असम में 4-लेन सड़कों तथा राष्ट्रीय उच्च पथ के निर्माण के नाम पर किसानों से जमीन हड़पी जा रही है; और इसके लिए उन्हें उचित मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा है. अनेक वंचित समुदायों के किसानों के पास जमीन का पट्टा नहीं है, इसीलिये उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिल पा रहा है.
डिब्रूगढ़ जिले में एनएच 52 ‘बी’ के निर्माण के लिए 57 गांवों के 1700 परिवारों से 2000 एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहीत की गई, जिसमें लगभग 550 एकड़ सरकारी जमीन है. विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत जमीनों के लिए 17 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति बीघा तक की कीमत निर्धारित की गई, जो उनके उचित मूल्य से काफी कम है. दूसरी ओर, यह भी कह दिया गया कि लोगों के कब्जे वाली सरकारी जमीन के लिये कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा. इस स्थिति में इन प्रभावित लोगों ने “एनएच 52(बी) संयुक्त मुआवजा मांग समिति” का गठन किया.
16 मई 2008 को उच्च पथ ऐक्ट, 1956 के तहत एक गजट अधिसूचना जारी की गई थी. लेकिन जब प्रभावित परिवारों के लिये मुआवजा की बात उठी. तो सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 का हवाला देना शुरू किया. 1956 का ऐक्ट कहता है कि प्रभावित व्यक्ति को मुआवजे के बतौर जमीन की वर्तमान कीमत का कम से कम दस गुना मूल्य दिया जाना चाहिये. सबसे आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि विभिन्न जिले में मुआवजा की राशि अलग-अलग निर्धारित की गई है. यहां तक कि बहु-फसली जमीन को भी डिब्रूगढ़ में अमीनों के द्वारा बे-फसली जमीन दिखा दिया जा रहा है और उस पर उगी फसलों के लिये कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा है.
संयुक्त मुआवजा मांग समिति ने अपने लंबे संघर्षों के जरिये सरकार को बाध्य कर दिया कि वह मौजूदा कानूनों के अनुसार पूर्व में निर्धारित मूल्य की समीक्षा करने के लिये पंच नियुक्त करे. समिति ने 70 कि.मी. की पदयात्रा और 700 घंटे की लंबी भूख हड़ताल के साथ-साथ कई धरने और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए. उसने लोगों के दखल वाली सरकारी जमीन और उन पर उगाई गई फसलों के मुआवजे के लिये भी सरकार को विवश कर दिया.
सोनितपुर जिले में फोर लेन प्रभावित लोग भी इसी किस्म की समस्या झेल रहे थे. वहां प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के लिये मुआवजा कानून, 2013 का पालन नहीं किया जा रहा था. सड़क वेंडरों को प्रशासन द्वारा कोई मुआवजा नहीं दिया गया, जो वर्षों से इसी तरह अपनी आजीविका कमा रहे थे. यहां भी प्रभावित लोगों ने भाकपा(माले) के नेतृत्व में संयुक्त मंच बनाया और 2016 में आंदोलन शुरू किया. उन्होंने बोरगंग में बेहली क्षेत्र के भाजपा विधायक और मंत्री के आवास का घेराव किया. इन लोगों ने ‘उचित मुआवजा नहीं तो सड़क निर्माण नहीं’ नारे के साथ सड़क निर्माण के काम को रोक दिया. प्रशासन को बाध्य होकर जमीन के पुराने मूल्य की जांच करने का कदम उठाना पड़ा. प्रशासन ने सड़क वेंडरों के लिये भी मुआवजे की अनुशंसा की.
डिब्रूगढ़ के विधायक बिमल बोस ने प्रभावित लोगों के आंदोलन का विरोध किया और पुलिस के साथ मिलकर आंदोलन को दबाने की कोशिश की. लेकिन इन तमाम बाधाओं के बावजूद आंदोलन सफल रहा. तब उस विधायक ने भाकपा(माले) के नेताओं को बदनाम कराने और उनको झूठे मुकदमों में फंसाने की मुहिम चलाई. इसी क्रम में उसने माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य बलिंद्र सैकिया पर झूठे केस लादे. संयुक्त मंच के झंडे तले लोग 17 अगस्त को प्रतिवाद में सड़कों पर उतर पड़े. ये प्रतिवादकारी लोग बलिंद्र सैकिया पर लगाए गए झूठे मुकदमों को वापस लेने तथा कोई भेदभाव किये बगैर तमाम प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा देने की मांग पर एक जुलूस निकालना और स्थानीय एसडीसी के जरिये डिब्रूगढ़ के डीसी को एक ज्ञापन सौंपना चाहते थे. ज्यों ही यह रैली एसडीसी कार्यालय से 2 किलोमीटर दूर ऐथन से 10 बजे शुरू होने वाली थी, तभी पुलिस ने लगभग 200 प्रतिवादकारियों को पकड़ लिया और उन्हें राजगढ़ के पुलिस थाने में बंद कर दिया. पुलिस स्पष्टतः भाजपा विधायक के इशारे पर यह सब कर रही थी. हाजत में रखे गए इन लोगों ने थाना परिसर के अंदर ही एक सभा की. संयुक्त समिति के सदस्य बिटुपन बकलियाल ने सभा की अध्यक्षता की और कई कार्यकर्ताओं ने इसे संबोधित किया. इन वक्ताओं ने लोकतांत्रिक प्रतिवादकारियों की गिरफ्तारी की भर्त्सना करते हुए कहा कि भाजपा शासन के अंतर्गत लोकतंत्र की हत्या की जा रही है. जोरदार नारों के बीच इन वक्ताओं ने भाजपा की साजिश को ध्वस्त करने और आंदोलन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. उन्होंने स्थानीय भाजपा विधायक के खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग उठाई.