भारत को एक गहरा धक्का लगा था जब तीन दशक पहले संघ ब्रिगेड ने दिन-दहाड़े ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. लेकिन उस कार्रवाई की हिंसा और नतीजतन सैकड़ों लोगों की जान जाने के बावजूद अनेक भारतीय उसे महज मस्जिद-मंदिर विवाद के बतौर ही देखते रहे थे. हाल-हाल तक सर्वोच्च न्यायालय विध्वंस की उस कार्रवाई को अपराध, कानून के राज का जबर्दस्त उल्लंघन, मान रहा था; किंतु आश्चर्यजनक ढंग से उसने उन्हीं अपराध-कर्ताओं को उस भूमि पर स्वामित्व दे दिया और उस शहर में मस्जिद के प्रतिस्थापन के लिए एक दूसरी जगह आवंटित कर दी. बहरहाल, अब जिस मंदिर का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ है, उसको लेकर जिस तरह का तमाशा किया जा रहा है, उससे सबके सामने स्पष्ट हो जाना चाहिए कि अभी तक कैसी लड़ाई चल रही थी. यह लड़ाई सिर्फ मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाने की नहीं थी, बल्कि हिंदू राष्ट्र के आरएसएस के सपने के अनुसार भारत को नयी शक्ल देने की लड़ाई थी.
जो व्यवस्था उभर रही है उसके चिन्ह हर गुजरते दिन के साथ बिल्कुल सापफ होते जा रहे हैं. मंदिर का उद्घाटन अथवा प्राण-प्रतिष्ठा समारोह विशाल राजकीय आयोजन बन गया. धर्म और शासन का घोलमट्ठा अब लगभग पूरा हो चुका है. जहां नए संसद भवन के उद्घाटन को पुरोहितों द्वारा प्रधानमंत्री को तमिलनाडु से लाया गया राजशाही प्रतीक ‘सेंगोल’ प्रदान कर एक धर्मिक आयोजन बना दिया गया, वहीं अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन पूरी तरह राज्य-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम बन गया. नए मंदिर में मूर्ति ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह के लिए खुद को ‘तैयार’ करने हेतु प्रधानमंत्री ने देश भर में मंदिर महायात्रा की, जिस दौरान उनके सुरक्षा कर्मियों ने भी परंपरागत धर्मिक पोशाक पहन रखे थे. और इन सबसे ऊपर मंदिर उद्घाटन के लिए सभी सरकारी दफ्तरों व प्रतिष्ठानों, और यहां तक कि अनेक अस्पतालों में भी आधे दिन की सरकारी छुट्टी घोषित कर दी गई!
अयोध्या अब राम के नाम पर एक और मंदिर का स्थान ही नहीं रह गया है, बल्कि वह राज्य सत्ता, हिंदूवाद और कॉरपोरेट हितों के बढ़ते संलयन के आधार पर भारत के पुनर्गठन की जारी प्रक्रिया का भी प्रतीक बन गया है. समूचे भाजपा-आरएसएस नेतृत्व और शीर्ष संवैधानिक पदों पर आसीन शख्सियतों के साथ-साथ भारत के सर्व-प्रमुख कॉरपोरेट चेहरे भी उस कार्यक्रम में मौजूद थे. जो प्रधानमंत्री पहले खुद को जनता का ‘प्रधान सेवक’ बताया करते थे, वे अब स्वयं को ईश्वर का चुना हुआ प्रतिनिधि बताने लगे हैं, जबकि उनके भक्तों ने तो उन्हें ईश्वर के अवतार के बतौर ही पेश करना शुरू कर दिया है. एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में आधुनिक भारत का विचार तेजी से ओझल होता जा रहा है और यह गणतंत्र वस्तुतः ईश्वरीय विधान से युक्त व्यवस्था के बतौर कॉरपोरेट समर्थित राजतंत्र में रूपांतरित होता जा रहा है.
मंदिर अभी पूर्णतः तैयार नहीं हुआ है (यही वजह है कि सभी शंकराचार्य इस प्राण प्रतिष्ठा को धर्मशास्त्र के अनुसार त्रुटिपूर्ण बता रहे हैं), लेकिन पूरा शहर निर्माण और सौंदर्यीकरण की बड़ी-बड़ी गतिविधियो और साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों के विस्थापन और घरों, दुकानों और यहां तक कि पूजा-स्थलों के ध्वंस का भी केंद्र बन गया है, तीन प्रमुख सड़कों का पुनर्नामकरण हुआ है - राम पथ, भक्ति पथ और राम जन्मभूमि पथ - और इनका चौड़ाकरण व सौंदर्यीकरण भी किया गया है जिसमें खबरों के मुताबिक 30,000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. खबर मिली है कि राम पथ के निर्माण की प्रक्रिया में 2,200 दुकानों, 800 घरों, 30 मंदिरों, 9 मस्जिदों और 6 मकबरों को गिरा दिया गया है. अयोध्या को विश्व-स्तरीय पर्यटक स्थल के बतौर विकसित करने की मुहिम का मतलब अडानी ग्रुप का आगमन, स्थानीय किसानों व कृषि की कीमत पर मुनाफेमंद भूमि बाजार का उदय तथा सरयू नदी के तट पर पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में इस लिहाज से खतरनाक विनिर्माण भी होता है.
