10 दिसंबर, 2024 को, ऑल इंडिया लॉयर्स’ एसोसिएशन फॉर जस्टिस (आइलाज) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को एक पत्र लिखा, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की मांग की गई. पत्र में उनके खुले रूप से सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से भरे कट्टरपंथी, पक्षपाती और असंवैधानिक रवैए की कड़ी निंदा करते हुए इसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद की गरिमा के अनुरूप नहीं बताया गया है.
8 दिसंबर 2024 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में विश्व हिंदू परिषद के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ‘समान नागरिक संहिता की संविधानिक आवश्यकता’ पर व्याख्यान दिया. उनके व्याख्यान के वीडियो अंशों और इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग में न्यायमूर्ति द्वारा किए गए कई ऐसे बयान सामने आए हैं, जो संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनके आचरण के प्रतिकूल है.
विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में हिंदी में दिए गए अपने भाषण में, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव यह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं, ‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश बहुसंख्यक की इच्छाओं के अनुसार चलेगा. यही कानून है. आप कह सकते हैं कि आप यह एक हाई कोर्ट के जज के रूप में कह रहे हैं. कानून बहुसंख्यक के अनुसार काम करता है. इसे परिवार या समाज के संदर्भ में देखिए... जो बहुसंख्यक है, वही स्वीकार्य है.’
अपने भाषण में, इलाहाबाद के न्यायमूर्ति शेखर यादव ने यह भी कहा, ‘जिन लोगों की हम चर्चा कर रहे हैं, वे सभी बुरे नहीं हैं. यह तक कि वे चार पत्नियां रखने या बेटियों को मारने जैसी बातों का समर्थन नहीं करते हैं. लेकिन कुछ चरमपंथी ‘कठमुल्ला’ – हालांकि यह एक अच्छा शब्द नहीं है – और ऐसे लोग हैं जो देश का नुकसान करते हैं, जो प्रगति में रुकावट डालते हैं, जो दूसरों को उकसाते हैं. हमें ऐसे लोगों से निपटने की जरूरत है.’
आइलाज ने यह कहा कि जस्टिस शेखर यादव के उपरोक्त बयान सांप्रदायिक, इस्लामोफोबिक हैं और आयोजकों के बहुसंख्यकवादी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं. यह चौंकाने वाला है कि उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश ‘कठमुल्ला’ जैसे अपमानजनक और निंदनीय शब्द का प्रयोग कर सकते हैं.
जस्टिस शेखर यादव संविधान के प्रति अपनी निष्ठा की शपथ की चिंताजनक रूप से अनदेखी करते हैं. उनके ये शब्द ‘न्यायिक आचरण के बैंगलोर सिद्धांतों’ के खिलाफ हैं, जो न्यायाधीशों के नैतिक आचरण के लिए मानक निर्धारित करते हैं और छह मान्यता प्राप्त मुख्य मूल्यों – स्वतंत्रता, निष्पक्षता, ईमानदारी, उचितता, समानता और दक्षता एवं परिश्रम – को स्पष्ट करते हैं. इन सिद्धांतों के अनुसार, एक न्यायाधीश से अपेक्षाएं होती हैं कि वह न्यायिक आचार के उच्च मानकों का पालन करे और उसे बढ़ावा दे, ताकि न्यायपालिका में जनता के विश्वास को मजबूत किया जा सके, जो न्यायिक स्वतंत्रता के बनाए रखने के लिए आवश्यक है.
आइलाज ने अपने बयान में यह कहा, ‘हमें यह दोहराने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि जस्टिस यादव का यह भाषण फिर से इस बात पर गंभीर सवाल उठाता है कि न्यायधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया कैसी हो रही है और यह न्यायधीशों द्वारा संविधान के मौलिक सिद्धांतों के उल्लंघन पर तत्काल कार्रवाई की कमी को उजागर करता है, जो उनके पूर्वाग्रहों और राजनीतिक झुकाव के कारण है.’
जस्टिस यादव के शब्द संविधान के प्रस्तावना में उल्लिखित भाईचारे के वादे पर हमला हैं, विभाजनकारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं और देश की विविधता और बहुलता पर सीधा आघात करते हैं. एक न्यायाधीश के रूप में, जस्टिस यादव की बुनियादी जिम्मेदारी है कि वे संविधान के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से व्यक्त करें, जिसे प्रस्तावना में सुंदरता से व्यक्त किया गया है.
आइलाज ने मांग की कि जस्टिस यादव के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक प्रक्रिया शुरू की जाए, और तब तक उनके सभी प्रशासनिक और न्यायिक कार्य रद्द किये जांए. आइलाज यह भी मांग करता है कि जस्टिस यादव अपने बयानों के लिए बिना शर्त माफी मांगें.