मोदी सरकार द्वारा संविधान व लोकतंत्र की हत्या करके बनाए गए तीन किसान विरोधी कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर दिल्ली पहुंच रहे किसानों पर बर्बर दमन के खिलाफ 30 नवंबर 2020 को भाकपा(माले) ने पूरे बिहार में विरोध दिवस का आयोजन किया और किसानों की मांगों के प्रति अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया. पटना में कारगिल चौक पर विरोध सभा का आयोजन किया गया, जिसमें पार्टी के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य शामिल हुए.
सभा में पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केडी यादव, पोलित ब्यूरो के सदस्य अमर, फुलवारी से विधायक गोपाल रविदास, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, राज्य सचिव शशि यादव, अनीता सिन्हा, किसान महासभा के नेता राजेन्द्र पटेल, शंभूनाथ मेहता, नसीम अंसारी, अनय मेहता, पन्नालाल, अनुराधा, ऐक्टू के महासचिव आरएन ठाकुर, उमेश सिंह सहित बड़ी संख्या में पार्टी के नेता-कार्यकर्ता शामिल थे. सभा का संचालन किसान नेता उमेश सिंह ने किया.
पटना के अलावा भोजपुर, सिवान, अरवल, जहानाबाद, गोपालगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, नालंदा, वैशाली, बक्सर, गया, नवादा, मधुबनी आदि जिलों में विरोध सभा का आयोजन किया गया.
कारगिल चौक पर विरोध सभा को संबोधित करते हुए माले महासचिव ने कहा कि आज पूरे देश में एक ही मुद्दा है. पिछले तीन दिनों से दिल्ली की सीमा को किसानों ने चारों तरफ से घेर रखा है. ऐसा लगता है कि देश की मोदी सरकार किसानों से जंग लड़ रही है. किसानों का यह गुस्सा अचानक नहीं फूटा. जिस प्रकार से राज्यसभा में संविधान व लोकतंत्र की हत्या करके इन तीनों कानूनों को पारित करवाया गया, उसने किसानों के अंदर संचित गुस्से का विस्फोट कर दिया है. आज इन कानूनों के खिलाफ पूरे देश के किसान आंदोलित हैं.
तीनों काले कानूनों पर किसानों का पक्ष पूरी तरह सही है. उनका कहना पूरी तरह जायज है कि ये कानन खेती व किसानी को चौपट कर कारपोरेटों का गुलाम बनाने वाली नीतियां हैं. आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आलू-प्याज जैसे आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी नहीं हो सकती थी, लेकिन अब उसका दरवाजा खोल दिया गया है. अब पूंजीपति सस्ते दर पर किसानों का सामान खरीदेंगे और और फिर महंगा बेचेंगे. उन्हें मुनाफा कमाने की छूट मिल गई है.
किसानों की मांग थी कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की गांरटी करे. खेती के लागत का डेढ़ गुनी कीमत तय करने की सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने की थी. लेकिन सरकार उसे केवल कागज पर लागू कर रही है, जमीन पर वह कहीं लागू नहीं है. यह किसानों के साथ बड़ा धोखा है.
सरकार ने मंडियों को तोड़ दिया. मंडियों के टूटने का हश्र हम बिहार में देख चुके हैं. बिहार में नीतीश जी के शासन में 2006 में मंडियां खत्म कर दी गईं. यदि मंडियों को तोड़ने से किसानों की तरक्की होती तो बिहार के किसान आज समृद्ध हो जाते. लेकिन बिहार के किसान सबसे गरीबी की हालत में हैं. लोगों ने कह दिया कि बिहार में जिस प्रकार से नीतीश जी ने खेती को चौपट किया, उस रास्ते पर देश की खेती नहीं जाएगी. देश की खेती-किसानी को हम बर्बाद नहीं होने देंगे.
सरकार कहती है कि यह आंदोलन विपक्ष के उकसावे पर हो रहा है, लेकिन पंजाब के अंदर विपक्ष में अकाली दल, भाजपा और आप है. पूरा पंजाब किसानों का साथ दे रहा है. यहां तक कि अकाली दल के नेता ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसलिए, मोदी सरकार किसानों के बारे में अनाप-शनाप बोलना बंद करे और दुष्प्रचार बंद करे. पंजाब के किसान सबसे विकसित किसान हैं, इसलिए उन्हें इन कानूनों की हकीकत सबसे पहले समझ में आ रही है और वे विरोध में उतरे हुए हैं.
सरकार ने जिस तरह से किसानों को रोकने की कोशिश है, वह संविधान व लोकतंत्र की हत्या है. किसानों का वोट लेकर सत्ता में आई इन सरकारों ने सारे नियम-कानून तोड़ दिए. हरियाणा में खट्टर की सरकार ने सड़कों को खोद दिया, ताकि किसान दिल्ली न पहुंच सकें. किसान दिल्ली न पहुंचे इसकी पूरी व्यवस्था की गई. उनपर दमन चक्र चलाया गया, बावजूद लाखों की संख्या में किसान दिल्ली के इर्द-गिर्द जमा हैं.
गलत कृषि नीति के खिलाफ यह किसानों का शाहीनबाग खड़ा हो रहा है. श्रम कानूनों में संशोधन के खिलाफ मजदूर लड़ रहे हैं, नागरिकता अधिकार कानून के खिलाफ देश की जनता लड़ रही है और अब इन तीन कानूनों के खिलाफ किसान उठ खड़े हुए हैं. आज जरूरत है कि सभी तबके एक दूसरे की मदद करें और मोदी सरकार पर निर्णायक हल्ला बोलें. बिहार से लेकर पूरे देश में किसानों में गुस्सा है. गांव-गांव में मोदी के पुतले जल रहे हैं. तीन किसान विरोधी कानूनों की प्रतियां जलाई गईं. इस आंदोलन को भाकपा-माले के कार्यकर्ता हर गांव में पहुंचायेंगे और आजादी का परचम लहरायेंगे.
विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार के साथ इस जंग के मैदान में किसान मजबूती से डटे हुए हैं. दमन चक्र चलाकर उन्हें दिल्ली पहुंचने से रोका नहीं जा सका. किसानों के समर्थन में विरोध दिवस मनाया है. आम मिहनतकश जनता को एकजुट करना है. तीनों किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए दिल्ली में प्रदर्शन करने आ रहे किसानों पर बर्बर दमन के खिलाफ अब पूरे देश में किसानों का आक्रोश फूट पड़ा है. एक ओर किसानों की दुश्मन मोदी सरकार व कारपोरेट घराने हैं तो दूसरी ओर किसान व उनके समर्थन में देश की जनता है. लगता है, शाहीन बाग आंदोलन की ही तर्ज पर यह देश के किसानों का दूसरा शाहीन बाग बनने वाला है. सभा को ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी व ऐक्टू के महासचिव आरएन ठाकुर ने भी संबोधित किया.