पिछले दिनों भाकपा(माले) की एक केन्द्रीय टीम ने ओडिशा राज्य के जगतसिंहपुर जिले के ढिंकिया गांव का दौरा किया और उड़ीसा पुलिस के दमनात्मक कार्रवाई का डटकर विरोध करनेवाले ग्रामीणों को न्याय दिलाने के लिए सड़क से अदालत तक व्यापक आंदोलन चलाने व इसके लिए एकजुटता कायम करने का संकल्प लिया.
जांच टीम ने तथ्यात्मक रूप से पाया कि जगतसिंहपुर जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा ढिंकिया के ग्रामीणों के साथ जुल्म अब भी जारी है. पुलिस उच्च न्यायालय के निर्देश का पूर्ण उल्लंघन कर रही है. ग्रामीणों के गांव से बाहर आने-जाने पर भी रोक है और राशन जैसी आवश्यक वस्तु लाने के लिए बाहर निकलने पर भी उन्हें पुलिस व प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ रही है.
23 जनवरी 2022 (रविवार) को भाकपा(माले) केंद्रीय टीम की एक जांच दल ने जिसमें बगोदर (झारखंड) के भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह, मार्क्सवादी समन्वय समिति के नेता व पूर्व विधायक अरूप चटर्जी, आदिवासी संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया, भाकपा(माले) की ओडिशा राज्य समिति के सदस्य और प्रमुख श्रमिक नेता महेंद्र परिदा व मधुसूदन आदि शामिल थे, ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के ढिंकिया गांव के ग्रामीणों के शांतिपूर्ण आंदोलन और उस पर हुई पुलिस बर्बरता का जायजा लिया.
ग्रामीणों ने जांच दल को बताया कि पिछले दिनों पुलिस ने ग्रामीणों पर बर्बरतापूर्ण दमन अभियान चलाया. पुलिसिया लाठी चार्ज में महिलाओं और बच्चों सहित 40 से अधिक लोग घायल हो गए थे. इसका संज्ञान लेते हुए ओडिशा उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी 2022 को इस पर तत्काल रोक लगाने का आदेश देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं और लोक कल्याण के लिए सुविधाएं पुनः बहाल कराने को कहा था.
23 जनवरी 2022 को भी, जब जांच दल गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि पुलिस के आला अधिकारी एक प्लाटून वाहन के साथ अपनी जीप में सवार होकर आंदोलनकारी स्थानीय नेताओं को घेरने का प्रयास कर रहे थे. लोगों से पूछताछ में टीम को पता चला कि पुलिस ने उस दिन भी 3 स्थानीय आंदोलनकारी नेताओं को हिरासत में लिया था.
पुलिस ने 65 वर्षीय शांति लता मलिक को उस समय धमकाते हुए खदेड़ा जब वह तालाब के पास अपना काम कर रही थी. उसे अर्धनग्न अवस्था में भागते हुए जंगल में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा. उसको धमकी दी गई कि अगर वह पुलिस के सामने पेश नहीं हुई तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. जांच टीम ने पुलिस से कड़े सवाल पूछे, उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया और उसे वापस लौटने के लिए मजबूर किया.
जांच दल ने व्याप्त पुलिसिया भय को दूर करने के गांव वालों को एकजुट किया और पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ नारेवाजी करते हुए पूरे गांव में मार्च किया. आतंकित ग्रामीणों को जो भय के मारे जहां-तहां छुपे हुए थे, बाहर लाया गया और तत्काल उनकी एक बैठक आयोजित की गई. बैठक को भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह व मासस नेता अरूप चटर्जी, आदिवासी संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक देवकीनंदन बेदिया, पत्रकार सुरेंद्र पातरा और अनमोल ने संबोधित किया और गांव वालों को हिम्मत बंधायी.
उच्च न्यायालय द्वारा सभी तरह की पुलिसिया कार्यवाही पर रोक के स्पष्ट निर्देश के बावजूद जमीनी स्थिति विकट बनी हुई है. स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्हें अभी भी पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है. पुलिस ने अपने अभियान के दौरान गांव के पान बागानों की खेती को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था. अब अपनी इस कार्यवाही के खिलाफ शिकायत दर्ज करनेवाले लोगों पर अपनी शिकायत वापस लेने का दबाव बना रही है और उन्हें सादा कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर रही है.
