हिजाब पहनने वाली मुस्लिम छात्राओं को निशाना बनाने और बहिष्कृत करने पर नारीवादी, लोकतांत्रिक संगठनों और व्यक्तियों का बयान
तटीय कर्नाटक में कैंपसों और कक्षाओं में हिजाब पर शुरू हुआ प्रतिबंध एक हेट क्राइम (घृणा अपराध) है और इसके अन्य राज्यों में फैलने का खतरा है. हिंदू वर्चस्ववादियों द्वारा गोमांस, मुस्लिमों की सामूहिक नमाज, अजान, टोपी, उर्दू जैसे अनेक बहाने बना मुस्लिमों का लिंचिंग और अलग-थलग/बहिष्कार किया जाता रहा है. हिंदू-वर्चस्ववादी ताकतों ने मुस्लिम महिलाओं की ‘ऑनलाइन नीलामी’ आयोजित किया और उनकी यौन और प्रजनन दासता का आह्वान करने वाले भाषण दिया. उसके बाद अब हिजाब उन्ही ताकतों के लिए नया बहाना है, जिसके द्वारा मुस्लिम महिलाओं पर छुआछूत/रंगभेद के तर्ज पर अलगाव की नीति लागू की जा सके और उन पर हमला किया जा सके.
कर्नाटक के मांड्या में एक हिजाब पहनने वाली मुस्लिम छात्रा को भगवाधारी पुरुषों की भीड़ द्वारा घेर कर छेड़छाड़ करने का वीडियो एक चेतावनी है कि कैसे हिजाब आसानी से मुस्लिमों पर भीड़ द्वारा हमलों का अगला बहाना बन सकता है.
हमारा दृढ़ विश्वास है कि संविधान स्कूलों और काॅलेजों में अनिवार्य रूप से एकरूपता के बनिस्बत बहुलतावादी संस्कृति का पालन-पोषण करने का दिशा निर्देश देता है. ऐसे संस्थानों में यूनिफार्म (वर्दी/पोशाक) विभिन्न और असमान आर्थिक वर्गों के छात्रों के फर्क को कम करने के लिए होती है. इसका उद्देश्य बहुलतावादी देश में सांस्कृतिक एकरूपता थोपना नहीं है. यही कारण है कि सिक्खों को न केवल कक्षा में बल्कि पुलिस और सेना में भी वर्दी/पोशाक के रंग की पगड़ी पहनने की अनुमति है. यही कारण है कि हिंदू छात्रा बिना किसी विवाद या किसी के अप्रिय टिप्पणी के बिना स्कूल और काॅलेज की पोशाक के साथ बिंदी/पोट्टू/तिलक/विभूति आदि लगाते हैं. और ठीक इसी तरह से जो मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनना चाहती हैं, उन्हें अपनी पोशाक के साथ हिजाब पहनने के अधिकार का सम्मान होना चाहिए.
उडुपी के काॅलेजों में से कम से कम एक की छपी हुई नियमावली के अनुसार मुस्लिम महिलाओं को परिसर में पोशाक के रंग से मेल खाता हिजाब पहनने की अनुमति है. महिलाओं के हिजाब पहनने से शैक्षणिक संस्थानों में हो रहे व्यवधान को उकसावा नही मिला है. बल्कि ये हिंदू-वर्चस्ववादी संगठन हैं जिन्होंने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर भगवा गमछे के साथ प्रदर्शन करके सांप्रदायिक सद्भाव के टुकड़े-टुकड़े किये हैं और व्यवधान और हिंसा उकसाया है. भगवा गमछा/दुपट्टा और हिजाब, दोनों पर प्रतिबंध लगाना उचित या न्यायसंगत समाधान नहीं है क्योंकि इस मामले में भगवा गमछा या दुपट्टा पहनने का एकमात्र उद्देश्य हिजाब पर प्रतिबंध लगवाना और मुस्लिम महिलाओं को डरा-धमका कर खौफजदा करना था. ऐसा उद्देश्य सफल हो जाए तो ऐसी हिंसक ताकतों को बढ़ावा मिलेगा.
हिजाब पहनने वाली महिलाओं को अन्य छात्रों से अलग कक्षाओं में बैठाना या उन्हें अपनी पसंद के काॅलेजों से मुस्लिम संचालित काॅलेजों में जाने को मजबूर करना, छुआछूत/रंगभेद की नीति के एक साम्प्रदायिक संस्करण के अलावा और कुछ नहीं है. तटीय कर्नाटक के इलाके में हिंदू वर्चस्ववादी समूहों द्वारा 2008 से ही इस तरह के साम्प्रदायिक छुआछूत/रंगभेद को लागू करने के लिए हिंदू और मुस्लिम सहपाठियों, दोस्तों, प्रेमियों के आपस में उठने-बैठने मिलने-जुलने पर हिंसक हमले किये जा रहे हैं. यह भी याद रखना चाहिए कि इस तरह की हिंसा के साथ तटीय कर्नाटक में पबों में जाने, ‘पश्चिमी’ कपड़े पहनने या मुस्लिम पुरुषों से दोस्ती, प्रेम या विवाह करने के लिए यही ताकतें हिंदू महिलाओं पर भी उतने ही हिंसक हमले कर चुके हैं. मुसलमानों पर होने वाले घृणा-प्रेरित अपराधों (हेट क्राइम) का मुस्लिम और हिंदू महिलाओं के खिलाफ होने वाले पितृसत्तात्मक घृणा-प्रेरित अपराधों से गहरा जुड़ाव है – दोनों ही इन्हीं हिंदू-वर्चस्ववादी अपराधियों द्वारा किया जाता है.
