वर्ष - 30
अंक - 52
25-12-2021

सिंघना (औरंगाबाद, बिहार) की घटना सुशासन सरकार के मुंह पर करारा तमाचा

अम्बा/कुटुंबा प्रखंड के डुमरी पंचायत के मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ने वाले सिंघना गांव निवासी बलवंत कुमार सिंह ने, जिनका चुनाव चिन्ह बैगन छाप था, खरांटी गांव के चार महादलित नौजवानों को पैसा लेने के बाद वोट नहीं देने के आरोप में न केवल आधे घंटे तक उठक-बैठक कराया, बल्कि थूक गिरा कर चटवाने का घृणित काम भी किया. यह घटना उस समय घटी जब पूरा विश्व मानवाधिकार दिवस मना रहा था. उस दिन (10 दिसम्बर 2021 को) अहले सुबह करीब 7-8 बजे ‘दास प्रथा’ एवं ‘सामंती युग’ में दी जाने वाली सजा और जुल्म-अत्याचार का यह नमूना पेश किया जा रहा था. यह सब सुशासन की सरकार में, जिसको महादलितों से लेकर वैसे बाबू लोगों तक का जिनके द्वारा महादलितों पर जुल्म अत्याचार किए जा रहे हैं, समर्थन हासिल है. गौर तलब है कि नीतीश कुमार के सामाजिक मैनेजमेंट में महादलित व अति पिछड़ा भी शामिल तो हैं लेकिन मान-सम्मान औरसत्ता का कोई भी अवसर उनके पास तक नहीं फटक रहा है. उनके सामाजिक न्याय की जो बनावट है उसमें सामंती उत्पीड़न विभिन्न तरीकों से आज भी बदस्तूर जारी है.

क्या बलवंत सिंह सामाजिक स्तर पर समकक्ष लोगों के साथ चुनाव में दिये गये पैसे के एवज में वोट नहीं देने की आशंका के आधार पर ऐसी घटना कर सकते थे?

महादलित मुसहर जाति के लोगों के साथ की गई इस घिनौनी व बर्बर घटना को अंजाम देने वाले बलवंत सिंह को न तो कानून का खाफै था, और न हीं सुशासन का भय. संविधान के अधिकारों की धज्जियां उड़ाना तो इन लोगों के लिए आम बात है. वे अपने को दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति समझते हैं जिन्हें लोगों पर जुल्म-अत्याचार करने से लेकर गाली-गलौज, मार-काट के अलावे न जाने कैसी-कैसी डत्पीड़न की घटनाओं को अंजाम देने का जन्म सिद्ध अधिकार हासिल है. तभी तो वे बेखौफ होकर इस तरह की घटना को अंजाम दे सके.

दरअसल ऐसे दबंगों को बहुत पहले से सत्ता का संरक्षण मिलता रहा है. इसलिए उनका मनोबल बढ़ना लाजिमी है. नीतीश राज में तो यह संदेश सत्ता के द्वारा दिया जा चुका है. लिहाजा, इन लोगों के द्वारा किसी भी तरह का जुल्म-अत्याचार करने की कोई सजा नहीं मिलेगी, यह इन्हें पूरी तरह से मालूम है. इसलिए न केवल वे बेखौफ होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं बल्कि उनका विडियो बनाकर अपनी क्रूरता का संदेश गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों को देते रहते हैं. मॉब लिन्चिंग की ऐसी अनगिनत घटनायें हमारे सामने हैं.

बाथे, बथानी, शंकर बिगहा, मियांपुर से लेकर अभी तक जितने भी बड़े बड़े गरीबों के जनसंहार हुए सारे के सारे हत्यारे बाइज्जत बरी कर दिए गए. नीतीश सरकार के राज में एक भी वैसे हत्याकांड के हत्यारों को सजा दिलाना संभव नहीं हुआ तो इस तरह थूक चटाने व उठक-बैठक कराने वालों को यह सरकार कौन सी सजा देगी!

