एआइपीएफ के बैनर से स्वतंत्राता दिवस की पूर्व संध्या पर विगत 13 अगस्त को जगजीवन राम शोध संस्थान, पटना में ‘आजादी के 75 साल: देश किधर’ विषय पर एक परिचर्चा आयोजित हुई. परिचर्चा में दिल्ली से प्रो. शम्सुल इसलाम, आइआइटी बाॅम्बे के रिटायर्ड प्रोफेसर डाॅ. राम पुनियानी, भाकपा(माले) के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, कांग्रेस विधायक दल के नेता डाॅ. शकील अहमद खान, बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री उदयनारायण चौधरी और ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी मुख्य वक्ता के बतौर शामिल हुए. परिचर्चा की अध्यक्षता इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष गालिब ने की, जबकि उसका संचालन एआइपीएफ के संयोयक कमलेश शर्मा ने की. मंच पर एआइपीएफ से जुड़े पंकज श्वेताभ, प्रो. शमीम अहमद, केडी यादव, विश्वनाथ चौधरी आदि भी मौजूद रहे.
13 अगस्त के कार्यक्रम की तैयारी में कई दौर की बैठकें आयोजित हुईं. पटना के विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, एनजीओ के कार्यकर्ताओं, शिक्षकों आदि ने एआइपीएफ के मंच पर आकर इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की थी. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में इन सामाजिक समूहों की भागीदारी रही, जो दिखलाती है कि भाजपा के फासीवादी हमले से मुक्ति के लिए लोगों में बेचैनी है. कार्यक्रम की सफलता में पीएस महाराज, रामेश्वर चौधरी, संतोष आर्या, गालिब, अभय पांडेय, आसमा खान, रजनीश उपाध्याय, संजय कुमार, पुनीत कुमार आदि ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं.
यह परिचर्चा ‘आजादी के 75 साल: जन अभियान’ का ही सिलसिला था, जिसकी शुरूआत देश के चर्चित इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में 2021 में पटना में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथी महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की जयंती पर एक बड़े जनकन्वेंशन के जरिए हुई थी. कन्वेंशन में राज्य के बौद्धिक जगत की कई चर्चित हस्तियों ने भाग लिया था. इस बैनर के तहत पूरे राज्य में दो वर्षों तक अभियान चलाया गया. मोतिहारी में महात्मा गांधी की जान बचाने वाले बत्तख मियां पर कार्यक्रम हुआ. जहानाबाद और कुर्था के बाद अरवल के गांधी पुस्तकालय में 1942 के शहीदों व 1986 में अरवल में पुलिस द्वारा जनसंहार में मारे गए लोगों की स्मृति में स्मारक बनाया गया, सभा आयोजित हुई और शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया गया. पटना जिला के महाबलीपुर में किसान नेता सहजानंद सरस्वती की जयंती मनाई गई और कई भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को सम्मानित किया गया. पटना सिटी के गुलजारबाग में शहीद पीर अली सहित 21 स्वतंत्रता सेनानियों की फांसी की जगह-फंसियारी मथनी पर स्मारक बनाने के लिए जनकन्वेंशन किया गया. पटना में बटुकेश्वर दत्त की मूर्ति और उनके नाम से गेट बनाने का भी प्रयास चल रहा है. अरवल में 1857 के नायक जीवधर सिंह की स्मृति में स्थानीय विधायक महानंद सिंह और जनसहयोग से एक स्मृति पार्क का निर्माण चल रहा है. नवादा जिले में 1857 से लेकर 1867 तक चलने वाले बिहार के पहले दलित रजवार विद्रोह के शहीदों की याद में एक विशाल कार्यक्रम आयोजित हुआ था. इस कार्यक्रम में हजारों की तादाद में रजवार जाति समुदाय के लोग शामिल हुए थे. गया में भी एक विशाल कार्यक्रम आयोजित हुआ था. हेतमपुर (भोजपुर) में महात्मा गांधी के घनिष्ठ सहयोगी रहे बद्री अहीर का जन्मदिवस कार्यक्रम आयोजित हुआ. शाहाबाद के अन्य जिलों, पश्चिम व पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, आदि जगहों पर भी कन्वेंशन आयोजित हुए. स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी की याद में भागलपुर में भी एक कार्यक्रम किया गया था. इस पहलकदमियों ने आजादी के आंदोलन के गर्भ से निकले मूल्यों पर लगातार हो रहे फासीवादी हमले से मुकाबला के लिए एक वैचारिक जमीन तैयार करने का काम किया.