हम स्तब्ध हैं कि कर्नाटक के गृह मंत्री ने हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के ‘आतंकवादी समूहों’ के साथ ‘उनके संबंधों की जांच’ करने के लिए इन महिलाओं के फोन रिकार्ड की जांच के आदेश दिए हैं. कल तक मुसलमानों पर भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून का विरोध करने के लिए या किसी भी अन्य प्रकार के भेदभाव का विरोध करने के लिए ‘आतंकवाद’ और ‘साजिश’ रचने का आरोप लगाया जा रहा था. अब मुस्लिम महिलाओं के द्वारा हिजाब पहनने को साजिश के रूप में देखा जा रहा है, एक ऐसे देश मे जहां बड़ी संख्या में हिंदू और सिख समुदायों की महिलाएं भी उसी ढंग से और उन्हीं कारणों के लिए अपने सिर को ढकती हैं! यहां तक कि भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने भी अपने सिर को साड़ी के पल्लू से ढंका जिस पर किसी ने भड़काऊ टिप्पणी या विवाद नही किया.
लड़कियों और महिलाओं को उनके कपड़ों के लिए बिना शर्मिंदा या दंडित किए शिक्षा के अवसर उपलब्ध होने चाहिए. शैक्षणिक संस्थानों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि छात्रों के दिमाग के अंदर क्या है न कि उनके सिर के ऊपर क्या है. हम हर उस महिला के पक्ष में खड़े हैं जिनसे कहा जाता है कि वह काॅलेज में प्रवेश नहीं कर सकती क्योंकि वे जींस या शाॅट्र्स पहन रखी हैं, या क्योंकि उन्होंने हिजाब पहना है.
हम स्पष्ट रूप से मुस्लिम महिलाओं के साथ एकजुटता में खड़े हैं – चाहे वे हिजाब पहनें या नहीं, उनके साथ निःशर्त सम्मानजनक व्यवहार हो और उनको सभी अधिकारों का लाभ मिले. हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि कर्नाटक की मुस्लिम छात्राएं अपनी मर्जी से हिजाब पहन रही हैं और उनकी इस मर्जी का सम्मान किया जाना चाहिए.
महिलाएं क्या पहनना पसंद करती हैं, वे शरीर का कितना हिस्सा ढंकती हैं या कितना खुला रखती हैं, ये उनकी अपनी ‘मर्जी’ का मामला है – यह शर्म-ओ-हया और बेशर्मी का पैमाना नहीं हो सकता. यह उसूल, महिलाओं पर किसी भी रंग के धार्मिक प्रथाओं को थोपने के पितृसत्तात्मक प्रयास के लिए लागू है. महिलाओं को यह बताने की कोशिश करना बंद करें कि सम्मान पाने के लिये उन्हें क्या पहनना चाहिए – इसके बजाय चाहे वे जो भी पहने, उनका सम्मान करें. यदि आपको लगता है कि एक महिला ‘अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा ‘एक्स्पोज’ करने वाले कपड़े पहनती है’ या ‘एक अच्छी हिंदू/मुस्लिम/ईसाई/सिख महिला की तरह पोशाक नहीं पहनती है’, तो समस्या आपके पितृसत्तात्मक नजर और हकदारी की समझ में है, न कि महिलाओं के कपड़ों में. नारीवादी और लोकतांत्रिक उसूलों की बुनियाद इस बात का सम्मान करने में निहित हैं कि प्रत्येक महिला पितृसत्ता से लड़ने में अपना रास्ता खुद अख्तियार करती है, और यह तय करती है कि उसके अपने विवेक के हिसाब से उसे किन प्रथाओं को स्वीकार या अस्वीकार करना है.
हम उन संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ सख्ती के साथ कारवाई करने की मांग करते हैं जिन्होंने मांड्या में एक मुस्लिम महिला को घेर कर, छेड़छाड़ कर परेशान करने वाली भीड़ का नेतृत्व किया और उसमें शामिल हुए. हम सरकारों से पूरे देश मे पुलिस और जनता को सचेत करने को कहते हैं ताकि हिजाब पहनने वाली महिलाओं को डराने-धमकाने के किसी भी प्रयास को रोका जा सके.
हम कर्नाटक में मुस्लिम महिला छात्रों के साहस को सलाम करते हैं जो राज्य समर्थित हिंदू-वर्चस्ववादी ठगों द्वारा डराने-धमकाने के बावजूद अपनी गरिमा और अधिकारों के लिए इस लड़ाई को बहादुरी से लड़ रही हैं. हमें इन छात्राओं से यह सुनकर खुशी हुई कि उनके कई हिंदू और ईसाई दोस्त उनके संघर्ष का समर्थन कर रहे हैं – और हम पूरे देश के छात्रों और नागरिकों से यह अपील करते हैं कि छात्रों और महिलाओं पर स्त्री द्वेषी और इस्लामोफोबिक ‘ड्रेस कोड’ लागू करने के किसी भी प्रयास का प्रतिरोध करें.
ऑल इंडिया टेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन (ऐडवा)
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेंस एसोसिएशन (ऐपवा)
आवाज-ए-निस्वां
बेबाक कलेक्टिव
फोरम अगेंस्ट ऑपरेशन ऑफ वीमेन
फेमिनिस्टस इन रेजिस्टेंस
नेशनल अलायन्स ऑफ पीपुल्स मूवमेंटस (एनएपीएम)
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेंटस (एनएफआईडब्ल्यू)
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल)
सहेली
(15 राज्यों से 130 से अधिक संगठनों और लगभग 3000 लोगों द्वारा समर्थित बयान)