2 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटा द्वारा गाड़ी से रौंदे डालने और गोली चलाने से 4 किसानों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और दर्जनों किसान घायल हो गए.
अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, ऐपवा की प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी, अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी, भाकपा(माले) की स्टेट स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य ओमप्रकाश सिंह व अफरोज आलम एवं राज्य कमेटी सदस्य राजेश साहनी के नेतृत्व में भाकपा(माले) की उत्तर प्रदेश इकाई की एक छह सदस्यीय टीम ने घटना के तुरंत बाद 03 अक्टूबर 2021 को ही लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया का दौरा किया. जिला अस्पताल लखीमपुर में भर्ती किसान नेता तेजिन्दर सिंह विर्क एवं अन्य घायल किसानों से मिलने के बाद टीम घटनास्थल पर पहुंची, जहां शहीद किसानों के पार्थिव शरीर रखे हुए थे और प्रतिवाद चल रहा था. टीम ने शहीद किसानों को श्रद्धांजलि दी, वहां मौजूद उनके परिजनों, आंदोलनरत किसानों व स्थानीय निवासियों से बातचीत कर घटना की जानकारी ली.
शहीद किसानों के परिजनों, आंदोलनरत किसानों एवं स्थानीय निवासियों ने बताया कि उस दिन (03 अक्टूबर 2021) को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य एवं केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री व लखीमपुर खीरी सांसद अजय कुमार मिश्र टेनी का एक कार्यक्रम लखीमपुर में था. कार्यक्रम के उपरांत केशव मौर्य को अजय कुमार मिश्र टेनी के पैतृक निवास लखीमपुर खीरी के तिकोनिया जाना था. उक्त कार्यक्रम की जानकारी होने के बाद ही किसानों ने तय किया था कि गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र टेनी के किसानों के विरुद्ध दिए गए बयान को लेकर उनका विरोध किया जाएगा और काला झंडा दिखाया जाएगा. उल्लेखनीय है कि 25 सितंबर को पूर्व गृह राज्य मंत्री ने किसानों के विरुद्ध बयान जारी करते हुए धमकी भरे अंदाज में कहा था – ‘10 या 15 आदमी वहां बैठे हैं, अगर हम उधर भी जाते हैं तो भागने के लिए रास्ता नहीं मिलता.’ उन्होंने कहा था – ‘हम आप को सुधार देंगे, 2 मिनट के अंदर. मैं केवल मंत्री नहीं हूं, सांसद विधायक नहीं हूं. सांसद बनने से पहले जो मेरे विषय में जानते होंगे, उनको यह भी मालूम होगा कि मैं किसी चुनौती से भागता नहीं हूं और जिस दिन मैंने उस चुनौती को स्वीकार करके काम करना शुरू कर दिया उस दिन पलिया नहीं लखीमपुर तक छोड़ना पड़ जाएगा. यह याद रखना...’
धमकी भरे भाषण के लिए उन पर मुकदमा दर्ज करने और उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग किसान संगठन लगातार कर रहे थे. 27 सितंबर को भारत बंद के मौके पर अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर तले एपवा नेत्री कामरेड कृष्णा अधिकारी, किसान महासभा के नेता कमलेश राय व आरती राय के नेतृत्व में पलिया में किसानों का एक बड़ा मार्च हुआ. इस मार्च में बीकेयू और भारतीय मजदूर किसान संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल थे. इसमें मुख्य मांग किसानों को धमकाने वाले गृह राज्य मंत्री पर मुकदमा दर्ज करने और उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की ही थी. किसानों व स्थानीय निवासियों का कहना था कि अजय कुमार मिश्र टेनी, जिनका आपराधिक इतिहास है और जिनके खिलाफ एक अन्य हत्याकांड में शामिल रहने का मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है, ने किसानों को सबक सिखाने की ठान ली थी और उक्त हत्याकांड उसी योजना के तहत रचाया गया.
