बुद्धिजीवियों की बैठकों, कार्यक्रमों का दौर शुरू आजादी के 75 साल का जन अभियान बिहार में जिला स्तर पर शुरू हो गया है. 18 नवंबर को पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में आयोजित जनकन्वेंशन के बाद अब तक कई जिलों में इस अभियान को गति देने के लिए बुद्धिजीवियों-इतिहासकारों व संस्कृतिकर्मियों की बैठकें आयोजित हुई हैं. कई कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं. आजादी के आंदोलन के मूल्यों व विचारों को जनता तक ले जाने के इस अभियान को भरपूर समर्थन भी मिल रहा है.
मोतिहारी में बत्तख मियां की बरसी पर जनकन्वेंशन
चंपारण का स्थान बिहार के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह वही जगह है जिसने गांधी को गांधी बनाया. इतिहास के ओरल तथ्यां का सहारा लिया जाए, तो 1917 के चंपारण सत्याग्रह में एक ऐसा नाम सामने आता है, जिसपर इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में कम ही चर्चा आती है. वह नाम है बत्तख मियां का. कहानी यह है कि जब गांधी जी चंपारण आए थे, तो वहां नील कोठी के मालिक इरविन ने गांधी जी को जान से मार डालने की कोशिश की थी. अपने खानसामा बत्तख मियां को उन्होंने गांधी जी के दूध में जहर मिलाने को कहा था, लेकिन बत्तख मियां ने इससे इंकार कर दिया और गांधी जी की जिंदगी की रक्षा की थी. बदले में अंग्रेजी हुकूमत ने बत्तख मियां की पूरी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें कारागार में डाल दिया. इस घटना की चर्चा चंपारण में आम है.
यदि इतिहास के तथ्यों को खंगाला जाए तो यह भी मिलता है कि 1917 में गांधी जी के लिखे अनेक दस्तावेजों को अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लिया था. शायद इस कारण यह प्रमाण न मिल रहा हो. जो भी हो, गांधी संग्रहालय के ब्रजकिशोर सिंह कहते हैं कि आजादी के बाद जब डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इस घटना की चर्चा की थी. राजेन्द्र प्रसाद ने जिलाधिकारी को 50 एकड़ जमीन उन्हें दिलाने को कहा. बत्तख मियां के परिवार को बिहार सरकार ने उनके गृह निवास से 80 किलोमीटर दूर 30 एकड़ जमीन बंदोबस्त कर दी, किंतु आज तक वह उनके परिवार के कब्जे में नहीं आ सकी. आजादी के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले बत्तख मियां अभी भी एक गुमनाम व्यक्ति ही बने हुए हैं. अवश्य, लालू प्रसाद यादव के शासन में उनके नाम पर कुछ काम हुए लेकिन जमीन मिलने का रास्ता अब भी बंद पड़ा है.
बहरहाल, 4 दिसंबर को बत्तख मियां की बरसी पर माले महासचिव कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य उनके गांव अजगरी पहुंचे और वहां उनकी मजार पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. साथ में, माले के राज्य सचिव कुणाल, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफसर विद्यार्थी विकास, सिकटा के विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, आजादी के 75 साल जन अभियान के सदस्य कुमार परवेज सहित बड़ी संख्या में स्थानीय लोग शामिल थे.
उसके बाद, गांधी संग्रहालय के प्रांगण में जनकन्वेंशन की शुरूआत हुई. जिसकी अध्यक्षता मदन प्रसाद ने की और संचालन विष्णुदेव यादव ने किया. सबसे पहले माले महासचिव ने बत्तख मियां के परिजनों को सम्मानित किया. कार्यक्रम में अच्छी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय और बुद्धिजीवियों की भागीदारी हुई. कार्यक्रम को माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के साथ-साथ प्रो. विकास विद्यार्थी, प्रो. नसीम अहमद, अजहर हुसैन, भाग्यनारायण चौधरी, भैरवदयाल सिंह, बृजकिशोर सिंह, सैफ अली, वीरेन्द्र जलान आदि ने संबोधित किया. माले महासचिव ने प्रख्यात गांधीवादी नेता व संग्रहालय के निदेशक बृजकिशोर सिंह और प्रो. नसीम अहमद को भी शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया.
इस मौके पर माले महासचिव ने कहा कि बत्तख मियां को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला है. आजादी के 75 साल में यह हम सबका दायित्व है कि ऐसे लोगां के संघर्षों को याद किया जाए और उनकी विरासत को आगे बढ़ाया जाए. मोदी सरकार आजादी के अमृत महोत्सव के नाम पर देश में जहर घोलने का ही काम रही है. हमारा देश एक बार सांप्रदायिक राजनीति के कारण टूट चुका है, यह त्रासदी दुबारा नहीं होने देंगे. हमें देश की आजादी हिंदू-मुस्लिम एकता के ही आधर पर ही मिली थी, इस विरासत की रक्षा करना हमारा दायित्व है.