13 अगस्त का कार्यक्रम उसी अभियान का समापन था. अपने वक्तव्य में भाकपा(माले) महासचिव ने कहा कि परिचर्चा में जो बातें उभरकर सामने आई हैं, हमें उसी दिशा में बढ़ना है. यदि फासीवाद की ताकतें अपने हित में इतिहास को फिर से पारिभाषित कर रही हैं, तो हमें भी उसे अपने लिहाज से पुनः पारिभाषित करना होगा. उन्होंने कहा कि अब तक आजादी आंदोलन को हम कुछ घटनाओं के रूप में देखते आए हैं, इस दृष्टिकोण से बाहर निकलना होगा. आज जो डिसास्टर हमारे सामने है, उसके प्रति पहले रेस्क्यू और फिर पुननिर्माण की लड़ाई लड़नी होगी. फासिस्ट ताकतें केवल पांच या पचास साल नहीं बल्कि अगले हजार साल तक की सोच रही हैं. ऐसे में लोकतंत्र की हिमायती ताकतें महज चुनाव के नजरिए से इन चीजों को नहीं देख सकती, बल्कि हमें भी इसे एक युद्ध व आंदोलन के बतौर देखना होगा. आजादी की परिभाषा हमारे लिए भी अब बदलनी चाहिए. संविधान में जो हमारे लक्ष्य हैं, ठीक उस तरह का देश बनाने की लड़ाई लड़नी होगी. पुराने को केवल रिस्टोर करने की बात से काम नहीं चलेगा. फासीवाद का जो विध्वंस है, उसका कहीं कोई अंत नहीं है. जितना ज्यादा वे कर सकते हैं, कर चुके हैं. अब इससे सीधे भिड़ना होगा.
डाॅ. राम पुनियानी ने अपनी लोकप्रिय शैली में आजादी के आंदोलन की चर्चा की. उन्होंने इतिहास के कई उद्धरणों से यह साबित किया कि हमारे देश में कभी धार्मिक आधार के झगड़े नहीं रहे बल्कि वे राजाओं के झगड़े थे, जिसे आज धर्म की चाशनी में डुबोकर समाज में जहर घोला जा रहा है. कहा कि फासिस्ट ताकतें इतिहास को बहुत ही पीछे धकेल सकती हैं. यदि हिटलर 25 वर्ष पीछे ढकेल सकता है, तो यहां की ताकतें तो और भी ज्यादा खतरनाक हैं. हजारों प्रचारक व स्वयंसेवक इसी काम में लगे हुए हैं. यदि ये आगे का चुनाव जीत गए तो इस प्रकार की बैठक करना भी आसान नहीं होगा. सामाजिक आंदोलनों ने समाज का विकास किया है. उन्होंने कहा कि सामाजिक आंदोलनों के बिना लोकतंत्र संभव नहीं और लोकतंत्र के बिना सामाजिक आंदोलन नहीं चल सकते. हमें ऐसी सभी ताकतों को एकताबद्ध करना होगा. प्रो. शमसुल इस्लाम ने मनुस्मृति के कई उद्धरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदुवाद से सबसे ज्यादा खतरा हिंदु महिलाओं और दलितों को है. उन्होंने अपने वक्तव्य में आजादी के आंदोलन के दौरान आरएसएस की नकारात्मक भूमिका को उजागर करते हुए कहा कि कट्टरपंथी किसी भी समुदाय का हो, वह लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरनाक है. 1940 में मुसलमानों की उस वक्त तक की जो सबसे बड़ी सभा हुई थी, वह पाकिस्तान बनाए जाने के खिलाफ थी. लेकिन आज मुसलमानों पर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं और उन्हें बदनाम करने की साजिशें चल रही हैं.
डा. शकील अहमद खान ने कहा कि बिहार से एक उम्मीद की रौशनी फैली है. बिहार आंदोलनों की धरती है. भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की पहली बैठक यहीं हुई. दूसरी बैठक में ‘इंडिया’ बना. जो भी दल संविधान व लोकतंत्र के पक्ष में हैं, वे इंडिया के साथ खड़े हैं. उदय नारायण चौधरी ने कहा कि ब्राह्मणवादी ताकतों से गंभीर खतरा है. 2015 में आरक्षण को खत्म करना चाहते थे. हमने उनको चुनौती दी थी. लेकिन आज धीरे-धीरे करके आरक्षण को लगभग समाप्त कर दिया गया. अब आरक्षण नाम की कोई चीज नहीं रह गई. आज के नौजवानों, कमजोर वर्ग व दलित समुदाय के लोगों को बताना होगा कि भाजपा-आरएसएस दरअसल करना क्या चाहते हैं. मीना तिवारी ने कहा कि मणिपुर में औरतों के शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. यह बीजेपी की राजनीति है. आज का जो पूरा दौर है, उसमें विभिन्न तरीकों से व तमाम क्षेत्रों में आरएसएस औरतों की गुलामी को बढ़ावा दे रही है. केवल तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बनाए जा रहे बल्कि यह दंड संहिता जिसे वे आज न्याय संहिता कह रहे हैं, पूरी तरह से अन्याय को ही स्थापित करने की कोशिशें हैं. इस न्याय संहिता में औरतों की तमाम आजादी को कुचल देने की साजिश है.
फासीवादी हमले के खिलाफ लोकतंत्र व संविधान के पक्ष में वैचारिक लड़ाई को मजबूत बनाने की दिशा में आयोजित परिचर्चा में पटना शहर के बुद्धिजीवियों और छात्र-नौजवानों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और भाजपा-आरएसएस के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में एकताबद्ध होकर आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया.
– कुमार परवेज