वर्ष - 28
अंक - 9
16-02-2019

उपयुक्त चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में माओवादी पार्टी की पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी के सचिव कामरेड सुदीप चोंगदार की जेल में हुई मौत हिरासत में हत्या के समतुल्य है, और भाकपा(माले) इसकी कड़ी निंदा करती है.

कामरेड सुदीप चोंगदार वर्ष 2010 में हुई उनकी गिरफ्तारी के बाद से पश्चिम बंगाल की जेल में एक राजनीतिक बंदी थे. ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार जिन वादों के आधार पर निर्वाचित होकर सत्ता में आई थी, उनमें से एक था तमाम राजनीतिक बंदियों को रिहा करना. अवकाशप्राप्त जस्टिस मलय सेनगुप्ता के नेतृत्व में गठित राजनीतिक बंदी रिहाई कमेटी ने सिफारिश की थी कि सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाये. मगर फिर भी तृणमूल कांग्रेस की सरकार अपने वादे से मुकर गई और उसने इस सिफारिश पर अमल करने से इन्कार कर दिया. इसके बजाय, तृणमूल कांग्रेस सरकार जेलों में कैद राजनीतिक बंदियों के मानवाधिकार का उल्लंघन करती जा रही है, और साथ ही अक्सर निरंकुश अत्याचारी कानूनों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल करते हुए नये-नये राजनीतिक बंदी पैदा भी करती जा रही है. चिकित्सकीय सुविधा से वंचित रखना मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन है और इसके फलस्वरूप हुई मौत हिरासत में हत्या ही है. पश्चिम बंगाल की जेलों में हिरासत में हत्या की घटनाओं की दर अत्यंत ऊंची है : पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग (डब्लूबीएचआरसी) की एक रिपोर्ट में दिखलाया गया है कि नवम्बर 2016 से लेकर मई 2017 की अवधि में राज्य में हिरासत में लगभग सौ मौतें हो चुकी हैं.

भाकपा(माले) मांग करती है कि कामरेड सुदीप चोंगदार की हिरासत में मौत के लिये जेल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाये, पश्चिम बंगाल एवं अन्य राज्यों में जेलों के हालात तथा कैदियों को उपलब्ध सुधार की सुविधाओं की जांच करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में कमेटी बनाई जाये, और पश्चिम बंगाल समेत समूचे भारत की जेलों में कैद राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाय.