खबर यह है कि गुजरात में कोरोना के उपचार में प्रयोग किए जाने वाले रेमडिसीवर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है. यह भी खबर है कि मध्य प्रदेश में रेमडिसीवर की चोरी हो गयी. ट्विटर पर साकेत गोखले ने लिखा कि कल मुंबई की विले पार्ले पुलिस ने 4.75 करोड़ की रेमडिसीवर दवा की खेप पकड़ी, जिसे गुपचुप एक गुजराती कंपनी ले जा रही थी. गौरतलब है कि महाराष्ट्र कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से है, जो दवा की किल्लत से जूझ रहा है. साकेत गोखले आगे लिखते हैं कि आधी रात के आसपास महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फड़नवीस पुलिस स्टेशन आए और बोले कि इस दवा की यह खेप दमन और गुजरात से भाजपा ने लोगों में बांटने के लिए खरीदी है. गोखले सवाल उठाते हैं कि जो दवा सिर्फ सरकार को बेची जा सकती है तो कोई व्यक्ति इसे निजी तौर पर कैसे खरीद सकता है? मुंबई पुलिस का आरोप है कि दवा की पकड़ी गयी खेप निर्यात करने के लिए इकट्ठा की गयी थी. कर्नाटक में भी पुलिस द्वारा रेमडिसीवर की कालाबाजारी के आरोप में तीन लोग गिरफ्तार किए गए हैं.
आवश्यक दवाओं और ऑक्सिजन की भारी कमी है. चारों तरफ अफरातफरी है. शमशान में तक नंबर लगाने की नौबत है. 16 अप्रैल को अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की खबर बता रही है कि गुजरात के सूरत में एक अर्थी पर पाँच शव जलाए गए. कोरोना की यह दूसरी लहर बेहद डरावनी तस्वीर पेश कर रही है. स्वास्थ्य संबंधी सरकारी बदइंतजामियां इसे और भयावह बना दे रही हैं. टाइम्स आफ इंडिया के अनुसार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डालाल पैथ लैब और एसआरएल डाइगनोस्टिक्स जैसे लैब्स पिछले 10 दिनों से कोरोना सैंपल नहीं ले रहे हैं क्योंकि प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोका हुआ है. अन्य लैब्स ने संसाधनों के अभाव में इसे रोका हुआ है. लखनऊ, भोपाल,पटना सब जगह के बारे में कहा जा रहा है कि शमशान लाशों से पटे हुए हैं, पर सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या कम दर्शाई जा रही हैै.
इस अफरातफरी, मातम और चीख-ओ-पुकार के माहौल के बीच यह सवाल बरबस ही मन में उठता है कि जब पिछले साल से स्वयं प्रधानमंत्री ने कह दिया था कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना सीखना होगा, तो उसके अनुरूप तैयारियां क्यों नहीं की गयीं? क्या प्रधानमंत्री यह सलाह सिर्फ आम जनता को दे रहे थे? क्या यह उनके सरकारी अमले के लिए तदनुरूप तैयारी करने का संकेत नहीं था? क्या यह संकेत था कि कोरोना रहेगा, जनता उसके साथ रहे और सरकार तो जैसी ही वैसी ही रहेगी – प्रचार मोड में, जुमले उछालती हुई!
