वर्ष - 28
अंक - 34
10-08-2019

नेताजी इंडोर स्‍टेडियम, कोलकाता, 30 जुलाई 2019

एकताबद्ध हो! प्रतिरोध करो!

1.     एनआईए और यूएपीए कानून अपने मौजूदा रूप में ही बहुत खतरनाक हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व निर्दोष नागरिकों के खिलाफ इनका धड़ल्‍ले से दुरुपयोग किया जाता रहा है. भारत के सबसे कमजोर तबकों के अधिकारों की लड़ाई में भागीदारी करने वाले कार्यकर्ताओं और सरकार का विरोध करने वालों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया जा चुका है. लोकसभा में पारित इन कानूनों में संशोधन सरकार को और भी ताकत दे देंगे कि वह विरोध को अपराध घोषित कर दे और विरोध करने वाले व्‍यक्तियों को निशाना बनाये. इन संशोधनों से अब सरकार व्यक्तियों को ‘आतंकवादी’ बता सकती है, और उनके बैंक अकाउंट सहित अन्य नागरिक अधिकारों को छीन सकती है. सबूतों के साथ आरोप साबित करना सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी - बल्कि आरोपियों को ख़ुद तो निर्दोष साबित करना पड़ेगा. यह कन्‍वेंशन मांग करता है कि एनआईए और यूएपीए कानून में प्रस्‍तावित संशोधन वापस लिए जायें, यूएपीए कानून को समाप्‍त किया जाये, एनआईए को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाये और यूएपीए के तहत गिरफ्तार सभी कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाये.

2.     यह कन्वेन्शन सूचना अधिकार क़ानून में लोक सभा द्वारा पारित संशोधनों को वापस लेने की माँग करता है. सूचना अधिकार क़ानून के तहत प्रति वर्ष लगभग 60,000 नागरिक सरकार से सूचना हासिल करते हैं. नए संशोधनों से केंद्रीय सूचना आयोग अब सरकार की कठपुतली बन कर रह जाएगा. इससे लोकतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी सूचना अधिकार क़ानून को पूरी तरह से बेअसर हो जाएगा. हम सूचना अधिकार क़ानून की रक्षा करने और उसे मज़बूत बनाने के लिए संघर्ष तेज़ करने का संकल्प लेते हैं.

3.     पूरे देश में आदिवासियों और जंगलों में रहने वाले समुदायों को उनकी ज़मीनों से हिंसात्मक  तरीके बेदख़ल किया जा रहा है, ताकि खनन में लगी एवं अन्य कम्पनियों को और भू-माफ़िया  को फ़ायदा पहुँचे . हाल में किया गया सोनभद्र जनसंहार इसी का ताज़ा उदाहरण है, जिसमें 10 आदिवासियों को भू-माफ़िया द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार की मिलीभगत के साथ गोली मारकर हत्या कर दी गयी. भारतीय वन कानून, 1927 में सरकार द्वारा प्रस्‍तावित संशोधन से इस बात की इजाजत मिल जायेगी कि सरकार आदिवासियों और वन में रहने वाले लोगों से बड़े पैमाने पर जमीन हड़प ले और इसे मुनाफा कमाने के लिए निजी क्षेत्र को सौंप दे. यह संशोधन वन अधिकारियों को यह भी अधिकार देता है कि वे बिना किसी जवाबदेही के किसी को भी गोली मार सकते हैं, और  किसी के पास से बरामद सामग्री के आधार पर उसे अपराध का दोषी तय किया जा सकता है. यह कन्‍वेंशन मांग करता है कि भारतीय वन कानून, 1927 में प्रस्‍तावित संशोधनों को रद्द किया जाये. साथ ही यह कन्‍वेंशन यह भी मांग करता है कि भारतीय वन कानून, 1927 को पूरी तरह समाप्‍त किया जाये और इसकी जगह वन अधिकार कानून की तर्ज पर नया कानून बनाया जाये जो कि आदिवासियों और वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को मान्‍यता देता हो.

