तीन दिन की लगातार बारिश ने बिहार की राजधानी पटना में कहर मचा दिया. पटना ठप रहा, बारिश के कई दिन बाद ही पटना में आवागमन कहीं-कहीं शुरू हो सका है. नगर के जाने-माने इलाकों से लेकर – जैसे राजेन्द्र नगर, कंकड़बाग, बोरिंग रोड, गांधी मैदान, गर्दनीबाग समेत हर इलाके में जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया.
बाढ़ पीड़ितों के लिए आइसा-इंनौस ने पहले ही दिन से कमान संभाल ली थी. भारी जलजमाव के कारण फंसे लोगों के लिए ‘सोशल मीडिया’ के जरिये आइसा ने अपना हेल्प लाइन नंबर जारी किया, जिसके बाद कई प्रभावित लोगों ने या उनके परिवार के लोगों ने फोन कर मदद मांगी, जिसके बाद फंसे लोगों की मदद की गई.
जानकारी मिली कि ‘शोभा गर्ल्स हाॅस्टल’ जो 4 नंबर रोड में है उसमें 5 छात्राएं फंसी हुई हैं और छात्राओं ने पिछल दो दिनों से कुछ भी खाया-पिया नहीं है. आइसा के साथियों ने वहां जाकर उन छात्राओं के लिए भोजन, पानी मुहैया कराया, ठीक इसी तरह केंद्रीय विद्यालय कंकड़बाग के पास से जानकारी मिली कि वहां के लोग फंसे हुए हैं. उनके पास भोजन की सामग्री तो है लेकिन बिजली नहीं रहने के कारण पानी नहीं था. आइसा-इंनौस ने बिना देर किए उन लोगों तक पानी पहुंचाया.
लोगों को मदद करने क्रम में हमने सरकारी एनडीआरएफ की टीम से बात की लेकिन उनके पास नावों की संख्या इतनी कम थी कि नाव पर निर्भर रहकर लोगों की मदद करना संभव नहीं था. इसलिये शुरूआती दो दिनों तक तो पैदल ही लोगों तक पहुंचने की कोशिश की गई. कहीं कमर भर तो कहीं उससे भी ज्यादा पानी में चलकर लोगों के बीच राहत पहुंचाई गई. पानी घटने पर रिक्शा की मदद ली गई. उसके बाद ट्रैक्टर की मदद से लोगों तक राहत पहुंचाई गई. यह देखा गया कि सरकारी और कुछ गैर-सरकारी संगठन गरीबों की बस्तियों में जाने से बच रहे हैं. ऐसे में आइसा-इंनौस ने जाकर गरीबों की बस्तियों को दौरा किया तो पाया कि वहां तो स्थिति बहुत भयावह है. लोगों से बात करने पर पता चला कि उनके बीच कोई राहत सामग्री नहीं पहुंचाई जा रही है. अव्वल तो ये कि हेलिकाप्टर से गिराई जाने वाली राहत सामग्री बिल्कुल ही अपर्याप्त थी, और दूसरा यह कि जो भोजन सामग्री गिराई जा रही थी वो सिर्फ पक्के मकानों पर गिराई जा रही थी जिससे पैकेट फटकर बर्बाद हो जा रहे थे, या फिर सामग्री पानी में गिर जा रही थी.
आइसा-इंनौस द्वारा पांच दिनों तक चलाये गये इस राहत कार्य में महमूदीचक, लोहानीपुर मुशहरी, बुद्धमूर्ति, राजेंद्रनगर रोड नंबर 2, 10, 11 तथा बाजार समिति के अलावा दीघा के बिंद टोली (यहां नाव से जाना पड़ा था) इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाई गयी. बुद्धमूर्ति में एक महिला अपने 6 माह के बच्चे को गन्दे नाले के पास लिटाये हुए मिली, उनके पास कोई जगह नहीं है. वह बच्चा कभी भी बीमारी की चपेट में आ सकता है. सरकार ने इन गरीबों को पहले से ही उजाड़ रखा है. वे सभी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. आखिर जाएं तो जाएं कहां? नीतीश बाबू के ‘स्मार्ट सिटी’ में इनके लिए कोई जगह नहीं है.
