वर्ष - 28
अंक - 31
20-07-2019

भाकपा(माले) की उत्तर प्रदेश इकाई ने 17 वें लोकसभा चुनाव बाद की परिस्थिति और देश-प्रदेश में काबिज फासीवादी निजाम की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए 16 जुलाई को लखनऊ में राज्य स्तरीय कैडर कन्वेंशन का आयोजन किया, जिसमें प्रदेश के विभिन्न जिलों से 300 से ऊपर नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. इस कन्वेंशन का मुख्य संदेश था : एकजुट हो और प्रतिरोध करो!

अमीनाबाद के गंगा प्रसाद स्मारक सभागार में आयोजित कन्वेंशन को मुख्य वक्ता के रूप में भाकप(माले) के महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि मोदी-2 की सरकार में संघ को लग रहा है कि आज भाजपा- विरोधी विपक्ष सबसे कमजोर स्थिति में है. इसलिए संघ अपने कार्यक्रम को लागू करने की पूरी तैयारी में है और इसी समय में यदि हम समूची पार्टी को एकजुट कर मुकाबले में खड़ा कर दें तो यह पार्टी के सर्वाधिक विस्तार का अवसर हो सकता ह.। भाकपा-माले के एक-एक सदस्य को भाजपा के खिलाफ लड़ने और कम्युनिस्ट होने की साख को सच साबित करना होगा.

उन्होंने कहा कि मानसा सम्मेलन में हमने फासीवाद को प्रमुख खतरा मानते हुए इसे हराने को प्रमुख कार्यभार रखा था. इसीलिए हम बहुत कम सीटों पर चुनाव लड़े. इस चुनाव में विपक्ष की कोई बड़ी एकता नहीं बन पाई। मोदी सरकार को परास्त करने के लिए विपक्ष में कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखी, न ही विपक्ष भाजपा को हरा पाने का विश्वास जनता को दिला पाने में सक्षम रहा. मोदी सरकार के खिलाफ जिस तरह से किसानों, मजदूरों व समाज के अन्य तबकों के आंदोलन खड़े हो रहे थे और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान विधानसभाओं के परिणाम आये, ठीक वैसा ही कुछ लोकसभा के चुनाव के बारे में भी लोग उम्मीद कर रहे थे. किंतु चुनाव परिणाम यूपी विधानसभा चुनाव की तरह हो गया. यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के रूप में इतना कारगर सामाजिक गठजोड़ का प्रभाव भी भाजपा को रोकने में नाकामयाब रहा. आजादी के कुछ सालों बाद तक जो स्थिति कांग्रेस की थी वैसी ही कुछ आज भाजपा की है.

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार फासीवादी सरकार है. फासीवाद का मतलब है संविधान, आजादी और लोकतंत्र का संपूर्ण निषेध और कानून के शासन का खात्मा. आजादी की लड़ाई के दौरान देश में फासीवाद विरोधी विचार प्रबल था. यूरोप व पश्चिम के देशों के पास फासीवाद का कड़ुआ अनुभव था. पूरी दुनिया ने फासीवाद और उससे लड़ने के अनुभव से काफी सीखा. इसके अलावा, हमारे पास साम्राज्यवाद से लड़ने का 1857 का माॅडल भी था. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान संघ मुसलमानों के खिलाफ अंग्रेजों का पक्षधर था. देश की बहुसंख्यक आबादी उस समय आरएसएस के चंगुल में नही फंसी और उसके विचार को खारिज किया. तब से संघ की कोशिश लगातार जारी है. जब-जब मौका मिला वह सरकार व प्रशासन के भीतर अपना काम करता रहा. एक समय संघ के लोग जयश्री राम का नारा मंदिर निर्माण के लिए लगाते थे, आज जयश्री राम का नारा लगाते हुए लोगों की हत्या की जा रही है.

का. दीपंकर ने कहा कि इस समय हमारा प्रतिद्वंदी और भी मजबूत होकर आया है, हमें इससे लड़ना है और इसके लिए खुद की ताकत को और मजबूत बनाना है. ऐसे कमजोर और अवसरवादी लोग भी हैं जो कहेंगे कि मोदी अपराजेय है, लंबे समय तक राज करेगा, इसलिए भाजपा के साथ जाने में ही भलाई है. लोग कम्युनिस्टों की साख पर, खासकर पश्चिम बंगाल में सीपीएम पर, सवाल उठा रहे हैं कि कम्युनिस्टों ने भाजपा के समक्ष समर्पण कर दिया, किंतु यह लांछन भाकपा(माले) के साथ नहीं है. विचार, विश्लेषण तथा समझ के मामले में भाकपा(माले) स्पष्ट है. कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर हम संशोधनवादी सोच से हमेशा सीख लेते रहे हैं. भाजपा का एकजुट होकर भी मुकाबला करना है और अकेले भी हमें उससे लड़ना है.

उन्होंने कहा कि दंगे और नफरत के खिलाफ लड़ने का हमारा इतिहास है. भीड़ हत्या में हमारे साथी जाफर शहीद हुए हैं. हम इसके खिलाफ लड़ाई में बिल्कुल खड़े रहेंगे. हमें इस दौर में कम्युनिस्ट होने का मतलब साबित करना होगा जरूरी हुआ तो शहादत भी देने से पीछे नहीं हटेंगे और हर कीमत पर भीड़ हत्यारों का, मुसलमानों पर भगवा हमले का मुकाबला करेंगे. अंतर्जातीय, अंतरधार्मिक विवाह के कारण अगर किसी का उत्पीड़न होता है, तो खुलकर उसका विरोध करना होगा. कम्युनिस्टों से ज्यादा प्रगतिशील कोई नहीं है. हम हर प्रश्न पर लड़ेंगे और सरकार की योजनाओं का भी भंडाफोड़ करेंगे. मोदी की आयुष्मान स्वास्थ्य योजना भारत में लोगों के इलाज की गारंटी नहीं करती है. हम इसका भंडाफोड़ करेंगे। अगर चुनाव में गैस कनेक्शन का प्रभाव था तो हमारा गैस सिलेंडर खाली क्यों है? हम इसका जवाब मांगेंगे. संघ-भाजपा अपना प्रचार प्रभावशाली तरीके से करते हैं. सोशल इंजीनियरिंग की बात करने वाली पार्टियों को एक-एक परिवार की पार्टियां बताकर उसने जनता को अपने पक्ष में किया. अगर यूपी में पुरानी पार्टियां कमजोर हो रही हैं तो इसमें हमारे आगे बढ़ने की संभावना छिपी हुई है.

UP cadre

 

संघ के लोग प्रचार करते हैं कि देश का बंटवारा धर्म के आधार हुआ है किंतु यह गलत है. देश का बंटवारा भूगोल के आधार पर हुआ. कोई भी देश धर्म के आधार पर नहीं चल सकता. पाकिस्तान का इतिहास हमारे सामने है. उससे बंटकर बांग्लादेश बना. हमें जन राजनीतिक सांस्कृतिक शिक्षण अभियान चलाना होगा. अगर हमारे छात्र संगठन के लोग समय निकाल कर आम जनता के बीच जायें और सिर्फ भाजपा के भ्रम के खिलाफ सही बातों का प्रचार करें तो तस्वीर बदल सकती है. सरकार की सारी योजनाएं केवल कल्याणकारी नहीं हैं, अपितु भाजपा के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक प्रचार का अभियान हैं. का. दीपंकर ने कहा कि भाजपा देश से प्रगतिशील मूल्यों को समाप्त करना चाहती है इसके लिए उसने बंगाल को चुना है, इसीलिए हम भी बंगाल में अपना राष्ट्रीय जन कन्वेंशन कर रहे हैं जिससे बंगाल व देश की जनता अपनी गौरवशाली विरासत, संस्कृति व प्रगतिशील मूल्यों को जाने, भाजपा के नापाक इरादों को समझे.

का. चारु मजुमदार के चित्र पर माल्यार्पण कर शहीदों की याद में दो मिनट का मौन पालन के बाद कन्वेंशन की शुरूआत करते हुए पार्टी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने आधार वक्तव्य रखा. कन्वेंशन को पोलित ब्यूरो सदस्य का. रामजी राय, केंद्रीय कमेटी सदस्य कृष्णा अधिकारी, खेग्रामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीराम चौधरी, ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा, जसम के राष्ट्रीय महासचिव मनोज सिंह, आइसा के प्रदेशाध्यक्ष शैलेश पासवान, जन संस्कृति मंच के कौशल किशोर, अध्यापक प्रशांत शुक्ल, अधिवक्ता व मथुरा के जिला पार्टी प्रभारी नशीर शाह, लखनऊ के जिला प्रभारी रमेश सेंगर, गोरखपुर व मऊ के जिला सचिव क्रमशः राजेश साहनी व वसंत कुमार और जिलों से कुछ चुनिंदा कामरेडों ने संबोधित किया. वरिष्ठ पार्टी नेता जयप्रकाश नारायण, राज्य सचिव सुधाकर यादव, केंद्रीय समिति सदस्य कृष्णा अधिकारी, ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा व श्रीराम चौधरी के पांच सदस्यीय अध्यक्षमंडल सम्मेलन को संचालित किया.

कन्वेंशन ने भीड़ हत्या के लिए सरकार व जिला प्रशासन को सीधे जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही के लिए कानून बनाने, अंतर्जातीय-अंतर्धार्मिक शादी करने वाले व्यक्तियों की सामाजिक-वैयक्तिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने, उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन करने, नयी शिक्षा नीति के प्रस्ताव को वापस लेने, महिलाओं की आजादी व सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने, दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर रोक लगाने व एससी-एसटी कानून को कड़ाई से लागू करने, वनाधिकार कानून में प्रस्तावित जन-विरोधी संशोधन को रद्द कर वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों-अनुसूचित जातियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानून में बदलाव की मांग करते हुए राजनीतिक प्रस्ताव पारित किये.