किसानों के एक बड़े हुजूम ने लखीमपुर-खीरी के तिकोनिया स्थित हेलीपैड के पास इकट्ठा होकर उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य एवं केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री को काला झंडा दिखाकर विरोध करने का निर्णय लिया. हालांकि उपमुख्यमंत्री ने अपना रास्ता बदल लिया और इस तरह किसानों का उस दिन का प्रतिवाद सम्पन्न हो चला था कि आगे-पीछे चल रही तीन गाड़ियों के काफिले ने, जिसमें केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्र टेनी के लड़के आशीष मिश्र उर्फ मोनू के साथ बड़ी संख्या में हथियारबंद गुंडे भरे हुए थे, एकाएक पीछे से, वहां उपस्थित किसान नेता तेजिन्दर सिंह विर्क एवं किसानों की भीड़ पर गाड़ियां चढ़ा दी और तमाम किसानों को बुरी तरह रौंद दिया. तेजिन्दर सिंह विर्क समेत एक दर्जन से अधिक किसान गंभीर रूप से घायल हो गए. एक युवा किसान गुरविंदर ने हमलावरों में से एक को कमर से पकड़ लिया जिसकी वजह से आशीष मिश्र उर्फ मोनू ने उन्हें सिर में गोली मार दी. कुल चार किसान मारे गए जिनमें तीन की मौत गाड़ी से कुचलने व एक की मौत गोली लगने से हुई. टीम के सदस्यों ने भी मृतक गुरविंदर की दाहिनी कनपटी पर गोली के निशान को देखा. किसानों व स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि किसानों ने जब हमलावरों को घेरना चाहा तो भागने की कोशिश में उनकी गाड़ी पलट गई. गाड़ी पलटने से घायल तीन गुंडों – शुभम मिश्रा, हरिओम मिश्रा व श्यामसुंदर निषाद को पकड़ कर किसानों ने पुलिस के हवाले कर दिया. बाद में पता चला कि उनकी भी मौत हो गई है. इसके अतिरिक्त इस जघन्य हत्याकांड में मंत्री पुत्र की गाड़ी के नीचे दब कर निघासन निवासी एक स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हो गई थी.
टीम से जुड़े तीन नेता ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा, कृष्णा अधिकारी एवं श्रीराम चौधरी घटनास्थल पर रुक कर जारी प्रतिवाद प्रदर्शन को संगठित करते रहे. उन्होंने केन्द्रीय राज्य मंत्री और उनके बेटे पर धारा 302 व 120 (बी) के तहत मुकदमा दर्ज करने, एक सप्ताह के अंदर उनकी गिरफ्तारी, सभी शहीद किसान परिवारों को 45 लाख रुपए और गंभीर घायलों को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने, शहीद परिवार में एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग उठायी.
घटना से आक्रोशित किसानों ने शहीद किसानों के शवों को लेकर धरना दे दिया था. पूरे क्षेत्र के साथ ही लखनऊ मंडल, बरेली मंडल की तराई और उत्तराखंड की तराई से किसान घटना स्थल की ओर चल पड़े. रात तक ही हजारों किसानों का जमावड़ा तिकोनिया में हो चुका था. आक्रोशित किसानों की मांग केन्द्रीय राज्य मंत्री व उनके पुत्र पर हत्या और हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री की बर्खास्तगी, शहीद हुए किसानों और घायलों को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी थी. आंदोलन के दबाव में प्रशासन द्वारा उनकी मांगों को पूरा करने की घोषणा करनी पड़ी. उसके बाद ही शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया और किसानों ने सड़क जाम हटाया. इसके बाद ही जांच टीम वहां से वापस लौटी.
अब यह भी सामने आ गया है कि इस हत्यारे काफिले का नेतृत्व कर रही गाड़ी खुद केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के नाम पर है जिसे उनका बेटा आशीष मिश्रा इस्तेमाल करता है. उस गाड़ी में बैठे कुछ लोगों की तस्वीरें भी सामने आ गई हैं जिनकी पहचान जांच की आधुनिक तकनीक से संभव है और उनसे पूछताछ कर इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले सभी हत्यारों तक पहुंचा जा सकता है. इस घटना के दिन और समय पर अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा की मोबाइल फोन की लोकेशन और बातचीत का रिकार्ड भी इस जघन्य हत्याकांड में उनकी भूमिका को साफ कर देगा. कई चश्मदीद गवाह टीवी चैनलों और मीडिया को घटना का आंखों देखा हाल बता चुके हैं, जिसमें आशीष मिश्रा के नेतृत्व में हत्यारों ने न सिर्फ गाड़ियों से रौंद कर किसानों की जान ली, बल्कि इससे भी जी नहीं भरा तो गोलियां भी चलाई. क्या अब जनांदोलनों से ऐसे ही निपटा जाएगा?
