वर्ष - 30
अंक - 45
06-11-2021


उत्तर प्रदेश के जलालपुर (जिला सीतापुर, ब्लाॅक  बिस्वां) के रहने वाले 26 वर्षीय रूपेश कुमार प्रजापति की बीते 25 अक्टूबर को जिला कारागार में  मौत हो गई थी. रूपेश की ढाई महीने पहले एक डकैती के मामले में गिरफ्तारी हुई थी. कारागार प्रशासन द्वारा रूपेश की मौत को आत्महत्या करार दिया गया था जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इस दावे को झूठा साबित कर दिया. पोस्टमार्टम के बाद नया मोड़ आ गया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसका सिर फटा हुआ और पैरों पर लाठियों से पिटाई के निशान मिले हैं. वह इशारा करती है कि उसकी मौत पिटाई से हुई और बाद में उसका शव फंदे से लटका दिया गया. डाॅक्टरों के एक पैनल ने वीडियोग्राफी के साथ शव का पोस्टमार्टम किया.

तीन सदस्यीय जांच टीम, जिसमें अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य कमेटी सदस्य का. संतराम, छावन ब्रांच के पार्टी सचिव का. रामदास और भाकपा(माले) कार्यकर्ता और उत्तर प्रदेश आशा कार्यकर्ता यूनियन की लखनऊ जिला संयोजिका सरोजिनी बिष्ट शामिल थीं, रूपेश के परिवार से मिलने जलालपुर पहुंची.

मृतक रूपेश के भाई राकेश ने बताया कि रूपेश पिछले आठ सालों से गाड़ी चलाने का काम करता था. विगत 2 अक्टूबर को भी वह चार-पांच सवारियां लेकर लखनऊ के लिए निकला था. वे लोग आपराधिक प्रवृति के थे और डकैती के इरादे से लखनऊ के लिए निकले थे. इस बात से रूपेश एकदम अनजान था. राकेश के मुताबिक जहां डकैती की गई उससे दस किलोमीटर दूर ही उन्होंने रूपेश की गाड़ी छोड़ दी और उससे इंतजार करने को कहा. सीसीटीवी कैमरे के कारण गाड़ी चिन्हित हुई लेकिन तलाशी में उसके घर से कोई पैसा बरामद नहीं हुआ. जबकि वहीं पकड़े गए अन्य लोगों के घर से पुलिस ने डकैती की रकम बरामद की. इसके बावजूद पुलिस ने रूपेश को गिरफ्तार किया.

राकेश ने बताया कि 26 अगस्त की सुबह उन्हें रूपेश की आत्महत्या की खबर मिली. उससे एक दिन पहले ही उससे फोन पर बात हुई थी. वह बहुत परेशान था और कह रहा था कि उसे यहां बहुत प्रताड़ित किया जा रहा है. जितनी जल्दी हो सके उसे यहां से निकाल लो.

परिवार का आरोप है कि शक तो उन्हें पहले ही था कि रूपेश आत्महत्या नहीं कर सकता लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने यह पक्का कर दिया कि उसे मारा गया है. इसमें उसके साथ बन्द अन्य बंदियों के साथ कारागार प्रशासन के लोग भी शामिल हैं. राकेश ने बताया कि जो गमछा उन्हें यह कह कर दिखाया गया कि इसी से रूपेश ने फांसी लगाई है, वह तो कभी रुपेश के पास था ही नहीं. परिवार का आरोप है कि जिस दिन वे लोग और रिश्तेदार रूपेश का शव लेने जिला कारागार गए, उस दिन भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया. शव को भी देखने नहीं दिया गया और उल्टे धमकाया गया कि यदि यहां से चले नहीं जाओगे तो सबके खिलाफ एफआइआर दर्ज कर दी जाएगी.

मुकेश एक गरीब परिवार का बेटा था. उसके पिता मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं, बड़े भाई राकेश रोजगार सेवक हैं जबकि दूसरे भाई पुष्कर खेती-बाड़ी का काम करते हैं. रुपेश और उनके बड़े भाई राकेश ही कमाने वाले थे. 2 साल पहले ही रुपेश की शादी हुई थी.