जनकन्वेंशन से बापूधाम मोतिहारी रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार का नाम पुनः बत्तख मियां पर किए जाने की मांग उठाई गई. उसके बाद नेताओं ने बत्तख मियां के नाम पर छतौनी में बने पुस्तकालय का भी दौरा किया. बहरहाल, जिला प्रशासन ने उस पुस्तकालय को गोदाम बना दिया है और उसे चारों तरफ से घेर दिया गया है. उसमें आजकल ईवीएम रखने का काम हो रहा है. जनअभियान बिहार सरकार से मांग करती है कि बत्तख मियां के नाम पर बने पुस्तकालय को अविलंब खाली करवाया जाए और उसे व्यवस्थित पुस्तकालय का स्वरूप दिया जाए.
5 दिसंबर को जय भीम फिल्म का प्रदर्शन
आजादी के 75 साल जनअभियान के तहत हाल के दौर की एक बहुचर्चित फिल्म जय भीम का प्रदर्शन पटना के छज्जूबाग में की गई. फिल्म डॉ. भीमराव अंबेडकर के स्मृति दिवस की पूर्व संध्या पर प्रदर्शित की गई, जिसमें मुख्य भूमिका हिरावल, पटना के साथियों ने निभाई. फिल्म के समापन के उपरांत दर्शकां ने उसपर बातचीत भी की.
जहानाबाद-अरवल में आजादी के 75 साल
जहानाबाद-अरवल जिले में आजादी के 75 साल जनअभियान की शुरूआत करते हुए विगत 14 दिसंबर को माले जिला कार्यालय में एक बैठक हुई. जिसमें शहर के शिक्षकों, पत्रकारों व बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया. बैठक में मुख्य रूप से सेवानिवृत शिक्षक दीनानाथ सिंह, अरवल में कार्यरत हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार जयप्रकाश सिंह, जहानाबाद के लब्धप्रतिष्ठित बुद्धिजीवी राजकिशोर शर्मा, प्रो. ओमप्रकाश सिंह, जहानाबाद में कार्यरत हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार शशिकांत, किसान महासभा के नेता रामाधर सिंह, माले के जिला सचिव श्रीनिवास शर्मा, एआईपीएफ के कमलेश शर्मा, जनअभियान के कुमार परवेज, बुद्धिजीवी रत्नेश, कलेर कॉलेज के प्रो. उदय कुमार, शिक्षक गजेन्द्र शर्मा आदि ने भाग लिया.
बैठक में आजादी के 75 वें साल में जहानाबाद-अरवल में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, किसान आंदोलन व 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन के गुमनाम पहलुओं को सामने लाने पर बातचीत हुई. यह बात उभरकर सामने आई कि 1857 में जिला बिहार (तत्कालीन मगध) में 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम का जो तेवर था, वह अब भी पूरी तरह हमारे विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाया है, जबकि लगभग हरेक गांव उस दौर में आंदोलित हुआ था और पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में इस इलाके ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यहां तक कि आजादी के बाद भी यह इलाका लगातार आंदोलनरत रहा है. जिसकी कड़ी निश्चित रूप से 1857 से जुड़ती है.
बैठक में जहानाबाद के इलाके में 1857 के एक बड़े योद्धा शहीद जुल्फीकार अली पर आगामी 16 जनवरी को एक कार्यक्रम तय हुआ. इनके यहां से बाबू कुंवर सिंह के द्वारा कैथी लिपि में लिखे गए तीन पत्र मिले हैं, जिनकी छाया प्रति पटना के के.पी. जायसवाल इंस्टीट्यूट में सुरक्षित है.
कुर्था में 1942 के शहीद श्याम बिहारी सिन्हा, जिनकी हत्या अंग्रेजों ने कुर्था थाना पर यूनियन जैक उतारने के दौरान कर दी थी, कार्यक्रम किया जाएगा. अरवल में 22 जनवरी को 1857 के मगध के सबसे बड़े नायक जीवधर सिंह पर कार्यक्रम होगा. वर्तमान गया, जहानाबाद, अरवल, नवादा, नालंदा, औरंगाबाद, पलामू एवं गढ़वा (पुराना बिहार जिला) तक में आंदोलन का नेतृत्व जीवधर सिंह के ही हाथों में था, जो अरवल के खमैनी गांव के रहने वाले थे. पूरे आंदोलन का नेतृत्व किया और अंत में शहादत पाई. 30 जनवरी को अरवल स्थित गांधी पुस्तकालय में महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन होगा.
