उत्तर प्रदेश में गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) के उम्मीदवार कामरेड ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा का जन्म 18 सितंबर 1958 को जमानिया तहसील थाना क्षेत्र के लहुआर गांव के गरीब किसान परिवार में हुआ था. वे छात्रा जीवन से ही कम्युनिस्ट आंदोलन में काम कर रहे हैं. इमरजेन्सी के बाद 1977 में भाकपा(माले) के नेतृत्व में चल रहे छात्रा आंदोलन के संपर्क में आए तथा पी.एस.ओ. में सक्रिय हुए. माले से संपर्क के बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताराचंद होस्टल के प्रतिनिधि चुनाव में कार्यकारिणी के सदस्य बने. वकालत पास करने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट में वकालत शुरू की लेकिन जल्द ही वकालती पेशा छोड़कर सामंतवाद विरोधी किसान आंदोलन से जुड़ गये. उन्होंने 1992 में गाजीपुर जमानिया बार्डर क्षेत्र में सामंतवाद विरोधी संघर्ष को आगे बढ़ाने में पार्टी का नेतृत्व किया. खेती किसानी के संकट के खिलाफ संघर्ष को नेतृत्व देने के काम में वे लगातार जुड़े रहे. इसके साथ ही इलाके में पार्टी के विस्तार में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
भाकपा(माले) की ओर से गाजीपुर जिले में पंचायत चुनाव के दौरान वे सन् 2000 में पंचायत सदस्य का चुनाव जीते और 2000 से लेकर 2005 तक जिला पंचायत सदस्य रहे. चूंकि जिला पंचायत के अध्यक्ष पद के चुनाव में सपा और बसपा की ओर से दो माफिया लड़ रहे थे, इसलिये एकमात्र ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ऐसे जिला पंचायत सदस्य थे जिन्होंने वोट न देकर अपना मत सुरक्षित रखा और इस तरह पूरे जिले में भाकपा(माले) की एक माफिया-विरोधी राजनीतिक पहचान बना पाए.
हाल में मंदसौर में किसानों पर हुई पुलिस फायरिंग के खिलाफ जारी संघर्ष में देशभर में 210 किसान संगठनों ने मिलकर खेती किसानी के संकट, अपनी फसल का उचित रूप से ड्यौढ़ा दाम और किसान कर्ज मुक्ति को लेकर देशव्यापी स्तर पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय का निर्माण हुआ है, कामरेड ईश्वरी प्रसाद उसके एक केन्द्रीय नेता हैं. वे अपने क्षेत्र के ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश के किसानों के सवालों को लेकर आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं. गाजीपुर में ताड़ीघाट मऊ रेलवे लाइन प्रभावित किसानों को जमीन के सर्किल रेट से मुआवजा दिलाने और जबरिया भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के संघर्षों में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं. किसान संघर्ष के चलते रेल कम रोड ब्रिज के काम को रोक दिया है. वे 2013 में भाकपा(माले) की केन्द्रीय कमेटी सदस्य चुने गये. वे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव हैं और लोकप्रिय किसान नेता हैं.
