उत्तर प्रदेश में, जहां योगी राज पूरे देश में आतंक का पर्याय बना हुआ है, वहीं एक्टू से संबद्ध आशा वर्कर्स यूनियन की महिलाओं ने दमन का मुकाबला सड़कों पर करके भाजपा के महिला व मजदूर विरोधी चरित्र का पर्दाफाश किया है. कोरोना काल हो अथवा मातृ-शिशु मृत्यु दर को रोकने, स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में आशा वर्कर्स की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद उत्तर प्रदेश में आशा वर्कर्स की स्थिति दयनीय बनी हुई है. मोदी-योगी सरकार के सभी वादे झूठे साबित हुए. इसीलिए सरकार के विरोध में आशा वर्कर्स का संघर्ष लगातार बढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश में आशाओं द्वारा 1 मार्च को 224 सीएचसी-पीएचसी पर, 3 मार्च को 79 तहसीलों पर, 13 मार्च को 46 जिला मुख्यालयों पर और 17 मार्च को 13 मंडल कार्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन हुए. 1 मार्च 2023 की कार्य बंदी पर राष्ट्रपति, 3 मार्च को तहसील में प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री और 13 मार्च को मुख्यमंत्री को संबोधित मांग पत्र दिए गए. 17 मार्च को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि को संबोधित ज्ञापन दिए गए.
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद आशा को 6700 रू. व अन्य कार्यों की प्रोत्साहन राशि व संगिनी बहनों का 11000 रू. व अन्य सेवाओं की प्रोत्साहन राशि देने की बात कही थी. लेकिन यह अभी तक सरकारी जुमला ही बना हुआ है. आशा समाज सेविका नहीं, कर्मचारी है जिसको प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुए 45/46 वें श्रम सम्मेलन ने भी माना है. इनको न्यूनतम वेतनमान व पीएफ, ईएसआई, पेंशन का लाभ दिया जाना चाहिए. प्रदेश भर में आशा व आशा संगिनी का 4-6 माह तक संपूर्ण मानदेय बकाया रहता है. बहुत अल्प प्रोत्साहन राशि में रात दिन श्रम करने वाली आशा व आशा संगिनी भुखमरी की शिकार होती रहती हैं. किंतु उस अल्प अपमानजनक कथित मानदेय के भुगतान की चिंता न एनएचएम को रहती है और न सरकार को. सरकार ने पिछले चुनावी वर्ष में समारोह करके आशा कर्मियों को उपहार स्वरूप कचरा मोबाइल दिया गया जिससे अब उन्हें उसी कचरा मोबाइल से डाटा फीड करने व आयुष्मान कार्ड बनाने का फरमान जारी किया गया है जबकि आशाओं द्वारा किए गए अतिरिक्त कार्य की प्रोत्साहन राशि भी नही दी जा रही है. आशाएं आये दिन उत्पीड़न का शिकार होती हैं. इसकी शिकायत व रोकथाम के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. मोदी-योगी सरकार महिलाओं के विकास का नगाड़ा पीट रही है लेकिन सच्चाई इसके उलट है. बार-बार ध्यान आकर्षित करने के बावजूद सरकार न तो न्यूनतम वेतन के प्रश्न को सुनने को तैयार नहीं है और न ही भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा, वार्षिक अवकाश, मातृत्व अवकाश देने के लिए तैयार है. आशाओं को मिलनी वाली राशि का 2019 से लेकर 2022 तक 1.50 लाख करोड़ रूपये का घोटाला हुआ है. इस संबंध में एनएचएम के निदेशक समेत मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री तक को कई पत्रा लिखे गए हैं लेकिन इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है. आशाओं से 8 प्रकार के काम कराने के बदले के बदले 56 प्रकार के काम कराये जा रहे हैं. सरकार महिलाओं की बेहतरी के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं लाने की बात कर रही है लेकिन आशा कर्मचारियों की न्यूनतम राशि भी सरकार देने को तैयार नहीं है. वाउचर जमा करने से लेकर हर काम में कमीशन वसूला जाता है. सरकार पूरी तरीके से महिलाओं के श्रम को लूटने के लिए तैयार है. इस महिला विरोधी कर्मचारी विरोधी भाजपा सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
आशा कर्मियों के प्रदर्शन प्रदेश के लखनऊ, अलीगढ़, हाथरस, गोरखपुर, कानपुर, कानपुर देहात, बरेली, शाहजहांपुर, कुशीनगर, रायबरेली, बाराबंकी, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, जालौन, अमेठी, बुलंदशहर, औरैया, बिजनौर, एटा, मुरादाबाद, कौशांबी, लखीमपुर खीरी, ललितपुर, मऊ, महाराजगंज, कासगंज, पीलीभीत, रामपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, मेरठ, संभल, गोंडा, चंदौली, झांसी, देवरिया, जौनपुर, सीतापुर, अंबेडकर नगर, एटा, श्रावस्ती, गौतम बुद्ध नगर आदि की विभिन्न तहसीलों, स्वास्थ्य केंद्रों, संबद्ध मंडल कार्यालयों पर आयोजित हुए. इन प्रदर्शनों में हजारों आशा कर्मियों ने भागीदारी की. आनेवाले दिनों में आशा समेत अन्य सभी स्कीम वर्कर्स के संगठनों का राज्य के अन्य हिस्सों में भी विस्तार पाने और उनके आंदोलनों के और भी तेज होने की पूरी संभावना है.