4.     राष्‍ट्रीय नागरिकता रजिस्‍टर को जिस तरह से असम में लोगों के साथ भेदभाव करने और उन्‍हें बाहर करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके बारे में यह कन्‍वेंशन चिंता जाहिर करता है. असम में एनआरसी की आख़िरी सूची जारी होने के बाद यह खतरा है कि कई लाख भारतीय अपनी नागरिकता खोकर बिना देश के हो जायें. हम मांग करते है कि नौकरशाही के अडंगों के चलते, या विरासत के दस्‍तावेज दिखा पाने के अभाव में किसी को भी अवैध  आप्रवासी न घोषित किया जाये. किसी भी व्‍यक्ति को तब तक ‘बांग्‍लादेशी’ न माना जाये जब तक कि बांग्‍लादेश उन्‍हें खुद का नागरिक मानने के लिए तैयार न हो, और भारत व बांग्‍लादेश के बीच नागरिकों के आदान-प्रदान की प्रभावी संधि तैय्यार और लागू न हो जाये. हम यह भी मांग करते हैं कि फॉरेनर्स ट्रिब्‍यूनल द्वारा 'संदिग्‍ध वोटर' बाताकर अमानवीय हालात में डिटेंशन कैंपों में रखे गये लोगों को रिहा किया जाये. यह कन्‍वेंशन ऐसे सभी डिटेन्‍शन कैंपों को तत्‍काल समाप्‍त करने की मांग करता है. यह कन्‍वेंशन भारतीय नागरिकता का सांप्रदायीकरण करने के मकसद से लाये गये नागरिकता संशोधन कानून को समाप्‍त करने की मांग करता है. यह कन्‍वेंशन देश की जनता से आह्वान करता है की भाजपा द्वारा पूरे देश में एनआरसी लागू करने की योजना को खारिज करें और एनआरसी व सीएबी के नाम पर की जाने वाली सांप्रदायिक राजनीति का पुरज़ोर विरोध करें.

Selim

 

5.     'जय श्री राम' का नारा मुसलमानों को अपमानित व आतंकित करने के लिए और मॉब लिंचिंग तक के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. भाजपा के सांसद और विधायक, मुस्लिम विधायकों-सांसदों की भारत के प्रति निष्ठा सिद्ध करवाने के लिए उनसे 'जय श्री राम' का नारा लगाने को कह रहे हैं. उन्हीं नेताओं की बातों से सूत्र ग्रहण करती हत्यारी भीड़ मुसलमानों को मारने के लिए इस नारे का सहारा ले रही है. 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर के दंगाइयों से लेकर मॉब लिंचिंग के अपराधी छुट्टा घूम रहे हैं वहीं इस हमलों के शिकार लोग एफ़आईआर का सामना कर रहे हैं. यह कन्वेंशन, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद मॉब लिंचिंग को रोक पाने और अपराधियों को सज़ा देने में सरकार की असफलता को चिन्हित करते हुए सरकार से इसका जवाब माँगता है. भारत की अल्पसंख्यक आबादी पर हो रहे ज़ुल्म और लिंचिंग के ख़िलाफ़ यह सम्मेलन अल्पसंख्यकों के साथ एकजुटता व्यक्त करता है.

6.     न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी करने वाले और ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगने वाले क़ानूनों सहित संघर्षों से जीते गए सभी श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने के लिए सरकार लेबर कोड बिल लेकर आयी है. सरकार भारतीय रेलवे व अन्‍य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का तेजी से निजीकरण कर रही है और सार्वजनिक क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को निजी कॉरपोरेट हाथों में सौंप रही है. इससे बड़े पैमाने पर नौकरियों में कटौती हो रही है और मजदूरों के अधिकारों में भी भारी कटौती की जा रही है. रेलवे में निजीकरण के चलते बड़े पैमाने पर किराया बढ़ेगा और अन्‍य बुनियादी सुविधायें मंहगी हो जायेंगी. इससे यात्रियों की सुरक्षा पर भी खतरा बढ़ जायेगा. यह कन्‍वेंशन लेबर कोड बिल एवं रेलवे व अन्‍य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण के निर्णय को वापस लेने की मांग करता है.  

