‘स्कीम वर्कर्स को राज्य कर्मचारी घोषित करो’, ‘दान नहीं अधिकार चाहिए, हमको भी सम्मान चाहिए’, ‘आज करो अर्जेंट करो, हमको परमानेंट करो’ आदि नारों और अपनी लंबित मांगों के साथ विगत 28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखनऊ, सीतापुर, गोरखपुर, देवरिया, इलाहाबाद, फिरोजाबाद, रायबरेली, सोनभद्र, बिजनौर, मऊ, कानपुर, जौनपुर, जालौन, गाजीपुर, चन्दौली, बनारस में स्कीम वर्कर्स ने अपनी मांगों को ले कर प्रदर्शन किया.
यह प्रदर्शन ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) के राज्य स्तरीय आह्वान पर संगठन से संबंधित आशा वर्कर्स यूनियन, मिड-डे मील और आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन के बैनर तले किया गया. अपने-अपने जिला मुख्यालय के समक्ष कर्मचारियों ने एक दिवसीय धरना और प्रदर्शन का आयोजन किया और साथ ही मुख्यमंत्री के नाम अपनी लंबित मांगों का ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा.
फूलपुर, इलाहाबाद में आशा-रसोइयों ने किया धरना-प्रदर्शन किया और एसडीएम को ज्ञापन सौंपा. धरना प्रदर्शन में मुख्य रूप से पुष्पा देवी मौर्या, रेणु पटेल, संजू, निर्मला देवी, रजिया बानो, शांति देवी, अरुणा देवी, सीता देवी, पुष्पा यादव, लक्ष्मी देवी, कंचन यादव, सगुनी देवी, शीला देवी इत्यादि शामिल रहीं. धरना-प्रदर्शन को ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव डाॅ. कमल उसरी, एड वीरेन्द्र सिंह, एड नागेंद्र प्रताप सिंह तथा इफ्को, फूलपुर ठेका मजदूर संघ के मंत्री का. देवानंद इत्यादि ने समर्थन किया.
लखनऊ के बीकेटी में उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन की जिला संयोजिका का. सरोजनी विष्ट के नेतृत्व में मुख्यमंत्री को संबोधित पांच सूत्रीय ज्ञापन उप जिलाधिकारी श्री सिद्धार्थ को दिया गया. इस अवसर पर विद्यावती, ऊषा देवी, रीना देवी, उर्मिला देवी, अर्चना शर्मा, आशा यादव, किरन यादव, राजेश्वरी सिंह, नीलम, विमला आदि मौजूद थीं.
सीतापुर जिले में सैंकड़ो रसोइयों व सैंकड़ो आशा वर्कर्स ने जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन कर मुख्य मंत्री को संबोधित ज्ञापन जिला प्रशासन को दिया. रसोइया संगठन से सरोजनी देवी तथा आशा संगठन की राम देवी ने संबोधित किया. मेरठ में आशा वर्कर्स ने धरना दिया जिसे भाकपा(माले) जिला प्रभारी एडवोकेट प्रदीप कुमार ने भी संबोधित किया.
जौनपुर की ऐक्टू जिला सचिव गौरव सिंह के नेतृत्व में उपजिलाधिकारी जौनपुर को चार सूत्रीय मांगों पर ज्ञापन दिया गया, लखनऊ में आशा वर्कर्स यूनियन की संयोजिका राधा श्रीवास्तव के नेतृत्व में ज्ञापन दिया गया.
प्रदेश भर की आशा वर्कर्स, मिड-डे मील में कार्यरत रसोइया, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आदि लंबे समय से उत्तर प्रदेश सरकार से स्वयं को राज्य कर्मचारी घोषित करने से लेकर मौजूदा समय में मिलने वाले 1500 और 2000 रु. के अति अल्प मानदेय के बदले 21000 हजार रु. न्यूनतम वेतन लागू करने के साथ अन्य बुनियादी आधिकारों की मांग कर रही हैं. ये स्कीम वर्कर्स लगातार संघर्षरत हैं. यहां तक कि करोना काल में करोना वाॅरियर के बतौर रात-दिन एक करते हुए इन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर काम किया. अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि का भुगतान तो दूर, मिलने वाला मामूली-सा मानदेय भी कभी समय पर नहीं मिला.
इसी मुफलिसी से तंग आकर पिछले दिनों मुरादाबाद के सिविल लाइन्स के महलकपुर की रहने वाली आशा कार्यकर्ता सरिता ने आत्महत्या कर ली. पिछले तीन महीनों से उसे प्रोत्साहन राशि नहीं मिली थी जिसके चलते उनके पास गैस सिलिंडर भरवाने तक का पैसा नहीं था. आर्थिक तंगी से जूझते हुए आखिरकार उन्होंने ज़हर खा कर प्राण त्याग दिए.
