महात्मा गांधी की शहादत की 74वीं बरसी पर अरवल में इतिहास एक बार फिर उठ खड़ा हुआ1930 के दशक में उभरे राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बिहार के ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर पुस्तकालयों-वाचनालयों का निर्माण हुआ था, जो जल्द ही स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र बन गए थे. इसी कड़ी में अरवल (पुराना गया जिला) में 1933 में फ्रेंड नेशनल लाइब्रेरी का गठन हुआ. इस लाइब्रेरी को भी युवाओं की गतिविधियों का केंद्र बनते देर नहीं लगा. 1939 में महात्मा गांधी ने यहां का दौरा किया था और उनकी शहादत के बाद इसका नाम गांधी पुस्तकालय रखा गया. यह पुस्तकालय 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का गवाह रहा है. उस आंदोलन के दौरान शहीद हुए खाखू पासवान की 95 वर्षीय विधवा धनवाकुंवर अभी भी जीवित हैं. 30 जनवरी को माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य ने अन्य शहीद परिजनों के साथ जब उन्हें सम्मानित किया, तब सचमुच इतिहास जिंदा हो गया. 1942 में पुस्तकालय के ही आसपास के ग्यारह लोग शहीद हुए थे – केश्वर राम, रामकृत सिंह, खाखू पासवान, मुगल गोप, जयजय राम सिंह, जयराम साव, कन्हाई साव, हरमोहन भगत पासवान, भीम पासवान, सुचित यादव, इंद्रदेव सिंह. उनमें से कई पुस्तकालय के नियमित आगंतुक थे.
इस पुस्तकालय की कहानी यहीं नहीं रूकती. दुर्भाग्य से यह वही पुस्तकालय है जहां 19 अप्रैल 1986 को जालियांवाला बाग की तर्ज पर एक बर्बर किस्म का पुलिस जनसंहार रचाया गया, जिसके बाद अरवल विश्व स्तर पर चर्चित हुआ था. गरीबों को अपने आंदोलन की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. निहत्थे भूमिहीन मजदूरों की शांतिपूर्ण बैठक पर पुलिस ने गोलियां चलाई. 23 लोग मारे गए – चंदेश्वर राम, अशरफ मियां, राजेंद्र साव, अनिल राम, जयेंद्र रविदास, करीमन रविदास, प्रेमन रविदास, श्रीवंश पंडित, बंगाली रविदास, पखोरा रविदास, चंद्रमा पासवान, रामदेव यादव, विजेंद्र साव, पप्पू रविदास, बालकेसिया देवी, गंगा मांझी, मनमती देवी, सजीवन मोची की बेटी के रूप में पहचानी गई एक लड़की और तीन अज्ञात व्यक्ति.
इस घटना के बाद जहानाबाद जिला अस्तित्व में आया और फिर 2000 में अरवल जिले तो बनते गए, लेकिन पुस्तकालय की सुध-बुध लेने वाला कोई नहीं था. जीर्ण-शीर्ण हालत में इस पुस्तकालय को सरकार ने पूरी तरह उपेक्षित छोड़ रखा था. 2020 के विधानसभा चुनाव में, भाकपा(माले) के कॉमरेड महानंद अरवल से विधायक हुए और सोन के उस पार तरारी से कामरेड सुदामा प्रसाद फिर से निर्वाचित हुए. कॉ. सुदामा प्रसाद बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष चुने गए. समिति द्वारा बिहार में परित्यक्त और जीर्ण-शीर्ण पड़े सार्वजनिक पुस्तकालयों का नवीनीकरण का काम हाथ में लिया गया. अरवल के गांधी पुस्तकालय के जीर्णोद्धार का एजेंडा भी इसी की एक कड़ी के रूप में सामने आया.
स्थानीय विधायक की पहलकदमी और आजादी के 75 साल : जन अभियान के बैनर से गांधी पुस्तकालय के जीर्णोद्धार, गांधी मूर्ति और 1942 व 1986 के शहीदों की याद में स्मारक का निर्माण का कार्यभार अरवल की जनता ने अपने कंधों पर लिया. 30 जनवरी को उसी अभियान के तहत यह कार्यक्रम लागू हुआ. माले महासचिव के हाथों से लोकार्पण का काम संपन्न हुआ.
पुस्तकालय समिति के अधयक्ष सुदामा प्रसाद ने कहा कि गांधी पुस्तकालय सहित सभी पुस्तकालयों का जीर्णोद्धार की आवश्यकता है. सभा को कमलेश शर्मा, पालीगंज विधायक संदीप सौरभ, घोषी विधायक रामबलि सिंह यादव, जहानाबाद विधायक सुदय यादव, पेंशनर समाज के जयप्रकाश सिन्हा, राजद के रामईश्वर चौधरी, सीपीआई के दीनानाथ सिंह आदि ने भी संबोधित किया. इन लोगों के अलावा कार्यक्रम में कॉ. संतोष सहर, संपादक, लोकयुद्ध और जन अभियान समिति के सदस्य निसार अख्तर अंसारी, श्री एसएन चौधारी, श्री सुरेन्द्र प्रसाद, श्री रामउदय उपाध्याय, जयप्रकाश जी, रामचंद्र पाठक, डॉ. रामाधार सिंह, उपेन्द्र पासवान, रविन्द्र यादव, त्रिभुवन शर्मा आदि शामिल हुए. मंच का संचालन स्थानीय विधायक महानंद सिंह ने किया, जबकि प्रस्ताव का पाठ कॉ. कुमार परवेज ने किया.
1. महात्मा गांधी के विचारों व आजादी के मूल्यों पर लगातार हो रहे हमले के खिलाफ देश की आजादी, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद सरीखे मूल्यों को बचाने का संकल्प लेते हैं.
2. कार्यक्रम से हम बिहार सरकार से मांग करते हैं कि 1857 के नायक बाबू जीवधर सिंह के नाम पर अरवल बस स्टैंड का नामकरण किया जाए. जनकपुर धाम में अमरूद्दीन व गुलाब खां के नाम पर पार्क निर्माण किया जाए.
3. जनता की पहलकदमी से बाबू जीवधर सिंह के गांव खमैनी में स्वतंत्रता आंदोलन के तमाम शहीदों के नाम पार्क निर्माण किया जाए. 10 मई 1857 को पहले स्वतंत्रता संग्राम का आगाज हुआ था. अतः खमैनी में पार्क निर्माण का कार्यक्रम 10 मई को किया जाए.
4. अरवल में 1942 के शहीदों की याद में उन गलियों का नामकरण किया जाए, जिस गली में उनका घर था और उनके परिजनों को उचित सम्मान दिया जाए. पुस्तकालय के जीर्णोद्धार हेतु सतत संघर्ष करने वाले दूधेश्वर सिंह के परिजन अवकाशप्राप्त प्रधानाध्यापक श्री राजेश्वर उपाध्याय को भी सम्मानित किया गया.