हूल दिवस के मौके पर विगत 30 जून को भाकपा(माले) व आदिवासी संघर्ष मोर्चा के बैनर तले जमुई व पूर्णिया में सभाओं का आयोजन किया गया. जमुई के कार्यक्रम में जहां सिकटा विधायक व आदिवासी संघर्ष मोर्चा के बिहार संयोजक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने मुख्य वक्ता के बतौर भाग लिया, वहीं पूर्णिया में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवसागर शर्मा शामिल हुए. दोनों जगह आदिवासी समुदाय की बड़ी संख्या कार्यक्रमों में शामिल हुई. कार्यक्रम के मुख्य मांगों में वनाधिकार कानून लागू करने तथा जमीन से आदिवासी समुदाय की बेदखली पर तत्काल रोक लगाने की मांग शामिल थी.
जमुई में जमीन से आदिवासियों की बेदखली के खिलाफ हाल के दिनों में लगातार आंदोलन चले हैं. जिले के खैरा प्रखण्ड के दीपकरहर, म्हेग्रो, रजला सिरसिया, बरदोन आदि दर्जनों गांव में हजारों आदिवासी परिवारों को बिहार सरकार द्वारा 1980-90 में वास-आवास और खेती के लिए जमीन का पर्चा निर्गत किया गया था, लेकिन हाल के दिनों में उनपर बेदखली की तलवार लटक रही है. 1985 से ही पर्चे वाली जमीन पर बसे म्हेग्रो गांव के अनिल हेंब्रम, बुधन हेम्ब्रम और अन्य लोगों ने जब उस जमीन पर पानी के वास्ते तालाब का निर्माण शुरू किया तब वनविभाग के पदाधिकारी गांव पहुंच गए. उन्होंने काम रोक दिया कि यह जमीन वन विभाग की है, इसलिए इसपर कुछ नहीं किया जा सकता है. यदि कार्य होगा तो वनविभाग की ओर से मुकदमा किया जाएगा. पीड़ितों ने भाकपा-माले से संपर्क किया. भाकपा-माले जिला सचिव शंभुशरण सिंह, बासुदेव राय और बाबू साहब ने गांव का दौरा कर लोगों से बातचीत की और फिर इस सवाल पर भाकपा-माले के बैनर तले खैरा प्रखण्ड मुख्यालय पर 27 अप्रैल से एक मई तक धरना दिया. इसमें तकरीबन 500 आदिवासी समुदाय के लोगों की भागीदारी हुई. एक मई मजदूर दिवस पर अनुमंडल पदाधिकारी जमुई, सहायक वनसंरक्षक पदाधिकारी और अंचलाधिकारी खैरा ने धरना स्थल पर पहुंच कर बन्द पड़े तालाब की खुदाई को चालू कराने का आश्वासन दिया. यह भी आश्वासन दिया गया कि जिस जमीन पर आदिवासी बसे हैं, उसे खाली नहीं कराया जाएगा. उसके बाद धरना समाप्त किया गया था.
आंदोलन से प्रभावित होकर कुछ अन्य आदिवासी गांव भी पार्टी सम्पर्क में आए. उन गांवों में भी इसी प्रकार की समस्याएं चिन्हित की र्गइं. उसके बाद दर्जनों आदिवासी गांवों का सर्वे किया गया और वनाधिकार कानून लागू करने, जिस जमीन पर जो आदिवासी परिवार रह रहा है या खेती कर रहा है उस जमीन का पर्चा देने का अभियान चलाया गया. 6 जून को जमुई में हजारो आदिवासी समुदाय के लोगों ने पैदल मार्च किया.
30 जून को हूल दिवस पर वनाधिकार कानून 2008 लागू करने, वन संरक्षक कानून 2022 को फ़ौरन वापस लेने और जमुई में बिरसा-सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव सहित अन्य आदिवासी महानायकों की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने आदि मांगों के साथ विशाल सभा का आयोजन किया. सभा के पहले हजारों आदिवासियों ने अपने हाथ में तीर-धनुष और लाल झंडे लेकर जवाहर हाई स्कूल मैदान से मार्च किया. सभा की शुरूआत सिद्धो-कान्हू व अन्य शहीदों की याद में एक मिनट के मौन से हुई.
आयोजन में वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता के साथ जिले के स्थानीय नेता शंभूशरण सिंह, वासुदेव राय, बाबू साहब, कंचन रजक, वासुदेव हांसदा, ऐतवा हेम्ब्रम, कनंदना मुर्मु, विरेन्द्र हांसदा और तकरीबन 50-60 आदिवासी गांवों के लगभग 2 हजार लोग जुटे. वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि जल-जंगल-जमीन को बचाने और आदिवासियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए सिद्धो-कान्हो ने 30 जून 1855 को अंग्रेजों से लोहा लिया था. उसी का परिणाम था कि 1900 में संथाल परगना टेनेंसी कानून बना और आदिवासी इलाके में गैर आदिवासियों द्वारा जमीन खरीद पर रोक लगाई गई. आज एक बार फिर से आदिवासियों, मजदूर-किसानों और तमाम मेहनतकश समुदाय पर देश की फासीवादी मोदी सरकार द्वारा हमला किया जा रहा है. हमें पूरी मजबूती से यह लड़ाई लड़नी है.
जमुई जिले में लगभग 150 आदिवासी बहुल गांव है. भाकपा-माले द्वारा लगातार ली गई पहलकदमियों का अच्छा प्रभाव दिख रहा है. आदिवासी समूहों के बीच भाकपा-माले की पहुंच व विस्तार की नई संभावना उजागर हुई है.
सीमांचल के इलाके में भी आदिवासी समुदाय उल्लेखनीय संख्या में हैं. हाल के दिनों में जमीन से बेदखली के कई मामले सामने आए हैं. अररिया के बेलगाछी में विगत 60-70 साल से पुश्त-दर-पुश्त रह रहे आदिवासी परिवारों को स्थानीय जमींदार ने फर्जी कागज बनाकर बेदखली का अभियान ही छेड़ रखा है. स्थानीय प्रशासन भी जमींदारों का ही पक्ष लेता है. बहरहाल, अपने संघर्ष के बूते आदिवासी परिवार अभी तक जमीन पर बने हुए हैं और उसे जोत-आबाद कर रहे हैं. पूर्णिया जिले में कई ऐसे गांव दमेली, इटहरी आदि हैं; जहां आदिवासी परिवारों पर बेदखली की तलवार लटक रही है.
हूल दिवस पर पूर्णिया के कला भवन में जल-जंगल-जमीन पर आदिवासी समुदाय के पुश्तैनी अधिकार की रक्षा के साथ-साथ देश-राज्य के अन्य ज्वलंत सवालों पर कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता आदिवासी संघर्ष मोर्चा के जमुना मुर्म ने की. शिवसागर शर्मा के अलावा इस्लामुद्दीन, सुलेखा देवी, नरेश मुर्मु, अविनाश पासवान, प्रो. आलोक कुमार, बबलू गुप्ता, रामविलास यादव, हरिलाल पासवान, विजय कुमार, मोख्तार, गौरव कुमार आदि ने भी सभा को संबोधित किया.