महमूदीचक में बच्चे दूध के अभाव में बिलख रहे थे, लोग प्लेटफार्म पर शरण लिए हुए मिले. उन्होंने इसे ही अपना जीवन समझ लिया है. अब पानी तो घट गया है लेकिन स्लम इलाकों में पानी सड़ने से बीमारियां तेजी से फैल रही हैं. अभी तक 700 से ज्यादा डेंगू के मरीज पटना से मिले हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या में राजेंद्रनगर, कंकड़बाग के इलाकों के मरीज हैं.
इस राहत अभियान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव सतीश चंद्र यादव और काउंसिलर आदर्श भी शामिल हुए और उन्होंने खुद लगकर लोगों की दुख की घड़ी में लोगों के बीच जाकर राहत सामग्री पहुंचाई. सतीश ने कहा कि नीतीश-भाजपा की सरकार कहती थी कि पटना को पेरिस बना देंगे लेकिन आज इनके लापरवाही और जनविरोधी नीतियों के कारण पटना पेरिस तो नही बना लेकिन पेरिश (नष्ट) जरूर हो गया है. यानी पटना को बदबूभरा बनाने में कोई कोर कसर सरकार ने नही छोड़ी है. उन्होंने कहा कि पटना में वार्ड पार्षदों से लेकर दोनों सांसद एवं नगर विकास मंत्री तक भाजपा के हैं जिससे ये साफ जाहिर है कि भाजपा के रहते कोई विकास का कार्य तो संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि संकट की इस घड़ी में जेएनयू पटना के बाढ़-पीड़ित जनों के साथ पूरी एकजुटता में खड़ा है.
बहरहाल, इस बाढ़-जलजमाव से लोगों को बचाने की नाकामी से 14 वर्षों के भाजपा-जदयू शासन का खोखलापन खुद ही उजागर हो चुका है. ये लोग राजधानी तक को पानी में डूबने से न बचा सके. पटना के ग्रामीण इलाके भी बाढ़ की चपेट में हैं. इस राहत अभियान में आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार, राज्य कार्यालय सचिव कुमार परवेज और प्रकाश कुमार, इनौस के राज्य सचिव सुधीर, आइसा के राज्य सह सचिव आकाश कश्यप, विकास यादव, प्रियंका प्रियदर्शिनी, पूनम, रामजी, तौसीफ आफाक, अपूर्व, अभिषेक, पूजा, दामिनी, नीतू, प्रीति, पफरहीन, आलोक, नौशाद, अभिषेक केशरी, नवनीत, कार्तिक, दिव्यांशु, हसन शालिम शामिल हुए. इन टीमों के साथ भाकपा(माले) के विधायक का. सुदामा प्रसाद भी शामिल हुए और उन्होंने कई इलाकों में पानी में उतर कर दौरा किया और राहत कार्यवाहियों का निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा राहत की कार्यवाही नितांत अपर्याप्त है. बच्चों के पास दूध और बीमारों के पास दवाइयां आदि नहीं पहुंच रही हैं और बहुतों को घर छोड़कर रेलवे प्लेटफार्म पर शरण लेनी पड़ी है. सरकार को स्लम इलाकों में बीमारी की रोकथाम के लिये तुरंत कदम उठाना होगा.
7 अक्टूबर को भाकपा(माले) के राज्य सचिव कामरेड कुणाल के नेतृत्व में राजेंद्र नगर और लोहानीपुर का दौरा किया गया. सबसे नारकीय स्थिति आरएसएस कार्यालय के पास मौजूद झोपड़पट्टी की है. वहां चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. कहीं भी ब्लीचिंग पाउडर, डीडीटी आदि का छिड़काव नहीं हो रहा है. इन क्षेत्रों में अभी भी पानी लगा हुआ है, झोपड़ियां ढह गई हैं. खाने के लिए जो भी सामान रखा हुआ था, वो सड़ गया गया है. भीगकर सड़ने की वजह से पहनने के लिए कपड़ा नहीं है. यही हालात महमूदी चक मुसहरी और लोहानीपुर दलित बस्ती के भी हैं. प्रशासनिक स्तर पर कोई मदद नहीं की जा रही है. इसके अलावा कहीं भी युद्ध स्तर पर साफ-सफाई नहीं हो रही है. महामारी का खतरा बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि सरकार को हर झुग्गी-झोपड़ी कालोनी में राहत शिविर लगाने का इंतजाम करना होगा.