अपने समर्थकों की मदद से पुलिस पान के बागानों को नष्ट करना अब भी जारी रखे हुए है. पुलिसिया लाठी चार्ज में घायल लोगों का कोई इलाज नहीं हो रहा है. घायलों को दूर के एक अस्पताल में अपना इलाज कराना पड़ा. घायल अवस्था में पड़े हुए कई बुजुर्ग तो अस्पताल भी नहीं जा पाए हैं.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि लोगों के दिलों में लगातार डर पैदा करते हुए पुलिस रात में इलाके में गश्त करती रहती है और उनके दरवाजे खटखटाती है. इसने ग्रामीणों, खासकर युवाओं को जंगलों में छिपने के लिए मजबूर कर दिया है. इसकी वजह से लोगों को ठंड के इस मौसम में भारी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहनी पड़ रही है.
गांवावालों के साथ पुलिसिया टकराव की वजह है एक सरकारी परियोजना के लिए इस गांव में बरसों पहले किया गया भूमि अधिग्रहण. जानकारी हो कि इस परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहित किए हुए 5 वर्षों से अधिक का अर्सा गुजर चुका है, लेकिन परियोजना शुरू नहीं हुई है. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत 5 साल से अधिक समय के लिए इच्छित उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं की गई भूमि लोगों को वापस की जानी चाहिए. जबकि, सरकार ने अवैध रूप से अधिग्रहित की गई इस भूमि को भूमि बैंक (बैंक ऑफ इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ ओडिशा) में डाल दिया है और अब इसे जेएसडब्ल्यू को सौंपने का इरादा बना रही है. भूमि अधिग्रहण के एक दशक बाद ऐसा किया जा रहा है.
यह क्षेत्र समुद्रतटीय है और यहां की मिट्टी काफी उपजाऊ है. साथ ही, यहां सिंचाई की भी अच्छी है व्यवस्था है. इस वजह से यहां धान, पान और मछली की अच्छी खेती होती है. यहां सदियों से लोग बसे हुए हैं और प्राकृतिक आपदाओं से संघर्ष करते हुए उन्होंने गांव बसाया है. अपनी आजीविका वे खेतों में साल में दो बार धान की फसल उगाकर, तीन बार मछली का उत्पादन कर और तीन से चार बार पान की खेती कर हासिल करते हैं. 2005 में, पहले दक्षिणी कोरियाई विदेशी कंपनी पोस्को यहां स्टील प्लांट लगाने के लिए आई थी. उड़ीसा सरकार ने उन्हें चार पंचायतों के गोबिंदपुर, पटना, महा व एक अन्य पंचायत में करीब 4 हजार एकड़ भूमि देने का करार किया था. ग्रामीणों को कुछ जमीनों का मुआवजा भी दिया गया था. लेकिन, ग्रामीणों ने पोस्को के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था जिसके कारण पोस्को कंपनी को वापस जाना पड़ा था. सरकार ने चिढ़कर इस भूमि पर बसे ग्रामीणों को बंदोबस्ती का परचा नहीं दिया और उक्त भूमि को भूमि बैंक में डाल दिया. उडीसा सरकार ने उसके बाद मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के बहुत करीबी माने जानेवाले जिदंल की कंपनी का इस उपजाऊ भूमि पर उधोग लगाने के लिए बुलाया और करीब 2900 एकड़ भूमि मुहैया कराया. फिलहाल, ढिंकिया गांव की लगभग 1000 एकड़ भूमि नवीनढल जिंदल को स्टील पावर प्लांट के लिए दे दी गई है. इसका विरोध करने पर सरकार ने यहां विशेष पुलिस बल को तैनात किया और विगत 14 जनवरी 2022 को कर ग्रामीणों के ऊपर बर्बरतापूर्ण लाठी चार्ज करवाया जिसमें कई महिलायें, पुरुष और बच्चे घायल हुए. पुलिस ने भूमि आंदोलन के नेताओं को गिरफ्तार किया, पान की खेती को नष्ट किया और दिन-रात दहशत फैलाकर लागों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर रही है.
– देवकीनंदन बेदिया