भिन्न जिलों के तमाम रसोइयों से बात करने पर उन्होंने बताया कि उनकी नियुक्ति स्कूलों में खाना बनाने के लिए हुई थी, लेकिन उनसे खाना बनवाने के अलावा कक्षाओं की साफ-सफाई करवाना, घास कटवाना आदि काम भी करवाए जाते हैं. उन्हें टीचरों के आने से पहले स्कूल पहुंच जाना होता है और छुट्टी के बाद टीचरों के जाने के बाद ही जाना मिल पाता है. इतनी लंबी डयूटी करने के बाद आखिर उन्हें मिलता क्या है? सिर्फ पन्द्रह सौ रूपये, वो भी समय से नहीं मिल पाता. नौकरी अस्थाई है सो अलग.
दिसम्बर 2020 में सरकारी व अर्ध सरकारी प्राइमरी स्कूलों में मिड-डे मील बनाने वाले रसोइयों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया था. कोर्ट ने प्रदेश के सभी रसोइयों को न्यूनतम वेतन भुगतान का निर्देश देते हुए कहा था कि रसोइयों को इतना कम मानदेय देना बंधुआ मजदूरी है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 23 में प्रतिबंधित किया गया है. सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि किसी के मूल अधिकार का हनन न होने पाए. सरकार न्यूनतम वेतन से कम वेतन नहीं दे सकती. कोर्ट के इस फैसले के बाद भी एक साल होने को आया, योगी सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया. यही बदहाली राज्य में कार्यरत आशा बहुओं की भी है. न नौकरी स्थाई है, न मेहनत का उचित पैसा ही मिलता है और जो मिलता भी है वो कभी समय से नहीं मिल पाता.
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‘काम बढ़ता गया, मानदेय नहीं बढ़ा. अब डेढ़ हजार रु. भले ही मिलता हो लेकिन वह भी कभी समय से नहीं मिलता. पिछले 6 महीने से तो किसी भी रसोइया को मानदेय मिला ही नहीं. सरकार को यह भी सुध नहीं कि आखिर हम गरीब लोग कैसे अपना परिवार पालेंगे. – रसोइया फूलमती
‘सरकार के पास हमें मामूली मानदेय देने के लिए भी पैसे नहीं है, तो क्यों नहीं वह तमाम सरकारी योजनाओं को बंद कर देती है? कम से कम यह तसल्ली तो रहेगी कि अब हमें पूरी तरह से घर-परिवार ही देखना है. – रसोइया आशा देवी
‘एक दशक से अधिक समय से आशा वर्कर्स स्वास्थ्य विभाग की नींव बनी हुई हैं. अपने बच्चों को तन्हा छोड़कर देश के बच्चों, माताओं और आमजनों की हिफाजत में अपना सर्वस्व लगा रही हैं. सरकार सिर्फ काम का बोझ लाद रही है और देने के लिए दो हजार भी नहीं है. – आशा वर्कर्स यूनियन, रायबरेली कीे उपाध्यक्ष गीता मिश्रा
‘कितना शर्मनाक है कि 2000 रु. व 1500 रु. का मानदेय दिवाली जैसे त्योहार पर न देने वाली सरकार अपने झूठे कामों के प्रचार में अरबों रुपए खर्च कर रही है.’ – आशा बहू सरिता त्रिपाठी
‘सरकार इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिसम्बर 2020 के 2005 से एरियर सहित न्यूनतम वेतन दिये जाने वाले आदेश का अनुपालन नहीं कर रही है. न हमारे किये गये काम का मानदेय ही दे रही है. हम सभी स्कीम वर्कर्स को एकजुट होकर संघर्ष के ज़रिये अपना हक हासिल करना होगा.’ – मिड-डे मील वर्कर्स की नेता सुशीला
‘सुन रहे हैं मुख्यमंत्री हम आशाओं को स्मार्ट फोन देने की तैयारी में हैं. स्मार्ट फोन तो हमको मिल जाएगा लेकिन हम हर महीने फोन को रिचार्ज कराने का पैसा कहां से लाएंगे? – आशा बहू संगठन, सीतापुर की नेत्री रमा देवी
‘सरकार जिस 100 करोड़ टीके लगाये जाने को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, उसमें पहले दिन से आशा कर्मियों का योगदान है. आज संपूर्ण सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली आशा कर्मियों के कंधे पर है, पर सरकार के एजेंडे में आशा हैं ही नहीं.’ – ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही
‘योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अगर हमारी मांगों को शीघ्र स्वीकार नहीं किया तो आगामी चुनाव में उन्हें इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे.’ – आशा वर्कर्स यूनियन, लखनऊ की संयोजिका सरोजनी बिष्ट
‘हम बहुत अपमानजनक व जोखिम भरी स्थितियों में अल्प मानदेय व अनुतोष राशि पर कार्य करने के लिए विवश हैं और उसका भी कभी भी समय से भुगतान नही होता है.’ – मंजू देवी, संयोजिका, आशा वर्कर्स यूनियन, फूलपुर