वर्ष - 28
अंक - 27
22-06-2019

saroj

भोजपुर के रंगकर्मी कामरेड अजिताभ 18 जून 2019की रात को हमारे बीच नहीं रहे. वे सुप्रसिद्ध कथाकार मधुकर सिंह के मंझले पुत्र थे. वे डायबीटीज के मरीज थे. तीन-चार दिनों से उन्हें बुखार था. आरा से डाक्टर ने पटना रेफर कर दिया, तो उनके परिजन उन्हें पटना ले गए. रात 11बजे तत्काल कोई डाक्टर नहीं मिला, पटना में ही उन्होंने अंतिम सांसें लीं. वे अपनी उम्र का अर्धशतक भी पूरा नहीं कर पाए. अजिताभ का पुकारू नाम सरोज था.

अजिताभ ‘युवानोति’ के प्रतिभावान रंगकर्मी थे. उन्होंने ‘दृष्टिकोण’ के बैनर तले भी नाटक किए. युवानीति के तत्कालीन सचिव सुनील सरीन के अनुसार 1990 के आसपास देवाशीष चक्रवर्ती के वर्कशॉप के दौरान वे युवानीति से जुड़े थे. उसके बाद उन्होंने गांव-गांव घूम कर नाटक किए. उन्होंने ‘पदचाप’, ‘हजार चौरासीवें को मां’, ‘मास्टर साहब’ जैसे मंचीय नाटकों के अतिरिक्त ‘मेरा नहीं तेरा नहीं सब कुछ हमारा’, ‘राजा का बाजा’, ‘ये किसका लहू है कौन मरा’, ‘जामुन का पेड़’, ‘बतिया सांचे ह’ समेत कई नुक्कड़ नाटकों में काम किया.

 सुनील सरीन के अनुसार ऑन द स्पॉट स्टोरी गढ़ने में अजिताभ बहुत माहिर थे. ‘बतिया सांचे ह’ नाटक इसी तरह बना था, जो बहुत लोकप्रिय रहा.

अजिताभ के अभिनय को खासियत यह थी कि वे कभी भी दबाव में नहीं रहते थे. कई बार पात्र की भूमिका में निर्देशक की कल्पना के विपरीत वे कुछ ऐसे बदलाव कर देते थे कि उसके चरित्र का प्रभाव बढ़ जाता था. ‘मास्टर साब’ में एक खल-पात्र की भूमिका निभाने के दौरान उन्होंने उसे थोडा ‘कॉमिक टच’ दे दिया था, जिससे उसका लंपट चरित्र खिल उठा था. उसी नाटक में उन्होंने भाकपा(भाले) के एक वरिष्ठ साथी की रेयर किस्म की आवाज को उस चरित्र की आवाज बना डाली थी. वे खुद भी भाकपा-माले के सदस्य थे. विडंबना यह है कि ऐसे प्रतिभावान कलाकार के लिए मौजूदा व्यवस्था में ढंग का कोई रोजगार न था.

अजिताभ बेहद खुशमिजाज कलाकार थे. उनकी शरारतों और सबको हंसाते रहने की आदत को कभी भुलाया नहीं जा सकता. वे हम सबके ख्यालों में अपने उसी खुशनुमा-शरारती स्वभाव वाले साथी की तरह रहेंगें. उन्हें जन संस्कृति मंच की ओर है हार्दिक श्रद्धांजलि !