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) की उम्मीदवार कामरेड जीरा भारती जिला मिर्जापुर, तहसील मड़िहान, ग्राम रेक्सा खुर्द के एक दलित एवं भूमिहीन ग्रामीण मजदूर परिवार से आती हैं. वे अपने परिवार में मुखिया के बतौर मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करती थीं. वर्ष 2002 में पार्टी एवं कम्युनिस्ट आंदोलन से इनका संपर्क हुआ. उस समय मिर्जापुर के ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सल उन्मूलन के नाम पर केंद्र की भाजपा सरकार की ‘एक के बदले चार मारो’ मुहिम और सपा-बसपा की राज्य सरकार की पुलिस कौंबिंग अभियान के तहत दलितों-आदिवासियों को केंद्र कर भीषण दमन-उत्पीड़न चलाया जा रहा था. जेल भेजने एवं फर्जी एनकाउंटर की घटनाएं आम हो गई थीं. भाकपा(माले) दलितों-आदिवासियों के पक्ष में खड़ी होकर सरकार के इस दमन अभियान के खिलाफ मजबूती से लड़ रही थी. भाकपा(माले) से संपर्क होने के बाद का. जीरा भारती पार्टी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों में शामिल हुईं और जल्द ही सक्रिय हो गईं. उन्होंने इस दमन का मुकाबला करते हुए गरीब जनता को गोलबंद किया और सरकार को अपना दमन अभियान रोकना पड़ा. इस आंदोलन में का. जीरा की जन नेता के बतौर पहचान बन चुकी थी. इसके बाद ग्रामीण गरीबों को जमीन, मजदूरी, आजीविका के सवाल पर उन्होंने नये-नये आंदोलनों की शुरूआत की. पटेहरा ब्लॉक में ग्रामीण मजदूरों को मात्रा 60 रु. की दैनिक मजदूरी मिलती थी. मजदूरी वृद्धि की मांग पर वहां आंदोलन तेज हुए और मजदूरों ने हड़ताल संगठित की. तब तहसील प्रशासन ने त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई और न्यूनतम मजदूरी देना तय हुआ. लेकिन बाद में सामंती नवकुलक ताकतें तय मजदूरी देने से पीछे हट गईं. इस पर पुनः धारावाहिक आंदोलन शुरू हो गए. नवकुलक सामंती ताकतों ने आन्दोलनकारियों पर जानलेवा हमला किया और प्रशासन ने उल्टे का. जीरा के पूरे परिवार पर फर्जी मुकदमा लाद कर जेल भेजने की कोशिश की. इसको लेकर ऐपवा ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवाद किया और जिले में पार्टी ने आंदोलन संगठित किया जिसमें हजारों दलित, आदिवासी समाज के लोग खड़े हुए और का. जीरा जी के गांव में प्रतिवाद मार्च एवं सभा संगठित की गई. अंततः प्रशासन को पीछे हटना पड़ा. मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार और लूट के खिलाफ तथा वनाधिकार कानून को लागू करने की आदिवासियों की लोकप्रिय मांग पर, और महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ने वाली जुझारू नेता के बतौर का. जीरा जी की मजबूत पहचान पूरे जिले के अंदर बनी हुई है.
का. जीरा भारती 2014 में भी मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) की प्रत्याशी रही हैं. वे 2015 में जिला पंचायत सदस्य पद के लिए भी चुनाव लड़ चुकी हैं.
उत्तर प्रदेश के जालौन लोकसभा क्षेत्र से भाकपा(माले) के उम्मीदवार का. राम सिंह चौधरी 14 वर्ष की आयु में ही छात्रा राजनीति से प्रेरित होकर कम्युनिस्ट आंदोलन में जुड़े थे. उनके पिता वृंदावन एक मजदूर थे. कामरेड राम सिंह पहले अपने क्षेत्र के सोशलिस्ट आंदोलन के नेता थे. इसके बाद सीपीआई में भी का. राम सिंह चौधरी अगुवा कतारों के नेता रहे, वे सीपीआई की खेत मजदूर सभा में प्रांतीय नेता रहे. लेकिन सीपीआई की संशोधनवादी नीतियों के चलते का. चौधरी आईपीएफ से जुड़ गए. वे दर्जनों बार राजनीति आन्दोलनों के दौरान जेल गए.
भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता का. ईश्वर चंद के जनपद जालौन आने के बाद का. राम सिंह चौधरी ने भाकपा(माले) की सदस्यता ग्रहण की. चुनावी मैदान में सबसे पहले उन्होंने जालौन नगर से सभासद एवं अध्यक्षीय पद के लिए चुनाव लड़ा. इसके बाद भाकपा(माले) के उम्मीदवार के बतौर 2014 में मोदी लहर के खिलाफ जालौन से चुनाव लड़ते हुए उन्होंने 4767 मत प्राप्त किये. वर्तमान समय में का. राम सिंह चौधरी निर्माण मजदूर यूनियन (उ.प्र.) के सह सचिव एवं ऑल इंडिया कंसट्रक्शन वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. इस हैसियत से वे मजदूर आंदोलन को तीखा बनाकर प्रदेश के अन्य जिलों में निर्माण मजदूरों के बीच यूनियन और पार्टी का कामकाज बढ़ा रहे हैं.