इनका मनोबल इतना बढ़ गया है कि वे चुनाव हार जायें तो हत्या करना शुरू कर कर देते हैं. असहमति के विचार वालों पर हमला करनेवाली ताकतें भी वहीं हैं जो दलित-गरीबों की उठती आवाजों को दबाने में लगी रहती हैं और उनका नेतृत्व करनेवालों पर हमले करती हैं. भाजपा के उन्मादी विचारधारा के तहत असहमति के विचारों, नागरिक अधिकारों, संविधान, लोकतंत्र पर हमले बदस्तूर जारी है.

10 दिसम्बर 2021 की घटना

डुमरी पंचायत के सिंघना गांव निवासी बलवंत कुमार सिंह ने खरांटी गांव के 4 मुसहर जाति के नौजवानों को फोन पर खबर देकर बगल के गांव फैजा बीघा में बुलाया. वे मुखिया पद के उम्मीदवार थे. उनके वोटों की गिनती भी अभी नहीं हुई थी. लेकिन उनको यह एहसास हो गया था कि उनकी जीत पक्की नहीं है. वोटों की गिनती के पहले ही उन्होंने वोट नहीं देने का आरोप लगाते हुए उन नौजवानों के साथ मार-पीट शुरू कर दी. यह सब चुनाव में किए गए खर्च को वसूलने के लिए किया गया.

जिन नौजवानों के साथ यह किया गया वे हैं – (1) मंजीत भुइंया (18 वर्ष) पिता - रामसूरत भुइंया, (2) अनिल भुइंया (35 वर्ष) पिता - शिवरतन भुइंया, (3) कमलेश भुइंया (25 वर्ष) पिता - राम सेवक भुइंया (4) अरविंद भुइंया (18 वर्ष) पिता - सतेंद्र भुइंया. इन सबको बलवंत सिंह ने आधे घंटे से भी ज्यादा समय तक उठक-बैठक करवाया और मंजीत भुइंया को थूक तक चटवाया. उनके वोट भी ले लिये और उनको चुनाव में वोट डालने की एवज में जो रुपये दिये थे वे वसूल भी कर लिए. सभी पीड़ित लोगों ने जांच टीम को बताया कि यह उनके लिए बहुत ही पीड़ादायक है.

मंजीत व अनिल ने जांच टीम के सामने अपनी आपबीती बयान की. भारी संख्या में आये खरांटी गांव के गरीबों ने बलवंत सिंह द्वारा किए गए अत्याचार का वाकया बताया.

उनलोगों ने बताया कि उनको बलवंत सिंह के द्वारा तीन-तीन हजार रुपए चुनाव में खर्च के लिए दिए गए थे. चारो लोग बलवंत सिंह को ही वोट भी दिए थे. जब बलवंत सिंह ने बगल के गांव बैजा बिगहा में बुलाने के बाद पिटाई व उठक-बैठक करवाने के जरिए उन पर दबाव बनाया तब भी इन चारों – अनिल, मंजीत, अरविंद एवं कमलेश भुइंया ने जोर देकर कहा कि अभी तो गिनती शुरू भी नहीं हुई है तो उनपर वोट नहीं देने का आरोप कैसे लग सकता है. उनके वार्ड से उनलोगों का वोट नहीं निकलेगा तब न कोई कार्रवाई होगी. लेकिन उसने एक नहीं मानी.

केंद्र व राज्य सरकारें आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव मना रही है. लेकिन औरंगाबाद जिले के सुदूर इलाके के गांवों में बरीबों को न तो कोई सरकारी सुविधा हासिल है और न ही सामाजिक सुरक्षा. इस घटना से सरकार सबक नहीं लेती है तो विकास व सामाजिक सुरक्षा की बात केवल कागज पर रह जायेगी.