लखीमपुर खीरी का तिकोनिया कांड जन आंदोलनों से निपटने का मोदी सरकार और भाजपा-आरएसएस एक नया माॅडल है जिसे किसान आंदोलन से निपटने के केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सभी फार्मूलों के फेल होने के बाद ईजाद किया गया है. विरोधियों या गवाहों को रास्ते से हटाने के लिए सड़क दुर्घटना के नाम पर उनकी हत्या कर देना आम उदाहरण रहे हैं. इसे हमने उन्नाव बलात्कार कांड में भी देखा है. पर जन आंदोलनों से भी ऐसे निपटा जाएगा, यह कल्पना से भी बाहर की बात थी. दरअसल किसान आंदोलन के बीच में ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में किरन रिजजू की जगह यूपी की तराई से, जहां आंदोलनरत सिख किसानों की बहुतायत है, अजय मिश्रा को गृह मंत्रालय में लाने के पीछे यह वजह रही होगी कि उनका इस्तेमाल इस आंदोलन से निपटने में किया जा सकता है.
एक साल से अनवरत चल रहे वर्तमान किसान आंदोलन में अब तक लगभग 650 किसानों ने शहादत दी है. ज्यादातर शहादतें बीमार होने, हृदयगति रुकने या दुर्घटनाओं के कारण हुई हैं. 2-4 किसानों की शहादतें सरकार के रुख से आई निराशा के कारण हुई आत्महत्याओं की वजह से भी हैं. सिर्फ दो शहादतें अब तक पुलिस की गोली से हुई हैं – एक 26 जनवरी 2021 को और एक पिछले माह हरियाणा के करनाल में. तिकोनियां कांड की शहादतों ने पूरे देश में किसानों और न्यायपसंद लोगों को झकझोर कर रख दिया है.
दिल्ली से अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुल्दू सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम सिंह गहलावत, राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा और पंजाब किसान यूनियन के कामरेड हैप्पी, सुखविंदर सिंह और रोहित के नेतृत्व में छः सदस्यों की टीम भी पुलिस द्वारा रोकने और भटका देने की कोशिशों को ध्त्ता बताते हुए अगले दिन, 4 अक्टूबर की शाम को वहां पहुंच गई.
उस दिन अखिल भारतीय किसान महासभा समेत संयुक्त किसान मोर्चा के विभिन्न घटक संगठनों की अगुआई में हजारों किसानों ने 3 अक्टूबर की शाम से पूरनपुर चौराहे पर जाम लगा दिया था. कामरेड रुल्दू सिंह मानसा के नेतृत्व में यह टीम जब हम वहां पहुंची तो वहां लगभग एक हजार किसान जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थी, सड़क पर सभा कर रहे थे. कामरेड रुल्दू सिंह मानसा ने यहां किसानों को संबोधित किया. इसके अलावा भी कई जगहों पर किसानों ने जाम लगा रखा था और केवल किसान संगठनों के झंडे लगी गाड़ियों को जगह देकर आगे जाने दे रहे थे.