अशफाक-बिस्मिल-रौशन सिंह शहादत दिवस पर सभा
आजादी के आंदोलन में साझी संस्कृति-साझी विरासत की पताका को बुलंद करने वाले अशफाक-बिस्मिल-रौशन सिंह शहादत दिवस पर विगत 19 दिसंबर को पटना के सब्जीबाग, मुजफ्फरपुर के मोतीझील व लोहरदगा के शहीद अशफाक उल्लाह खान स्मारक स्थल, बगड़ू मोड में आजादी के आंदोलन के 75 वर्ष : जन अभियान के बैनर से कार्यक्रम आयोजित किए गए. पटना के कार्यक्रम में आइसा-इनौस व कोरस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. शाम 5 बजे सब्जी बाग चौराहे पर मंच लगाकर आजादी के आंदोलन के तीनों शहीदों को याद किया गया और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर कोरस ने ‘हम हैं इसके मालिक’ सहित कई गीतों का गायन किया. देश के नाम फांसी के पहले रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाकउल्ला खां द्वारा लिखे गए पत्रों का पाठ किया गया. मुहल्लेवासियों ने भी खड़े होकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
वक्ताओं ने कहा कि 19 दिसंबर को रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्लाह खां को फैजाबाद व रौशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई थी. अशफाक-बिस्मिल की शहादत उन तमाम लोगां को एक करारा जवाब है, जो आज देश में हिंदु-मुसलमान का कार्ड खेल रहे हैं और मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं. हकीकत यह है कि देश की आजादी के लिए एक कट्टर आर्यसमाजी रामप्रसाद बिस्मिल और एक नमाजी अशफाक उल्लाह खां ने एक साथ शहादत दी और यह भी आगाह किया था कि यदि देश को आजादी चाहिए तो हिंदु-मुस्लिम एकता को मजबूत बनानी होगी. यही साझी संस्कृति व साझी विरासत आज खतरे में है.
मुजफ्फरपुर के मोतीझील स्थित शफी मंजिल में अशफाक-बिस्मिल शहादत दिवस समारोह का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता प्रोफेसर अबुजर कमालुद्दीन ने कहा कि राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ और अशफाकउल्ला आजादी के ऐसे दो दीवानों के नाम हैं, जिन नामों को अलग-अलग कर के नहीं लिया जा सकता. वह रासायनिक प्रक्रिया जिसने इन्हें अभिन्न बना दिया, देश को आजाद कराने की ‘सरफरोशी की तमन्ना’ थी और उसे हासिल करने का क्रांतिकारी रास्ते की खोज थी.
प्रोफेसर अल्तमश दाऊदी ने कहा कि आज के इस नाजुक दौर में जब देश का ढांचा धर्म के नाम पर छिन्न भिन्न हो रहा है तब अशफाकउल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे दो व्यक्तियों को जिन्होंने एक जिस्म और एक जान की तरह काम किया, देश के युवाओं के सामने आदर्श के तौर पर पेश करने की जरूरत है.
प्रोफेसर भवानी रानी दास ने कहा कि बहुत छोटी उम्र में राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खां ने एक बड़े आदर्श की स्थापना कर दी. उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी का सपना था शोषण मुक्त और साझी संस्कृति के भारत का निर्माण. इन दोनों की कुर्बानी का असली मक़सद तभी पूरा होगा जब हम इस देश की लड़ाइयों को खत्म कर देसमारोह को अभियान समिति के संयोजक प्रो.अरविंद कुमार डे, अधिवक्ता अशोक कुमार सिंह, बैजू कुमार, फहद जमां, सूरज कुमार सिंह, आफाक आजम, मोहम्मद नौशाद, रियाज खान आदि ने भी संबोधित किया.
लोहरदगा में शहीद अशफाक उल्लाह खां स्मारक स्थल, (बगड़ू मोड़) पर भाईचारा व हिन्दू-मुस्लिम सिक्ख-ईसाई एकता का प्रतीक शहीद अशफाक उल्लाह खां, रामप्रसाद विस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह की 95वीं शहादत दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित हुआ.
शहीदों को एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि देने व उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हुए वक्ताओं ने काकोरी कांड के शहीद अशफाक उल्लाह खां के जीवनकाल की घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया तथा उनको आजाद भारत में गंगा-जमुनी तहजीब का आधार स्तंभ कहा. शहीदों के सपनों मंजिल तक पहुंचाने के संकल्पे के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया. कार्यक्रम में महेश कुमार सिंह, केश्वर साहू, टून्ना खान, अल्ताफ हुसैन, मुमताज अहमद, शाहनवाज अख्तर, युसूफ तुरानी आदि शामिल थे.