(एक मुलाकात दिल्ली बाॅर्डर किसान आंदोलन के अखबार ट्राॅली टाइम्स की संपादक नवकिाण नत्त के साथ)
दिल्ली बाॅर्डर पर चल रहे मौजूदा किसान आंदोलन ने एक पत्रिका ‘ट्राॅली टाइम्स’ को भी जन्म दिया है. ये कहते हैं न कि ‘जहां चाह है, वहां राह है’, बस इसी मुहावरे को यथार्थ करती हुई, छह लोगों की चाह का नतीजा है ‘ट्राॅली टाइम्स.’ ये छह लोग अलग-अलग पृष्ठभूमि व पेशे से आए लोग हैं जिनमें से किसी का भी पहले से पत्रकारिता से कोई नाता-रिश्ता नहीं रहा. इसकी शुरूआत नवकिरण नत्त (डेंटल सर्जन), सुरमीत मावी (फिल्म राइटर), गुरदीप (फोटो आर्टिस्ट), अजयपाल सिंह (फिजियो थेरेपिस्ट), मुकेश कुलारिया (जेएनयू के पूर्व शोधार्थी जो अभी अमेरिका में रहते हैं) व जसदीप ने मिलकर की. इन पर पंजाब से चलकर दिल्ली बाॅर्डर पर आए किसानों के आंदोलन की ताप का असर पड़ा और सबने यह महसूस किया कि कैसे किसान आंदोलन व तीनों कानूनों के सच को, जो देश की मुख्य मीडिया में दिखाये जा रहे सच से बहुत ही अलग है, सामने लाया जाए? फिर इन लोगों ने आपस में मिल-बैठकर योजना बनाई और ‘ट्राॅली टाइम्स’ का निकलना शुरू हुआ.
‘ट्राॅली टाइम्स’ नाम के पीछे भी एक वाकया है. नवकिरण नत्त जो पिछले 18 मार्च को भाकपा(माले) द्वारा पटना के गेट पब्लिक लायब्रेरी, गर्दनीबाग में आयोजित ‘किसान-मजदूर महापंचायत’ में शामिल होने बिहार आई थीं, ने हमें बताया, “जब टिकरी बाॅर्डर पर किसानों का धरना शुरू हुआ तो ढेर सारी दिक्कतें सामने आने लगीं. बाॅर्डर पर किसान धरना 15-20 किलोमीटर तक पसरा हुआ था और पूरे हाईवे पर ट्रालियों की कतारें खड़ी हो गई थीं. इसके अलावे सिंघु, गाजीपुर और शाहजहांपुर आदि बार्डरों पर भी ऐसे ही किसान धरने चल रहे थे. इन धरनों में शामिल हजारों किसान ढेर सारे सवालों से जूझ रहे थे. जो किसान अगले जत्थों में थे, वे अपने पीछे के साथियों के बारे में जानना चाहते थे. वे सरकार और किसान नेताओं के बीच होनेवाली वार्ताओं के नतीजों से वाकिफ होना चाहते थे. वे हम जैसे पढ़े-लिखे युवा लोगों से अपनी जिज्ञासायें रखते थे और जाहिर है कि तब उनके सारे सवालों के जवाब हमारे पास भी नहीं होते थे. संपर्क व मामूली सूचनाओं के आदान-प्रदान का भी कोई माध्यम नहीं था. मुख्य धारा के जो अखबार व अन्य मिडीया थे वे सरकार का भेंपू बने हुए थे और उल्टी-सीधी खबरें दे रहे थे. ऐसे में ही एक बुजुर्ग किसान ने जब हमारे एक साथी से जरूरी सूचनाओं के अभाव की शिकायत की तो उसके मुंह से निकल पड़ा -- क्या करें, ट्राॅली टाइम्स निकालें? और बस यह नाम हमारी जेहन में चस्पां हो गया. अब यह ‘यूनिक’ नाम मिल गया तो ‘टाॅली टाइम्स’ की पूरी योजना भी साफ होती चली गई. आंदोलन से जुड़े नौजवानों ने अलग-अलग काम के लिए अपने-अपने जानने वालों को संपर्क किया. इस तरह से छः लोगों की एक टीम उभर कर सामने आई और टाॅली टाइम्स की एक रूप-रेखा भी तैयार हो गई.
