गोली मारकर हत्या, और उसके बाद सरकार की खामोशी ने यह साफ कर दिया है कि यह सरकार न केवल क्रूर है, बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारियों से भी पूरी तरह भाग रही है. जब पुलिस ही, जिसे जनता की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है, जनता पर गोलियां चलाती है और निर्दाषों की जान लेती है, तो यह मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन और हमारे संविधान पर सीधा हमला है.
उन्होंने कहा कि देश के संसद में अडानी का नाम तक लेना प्रतिबंधित कर दिया गया है. विपक्षी नेताओं को बोलने नहीं दिया जाता, यह कैसा लोकतंत्र है, जहां संसद को भी पूंजीपतियों के हित में बंधक बना दिया गया है? अडानी को मोदी सरकार का संरक्षण स्पष्ट है. चाहे बंदरगाहों का निजीकरण हो, कोयला खदानों का आवंटन हो, या सौर ऊर्जा के बड़े प्रोजेक्ट – हर जगह अडानी को ही फायदा पहुंचाया गया है. वहीं आम जनता महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रही है.
कहा कि जब-जब सरकार पर घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तब-तब वह सांप्रदायिक उन्माद फैलाकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश करती है. संभल की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पुलिस की बर्बरता और सांप्रदायिक हिंसा केवल जनता को असली मुद्दों से दूर रखने का षडयंत्र है. यह सरकार समाज को बांटकर अपने पूंजीपति मित्रों के अपराध छुपाने का प्रयास करती है. संभल जैसे मामले केवल सांप्रदायिक तनाव नहीं, बल्कि जनता की असल समस्याओं – महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की बदहाली – से ध्यान हटाने के लिए बनाए गए मुद्दे हैं.
मुजफ्फरपुर में प्रदर्शन को संबोधित करते हुए आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष आफताब आलम ने कहा कि जब जनता के मुद्दों को संसद में उठाने पर रोक लगाई जाती है, सत्य को दबाने के लिए मीडिया को खरीद लिया जाता है, पीड़ितों से मिलने की कोशिश करने पर हाउस अरेस्ट कर लिया जाता है, कानून व्यवस्था का इस्तेमाल विरोधियों को कुचलने के लिए किया जाता है, तो यह साफ हो जाता है कि यह सरकार लोकतंत्र नहीं, बल्कि फासीवाद की ओर बढ़ रही है.
यह लड़ाई केवल अडानी के भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है बल्कि देश की लोकतांत्रिक परंपराओं, संविधान, और सामाजिक एकता की रक्षा के लिए है. यह लड़ाई पूंजीवादी लूट और सांप्रदायिक नफरत की राजनीति के खिलाफ है.
विगत 1 दिसंबर 2024 को अरवल में इंकलाबी नौजवान सभा के दर्जनों कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा को लेकर देशव्यापी प्रदर्शन किया. उन्होंने इस घटना को भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताने-बाने पर हमला बताते हुए योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए.
प्रदर्शन की अध्यक्षता इंनौस के राज्य कमिटी सदस्य नीतीश कुमार ने की प्रदर्शन को संबोधित करते हुए इंनौस के जिला सचिव सह पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष रमाकांत कुमार उर्फ टूना शर्मा ने कहा कि संभल हिंसा में पुलिस ने 6 मुस्लिम युवकों की गोली मारकर हत्या की. यह घटना उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने और मुस्लिम समुदाय को डरने के लिए की गई एक साजिश है.
अन्य वक्ताओं ने कहा कि संभल में 16वीं शताब्दी की जामा मस्जिद को लेकर किए गए सर्वेक्षण में न्याय संहिता का न केवल उल्लंघन हुआ बल्कि कथित मनमाने सर्वेक्षण के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों पर शासन ने क्रुरता की.
इंनौस के राज्य उपाध्यक्ष सह अरवल जिला परिषद सदस्य शाह शाद ने कहा कि यह हिंसा उत्तर प्रदेश में हाल में हुए उपचुनावों में जीत के बाद भाजपा और संघ की संयोजित साजिश का हिस्सा है. उन्होंने घटना के लिए जिम्मेदार योगी सरकार को दंडित करने और साथ ही पांच निर्दाष युवकों की मौत के लिए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की.
प्रदर्शन में शाह फराज, अरविंद पासवान, संजय यादव, दीपक कुमार, आशिक कुमार, सरफराज, रामप्रसाद अकेला, इंदल पासवान सहित दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित थे.
इंकलाबी नौजवान सभा ने बेगूसराय के हरदिया में ‘वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में नौजवानों की भूमिका’ विषय पर एक सेमिनार आयाेजन किया. इसमें केंद्र और राज्य सरकार की युवा-विरोधी, जन-विरोधी और पूंजीवादी नीतियों का गहन विश्लेषण और तीखी आलोचना हुई.
सेमिनार के मुख्य वक्ता आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने पूंजीवाद और सांप्रदायिकता के खतरनाक गठजोड़ को उजागर करते हुए कहा कि मोदी सरकार की नीतियां देश के युवाओं, मजदूरों और किसानों को पूरी तरह से हाशिए पर धकेल रही हैं. सार्वजनिक संसाधनों और संस्थानों का निजीकरण अडानी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों की तिजोरी भरने का षड्यंत्र है. बंद हो रहे कल-कारखाने, बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई के बीच यह सरकार कॉरपोरेट के हितों को प्राथमिकता दे रही है. ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारे सिर्फ छलावा हैं. हकीकत में यह सरकार सांप्रदायिकता और पूंजीवाद के गठजोड़ के सहारे देश की आर्थिक-सामाजिक संरचना को कमजोर कर रही है.
कहा कि इस राजनीति के गंभीर परिणाम हो रहे हैं. समाज में हिंसा बढ़ रही है, समुदायों के बीच दरार गहरी हो रही है, और युवा अपनी ऊर्जा और संभावनाओं को नफरत के रास्ते में बर्बाद कर रहे हैं. सांप्रदायिक हिंसा में शामिल होने वाले अधिकतर युवा बेरोजगार होते हैं. उन्हें रोजगार न देकर नफरत के हथियार में बदला जा रहा है. हमें संगठित होकर इस षड्यंत्र को बेनकाब करना होगा.
आरवाईए के राज्य सह सचिव वतन कुमार ने कहा कि भारत विश्व का सबसे युवा राष्ट्र है, जहां जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवाओं से बना है. ये युवा न केवल देश का वर्तमान हैं, बल्कि भविष्य भी हैं. उनको यह समझाना होगा कि उनकी असली लड़ाई बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ है, न कि उनके पड़ोसी के धर्म के खिलाफ.