माइक्रो फायनेंस संस्थाओं की मनमानी पर रोक लगाने, महिलाओं का कर्ज माफ करने, ब्याज वसूली पर अविलंब रोक लगाने, कर्ज पर 0 से 4 प्रतिशत की दर से ब्याज लेने, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को अनिवार्य रूप से रोजगार देकर उत्पादों की खरीद करने, कर्ज के नियमन के लिए राज्य स्तरीय प्राधिकार का गठन करने, जीविका दीदियों को प्रतिमाह 21,000 रु. देने आदि मांगों को लेकर विगत 5 मार्च को पटना में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने ऐपवा व स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति के संयुक्त बैनर से विधानसभा मार्च किया.
मार्च का नेतृत्व ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति की समन्वयक रीता वर्णवाल, ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, राज्य सचिव शशि यादव, अनिता सिन्हा, सोहिला गुप्ता आदि महिला नेताओं ने किया. गर्दनीबाग धरनास्थल पर हुई सभा को भाकपा(माले) विधायक महबूब आलम, सुदामा प्रसाद और संदीप सौरभ ने भी संबोधित किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने विधानसभा में भी समूह की महिलाओं की मांगों को आज मजबूती से रखा है और आगे भी यह लड़ाई जारी रहेगी.
कार्यक्रम की अध्यक्षता रीता वर्णवाल, इंदू सिंह तथा संचालन अनिता सिन्हा ने किया. कार्यक्रम में गया की जीविका दीदी रूबी, जहानाबाद की मंटू देवी, हिलसा की रूबी देवी, आरा की पुष्पा देवी, मुजफ्फरपुर की सुलेखा, वैशाली की रिंकी देवी, पटना की लीला देवी व माला कुमारी, अरवल की चंद्रप्रभा देवी आदि ने संबोधित किया. मौके पर जूही महबूबा, आस्मां खान, नसरीन बानो, अफ्शा जबीं आदि भी मौजूद थीं.
इसके पहले गेट पब्लिक लाइब्रेरी से अपने हाथों में तख्तियां लिए और नारे लगाते महिलाओं का जत्था 12 बजे दिन में निकला और मार्च करते हुए गर्दनीबाग धरनास्थल पर पहुंचा. वे अपनी मांगों को तख्तियां पर लिखकर लाई थीं. प्रदर्शनकारी महिलायें अपना ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम लिखकर आई थीं, और उन्हें सौंपना चाहती थीं, लेकिन मुख्यमंत्री से उनका प्रतिनिधिमंडल नहीं मिलाया गया. उन्होंने अपने मांग पत्र के माध्यम से कहा कि बिहार की करोड़ो महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों, माइक्रो फायनेंस वित्त कंपनियों और निजी बैंकों द्वारा स्व-रोजगार के जरिए आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर कर्ज दिया गया था, लेकिन लाॅकडाउन के दौरान महिलाओं का कारोबार पूरी तरह ठप्प हो गया था और वे इन कर्जों को चुकाने और उन पर ब्याज देने पर पूरी तरह असमर्थ थीं. फिर भी उस दौर में महिलाओं को धमकी देकर कर्ज की वसूली की गई. जीविका दीदियों को न्यूनतम 21000 रुपया मानदेय देने पर भी सरकार आनाकानी कर रही है. उनकी प्रमुख मांग में आंध्र प्रदेश की सरकार द्वारा अगस्त 2020 में समूहों के 27 हजार करोड़ रुपये की देनदारी का भुगतान कर कर्ज माफ करने की तर्ज पर बिहार सरकार से भी कर्ज माफी की थी.
सभा को संबोधित करते हुए मीना तिवारी ने कहा कि सरकार एक ओर पूंजीपतियों केा बेल आउट पैकेज दे रही है, लाॅकडाउन के समय में जब सारे लोग परेशान थे, उस दौर में पूंजपतियों की संपति बढ़ रही थी लेकिन महिलाओं से जबरन कर्ज वसूला गया. यह सरासर अन्याय है. आज कर्ज के जाल में महिलाओं को ऐसे उलझा दिया गया है कि वे कर्ज चुकाने के लिए कर्ज लेती हैं और इस भंवरजाल से उबर नहीं पाती है. उन्होंने कहा कि कर्ज चुकता न करने के कारण कई महिलाओं को अपना सब कुछ बेचना पड़ा और उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
वक्ताओें ने यह भी कहा कि बिहार में ऐपवा और स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति ने विधानसभा चुनाव के पहले कर्ज माफी को लेकर पूरे राज्य में व्यापक प्रदर्शन किया था और जिसके कारण कई जगहों पर कर्ज वसूली पर तात्कालिक रूप से रोक लगी थी. दबाव में राज्य सरकार ने इन समूहों को छिटपुट तरीके से छोटे-मोटे काम दिए हैं, लेकिन अभी भी हर समूह के लिए जीविकोर्पाजन अर्थात रोजगार की गारंटी नहीं की गई है.
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नवादा जिले के खटावं गांव की अनार देवी, गया के चंदौती की रूबी देवी और मोहनपुर की मंजू देवी, सीवान के नौतन बाजार की रंजीता और नजमा खातून या भोजपुर के कहेन की सुनीता या कमरियां की ऊषा देवी – समूह से जुड़ी महिलाओं की ब्यथा एक जैसी है. लाॅकडाउन के दौरान घर-परिवार पर आफत टूटी, आमदनी बिल्कुल ही बंद और जो लोन मिला था, उसे जमा नहीं किया जा सका. समूह के कोआर्डिनेटर के बतौर काम करनेवाली उफषा देवी तल्ख लहजे में कहती हैं ‘हमें कोई सरकारी मानदेय नहीं मिलता. हमको तो महुआ बीनने में लगा दिया गया है जबकि हमारे उफपर तैनात एसी व सीसी जैसे लोग आम खा रहे हैं.’ कई महिलाओं ने बताया कि इन लोगों के द्वारा उन्हें प्रदर्शन में आने से रोका और धमकाया भी गया.
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