सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ बैंक अधिकारियों-कर्मचारियों के संगठनों के संयुक्त आह्वान पर आयोजित हुई दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल (15-16 मार्च) के दौरान भाकपा(माले) और उसकी ट्रेड यूनियनों ने खुलकर हिस्सा लिया.
बिहार की राजधानी पटना में भाकपा(माले) विधायकों ने विभिन्न बैंकों में जाकर उनकी हड़ताल का समर्थन किया, हड़तालियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित की और बिहार विधानसभा से निजीकरण के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने के लिए दबाव बनाने का आश्वासन दिया.
15 मार्च को विधानसभा के भोजनावकाश के बाद सभी 12 विधायकों ने 3 अलग-अलग टीमें बनाकर पटना स्थित बैंकों का दौरा किया. पहली टीम में अरूण सिंह, सुदामा प्रसाद, अजीत कुशवाहा व मनोज मंजिल; दूसरी टीम में सत्यदेव राम, महानंद सिंह, रामबलि सिंह यादव व संदीप सौरभ तथा तीसरी टीम में महबूब आलम, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता और गोपाल रविदास शामिल थे. इन टीमों ने क्रमशः अंटा घाट स्थित एसबीआई जोनल कार्यालय, कोतवाली थाने के पास स्थित इंडियन बैंक और आर ब्लाॅक चौराहा स्थित बैंक आफ इंडिया व पंजाब नेशनल बैंक का दौरा किया.
विधायक दल के नेता काॅ. महबूब आलम ने कहा कि मोदी सरकार का आईडीबीआई सहित दो अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव जन विरोधी और देश विरोधी है. बैंकों का निजीकरण के साथ ही सरकारी व्यापार को निजी बैंकों को देना यानी सरकारी कोष की राशि को निजी बैंकों में जमा करने का निर्णय भी है जो जहरीले सांप को दूध पिलाने जैसा है.
पिछले 50 वर्षों में देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ये बैंक जनता की मेहनत से कमाई गई बचत का विश्वस्त संरक्षक की भूमिका में रही है. गांव-गांव तक फैली बैंकों की शाखाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था व कृषि क्षेत्र के विकास में अहम योगदान किया है. बैंक राष्ट्रीयकरण ने वर्गीय बैंकिंग की अवधारणा को जन बैंकिंग में बदलने का काम किया है. आज जब देश की आर्थिक हालत और विकास दर बदतर स्थिति में है तो मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के बदले उन्हीं कारपोरेटों के हाथों सौंप रही है जिन्होंने बैंक कर्ज की विशाल राशि को लौटाने की बजाय पचाने का काम किया है.
अन्य विधायकों ने कहा कि मोदी सरकार ने रोजगार देने का वायदा किया था. निजीकरण से रोजगार में कटौती होगी, नौकरियां बढ़ने की बजाय बड़ी संख्या में घटेगी और एससी/एसटी/ओबीसी का आरक्षण समाप्त हो जायेगा क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान ही नहीं है. बैंक निजीकरण का मतलब है ग्रामीण क्षेत्र में बैंक शाखाओं की बंदी, कृषि ऋण में भारी कटौती, मध्यम व लघु उद्यम कर्मियों को मिलने वाली ऋण की राशि में कमी, शिक्षा ऋण मिलने में और गरीबों और कमजोर वर्ग को ऋण मिलने में मुस्किल, इससे बुनियादी ढांचे और प्राथमिक क्षेत्र के लिए ऋण राशि उपलब्ध होना मुश्किल हो जायेगा. बैंक निजीकरण का मतलब कारपोरेट को ज्यादा से ज्यादा ऋण उपलब्ध होना है क्योंकि निजी बैंकों के मालिक वही होंगे. निजीकरण का मतलब है कम्पनी राज जिसको लाने के लिए मोदी जी दिन-रात एक किए हुए हैं. सबसे बड़ी बात है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उन्हीं कारपोरेट को सौंप दिया जायेगा जिन्होंने बैंकों से विशाल राशि कर्ज लेकर चुकता नहीं किया. जनता की मेहनत से कमाई से बचत की गई जमा पूंजी को कारपोरेट गिद्धों के हवाले करने की योजना मोदी सरकार ने बना ली है. मोदी सरकार की जन विरोधी, देश विरोधी निजीकरण की नीति के खिलाफ बैंक कर्मियों के साथ मजदूर-किसान और छात्रा-नौजवान का एकतावद्ध जुझारू संघर्ष समय की मांग है.