धर्म, राज्यसत्ता और बड़े व्यावसायिक हितों का सम्मिलन धर्म को व्यक्तियों की निजी दुनिया से हटाकर बड़े व्यवसाय और भव्य आयोजनों के भंवर में ले जा रहा है. वाराणसी, मथुरा और अब अयोध्या में कोरीडोर के निर्माण के दौरान पुरानी इमारतों, दुकानों और छोटे मंदिरों को भी बड़े पैमाने पर ढहा दिया गया है. छोटी कृषि और छोटे व्यापार के कॉरपोरेट अधिग्रहण की तरह ही धर्म के क्षेत्र में भी केंद्रीकरण और संकेंद्रण की समान परिघटना देखी जा रही है. और विशेषतः आगामी लोकसभा चुनावों के संदर्भ में राम के राजनीतिकरण ने राम मंदिर और मोदी स्मारक के बीच का फर्क भी धुंधला कर दिया है. अयोध्या में मोदी के बड़े-बड़े कट-आउटों से राम के कट-आउट भी ढंक गए हैं. सर्वोच्च नेता की व्यक्ति पूजा में बहुतेरे आम लोगों की राम भक्ति का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है.
दस वर्षों तक सांप्रदायिक नफरत की सौदागरी और धोखाधड़ी से भरे लोकप्रियतावाद के बाद आगामी चुनावों में अपनी सत्ता बचाने के जुनून में मोदी सरकार अयोध्या में राम मंदिर को अपने चुनावी तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना चाहती है. भारत के बारे में संघ ब्रिगेड की हिंदू वर्चस्ववादी कल्पना का भी यह सर्वाधिक स्पष्ट प्रतीक है जो वह बाहरी दुनिया को दिखाना चाहता है. रामायण निश्चय ही सबसे लोकप्रिय महाकाव्यों में एक है, किंतु भारत की सांस्कृतिक विविधता के अनुकूल ही रामायण के भी अनेकानेक संस्करण हैं और इसकी भिन्न-भिन्न तरह की व्याख्याएं भी हैं. बहुसंख्यावादी एकरूपता - चाहे वह र्ध्म, भाषा, भोजन के क्षेत्र में हो अथवा संस्कृति के अन्य किसी क्षेत्र में हो - लादने के लिए भारत की विविधतामूलक पहचान को नष्ट करने का कोई भी प्रयास एकताबद्ध देश के बतौर भारत के अस्तित्व के लिए ही विनाशकारी साबित होगा. धर्मनिरपेक्ष और विविधतापूर्ण लोकतंत्र ही दुनिया की सबसे विशाल आबादी वाले वैविध्यपूर्ण देश के लिए अस्तित्व की एकमात्र जीवंत विधा हो सकती है.
संयोगवश, 22-23 जनवरी 2024 के बीच की रात बजरंग दल नेता दारा सिंह के उकसावे पर एक भीड़ के द्वारा ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उसके दो पुत्रों फिलिप (10 वर्ष) और टिमोथी (6 वर्ष) की भयावह हत्या की 25वीं सालगिरह भी थी. राम के प्रति अपनी निष्ठा को जाहिर करने के लिए ‘जय श्रीराम’ मंत्र का इस्तेमाल करने वाला संघ ब्रिगेड क्रूर सांप्रदायिक हिंसा की कार्रवाई को अंजाम देने और उसका गुणगान करने में भी युद्धघोष के बतौर इस इस नारे का उपयोग करता है. आम तौर पर यह दिखाई देता है कि संघ ब्रिगेड ऐसे आतंकी अपराधियों का बचाव करता है और उनको सम्मानित करता है जिन्हें न्यायालय द्वारा सजा मिल चुकी होती है. संघ ब्रिगेड के लिए, जो 6 दिसंबर को ‘शौर्य दिवस’ के बतौर मनाता है, 22 जनवरी वस्तुतः नया ‘गणतंत्र दिवस’ बन जाएगा. हम भारत के लोगों को, जिनके पूर्वजों ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र के बतौर भारत की उद्घोषणा के लिए संविधान को अपनाया था, फासिस्टों के इस खतरनाक एजेंडा के बरखिलाफ इस संविधान और गणतंत्र को बचाने के लिए पहले के किसी भी समय की तुलना में अधिक कठोर संघर्ष करना होगा.
( लिबरेशन का सम्पादकीय, फरवरी 2024 )