अखिल भारतीय किसान महासभा, संयुक्त किसान मोर्चा और अन्य संगठनों की द्वारा 4 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध दिवस मनाने के आह्वान की वजह से रास्ते में जगह-जगह जाम में पफंसे होने के कारण जांच दल दो बजे खुटार पहुंचा. इस बीच किसानों के साथ प्रशासन का समझौता हो चुका था. जांच टीम ने घटना स्थल तक जाने और किसी एक शहीद किसान की अंत्येष्टि में शामिल होकर ही लौटने का फैसला लिया. निघासन पहुंचने से पहले ही तिकोनियां से लौट रहे किसानों के वाहनों का काफिला मिलने लगा जो लगभग 40 किलोमीटर तक वैसे ही बढ़ता गया. तिकोनिया में पलिया तहसील के युवा किसान नेताओं अजय और लक्ष्मी नारायण के नेतृत्व में युवाओं की टीम जांच दल का इंतजार कर रही थी. जांच दल ने पलिया और निघासन के बीच जानकी नगर में एक किसान मोहन सिंह के फार्म में रात्रि विश्राम किया. मोहन सिंह शहीद लवप्रीत के दूर के रिस्तेदार भी निकले, जिसकी अंत्येष्टि में 5 अक्टूबर को टीम को रहना था. इस बीच मोहन सिंह के पास किसी रिश्तेदार का फोन आया कि प्रशासन लवप्रीत सिंह की अंत्येष्टि अभी रात में ही करने का दबाव दे रहा है. जानकारी मिलते ही कामरेड रुल्दू सिंह मानसा ने उनके रिश्तेदार और ग्राम प्रधान (सरपंच या मुखिया) से बात कर अंत्येष्टि कार्यक्रम को तत्काल रोकने को कहा. जांच टीम ने जिले के एसपी और डीएम को फोन कर रात में जबरन अंत्येष्टि कराने पर दूसरे दिन बड़े आंदोलन की चेतावनी दी. इस हस्तक्षेप के कारण रिश्तेदारों पर प्रशासन का दबाव भी कम हो गया और उन्होंने रात में होनेवाली अंत्येष्टि टाल दी.
जांच टीम सुबह 8 बजे से पहले ही चौखड़ा फार्म स्थित शहीद लवप्रीत के घर पहुंच गई. उनके घर के पास तब तक भारी पुलिस फोर्स की तैनाती हो चुकी थी. उस वक्त कम ही लोग उनके घर पर थे. जांच टीम ने लवप्रीत के पिता, ताऊ आदि परिवार जनों से बातचीत की. उनके रिश्तेदारों ने माना कि जांच टीम के हस्तक्षेप की वजह से ही प्रशासन का दबाव टला और रात रात के अंधेरे में ही शहीद की अंत्येष्टि संपन्न कराने की साजिश विफल हो गई. यह पता चला कि परिजनों को न तो एफआईआर की काॅपी व पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली है और न ही मुआवजा मिला है? कामरेड रुल्दू सिंह मानसा ने परिजनों से एफआईआर की काॅपी व पोस्टमार्टम रिपोर्ट की मांग करने और उन्हें देखकर संतुष्ट होने के बाद ही अंत्येष्टि करने का सुझाव देते हुए कहा कि अगर हमने पहले अंत्येष्टि कर दी और बाद में पता चला कि एफआईआर व पोस्टमार्टम रिपोर्ट ठीक नहीं है तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे. इसके बाद वे उनके साथ वहीं पर धरना देकर बैठ गए और परिवार ने प्रशासन के सामने यह मांग रख दी.
अब प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे. एसडीएम पलिया तत्काल मौके पर पहुंचे और एफआईआर की काॅपी व पोस्टमार्टम रिपोर्ट बाद में ले आने का वायदा करने लगे. यह सुन कर परिवार ने अंत्येष्टि करने से मना कर दिया. जिलाधिकारी और एसपी भी परिजनों को मनाने पहुंचे लेकिन बात नहीं बनी. इस बीच किसान नेता वीएम सिंह व तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद दोला सेन के नेतृत्व में तृणमूल के तीन सांसदों का दल भी परिवार से मिल कर गया. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता भानु प्रताप सिंह के साथ ही जिले के तमाम किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी वहां पहुंच रहे थे. एक बार फिर से जिलाधिकारी व एसपी पहुंचे पर बात फिर भी नहीं बनी.
लगभग दो बजे वहां पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत और सुरेश कौथ ने बताया कि एफआईआर की काॅपी व पोस्टमार्टम रिपोर्ट की मांग पर बाकी तीन शहीद किसानों की अंत्येेष्टि भी रोकी गई है. अंत में शाम के तीन बजे जिलाधिकारी खीरी एफआईआर की काॅपी व पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेकर आए. वरिष्ठ अधिवक्ता भानु प्रताप सिंह ने इन दस्तावेजों की जांच की. उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से एफआईआर और तीन शहीदों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ठीक है, किन्तु जिस शहीद की मौत गोली लगने से हुई है, उसके पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गोली लगने का जिक्र नहीं है. चौथे शहीद का फिर से पोस्टमार्टम कराने का समझौता होने के बाद मौके पर मौजूद किसान नेताओं और परिजनों ने बाकी तीन शहीदों की अंत्येष्टि करने का फैसला लिया और साढ़े तीन बजे शाम को शहीद लवप्रीत को अंतिम विदाई दी गई.
45 लाख का मुआवजा और एक नौकरी शहीद की पूर्ति नहीं कर सकता है, लेकिन उस देश में जहां एक अदने से पुलिस सिपाही के रिश्तेदार के खिलाफ एफआईआर लिखाना मुश्किल काम है, आंदोलन के दबाव में 24 घंटे से भी कम समय में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे के खिलाफ धारा 302 और मंत्री के खिलाफ भी साजिश रचने की धारा 120 (बी) की एफआईआर होना कोई कम जीत नहीं है. करनाल गोलीकांड में हुए समझौते में भी एक एसडीएम और थानेदार पर यही धाराएं लगनी थी, जो अभी तक नहीं लगी हैं. उनकी बर्खास्तगी तो दूर उन्हें निलंबित तक नहीं किया गया है. इस समझौते पर सवाल खड़ने बजाय बात अब आगे की होनी चाहिए. हत्यारे मंत्री पुत्र की गिरफ्तारी और मंत्री की बर्खास्तगी की मांग पर आंदोलन को तेज कर सरकार को चौतरफा घेरने की कोशिश तेज होनी चाहिए.
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1. गुरविंदर सिंह, (उम्र - 19 वर्ष), पिता का नाम – सुखविन्दर सिंह, ग्राम – मोहर्निया , मटेरा, बहराइच
2. दलजीत सिंह (उम्र -35 वर्ष), पिता का नाम – हरी सिंह, ग्राम – बनजारा टांडा, बहराइच
3. नक्षत्र सिंह, (उम्र - 60 वर्ष) पिता का नाम – सुब्बा सिंह, ग्राम – नयापुरवा धौरहरा, लखीमपुर खीरी
4. लवप्रीत सिंह (उम्र - 20 वर्ष), पिता का नाम – सतनाम सिंह, चौखड़ा फार्म, पलियाकलां, लखीमपुर खीरी
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1) 5 अगस्त 1990 को तिकोनिया थाने में अजय मिश्रा के साथ 8 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था. उन पर हथियारों से लैस होकर मारपीट का आरोप लगाया गया था.
2) 8 जुलाई 2000 को प्रभात गुप्ता की हत्या में अजय मिश्रा समेत चार लोग नामजद किए गए थे.
3) 31 अगस्त 2005 को ग्राम प्रधान ने अजय मिश्रा समेत चार लोगों पर घर में घुसकर मारपीट और दंगा फसाद का मुकदमा दर्ज कराया था.
4) 24 नवंबर 2007 को अजय मिश्रा समेत तीन लोगों पर घर में घुसकर मारपीट का चैथा मुकदमा दर्ज हुआ था.
2005 और 2007 के मारपीट के मुकदमों में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भी नामजद था.
अजय मिश्रा पर दर्ज चार गंभीर मुकदमों में सबसे गंभीर मुकदमा प्रभात गुप्ता मर्डर केस का था. हत्या के इस मुकदमे में अजय मिश्रा लोअर कोर्ट से बरी कर दिए गए.
यह क्या महज इत्तेफाक था कि 29 जून 2004 सुनवाई करने वाले जज ने, अजय मिश्रा को हत्या के मुकदमे में बरी किया और 30 जून को उनका रिटायरमेंट हो गया.
परिवार ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर किया है. वर्तमान में अजय मिश्रा हाई कोर्ट से जमानत पर हैं.
12 मार्च 2018 से हाईकोर्ट ने भी इस मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर रखा है. बीते 3 सालों से फैसला सुरक्षित रखने पर हाईकोर्ट डबल बेंच में अपील दायर की है, जिस पर अक्टूबर महीने में सुनवाई होनी है.
लखीमपुर जनसंहार के बाद अजय मिश्रा व उनके बेटे आशीष मिश्रा पर एक और मुकदमा दर्ज किया गया है.