लगभग 5.5 लाख हड़ताली कोयला मजदूरों की हड़ताल (पिछले अंक में इसकी रिपोर्ट देखें) के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए दिल्ली के जंतर मंतर पर मजदूरों ने एक सभा संगठित की. मोदी सरकार की विनाशकारी नीतियों की तरफ आम जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिये ऐक्टू ने यह प्रतिवाद प्रदर्शन आयोजित किया था.
1972-73 में कोयला क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला उत्पादन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. राष्ट्रीयकरण के पहले कोयला उत्पादन लगभग 790 लाख टन प्रति वर्ष होता था जो आज बढ़कर 60 करोड़ टन तक पहुंच गया है. देश के कुल कोयला उत्पादन में 92 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकारी क्षेत्र की है. लेकिन मोदी सरकार देश की, और दुनिया की भी, सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) पर लगातार हमले कर रही है. लाभांश के बतौर हजारों करोड़ रुपया देने वाले पिछले दशक 1.2 लाख करोड़ रुपये का आरक्षित भंडार रखने वाले इस रणनीतिक कोयला क्षेत्र को यह सरकार अब ध्वस्त करने पर तुली हुई है. सरकार के इस कदम से न केवल सरकारी स्वामित्व वाली कोयला कंपनियों और इनमें लाखों श्रमिकों का भविष्य दांव पर लग जाएगा, बल्कि निजी उत्खनन कंपनियों के लिये जनता के संसाधनों की लूट का रास्ता भी साफ हो जाएगा जिसके चलते सरकार के राजस्व में भी गिरावट आ जाएगी. हालांकि हाल-हाल तक कोयला उत्पादन के दौरान दुर्घटनाएं और मौतें होती रही हैं, फिर भी राष्ट्रीयकरण के पहले कोयला मजदूरों के चरम शोषण की गाथा अच्छी तरह से दर्ज है. इन मजदूरों के अनेकानेक संघर्षों और कुर्बानियों के चलते ही सरकार को कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करना पड़ा था. मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी में ‘कोल माइन्स (स्पेशल) प्रोविजन ऐक्ट, 2015’ लाया था और इसके जरिये निजी कंपनियों को ‘वाणिज्यिक खनन’ के नाम पर कोयला का उत्खनन व बिक्री करने की इजाजत दी थी. सरकार के इस कदम ने राष्ट्रीयकरण की उपलब्धियों को नजरअंदाज करते हुए कोयला क्षेत्र के बेरोकटोक निजीकरण का द्वार खोल दिया है.
कोयला – एक खनिज संपदा जिसे बनने में दसियों लाख वर्ष लग जाते हैं – अब निजी कंपनियों के द्वारा मुनाफा कमाने के लिये लूट लिया जाएगा. ऐक्टू के दिल्ली राज्य अध्यक्ष संतोष राॅय ने कहा कि 2017 में कुख्यात थिंक टैंक ‘नीति’ आयोग ने देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक प्रतिष्ठान कोल इंडिया लिमिटेड को पांच अलग-अलग इकाइयों तोड़ डालने का प्रस्ताव किया था. ट्रेड यूनियनों के प्रबल दबाव में इस प्रस्ताव को उस वक्त खारिज कर दिया गया था, लेकिन विशाल बहुमत से दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार ने सीआइएल को पांच इकाइयों में बांटने की घोषणा फिर कर दी है. इसकी चार सबसे बड़ी उत्पादक इकाइयों (महानदी कोलफील्ड्स, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स, नार्दर्न कोलफील्ड्स तथा सेंट्रल कोलफील्ड्स) और उसकी एक अन्वेषण शाखा – सीएमपीडी – को कोल इंडिया लिमिटेड से हटा कर अलग-अलग कंपनियां बना दी जाएंगी ‘प्रतियोगिता’ बढ़ाने के नाम पर ऐसा किया जा रहा है, जबकि ‘महारत्न’ कंपनी के बतौर सीआइएल उत्कृष्ट काम कर रही है. यह सरकार इसी किस्म के गलत तर्कों का सहारा लेकर भारतीय रेल का निजीकरण कर रही है और प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों के शेयर बेच रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, जिन्होंने काॅरपोरेटों के दबाव से सामने झुकते हुए उन्हें टैक्स रियायतें दी हैं, ने बजट पेश करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों के विनिवेशीकरण के जरिये 1050 अरब रुपये उगाहने की घोषणा कर दी है.
ऐक्टू की दिल्ली सचिव श्वेता राज ने कहा, “जहां ये कंपनियां सरकार को लाभांश और राजस्व देती हैं, वहीं सरकार भारी भरकम सरकारी बजट के साथ ‘हाउडी मोदी’ जैसे लोकप्रियता बटोरने वाले कार्यक्रम आयोजित करवा रही है, जिसमें सार्वजनिक धन की भारी बर्बादी होती है. मोदी को आर्थिक मंदी, सांप्रदायिक हिंसा और लिंचिंग पर कुछ नहीं कहना है, बस उन्हें तो करदाताओं के पैसों पर ऐसे ही कार्यक्रम करवाने हैं. सरकारी नीतियों के चलते सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां चौपट हुई जा रही हैं. यह सरकार काॅरपोरेटों के द्वारा, काॅरपोरेटों की और काॅरपोरेटों के लिए ही है. वह आम जनता के कल्याण की कीमत पर निजी कंपनियों के हाथों बेशकीमती संसाधनों को बेच रही है. सीआइएल और अन्य सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां लाखों लोगों को रोजगार देती हैं. जब इनका निजीकरण होगा, तो ये अवसर खत्म हो जाएंगे. निजी कंपनियों के अंतर्गत रोजगार में कोई आरक्षण भी नहीं मिलेगा.”
श्वेता ने आगे कहा कि लगातार राष्ट्रवाद की चीख-पुकार मचाने वाली मोदी सरकार दरअसल ‘राष्ट्र’ को बेच रही है. विभिन्न टेªड यूनियनों के अन्य नेताओं ने भी कहा कि कोयला क्षेत्र की एक-दिवसीय हड़ताल (24 सितंबर 20190 तो महज एक शुरूआत है, जिसमें लगभग सवा दो लाख कोयला मजदूरों ने शिरकत की थी. देश का मजदूर वर्ग इस सरकार की जन-विरोधी नीतियों का प्रतिरोध करने के लिए संकल्पब) है.