इन्होंने पहले से ही यह तय कर लिया था कि पत्रिका को सबके लिए खुला रखेंगे. जिनकी भी रुचि होगी वे इसमें लिख सकते हैं. इसी के तहत उन्होंने अलग-अलग अंक में आंदोलन से जुड़े अलग-अलग संगठनों के नेताओं व बुद्धिजीवियों से संपादकीय लिखवाया.
टाॅली टाइम्स का पहला अंक 18 दिसम्बर 2020 को दो भाषाओं पंजाबी व हिंदी में छपकर आया. 18 दिसंबर का दिन ही क्यों? इस सवाल के जवाब में नवकिरण बताती हैं, “यह भाकपा(माले) के पूर्व महासचिव व चर्चित कम्युनिस्ट नेता का. विनोद मिश्र का स्मृति दिवस है, और हम इसे हमेशा से ‘संकल्प दिवस’ के रूप में मनाते आए हैं. ‘ट्राॅली टाइम्स’ इस मौके पर हमारा नया संकल्प था.” वे कहती हैं, “ट्राली टाइम्स निकालने के संकल्प की शुरूआत एक हजार प्रतियां छपाने से की गई. पहले ही दिन, पत्रिका जब लोगों के बीच गई और लोगों ने जब इसे पढ़ा तो विश्वास जताया -- हां, इसमें हमारी बातें हैं, झूठ और अफवाह की जगह सच और साहस है. हम अखबार के लिए किसानों व किसान आंदोलन के समर्थक लोगों से सहयोग पाते थे. इसलिए, हम इसका मुफ्रत वितरण करते थे. लाखों आंदोलनकारियों के बीच एक हजार प्रतियां बहुत ही कम थीं. हमने इसके सामूहिक पाठ व वाचन को बढ़ावा दिया हमने ट्राॅली टाइम्स के पकाशन से जुड़ी जानकारी को सोशल मीडिया के माध्यम से पहले ही सार्वजनिक कर दिया था. इसलिए, पहले ही दिन इसको व्यापक कवरेज मिला. एनडीटीवी में चर्चित पत्राकार रवीश कुमार ने इसकी स्पेशल स्टोरी की और यह काफी लोकप्रिय होती चली गई. इसका एक कारण यह भी रहा कि यह पत्रिका आंदोलनकारियों के बीच से निकली थी और किसानों के उन बेटे-बेटियों ने ही इसे निकाला था जो महीनों से उनके साथ आंदोलन में शामिल थे.”
हम यह बता दें कि नवकिरण की मां जसबीर कौर नत्त पंजाब किसान यूनियन व महिला संगठन ऐपवा की नेता हैं. उन्होंने पहले ही दिन (26 नवंबर 2020) से टिकरी बोर्डर किसान आंदोलन का कमान संभाल रखा है. उनके पिता सुखदर्शन नत्त और चाचा राजविंदर सिंह राणा, पंजाब के चर्चित किसान व कम्युन्स्टि नेता हैं, भाकपा(माले) (लिबरेशन) की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य हैं.