बीते वर्ष कोरोना के कहर और लाॅकडाउन की मार से कुछ सबक सरकार ने सीखा होता तो कम से कम स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने पर जोर दिया जाता. ब्रिटेन की कंपनी फिच सोल्यूशंस का एक हालिया अध्ययन भारत के खस्ताहाल स्वास्थ्य ढांच की पोल खोलता है. उक्त अध्ययन के अनुसार भारत में दस हजार की आबादी पर मात्र 8.5 हाॅस्पिटल बेड हैं और दस हजार की आबादी पर मात्र 8 फिजीशियन हैं. जनवरी 2021 में संडे गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र 1.26 प्रतिशत ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करता है. उक्त रिपोर्ट के अनुसार राज्यों ने अपने बजट का औसतन 5.4 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित किया है. इसमें कर्नाटक, हरियाणा, बिहार, पंजाब जैसे राज्य हैं, जिन्होंने 2015-2021 के बीच 5 प्रतिशत से भी कम धनराशि स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च हेतु आवंटित की है. जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में राज्यों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे 2020 तक बजट का 8 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करेंगे. ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ में दिसंबर 2020 में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च के मामले में 70 प्रतिशत खर्च राज्यों द्वारा ही किया जाता है. राज्यों द्वारा स्वास्थ्य के लिए मात्र 5 प्रतिशत बजट आवंटन और राज्यों के द्वारा ही स्वास्थ्य पर 70 प्रतिशत खर्च – इन दोनों आंकड़ों के आलोक में समझ सकते हैं कि केंद्र तो स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च के मामले में हाथ खींचे ही हुए है और जो राज्य खर्च कर रहे हैं, वे भी मामूली खर्च कर रहे हैं. फाइनेंशियल टाइम्स की ही रिपोर्ट कहती है कि है कि 60 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 40 प्रतिशत शहरी परिवार अस्पताल में भर्ती होने की दशा में वहाँ का खर्च वहन करने के लिए कर्ज और अपनी परिसंपत्तियों को बेचने तथा मित्रों व रिश्तेदारों की मदद पर आश्रित रहते हैं.
फच सोल्यूशंस की रिपोर्ट कहती है कि 80 प्रतिशत आबादी किसी उल्लेखनीय स्वास्थ्य बीमा के दायरे में नहीं है, और लगभग 68 प्रतिशत लोगों की आवश्यक दवाइयों तक या तो पहुंच ही नहीं है या फिर सीमित पहुंच है.
कोरोना के टीकाकरण के बारे में फिच सोल्यूशंस की रिपोर्ट कहती है कि जहां ब्रिटेन में दो में से एक व्यक्ति को और अमेरिका में तीन में से एक व्यक्ति को टीका लग चुका है, वहीं भारत में 25 में से एक व्यक्ति को टीका लगा है.
स्वास्त्य़ सुविधाओं की ऐसी लचर हालत के बीच कोरोना की यह दूसरी लहर आई है, जो पिछली लहर से कहीं ज्यादा मारक और जानलेवा है. स्वयं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि कोरोना से मौतों की संख्या में 10.2 प्रतिशत का तीव्र इचाफा हुआ है. नए केसों के बढ़ने की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत है, जो जून 2020 के मुकाबले 1.3 गुना अधिक है.
लेकिन आसन्न खतरे से गाफिल प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में मस्त हैं. बीते रोज ही हरिद्वार कुंभ में कोरोना फैलने पर चिंता प्रकट करने के बाद वे बंगाल में चुनाव प्रचार करने पहुँच गए, जहां वे बड़े गर्व से बता रहे थे कि रैली में इतनी भीड़ उन्होंने पहले कभी नहीं देखी.
प्रचार पाने और फोटो खिंचवाने की यह सनक ऊपर से नीचे तक सवार है. मध्य प्रदेश के इंदौर में ऑक्सिजन टैंकर को भाजपा के सांसद विधायकों और अन्य नेताओं ने दो घंटे तक रोक कर रखा, उसे गुब्बारों से सजाया और उसकी पूजा की. इस टैंकर का ड्राईवर 700 किलोमीटर इस टैंकर को दिन रात चला कर लाया और मात्र तीन घंटा सोया, और यहाँ भाजपा नेताओं ने टैंकर फोटोशूट के लिए दो घंटे खड़ा कर दिया. जब कोरोना से जूझने वालों के लिये पल-पल कीमती हो तो यह फोटो खिंचवाने की सनक जानलेवा हो सकती है. पर सत्ता की हनक पर सवार, प्रचार के भूखों को यह समझाये कौन?
जिस तरह के हालात पूरे देश में बन गए हैं, वह एक तरह के मेडिकल आपातकाल की स्थिति है, जिसमें युद्ध स्तर पर उपाय किए जाने की जरूरत है. परंतु जब प्रधानमंत्री को जोर कुल जमा देश में अपनी लहर कायम रखने पर हो, तो फिर कोरोना की लहर की वे क्यूँ कर चिंता करेंगे भला!