महामारी के खतरे को देखते हुए पटना के जल-जमाव प्रभावित क्षेत्रों में 10-13 अक्टूबर के बीच डाक्टर कफील खान की टीम के साथ इंसाफ मंच का मेडिकल कैम्प लगाने की योजना बनाई गई है.
उधर भागलपुर के कहलगांव प्रखंड में किसान नेता रणवीर यादव के नेतृत्व में भाकपा(माले) की एक टीम ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया और प्रभावित लोगों से बातचीत कीउन्होंने किसनदासपुर पंचायत के रानी दियारा, बरोहिया, नया नगर में और वीरबन्ना पंचायत में अन्ठावन, तोफील, दयालपुर कुल्टी आदि का दौरा किया. टीम ने बताया कि सरकार द्वारा राहत कार्य केवल नाम मात्र का नंदगोला में एक राहत शिविर तक सीमित है जो प्रभावित क्षेत्र से दूर है तथा अगम्य है. राहत के नाम पर लोगों तक पीने का पानी भी नहीं पहुंच रहा है. टीम ने सरकार से तुरंत राहत पहुंचाने की मांग की जिसमें भोजन सामग्री, पानी, मवेशियों का चारा, पाॅलीथिन हो और साथ ही मुफ्त मेडिकल सहायता शिविर भी लगाये जायें.
ऐसी कई टीमें 30 सितम्बर से विभिन्न बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में राहत पहुंचाने का काम कर रही हैं. साथ ही कार्यकर्ताओं ने बाढ़-पीड़ितों की सहायता के लिये राहत कोष संग्रह अभियान भी शुरू कर दिया है. विडम्बना यह है कि ऐसी ही एक टीम को पटना रेलवे स्टेशन के नजदीक पुलिस ने रोक दिया. 4 अक्टूबर को भाकपा(माले) का एक प्रतिनिधिमंडल पटना के कंकड़बाग नगर निगम अधिकारियों तथा जल-निकासी के प्रभार वाले अधिकारियों से मिला. उनकी मुख्य मांग थी न्यू बाईपास के पास एक बड़े नाले का निर्माण और जल-निकासी प्रणाली में व्यापक सुधार. टीम ने यह भी माग की कि बिना देर किये कंकड़बाग के वार्ड नं. 30, 32 और 33 के निचले इलाकों से पानी की निकासी की जाय और युद्ध स्तर पर कीटनाशकों का छिड़काव हो तथा फाॅगिंग (मच्छर भगाने के लिये धुंआ) का इस्तेमाल किया जाय और कम से कम 15 सर्वाधिक जल-जमाव के इलाकों में पीने के पानी वाले टैंकर भेजे जायं. भाकपा(माले) राज्य कमेटी सदस्य का. रणविजय कुमार, जिला कमेटी सदस्य पन्नालाल और अशोक कुमार ने कहा कि भाजपा सरकार ने ये सभी वादे 2007 में किये थे जब कंकड़बाग में बाढ़ के दौरान प्रदर्शन किया गया थामगर पिछले 15 वर्षों से भाजपा के नगर विकास मंत्री रहने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई. यह बड़े शर्म की बात है कि इतने लम्बे अरसे तक जल-निकासी प्रणाली को दुरुस्त करने या मरम्मत करने का कोई प्रयास ही नहीं किया गया.
आरा जिले में भी भाकपा(माले) ने गोडना नहर क्षेत्र में बाढ़-पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाई और मेस चलाकर उनके लिये खाने का इंतजाम किया. भाकपा(माले) के विधायक दल नेता का. महबूब आलम ने भी कहा कि बिहार सरकार ने कटिहार जिले में आई पिछली बाढ़ के दौरान पीड़ितों को आज तक क्षतिपूर्ति देने के लिये राशि नहीं जारी की और लगता है कि इस बार संकट की घड़ी में भी वही होने वाला है.
