असम के दरांग में मुस्लिम समुदाय के गांव को उजाड़ने और निर्दोघ लोगों की हत्या कर उनके शव पर जश्न मनाने की हैवानियत के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिक प्रतिवाद आयोजित हुआ. लोगों ने इस हत्याकांड को भाजपा सरकार प्रायोजित बताते हुए असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वसरमा से तत्काल इस्तीफा देने और उनके भाई दरांग के एसपी को पद से हटाकर कार्रवाई करने की मांग की.
25 सितंबर को प. बंगाल की राजधनी कोलकाता में असम भवन के सामनेे नागरिक समुदाय के लोगों ने भारी तादाद में जुटकर इस घटना के खिलाफ प्रतिवाद दर्ज कराया. महिलाएं और बच्चे भी अपने हाथों में प्लेकार्ड और तख्तियां लेकर इसमें शामिल हुए.
प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए बांग्ला संस्कृति मंच के शमीरुल इस्लाम ने कहा कि हाल के दिनों में ऐसी शर्मनाक घटना पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुई है. हम आनेवाले दिनों में इसके खिलाफ और बड़ा प्रतिवाद दर्ज करायेंगे.
भाकपा(माले) के सुमन सेनगुप्ता ने कहा कि यह घटना भाजपा की द्वारा फैलायी जा रही घृणा राजनीति का परिणाम है और पूरे देश खासकर भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिम समुदाय के लोग लगातार इसका शिकार हो रहे हैं.
प्रतवाद कार्यक्रम में भूमिपुत्र उन्नयन मोर्चा ऑफ इण्डिया, बांग्ला संस्कृति मंच, आइसा, डीवाइएफवाइ, आरएसपी, एसपीडीआइ, एसआइओ आदि संगठनों ने हिस्सा लिया.
सामाजिक कार्यकर्ता मंजर जमील ने कहा कि यह यह भारतीय लोकतंत्र का माखौल है. भूमि से जुड़े कार्यकर्ता व साॅफ्टवेयर प्रोफेशनल मुराद ने कहा कि इस बर्बरता ने बांग्लाभाषी मुसलमानों के साथ विगत में हुए नेल्ली जनसंहार की याद दिला दी है.
आइएसएफ के शेख आबिद ने कहा कि भाजपा व कांग्रेस समेत सभी शासक दलों ने पूरे असम में बांग्लाभाषी मुसलमानों के खिलाफ ऐसा माहौल खड़ा किया है. सामाजिक कार्यकर्ता नौशीन बाबा खान ने कहा कि भाजपा सोच-समझी साजिश के तहत ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रही है और लोगों को हिन्दू-मुसलमान और स्वदेशी-बांग्लाभाषी जैसी बहसों में उलझाा कर अपनी नाकामी छुपाना चाहती है.
झारखंड की राजधनी रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर इस नरसंहार के खिलाफ नागरिकों ने मौन प्रतिवाद किया.
प्रतिवाद कार्यक्रम में मुख्य रूप से भाकपा माले, एआईपीएफ, एसयूसीआई, बगीचा, इंकलाबी नौजवान सभा, आइसा, अवामी इंसाफ़ मंच, ऐपवा, एसआईओ, एपीसीआर, अमन ग्रुप रांची, झारखंड यूथ फाउंडेशन व एवम अन्य सामाजिक संगठन शामिल हुए. कार्यक्रम में शुवेदु सेन, नदीम खान, फादर टोनी, जगरनाथ उरांव, आइति तिर्की, नौरीन अख्तर, जियाउल्लाह, मो. आजाद, शांति सेन, शमीमा खातून, कलाम अंसारी आदि उपस्थित थे.
अगले दिन 26 सितंबर को संध्या तीन बजे बिहार की राजधनी पटना के बुद्ध स्मृति पार्क के समक्ष जमा होकर पटना के नागरिक समुदाय ने इस अन्यायपूर्ण घटना के खिलाफ संघर्ष छेड़ने का आह्वान किया.
एआइपीएफ के बैनर से हुए नागरिक प्रतिवाद को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) के पोलित ब्यूरो के सदस्य का. धीरेन्द्र झा ने कहा कि यह हत्यायें पूरी तरह से सरकार के आदेश पर हुई हैं और एक खास समुदाय के प्रति नृशंसता की चरम अभिव्यक्ति हैं. इस घटना की जिम्मेवारी लेते हुए असम के मुख्यमंत्री को तत्काल इस्तीफा देना चाहिए और उनके भाई को जो दरांग के एसपी हैं, पद से हटाकर उनपर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
पीयूसीएल के राज्य सचिव सरफराज ने इस घटना से अररिया पुलिस गोलीकांड को जेाड़ते हुए कहा कि आज बिहार से लेकर असम तक मुसलमानों, कमजोर वर्ग के लोगों व गरीबों के खिलाफ केवल नफरत दिखती है.
चिकित्सक डाॅ. पीएनपीपाल ने कहा कि यह फासीवाद का दौर है जिसमें सारे लोकतांत्रिक अधिकार कुचल दिए गए हैं. शिक्षक अली अदनान ने कहा कि जिन सरकारों को अपने नागरिकों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, ऑक्सीजन आदि की व्यवस्था करनी चाहिए थी, वे नफरत की खेती कर रही हैं.
पीयूसीएल के किशोरी दास ने कहा कि यह भाजपा के बांटो-काटो राजनीति का ही हिस्सा है. प्रगतिशील ताकतों की जिम्मेवारी है कि इस नफरत की राजनीति का जवाब दें.
संस्कृतिकर्मी विनोद ने कहा कि राजसत्ता ही आज नफरत के माहौल को कायम कर रही है. इस नफरत की राजनीति के खिलाफ हमें एकजुट होना होगा. ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि निहत्थे व्यक्ति को मार कर उसकी लाश पर कूदना लोकतंत्र का माखौल नहीं तो और क्या है?
नागरिक प्रतिवाद में बड़ी संख्या में राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, मानवाधिकार संगठनों और भाकपा(माले), आइसा, इनौस, ऐपवा के जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता जल विशेषज्ञ रंजीव ने तथा संचालन एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा ने की.
कार्यक्रम में वरिष्ठ माले नेता केडी यादव, सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रकांता खां, विजय श्री डांगरे, मुक्ति प्रकाश, ऐपवा की शशि यादव, अभय कुमार पांडेय, भी शामिल थे.