खरांटी गांव के गरीबों की स्थिति

खंराटी गांव में 40 से 45 घर मुसहर, 20 से 25 घर रविदास, 4 घर पासवान और 7 घर पासी जाति के परिवार रहते हैं. रविदास टोला थोड़ा-सा अलग है. शेष एक ही जगह बसे हैं. दलित परिवारों में शादी होते ही परिवार अलग-अलग रहने लगते हैं. लिहाजा, कई वैसे परिवार हैं जिन्हें मां-बाप के नाम पर बने अधूरे पक्के मकान मिले. राशन कार्ड में उनकी हिस्सेदारी नहीं होती है और उस गांव के कई परिवारों को पक्का मकान व राशन कार्ड उपलब्ध नहीं है. वैसे बुजुर्ग महिला-पुरुष भी मिले जिनके अंगुलियों की रेखा घिस जाने के कारण उन्हें भी राशन नहीं मिलता है. कुल मिलाकर इस गांव में सभी परिवारों को पक्का मकान तो नहीं ही है, राशन भी नहीं मिलता है. ज्यादातर पक्के मकान डोर लेवल तक ही बने हैं जिनपर वे करकट से छत बना कर रहने को विवश हैं.

गांव के गरीब टोलों में एक भी घर में शौचालय निर्माण नही हुआ है. लेकिन सरकार ने तो सभी पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया है. यानि कागज पर शौचालय निर्माण हुए और कागज पर ही ओडीएफ भी घोषित कर दिया गया. यही हाल नल-जल का है. एक भी नल चालू नहीं देखा गया.

आजादी के 75 साल के बाद भी सुलभ शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गई. गांव में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं है. बच्चों को खरांटी गांव से करीब 3 से 4 किलोमीटर दूर बैजा बिगहा पढ़ने जाना पड़ता है. दूर होने के कारण ज्यादातर बच्चे विद्यालय जाते ही नहीं. लिहाजा, गांव में पढ़ाई का कोई माहौल नहीं है. अनपढों की संख्या ज्यादा है और नई पीढ़ी के लिए भी कोई उम्मीद नहीं दिखती है.

एक खंडहर नुमा आंगनबाड़ी केंद्र है, जिसमें एक भी किवाड़ नहीं है और न ही बच्चों की पढ़ाई होती है. बच्चों को पोषक आहार शायद ही मिलता है. गांव के लोगों ने बताया कि कुछ भी नहीं मिलता है. कहने को तो सरकार के द्वारा सभी गरीबों को सरकार संचालित लोक कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिल रहा है लेकिन जमीनी हकीकत से इससे कोसों दूर है.

जांच टीम की मांग

1) बलवंत सिंह को कड़ी सजा मिले,
2) पीड़ित परिवार को 2-2 लाख मुआवजा दिया जाए. सभी परिवारों को सुरक्षा की गारंटी की जाए. सरकार ने पीड़ितों के लिए 50-50 हजार रुपये देने की घोषणा की हैजो अभी तक न तो उनके खातों में आया है और न ही उन्हें कोई चेक ही दिया गया है. इसलिए उन्हें तुरन्त 50 हजार रुपये दिये जाएं,
3) गांव में सभी गरीब परिवारों का पक्का मकान बनवाया जाए और सभी परिवारों के लिए राशन कार्ड बनवाया जाए, जिन बुजुर्गों के अंगुलियों की रेखाएं घिस गई है उन्हें भी राशन की गारंटी की जाए.
4) बच्चों को खरांटी से 3 से 4 किलोमीटर दूर के स्कूल जाना पड़ता है. गांव में प्राथमिक विद्यालय बनवाया जाए.

भाकपा(माले) के पोलित ब्यूरो सदस्य का. अमर के नेतृत्व में राज्य स्तरीय जांच टीम जिसमें माले राज्य स्थाई समिति के सदस्य और अरवल के विधायक का. महानन्द, औरंगाबाद के भाकपा(माले) जिला सचिव का. मुनारिक राम, खेग्रामस के कार्यकारी राज्य अध्यक्ष का. उपेंद्र पासवान, राजकुमार, बिरजू व चंद्रमा समेत भाकपा(माले) के कई वरिष्ठ नेताओं की टीम डुमरी पंचायत के खरांटी गांव पहुंची जांच टीम ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और पूरे गांव के लोगों से पूरी घटना की जानकारी ली. जांच दल ने इन मांगों पर आंदोलन तेज करने और गरीबों को संगठित करने का आह्वान किया है.