भाकपा(माले) के बिहार राज्य सचिव का. कुणाल ने कहा कि जिस समय राजधानी पटना भीषण जलजमाव से तबाह था और लगभग पूरे राज्य में बाढ़ की स्थिति थी, उस वक्त इसकी जवाबदेही व जिम्मेवारी से बचने के लिए भाजपा व जदयू के लोग आपसी नूराकुश्ती में लगे थे, ताकि लोगों का ध्यान भटकाया जा सके. भाजपा के नेता इसका सारा दोष जद(यू) पर मढ़कर अपने को पाक-साफ दिखलाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि विगत 15 साल से नगर विकास का विभाग भाजपा के ही पास है, और पटना की सभी चारों विधानसभा सीटों पर दो दशकों से भाजपा का ही कब्जा है. लोकसभा की दोनों सीट भी भाजपा के ही पास है. पटना नगर निगम पर भी भाजपा ही काबिज है. तब, इस भीषण जलजमाव के लिए भारतीय जनता पार्टी कैसे दोषमुक्त हो गई? भाजपाइयों को शर्म आनी चाहिए. इस विकट परिस्थिति में भी वे दंगा-फसाद खड़ा करने की कोशिश में हैं. 10 अक्टूबर 2019 को जहानाबाद में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिश की गई, जो पूरी तरह निंदनीय है.
वास्तविकता यह है कि जब-जब इस प्रकार की त्रासदी सामने आती है बिहार सरकार का आपदा प्रबंधन लकवाग्रस्त हो जाता है. मशरख मिड-डे-मील कांड से लेकर इंसेफ्लाइटिस से हुए बच्चों की मौत और अब राजधानी पटना में भीषण जल-जमाव की स्थिति ने सरकार के आपदा प्रबंधन की पोल एक बार फिर जगजाहिर कर दी है. बिहार सरकार कह रही है कि उसने संभावित तबाही से लोगों को पहले ही सूचित कर दिया था. लेकिन सवाल यह है कि सरकार का काम बस सूचना उपलब्ध कराना मात्र है? जब ऐसी स्थिति की जानकारी सरकार को हो गई थी तो फिर उसने किसी भी प्रकार की व्यवस्था पहले से क्यों नहीं की? यह यह घोर आपराधिक लापरवाही का मामला बनता है. कई जगहों पर जलजमाव अभी भी है. सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि डेंगू व चिकुनगुनिया व अन्य बीमारियों का प्रकोप तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस मामले में भी सरकार की पहलकदमी बेहद कमजोर है. राजधानी पटना सहित सभी जिला मुख्यालयों पर अस्पतालों में आईसीयू की संख्या तत्काल बढ़ायी जानी चाहिए. अस्पतालों में अलग से डेंगू वार्ड का निर्माण होना चाहिए, खून आदि की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि लोगों का सही समय पर इलाज संभव हो सके और नुकसान को रोका जा सके.
उन्होंने कहा कि बाढ़ पीड़ितों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी इलाकों के गरीबों के लिए भी मुआवजा का प्रबंध किया जाना चाहिए. बाढ़ में अररिया का पूरा इलाका डूबा रहा. भागलपुर में 16 में से 14 प्रखंड बाढ़ की चपेट में रहे. पूर्णिया, कटिहार, भोजपुर, पटना ग्रामीण के अधिकांश इलाके बाढ़ की चपेट में रहे. अगस्त के महीने में आई बाढ़ का भी मुआवजा अभी बाढ़ पीड़ितों को नहीं मिल सका है. सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही जबकि जान-माल की भारी क्षति हुई है. राहत-मुआवजा की मांग पर 11 अक्टूबर को भोजपुर, 14 अक्टूबर को पटना में जिलाधिकारी के समक्ष प्रदर्शन किया जाएगा. अन्य जिलों में भी विरोध-प्रदर्शन का कार्यक्रम लिया गया है.
– मोख्तार