नवकिरण ने बताया, “पहले ही दिन से ट्राॅली टाइम्स के पाठकों के फोन, मैसेज व मेल हमें मिलने लगे और बधाईयां भी खूब मिलीं. न केवल देश के अलग-अलग हिस्सों से, बल्कि विदेशों -- ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा न्यूजीलैंड आदि से भी हमें संदेशे आए, हम पर विश्वास जताया गया और हमारे काम को सराहा गया व ट्राली टाइम्स की प्रतियों की मांग की गयी. यह खर्चीला था इसलिए हमने ट्राॅली टाइम्स के वेबसाइट पर इसकी डिजिटल काॅपी डालनी शुरू की ताकि जो चाहे इसे अपने यहां छपवा कर वितरित कर सके. तो ट्राॅली टाइम्स विदेश जा पहुंची. साथ ही, अब तीन विदेशी भाषाओं -- प्रफेंच, स्पेनिश व पुर्तगीज में भी इसका अनुवाद होता है और इसकी प्रतियां लोगों के बीच वितरित होती हैं. ट्राॅली टाइम्स द्विभाषी है और इसके इसके अलग-अलग पन्ने पंजाबी व हिंदी में छपते हैं. हैं. लेकिन, जरूरी नहीं कि पंजाबी का लेख ही हिंदी में हो या हिंदी का पंजाबी में हो. अब कन्नड़, मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी व पंजाब की सम्मुख लिपि में भी इसका अनुवाद हो रहा है.
नवकिरण आगे यह बताती हैं कि किस तरह किसान आंदोलन सरकार से लड़ने के साथ-साथ रूढ़ियों से भी लड़ रहा है. वे कहती हैं, “बोर्डर पर चल रहे किसान धरनों में लड़के रोटियां पका रहे हैं, खाना परोस रहे हैं, बर्तन धो रहे हैं और झाड़ू-पोंछा कर रहे हैं. इस तरह वे उस घरेलू श्रम से परिचित हो रहे हैं जिन्हें केवल ‘महिलाओं का काम’ समझा जाता है और जिसके सामाजिक-आर्थिक मूल्य की उपेक्षा की जाती है. यह एक बेहतर समाज के निर्माण की प्रेरणा व उम्मीद जगाता है.”
वे हंसते हुए बताती हैं कि एक बुर्जुग किसान ने यह सब देखते हुए उनसे कहा कि बेटा, तुम लोगों की क्रांति तो अब हो गई. समूचे आंदोलन की नींव वहां बैठे इन्हीं आंदोलनकारी किसानों पर टिकी है. एक-एक किसान की उपस्थिति आंदोलन में जीवन संचरित करती है, ऊर्जा भरती है. नवकिरण ‘खाप’ पंचायतों के लिए बदनाम हरियाणा के झझ्झर जिले की उन महिलाओं के बारे में भी बताने से नहीं चूकतीं जो हर दिन टैक्टरों की ट्रालियों में सवार होकर बाॅर्डर पर पहुंचती हैं और हाथ उठाकर अपनी हाथ भर लंबी घूंघट के भीतर से ही जोशीला नारा लगाती हैं -- इंकलाब जिंदाबाद!
एक हजार, ... दो हजार, ... तीन हजार होते-होते अब ट्राली टाइम्स के 14 वें अंक की सात हजार प्रतियां छपी हैं. यह अब भी निःशुल्क है. नवकिरण कहती हैं, “इतने बड़े आंदोलन में जब दूध, दही, लस्सी, खाना, फिरनी व मावा मुफ्रत में बंट रहा हो तो ट्राली टाइम्स क्यों बेची जाएगी? यह आंदोलन के तमाम स्टालों पर उपलब्ध होती है और लोग इसे पढ़ते हैं. हम ट्राॅली टाइम्स में कोई विज्ञापन नहीं छापते. लोगों से छोटी रकम का चंदा जुटाते हैं और जो अब इतना हो गया कि हमने चंदा लेना भी अभी बंद कर दिया है.”
ऐसे दौर में, जब देश की जनता पर सत्ताधारी मोदी निजाम का दमन शीर्ष पर है, कामरेड नवकिरण नत्त व उनकी पूरी टीम लड़ाकू लोगों में अपना नाम दर्ज करा रही है. उनके हौसले को सलाम! उम्मीद है कि मौजूदा किसान आंदोलन आनेवाले दिनों में जब सफलता की मंजिल हासिल करेगा, इनके योगदान को भी भुलाया नहीं जाएगा.
- प्रियंका प्रियदर्शिनी, छात्रा, केन्द्रीय विवि, हैदराबाद