7.      देश के बहुत से हिस्‍से सूखाग्रस्‍त हैं. भले ही मानसून से सूखे की मार थोड़ी कम हो जाये लेकिन सच्‍चाई यह है कि पूरा देश पानी की भीषण समस्‍या से जूझ रहा है. ठीक इसी समय देश के कई हिस्से भीषण बाढ़ की चपेट में हैं. इससे बड़े पैमाने पर जान और माल का नुकसान हुआ है. सरकार हर साल आने वाली बाढ़ से निपटने और लोगों की जिन्‍दगी बचाने में नाकाम रही है. सरकार कोई ऐसी भी योजना नहीं बना सकी है जिससे आने वाले समय में दीर्घकालिक तौर पर ऐसी बाढ़ों को रोका जा सके. कन्‍वेंशन लोगों को हर साल आने वाली बाढ़ और हर साल पड़ने वाले सूखे से लोगों को बचाने के लिए तात्‍कालिक और दीर्घकालिक योजना बनाने की मांग करता है. यह कन्वेन्शन माँग करता है कि असम और अरुणाचल प्रदेश में बड़े बाँधों का निर्माण तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए क्योंकि ये भी बाढ़ के संकट को बढ़ा रहे हैं.    

30 july Convention

 

8.     यह सम्मेलन कृषि संकट और किसानों के मुद्दों पर संसद के विशेष अधिवेशन की माँग करता है. 30 नवम्बर 2018 को दिल्ली में आयोजित किसान मुक्ति मार्च की किसान-संसद ने दो क़ानून सुझाए थे जिनमें से पहला सभी फ़सलों पर लागत-मूल्य से पचास फ़ीसदी ज़्यादा पारिश्रमिक की गारंटी के लिए 'किसान [कृषि उत्पादों की तयशुदा क़ीमत] क़ानून, 2017  था और दूसरा किसानों को खेती के लिए लिए गए हर तरह के सांस्थानिक और ग़ैर सांस्थानिक क़र्ज़ की माफ़ी के लिए 'किसान क़र्ज़ मुक्ति क़ानून' था. यह कन्वेंशन संसद का विशेष सत्र बुलाकर इन क़ानूनों को पारित करने पर माँग करता है. यह कन्वेंशन मवेशी बाज़ार में मवेशी बेचने को प्रतिबंधित करने वाले केंद्र सरकार की किसान विरोधी अधिसूचना को तत्काल वापस लेने की माँग करता है. हम 'गौरक्षा' क़ानूनों को ख़त्म करने की माँग करते हैं जिनके चलते डेयरी उद्योग से लेकर कृषि तक तबाह हो रही है. इन क़ानूनों का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को उत्पीड़ित करने और उनकी हत्याओं तक के लिए किया जा रहा है.

9.     केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें महिलाओं की सुरक्षा और स्वायत्तता पर हमले कर रही हैं. भाजपा ने अपनी पार्टी के बलात्कार-आरोपी नेताओं और ढोंगी बाबाओं के बचाव में उतरी है. ऐसे कई मामलों में पीड़ित और गवाह या तो मार दिए गए हैं या उनकी रहस्यमय मौत हुई है. पिछले कुछ सालों से हम संघ परिवार व भाजपा से जुड़े संगठनों द्वारा महिलाओं की स्वायत्तता पर हो रहे हमलों, ख़ासकर अंतरधार्मिक व अंतर्जातीय विवाहों पर हो रहे हमलों के गवाह रहे हैं. भाजपा व संघ गिरोह बार-बार मुज़फ़्फ़रपर बालिका गृह कांड के अभियुक्तों से लेकर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषी अपने नेताओं का बचाव कर रहे हैं. यह कन्वेंशन सरकार से महिलाओं की स्वायत्ता पर किए गए किसी भी क़िस्म के हमले के ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाने की माँग करता है और सजायाफ़्ता बलात्कारियों को मदद करने वाली सत्ताधारी भाजपा की भर्त्सना करता है. यह कन्वेंशन तुरंता तीन तलाक़ क़ानून को तत्काल ख़त्म किए जाने की माँग करता है जो चुनिंदा तौर पर पत्नी को छोड़ने वाले किसी दूसरे धर्म के पति को नहीं, सिर्फ़ मुसलमान पति को अपराधी बताता है.  

10.     भुखमरी, लम्बे समय से चले आ रहे कुपोषण, अस्पतालों में बच्चों की मौत की महामारी के साथ ही हाल में बिहार में चमकी बुखार आदि देश के जन-स्वास्थ्य के के सामने बड़ी चुनौती की तरह मौजूद हैं. मोदी सरकार आयुष्मान भारत योजना के ज़रिए सरकारी पैसे को निजी बीमा कम्पनियों को लुटा रही है. आयुष्मान भारत योजना के क्रूर मज़ाक़ की जगह यह कन्वेंशन सरकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में पर्याप्त सरकारी ख़र्च की माँग करता है. ताकि भारत में हर व्यक्ति को मुफ़्त में बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएँ मिल पाएँ और महामारियों पर रोक लगे.  

11.     राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नए मसौदे के ज़रिए मोदी सरकार सरकारी स्कूल व्यवस्था और सारवाजिक धन से चलने वाले सरकारी कॉलेजों को ध्वस्त करके शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत बदलाव करना चाहती है. यह मसौदा स्कूलों और उच्च शिक्षा के निजीकरण को प्रोत्साहित करता है जिसका मतलब सिर्फ़ बेतहाशा फ़ीस बढ़ोत्तरी होगी. इस दस्तावेज़ से 'धर्मनिरपेक्षता' और उत्पीड़ित समुदायों के लिए आरक्षण आदि ग़ायब हैं. यह दूसरी भारतीय भाषाओं की क़ीमत पर सिर्फ़ हिंदी व संस्कृत को लादना-बढ़ाना चाहता है. यह कन्वेंशन इस मसौदा दरतावेज को वापस लेने की माँग करता है. कन्वेंशन यह भी माँग करता है कि समूचे भारत के शिक्षकों और छात्रों से बातचीत के आधार पर नया मसौदा बनाया जाय.

GS

 

12. आधार की व्‍यवस्‍था सरकारी कल्‍याणकारी योजनाओं से लोगों को बाहर करने का जरिया बन गई है. आधार को राशन, पेंशन व अन्‍य कल्‍याणकारी योजनाओं से जोड़ने के चलते वंचित समुदायों के आने वाले लोगों खासकर बच्‍चों और बुजुर्गों की भुखमरी से मौतें हुई हैं. अब सरकार आधार को वोटर कार्ड से जोड़ना चाहती है. इसके जरिये बड़े पैमाने पर गरीबों को वोट देने से वंचित किया जायेगा. पिछले बजट के आर्थिक सर्वेक्षण में प्रस्‍तावित किया गया कि सरकार सभी तरह के डेटाबेस को मिलाएगी और संवेदनशील व्‍यक्तिगत डेटा (जिसमें शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी डेटा भी शामिल होगा) को निजी कम्पनियों को बेचेगी. साथ ही आधार के नाम पर खड़े किये गये पूरे ढांचे का इस्‍तेमाल एनआरसी के नाम पर देश-विहीन बना दिये जाने वाले लोगों की निगरानी करने के लिए भी किया जा रहा है. यह कन्‍वेंशन आधार और पूरे आधार के डेटाबेस को समाप्‍त करने की मांग करता है, क्योंकि इसका  इस्‍तेमाल भोजन, वोट देने और निजता के अधिकार जैसे मानवाधिकारों का उल्‍लंघन करने के लिए किया जा रहा है.

13.     ईवीएम की विश्‍वसनीयता के बारे में बहुत से सवाल खड़े हुए हैं. चुनाव आयोग द्वारा पारदर्शिता के अभाव, इसका झूठा दावा कि ईवीएम 'ओटीपी' हैं, चुनाव में कुल पड़े वोटों और गिने गये वोटों में अंतर को चुनाव आयोग द्वारा स्‍पष्‍ट न कर पाने के चलते ये संदेह और भी गहरा गये हैं. ईवीएम अपने वोटों को अपनी आँखों के सामने  जाँचने के मतदाता अधिकार के विरुद्ध जाती है. भारतीय मतदाता के हितों मज़बूत करने और भारत के संसदीय जनतंत्र की पारदर्शिता और विश्वशनीयता की गारंटी करने के लिए यह कन्‍वेंशन 'बैलट से वोट' की मांग करता है.

14.     हालाँकि भाजपा विपक्षी राज्य सरकारों को हटाने के लिए भ्रष्ट तरीक़ों से विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त कर ही रही है, मोदी सरकार आगे बढ़कर 'एक देश, एक चुनाव' का प्रस्ताव ले आयी है. संसदीय प्रणाली से राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ़ ले जाना वाला यह प्रस्ताव हमारे मुल्क की संघीयता और लोकतंत्र के लिए ख़तरा है. मोदी सरकार द्वारा लागू की गयी इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था राजनीतिक भ्रष्टाचार और लूट में भाईचारे को बढ़ाने वाली है. यह कन्वेंशन 'एक देश, एक चुनाव' को पूरी तरह ख़ारिज करता है और इलेक्टोरल बांड व्यवस्था को ख़त्म करने की माँग करता है. कन्वेशन कर्नाटक में नए सिरे से चुनाव कराने की माँग करता है जहाँ भाजपा ने 'विश्वास मत' हासिल करने के लिए भ्रष्ट तरीक़े अपनाए.

यह कन्वेंशन भारत की अवाम से फ़ासीवादी ख़तरे के ख़िलाफ़ एकजुट होने का आह्वान करता है. किसी एक पर हमला सब पर हमला है. इस ख़तरे के दायरे में आने वाले हर आदमी के साथ हम दृढ़ और सैद्धांतिक एकजुटता का आह्वान करते हैं. सामूहिक अधिकारों की सामूहिक रक्षा के लिए, हमारे प्यारे देश के लोकतंत्र और विविधता की मज़बूती के लिए हम जनता का आह्वान करते हैं. संगठित हों और मुक़ाबला करें. आएँगे, उजले दिन ज़रूर आएँगे.

stadium

15.     केंद्र में मोदी सरकार की वापसी और पश्चिम बंगाल में भाजपा की चौंका देने वाली बढ़त   से उत्साहित हो कर संघ ब्रिगेड ने राज्य में सत्ता हड़पने के लिए आतंक और गुंडागर्दी का विशाल अभियान छेड़ दिया है. शासक पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधियों समेत तृणमूल के कार्यकर्ताओं द्वारा बढ़ती अराजकता, भ्रष्टाचार और क़ानून की धज्जियाँ उड़ाने तथा 2018 के पंचायत चुनाव के दौरान विपक्ष पर ढाए गए आतंक के चलते तृणमूल सरकार की साख घटती जा रही है, जिससे भाजपा को पश्चिम बंगाल के विस्तार का अनुकूल राजनीतिक मौक़ा मिल गया है. बड़े पैमाने पर दल बदल के साथ साथ साम्प्रदायिक हिंसा तथा राजनीतिक आतंक एवं गुंडागर्दी के ज़रिए संघ ब्रिगेड सत्ता हथियाने के लिए बेताब है. भाजपा के अभियान का मक़सद केवल राजनीतिक सत्ता पर क़ब्ज़ा करना ही नहीं है बल्कि पचिम बंगाल की समेकित एवं प्रगतिशील सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को उलट देना और पश्चिम बंगाल को अपनी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति की प्रयोगशाला में बदल देना है. यह कन्वेन्शन पश्चिम बंगाल की वामपंथी एवं प्रगतिशील शक्तियों तथा लोकतंत्र प्रेमी जनता का आह्वान करता है कि वे राज्य के सामाजिक सौहार्द, सांस्कृतिक बहुलता और शांति पर हो रहे इस हमले का प्रतिरोध करें; और साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों के शिकंजे से पश्चिम बंगाल की रक्षा की लड़ाई में एकजुटता का संकल्प लेता है.

16. यह कन्वेन्शन भारत की जनता का आह्वान करता है कि वे चट्टानी एकता का निर्माण करें और फ़सिवादी हमले का मुक़ाबला करें. एक पर हमला, सब पर हमला है. हम इस हमले से प्रभावित हर किसी के साथ मज़बूत और उसूली एकजुटता का आह्वान करते हैं. हम अपने सामूहिक अधिकारों और अपने प्रिय देश के लोकतंत्र और बहुलता की एकतबद्ध रक्षा करने का आह्वान करते हैं. हम धमकियाँ, गिरफ़्तारी और हत्याओं के ज़रिए हमें आतंकित करने और हमारा मुँह बंद करने की कोशिशों के सामने नहीं झुकेंगे. हम धर्म-निरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील नहीं होने देंगे. अगस्त का महीना भारत की आज़ादी का महीना है - यह कन्वेन्शन इस पूरे महीने में ‘लोकतंत्र बचाओ’ जनसम्पर्क अभियान चलाने का आह्वान करता है - जो संविधान, चुनावी लोकतंत्र, जनता के अधिकारों और धर्म-निरपेक्षता पर हो रहे सारे हमलों के ख़िलाफ़ प्रतिवाद संगठित करने को समर्पित होगा.

एकताबद्ध हो, प्रतिरोध करो! हम होंगे कामयाब!