वर्ष - 32
अंक - 10
04-03-2023

भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने विगत 26 फरवरी 2023 को जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में ‘बिहार में सामाजिक बदलाव की चुनौतियां’ विषय पर व्याख्यान दिया. यह कार्यक्रम जगजीवन राम स्मृति व्याख्यानमाला के तहत आयोजित था. कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार विधान परिषद् के सदस्य और पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक प्रो. डाॅ. रामवचन राय ने की. 

का. दीपंकर भट्टाचार्य ने देश और बिहार के अंदर विगत 200-250 वर्षों के अंदर चले सामाजिक बदलाव के संघर्षों की चर्चा करते हुए कहा कि आज देश जिस कठिन परिस्थिति से गुजर रहा है, उसमें सामाजिक बदलाव की सभी धाराओं को मिलकर काम करना होगा. यह दौर सबसे कठिन है लेकिन ऐसे ही दौर में नए लोग, नए तेवर के साथ खड़े होते हैं. हाशिए पर खड़े लोगों के लिए सामाजिक बदलाव जरूरी शर्त है. यह लड़ाई कभी तेज तो कभी धीमी लेकिन लगातार चलने वाली एक प्रक्रिया है. आजादी की लड़ाई को केवल राजनीतिक आजादी के लिहाज से नहीं देखना होगा बल्कि उसके भीतर सामाजिक बदलाव का संघर्ष भी उतनी ही तीव्रता के साथ मौजूद था. उन्होंने ज्योतिबा फुले के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि सामाजिक बदलाव का मतलब यह नहीं है कि जमीन या आर्थिक सत्ता मिल जाए, बल्कि जाति व्यवस्था के कारण दलितों-महिलाओं की शिक्षा व अन्य अधिकारों से वंचना के खिलाफ संघर्ष भी सामाजिक बदलाव के एजेंडे में शामिल हैं.

वर्ष 1936 को उन्होंने देश व बिहार के इतिहास में टर्निंग प्वायंट बताते हुए उन्होंने कहा कि उस समय जहां एक तरफ जुझारू किसान आंदोलनों का आवेग खड़ा हुआ वहीं दूसरी ओर डाॅ. अंबेडकर ‘जाति के विनाश’ के विचार के साथ सामने आए. 1947 में आजादी आई. आजादी के साथ राजनीतिक बराबरी तो आ गई लेकिन सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी जारी रही. 1970 के दशक में भाकपा(माले) के नेतृत्व में उठ खड़े हुए व्यापक आंदोलन में जमीन, मजदूरी के साथ-साथ सामाजिक सम्मान का प्रश्न भी एक प्रमुख प्रश्न था.

उन्होंने कहा कि आरक्षण के कारण विश्वविद्यालयों व कुछेक अन्य जगहों पर दलित-पिछड़े समुदाय को प्रतिनिधित्व मिलने लगा है, लेकिन न्यायालय व प्राइवेट सेक्टर में अब भी यह नहीं हो रहा है. आरक्षण ने माहौल बदला है, लेकिन जब तक समाज का ढांचा नहीं बदलता, न्याय की गुंजाइश कम रहेगी. और अब तो आरक्षण की पूरी अवधारणा पर ही कुठाराघात हो रहा है. वैसे तो आज की तारीख में कोई भी पार्टी सामाजिक न्याय की अवधारणा को गलत नहीं कहेगी, लेकिन हम देख रहे हैं कि चोर दरवाजे से संविधान विरोधी 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण लाया गया.

का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज देश फासीवादी दौर से गुजर रहा है. अंग्रेजी राज की तर्ज पर शासन चलाने की कोशिश हो रही है और जनता के सारे अधिकार छीने जा रहे हैं. ये सारी चीजें समाज को पीछे ले जाने वाली हैं. हमें न केवल मिले अधिकारों, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की अवधारणा के पक्ष में मजबूती से खड़ा होना है, बल्कि इसे गुणात्मक रूप से बेहतर बनाने का संघर्ष भी करना है.

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. रामवचन राय ने कहा कि आज देश में जो सरकार है, वह अमृतकाल के नाम पर नफरत का विष वमन कर रही है. यह बहुत दुखद है. पूरे देश में कुहासा सा माहौल है. उन्होंने कहा कि ‘सांप्रदायिकता हमेशा संस्कृति के वाहक के रूप में ही आती है’ जिससे हम सबको मिल-जुलकर निपटना होगा. 

इसके पहले संस्थान के निदेशक डाॅ. नरेन्द्र पाठक ने स्वागत वक्तव्य दिया, पुस्तकें और शाल देकर सम्मानित किया. कार्यक्रम के दौरान सवाल-जवाब भी हुए.

मौके पर भाकपा(माले) के राज्य सचिव कुणाल, विधायक दल नेता महबूब आलम, डाॅ. विद्यार्थी विकास, पुष्पराज, गालिब. प्रो. अभय कुमार, सतीश पटेल, अभय पांडेय, सुधा वर्गीज, अशोक कुमार और बड़ी संख्या में शहर के सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी शामिल थे. संचालन डा. कुमार परवेज ने किया.