हड़ताल के दूसरे दिन 16 मार्च को भाकपा(माले) विधायक अरूण सिंह व अजीत कुशवाहा ने आर ब्लाॅक स्थित पंजाब नेशनल बैंक, महानंद सिंह व रामबलि सिंह यादव ने इंडियन बैंक में तथा मनोज मंजिल व संदीप सौरभ ने एसबीआई मुख्य कार्यालय और अंटा घाट स्थित एसबीआई बैंक में अपने वक्तव्य रखे. विधायकों ने साधारण बीमा कर्मियों की 17 मार्च की हड़ताल और भारतीय जीवन वीमा कर्मियों की 18 मार्च की हड़ताल का भी समर्थन किया.
बैंक फेडरेशनो की दो दिवसीय देशव्यापी आम हड़ताल के पहले दिन 15 मार्च 2021 को रांची में संयुक्त ट्रेड यूनियनों ने निजीकरण विरोधी दिवस मनाया. एटक, ऐक्टू व सीटू से जुड़े मजदूर कर्मचारियों ने विभिन्न बैंकों में जाकर बैंक कर्मचारियों के आंदोलन के साथ एकजुटता जाहिर की. दोपहर बाद प्रधान टावर के बैंक ऑफ इंडिया शाखा में कार्यरत कर्मचारियों से एकजुता जाहिर करने के बाद निजीकरण विरोधी रैली निकालने के बाद रांची रेलवे स्टेशन मुख्य द्वार के पास सभा की गई. निजिकरण विरोधी दिवस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मजदूरों-कर्मचारियों ने भाग लिया.
सभा को संबोधित करते हुए एटक के झारखंड महासचिव पीके गांगुली ने कहा कि केंद्र सरकार देश के सार्वजानिक उपक्रमों और आर्थिक संसाधनों को निजी हाथों में बेचने का काम कर रही है. आज इस देश को बचाना सभी देशभक्त नागरिकों का पहला कार्यभार बन गया है. ऐक्टू के प्रदेश महासचिव शुभेन्दु सेन ने कहा कि देश के सभी लाभकारी संस्थानों को बेचना देश को वित्तीय ढांचे को बर्बाद करना है. देश की सार्वजानिक उपक्रमों की संपत्तियों को बेचना कहीं से कोई राष्ट्रवाद नहीं है. सीटू जिला सचिव अनिर्माण बोस ने कहा कि सरकार लगातार मजदूर व कर्मचारी विरोधी फैसले ले रही है. कंपनियों को लूट की छूट और मजदूर-कर्मचारियों पर महंगाई और टैक्स का बोझ नहीं चलने दिया जायेगा. कार्यक्रम में बैंक इम्प्लाइज फेडरेशन के एमएल सिंह, एटक के अशोक यादव, ऐक्टू के भुवनेश्वर केवट, सीटू के सुनील मुखर्जी एसके राय, जीआईसी के सुजीत कुमार, किसान महासभा के प्रफुल्ल लिंडा, ऐक्टू के पुष्कर महतो, सुशीला तिग्गा, सच्चिदानंद मिश्र, कर्मचारी महासंघ के नेता सुरेश कुमार सिंह, भीम साहू, इनामुल हक, उमेश नजीर, फरजाना फारुकी, नवीन चौधरी आदि मुख्य रूप से शामिल थे.
