वर्ष - 33
अंक - 47
22-11-2024

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जिसमें ‘बुलडोजर न्याय’ के सिद्धांत को क़ानून की नींव पर हमला बताते हुए निंदा की गई है, भारत के नागरिकों को संविधान पर मंडराते आसन्न खतरे की एक कड़ी चेतावनी देता है. इस व्यापक निर्णय के साथ, राज्य की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़े दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं, जिससे भाजपा के बुलडोजर आधारित शासन के खिलाफ एक मजबूत न्यायिक सुरक्षा स्थापित हो सकती है.

राज्य द्वारा समर्थित भीड़ हिंसा और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए बुलडोजरों का राज्य आतंक के हथियार के रूप में प्रयोग करना मोदी-शाह-योगी युग में भारत में फासीवाद की पहचान बन चुका है. इसने आतंक और हिंसा के फासीवादी तरीकों का विस्तार कर दिया है, जिसमें पहले से ही साम्प्रदायिक हिंसा, कठोर कानून और एनकाउंटर जैसी अन्य न्यायेतर हिंसा शामिल हैं.

अब यह भारत के लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे भाजपा की बुलडोजर राजनीति को पूरी तरह से खारिज करें. अब तक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश बुलडोजर राज के मुख्य प्रयोग स्थल रहे हैं. अगर भाजपा महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता में आती है, तो हमें दो नई प्रयोगशालाएं देखने को मिलेंगी. महाराष्ट्र और झारखंड के नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए और बुलडोजर राज को स्पष्ट रूप से “ना” कहना चाहिए.

– का. दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव