उत्तर प्रदेश में भाकपा(माले)-लिबरेशन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. यहां प्रस्तुत है हर सीट का चुनावी हाल :
उत्तर प्रदेश में पार्टी के कामकाज के प्रमुख जिलों में मिर्जापुर भी है. यहां राज्य दमन के खिलाफ गरीबों के लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए पार्टी ने अपनी पहचान बनाई और अपने कामकाज का विस्तार किया. मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी का कमोबेश कामकाज है. मड़िहान विधानसभा क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा सघन काम है. सामंती-सरकारी हमलों के खिलाफ भाकपा(माले) को छोड़कर कोई अन्य राजनीतिक दल व संगठन गरीबों के पक्ष में नहीं खड़ा होता. योगी की सरकार बनने के ठीक बाद वन विभाग व जिला प्रशासन ने लालगंज तहसील के दर्जनों गांवों में वन भूमि है आदिवासियों के घरों को बेरहमी से जमींदोज कर उजाड़ दिया. उनके ऊपर फरेस्ट ऐक्ट की धाराओं में फर्जी मुकदमे कायम किए और गिरफ्तारियां की गई. वामपंथी कार्यकर्ता हिम्मत कोल की हत्या की गयी. बर्बर दमन से आरिवगसियों में पलायन बड़ा. पार्टी की तरफ से वनाधिकार कानून को लागू करने के लिए और दमन के खिलाफ चौतरफा पहल ली गई. जिला मुख्यालय पर बड़ी जन भागीदारी के साथ प्रतिवाद हुए. पार्टी की लोकसभा प्रत्याशी जीरा भारती (पार्टी राज्य कमेटी की सदस्य एवं ऐपवा नेता) के ऊपर सामंती ताकतों ने हमला किया, तो इसका भी बड़े पैमाने पर विरोध किया गया. मड़िहान भाजपा विधायक के दबाव में प्रशासन ने उल्टे जीरा भारती के ऊपर ही मुकदमा कायम करवा दिया. कोल्हा गांव में सामंतों ने दलितों की पुश्तैनी जमीन को फर्जी तरीके से अपने नाम करा कर कब्जा कर लिया, जिसका विरोध करने पर दलितों पर कातिलाना हमला किया गया. इसका भी पार्टी की तरफ से सशक्त प्रतिवाद हुआ. जमालपुर ब्लाक में पार्टी ईंट-भठ्ठा मजदूरों के प्रश्न पर लगातार संघर्ष करती रही है, जिससे उनके बीच प्रभाव कायम है. भठ्ठा मजदूरों का बड़ा हिस्सा बियार समाज (अति पिछड़ा समुदाय) से आता है, जिसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति दलितों से भी बदतर है. भाकपा(माले) बियार को अनुसूचित जाति में शामिल करने की उनकी लोकप्रिय मांग को हमेशा से उठाती रही है.
चुनाव की तैयारी के क्रम में जिला कमेटी की हुई बैठक में यह आम राय थी कि भाजपा का पूरा जोर आदिवासी व अतिपिछड़ों, खासकर बियार, बिंद जाति को, हर तरह से अपने पक्ष में करने पर रहेगा. इसलिए पार्टी ने तय किया कि हमें प्रचार में भाजपा के खतरे के साथ-साथ भाजपा राज में आदिवासियों-दलितों पर किए गये दमन के सच को अपने आधार में ले जाना है. भाकपा(माले) की पहलकदमियों व उपलब्धियों को मजबूती के साथ रखना है और वहां की भाजपा-समर्थित अपना दल (सोनेलाल) की प्रत्याशी व केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (मोदी की दूसरी पारी की सरकार में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया) की सामंतों की पक्षकार व गरीब विरोधी भूमिका का भंडाफोड़ करना है. इस पर अमल करने के लिए पार्टी ने प्रचार के दौरान अपने प्रभाव वाले सभी गांवों में ग्राम बैठकों पर जोर दिया. स्थानीय कमेटी स्तर पर टीमों का गठन किया गया. प्रचार टीमों ने अपने क्षेत्र के पार्टी व खेग्रामस है जुड़े सभी परिवारों से संवाद किया. सभी घरों से अनाज व नगद सहयोग लिया. पार्टी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने इस लोकसभा क्षेत्र में केन्दित किया. केन्द्रीय कमेटी सदस्य कृष्णा अधिकारी ने भी प्रचार सभाएं कीं. कुछ अन्य जिलों के पार्टी कामरेड भी जमीनी स्तर पर लगे रहे. पार्टी के संघर्षों से प्रभावित होकर चुनाव में सीपीएम की कतारों ने भी कुछ संख्या में, उनकी पार्टी के निर्देश (गठबंधन के प्रत्याशी को समर्थन देने) के खिलाफ जाकर, माले को वोट किया. चुनाव में हमें दमन से पलायन किये व निष्क्रिय जनाधार को सक्रिय करने में एक हद तक सफलता मिली. तीखे ध्रुवीकरण के माहौल में भी अपने वोट को दोगुना (2014 में मिले 4148 मतों की तुलना में इस बार 8553 मत) करने में कामयाब रहे. हालांकि सीट पर जीत अपना दल प्रत्याशी को ही मिली. यदि सांगठनिक कमजोरियों पर शुरू है काबू पाया गया होता, तो बेहतर परिणाम हासिल कर सकते थे. बहरहाल, पहलकदमियां बड़ाते हुए आगे कड़ी मेहनत करनी होगी.
जालौन (सु.) लोकसभा सीट के पांच विधानसभा क्षेत्र तीन जिलों – जालौन, झांसी व कानपुर देहात में फैले हैं. जालौन में तीन जबकि बाकी दो जिलों में एक-एक विधानसभा सीटें हैं. पार्टी का मुख्यत: कामकाज जालौन जिले में ही सीमित है. झांसी में पार्टी के सम्पर्क हैं. जबकि भठ्ठा मजदूरों में कई पार्टी सदस्य कानपुर देहात के ईंट भठ्ठों पर मजदूरी करते हैं. चुनाव में वोट हमें पांचों विधानसभा क्षेत्रों में मिले हैं. जालौन में 90 के दशक में अपने निर्माण के दौर से ही पार्टी अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारती रही है. इस बार भाकपा(माले) के लोकसभा प्रत्याशी राम सिह को इस सीट पर पिछले किसी भी चुनाव की तुलना में अधिक – 8792 वोट मिले (2014 में 4761 वोट मिले थे). कालपी विधानसभा क्षेत्र में 1977, उरई विधानसभा क्षेत्र में 1574, माधौगढ़ विधानसभा क्षेत्र से 2068 (तीनों विधानसभा सीटें जालौन जिले की) तथा भोगनीपुर (कानपुर) व गरौठा (झांसी) के दो विधानसभा क्षेत्रों में सम्मिलित रूप से 3100 से ऊपर वोट मिले हैं. जालौन जिले में दलितों और कमजोर तबकों पर सामंती उत्पीड़न के खिलाफ पार्टी का मुख्य सघर्ष रहा है. चुनाव की शुरूआत में जालौन के जिला मुख्यालय उरई में एक लोकसभा स्तरीय कैडर कन्वेशन आयोजित किया गया, जिसमें कार्यकर्ताओं की ठोक-ठाक संख्या में भागीदारी हुई थी. इसके बाद सभी ब्राचों की बैठकें करके निचले स्तर तक पार्टी सदस्यों को सक्रिय करने का प्रयास किया गया. चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अन्य जिलों से अाइसा, ऐपवा और ऐक्टू के कामरेडों का सहयोग भी मिला. प्रचार में एक चारपहिया वाहन और कुछ मोटर साइकिलें लगी रहीं. तीखे ध्रुवीकरण के बावजूद पार्टी को कामकाज को हर इलाके में वोट मिले हैं. आगे कामकाज को और व्यवस्थित व विस्तारित करने पर जोर बड़ाना होगा.
गाजीपुर सीट पर इस बार एक ओर भाजपा और दूसरी ओर गठबंधन के बसपा प्रत्याशी के बीच तीखा ध्रुवीकरण था, जिसमें जीत बसपा को मिली. माले प्रत्याशी ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा (केन्द्रीय कमेटी सदस्य) को 4,946 वोट मिले, जबकि 2014 में उन्हें 6,512 वोट मिले थे. यह हमारी पार्टी के कामकाज का पुराना इलाका है. जमनिया विधानसभा में केन्द्रीकरण से शुरू कर अब संसदीय सीट के करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी का फैलाव है. वनवासी (मुसहर) सामाजिक समूह के बीच कामकाज के अलावा अन्य कमजोर सामाजिक समूहों के प्रश्नों पर भी पार्टी संघर्ष में रहती है. किसी अन्य जिले के बनिस्पत यहां पार्टी की सबसे अधिक सदस्य संख्या है. हालांकि मतों में गिरावट के मूल में सांगठनिक कमजोरी के साथ जनाधार में क्षरण स्पष्ट रूप से दीखता है. जहां तक चुनाव प्रचार की बात है, तो यह ऊपर से ठीकठाक था, पर निचले स्तरों पर पार्टी ढांचों और कार्यकर्ताओं-सदस्यों को सक्रिय करने के लिए काफी नहीं था. चौराहों पर नक्कुड़ सभा के साथ-साथ ग्राम बैठकों को संगठित कर पूरे लोकसभा क्षेत्र में प्रचार अभियान चलाया गया. प्रत्याशी के प्रचार वाहन के अलावा मोटरसाइकिल और पैदल जत्थों से प्रचार किया गया. राष्ट्रीय के साथ स्थानीय जन मुद्दे भी उठाये गए . अन्य जिलों के वरिष्ठ कामरे़ड भी प्रचार में जुटे. इसके बावजूद, वोटों में गिरावट की गहन और बूथ स्तर पर जांच-पड़ताल की जरूरत है, जिससे कि आगे के लिए महत्वपूर्ण सबक लिए जा सकें.