राजस्थान के उदयपुर मे भी निजीकरण के खिलाफ विरोध दिवस मनाया गया और केंद्रीय श्रमिक संगठनों व किसान संगठनों के पदाधिकारियों के द्वारा कलेक्टर कार्यलय पर विरोध सभा आयोजित की गयी. इस मोके पर बोलते हुए ऐक्टू के राज्य अध्यक्ष शंकरलाल चौधरी ने कहा कि निजीकरण की नीति के तहत आम देशवासियों के संसाधनों और कर्मचारियों की मेहनत से बने सार्वजनिक उपक्रमो और राष्ट्रीय सम्पतियों को केंद्र सरकार कोरोना महामारी मे ‘आपदा को अवसर’ बनाने के नाम पर बेच रही है. यह जनहित और देशहित की कीमत पर निजी हित को आगे करने वाला फैसला है जो देशवासियो के लिए सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक, गैर बराबरी को बढ़ाने का ही काम करेगा. यह सीधे-सीधे संविधान भी दी गयी सामाजिक न्याय की अवधारणा पर भी हमला है.
एटक के हिम्मत चांगवाल ने कलेक्टर कार्यालय पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही भाजपा की सरकार ने गत साढ़े छह साल से मजदूर किसान विरोधी गलत आर्थिक नीतियां जनता पर लाद कर देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में डाल दिया है. आज देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर नकारात्मक होकर रह गयी है और बेरोजगारी चरम पर है. इन हालातों के चलते जहां आम आदमी का जीवन संकट में पड़ गया है वहीं चंद देशी-विदेशी कारपोरेट घराने कोरोना जैसे कठिन आर्थिक दौर में भी मालामाल होते चले गये हैं.
सीटू के गुमान सिंह ने कहा कि दुनिया में व्याप्त कठिन आर्थिक संकट के दौर में भी 2008 के बाद देश के सार्वजनिक सेक्टर के कारण अर्थव्यवस्था इन संकटों से निजात पाने में सफल रही है. परन्तु अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में इस पब्लिक सेक्टर की इकाइयों का ताबड़तोड़ निजीकरण किया जा रहा है, चाहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हों, बीमा कम्पनियां हों, रक्षा उद्योग हो, कोयला सेक्टर हो या भारतीय रेल, सरकार सभी के निजीकरण पर आमदा है.
एमसीपीआई (यू) की लीला शर्मा ने कहा कि हाल ही में आये 2021-22 के वार्षिक बजट को अगर निजीकरण का नीति दस्तावेज कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. सरकार ने बजट घाटा पाटने के लिए पिछले दरवाजे का सहारा लिया है जो अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक और दूरगामी कुप्रभावों वाला ही सिद्ध होगा.
प्रोफेसर आरएन व्यास ने कहा कि जिस तरह से किसान मंडियों के निजीकरण के खिलाफ सड़क पर हैं उस तरह देश से मजदूर-कर्मचारी तबके को भी निजीकरण और 44 श्रम कानूनों को खत्म कर लाये जा रहे चार श्रम कोड्स के खिलाफ आन्दोलन करना होगा. हमें विश्वास है कि किसान और खेती विरोधी कानूनों में जहां किसानों को पहले ही सड़क पर ला खड़ा किया है, अब निजिकरण और नये श्रम कोड मजदूरों और आम गरीबों को भी सड़क पर ला खड़ा कर देंगे. कलेक्टर कार्यलय पर सभा के बाद सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को तुरंत रोका जाए, बैंकों के निजीकरण पर रोक लगे, एलआईसी और आम सार्वजनिक बीमा कम्पनियां का निजीकरण बंद हो, भारतीय रेल के निजीकरण पर रोक लगे, जैसी मांगो के साथ राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर के माध्यम से ज्ञापन दिया गया.
इस मोके पर प्रोफेसर आरएन व्यास, प्रोफेसर हेमेन्द्र चंडालिया, विजेंद्र चौधरी, पियूष जोशी, सुभाष श्रीमाली, हीरालाल साल्वी आदि मोजूद थे. शाम को उदयपुर रेलवे स्टेशन पर भी विरोध प्रदर्शन कर रेलवे के निजीकरण का विशेष तौर पर विरोध किया गया.
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में इफको फुलपुर ठेका मजदूर संघ (सम्बद्ध ऐक्टू) के मजदूरों ने धरना-प्रदर्शन किया और महामहिम राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन उप जिलाधिकारी फुलपुर को सौंपा.
धरना प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए ऐक्टू के जिला सचिव डाॅ. कमल उसरी ने कहा कि आजादी के बाद किसानों, मजदूरों व आम अवाम के खून-पसीने की कमाई से प्राप्त टैक्स से बनाए गए सरकारी क्षेत्र को मोदी-योगी बेचकर पुनः देश को पूंजीपतियों का गुलाम बनाना चाहते हैं. खेती-किसानी को बेचने के खिलाफ देश भर के लाखों-लाख किसान राजधानी दिल्ली में कई महीनों से संघर्षरत हैं. उन्होंने देश के दस केंद्रीय ट्रेंड यूनियंस के साथ एकता बनाते हुए आज 15 मार्च को देश भर में निजीकरण विरेधी दिवस मानने का निर्णय लिया है. किसानों व मजदूरों की यह जो एकता बन रही है वह छात्र-नौजवानों के साथ मिलकर मोदी-योगी के फासीवादी राज का खात्मा को करेगी.
इफको ठेका मजदूर संघ के मंत्री देवानंद ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने से जहां बेरोजगारी बढ़ेगी वही संविधान द्वारा प्राप्त आरक्षण भी समाप्त हो जाएगा और भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर बढ़ जाएगा. आम आदमी के लिए निजीकरण की व्यवस्था ठीक नहीं है. हमने देखा है कि कोविड महामारी के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र ने ही देश की रक्षा की है.
उन्होंने कहा कि भारत में आजादी के पहले एवं बाद में मजदूर हित में मौजूद 44 श्रम कानूनों को सरकार ने रद्द कर के नए 4 श्रम कोड लाकर मालिकों को खुली छूट दे दी है और मजदूरों का उत्पीड़न करने के लिए लाये गऐ इन नये कानूनों से मजदूरों का दमन बढ़ जाएगा.
धरने में मुख्य रूप से कामरेड त्रिलोकी, फूलचंद, लल्लू लाल, एडवोकेट वीरेन्द्र प्रताप सिंह आदि शामिल थे. धरने की अध्यक्षता इफको ठेका मजदूर संघ के अध्यक्ष जय प्रकाश ने की. धरना के जरिए सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में बेचने पर रोक लगाने तथा नये चार श्रम कोड बिल रद्द करके पुराने 44 श्रम कानूनों को लागू करने की मांग की गई.
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में विभिन्न संगठनों ऐक्टू, भाकपा(माले) लिबरेशन, सीटू, माकपा, एटक, भाकपा, छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन, छत्तीसगढ़ श्रमिक मंच, बीएसएनएल यूनियन, एचएमएस, एआईवाईएफ के द्वारा केन्द्र सरकार की राष्ट्र विरोधी, जन विरोधी नीतियों पर तीव्र आक्रोश जार्हि करते हुए एक ज्ञापन माननीय प्रधानमंत्री के नाम कलेक्टर, दुर्ग को सौंपा गया.
ज्ञापन में मांग किया गया है कि डीजल, पेट्रोल, एलपीजी की बढ़ती कीमतों को तत्काल कम किया जाये. सभी सार्वजनिक तथा सरकारी क्षेत्रों के निजीकरण, विनिवेशीकरण व ठेकाकरण पर रोक लगायी जाये. किसान विरोधी 3 कानून व मजदूर विरोधी 4 श्रम कोडों को निरस्त किया जाये और एमएसपी की कानूनी गांरटी सुनिश्चित की जाये.
संगठनों द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि ‘जनता के धन की लूट’ और ‘कारपोरेट घरानों को छूट’ नहीं चलेगी. बैंको की निजीकरण के खिलाफ 15-16 मार्च को चल रही हड़ताल तथा 17-18 मार्च को बीमा कर्मचारियों की हड़ताल के साथ पूरी एकजुटता प्रगट किया गया. रेल के किराए में की गई बेतहाशा वृद्धि को वापस लेने तथा रेल परिचालन को सामान्य करने की मांग की गई. प्रतिनिधिमंडल मे बृजेन्द्र तिवारी, आईके वर्मा, अशोक खातरकर, राजकुमार गुप्त, आरएस भट्ट, प्रेम सिंह चंदेल, धीरेंद्र सिंह, शमीम कुरैशी, देवानंद चौहान, ढालेश साहू, कमलेश निर्मजकर, संतोष वर्मा आदि शामिल थे.